शनिवार, 26 फ़रवरी 2011
मुझे शर्म आती है...........
हमारी आजादी में बसे सपनों को सजाने वाले माली सजाते सजाते चले गए और जब फूल महके और उनकी खुशबू हम ले रहे हैं। बहुत खुश है, खुली हवा में सांस लेना , मनमाने ढंग से जीना और स्वछंद आचरण कोई किसी के प्रति जिम्मेदार नहीं क्योंकि हम आजाद हैं।
इस आजाद शब्द से जुड़ा वह शहीद जिसे चन्द्र शेखर आजाद कहा जाता है, वह आजाद ही जिए और आजाद ही मरे । किन्तु इस 'मरे ' शब्द की जिम्मेदार हम ही हैं न। नहीं तो वह आजाद क्रांतिकारी दूसरा इतिहास रच गया होता। वह गद्दारी के शिकार न हुए होते और मुझे यह कहते हुए शर्म भी नहीं आती कि वह गद्दार उसी शहर का वासी था जो मेरी जन्मभूमि है।
यह बात मुझे बहुत बाद में पता चली। आजादी के बहुत वर्षों बाद 'चन्द्र शेखर आजाद' की पिस्तौल देश भ्रमण के लिए लायी गयी थी। एक कांच के कटघरे में रखी थी . जब मेरे घर के सामने से गुजरी तो मैं भी खिड़की से देख रही थी. उसको मेरे घर के सामने स्थित डी वी डिग्री कालेज में दर्शनार्थ रखा गया था। कालेज के नई पीढ़ी के छात्रों में जोश भी था और रोष भी था। वे सड़कों पर 'वीरभद्र तिवारी ' मुर्दाबाद के नारे लगा रहे थे।
उस दिन वीरभद्र तिवारी के घर को प्रशासन ने फोर्स से घेर दिया था ताकि युवा जोश में उसको कोई नुक्सान न पहुंचा सकें। ये वही वीरभद्र तिवारी था जिसने अंग्रेजों को इलाहबाद के अल्फ्रेड पार्क में आजाद के होने की सूचना देकर मुखबरी की थी और आजाद मन आजाद ने खुद को वहीं गोली मारकर ख़त्म कर दिया था। आज चन्द्र शेखर आजाद के शहीद दिवस पर याद करते हुए मन भारी हो उठा है।
उस शहर में कितने क्रांतिकारी हुए इसकी गणना करने का मन नहीं करता लेकिन उन सभी के संघर्ष को एक गद्दार ने कलंकित कर दिया। ये सोच कर मुझे शर्म आती है कि मैं उसी जगह की हूँ जहाँ ऐसा गद्दार भी था।
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
sharm to aaj bhi bahut saari baaton per aati hai
जवाब देंहटाएंअमर शहीद को मेरा नमन, वाकई आज भी गद्दारों से भरा है हमारा देश, अन्दर तक झकझोर दिया आपने, मुझे ये कहते हुए शर्म आ रही है कि मुझे मालुम ही नहीं था कि आज आज़ाद का शहीद दिवस है! बहुत धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंगद्दारों पर समय व्यर्थ न करें, शहीदों को सम्मान दें।
जवाब देंहटाएंअमर शहीद चन्द्र शेखर आजाद को नमन
जवाब देंहटाएंप्रवीण जी की सलाह गौर करने योग्य है !
जवाब देंहटाएंशहीदों के चिताओ पर लगेंगे हर बरस मेले , गद्दारों का किसको ख्याल है .
जवाब देंहटाएंsharam karne ko to aur bhi bahut kuchh hai ..parantu use bhool kar shaheedon ka smman ham kar len vahi bhaut hai.
जवाब देंहटाएंप्रवीण जी के साथ हूं.
जवाब देंहटाएंbilkul sach...praveen jee ki chhoti si kathan me sachchai hoti hai...main bhi unke saath hooon!
जवाब देंहटाएंप्रवीण जी,
जवाब देंहटाएंमैंने तो ये देखा है कि हमारे पास शहीदों को नमन करने का समय नहीं है. याद दिलाने पर भी सर नहीं झुका पाते हैं. हाँ अगर कोई चटपटा लेख हो तो वहाँ पर ढेरों लोग पहुच जायेंगे अपनी रूचि और अरुचि दिखाने के लिए. ये रुझान है हम लिखने वालों का.
आज़ाद को नमन .... इनसे सम्बंधित एक पुस्तक पढ़ी थी ...आज़ाद की पिस्तौल और उसके गद्दार साथी ...लेखक हैं धेमेंद्र गौढ़ ....उसमें बहुत से गद्दार साथियों का ज़िक्र है ...उनमें से कुछ को बाद में राजकीय सम्मान भी मिला है ...सच शर्म आती है यह सब जान कर
जवाब देंहटाएंसंगीता जी आप द्वारा उल्लिखित पुस्तक "आज़ाद की पिस्तौल और उसके गद्दार साथी" ...लेखक धेमेंद्र गौढ़ कैसे, कहाँ और किस के पास मिल सकती है.
जवाब देंहटाएंवीरभवीर तिवारी की गद्दारी के साथ उनके जीवन परिवार और चंद्रशेखर की मौत के बाद उनकी गतिविधियों की जानकारी इस घटना को समझने में अधिक सहायक होगी
जवाब देंहटाएंChandrasekhar ajad ko salam
जवाब देंहटाएंBkwas
जवाब देंहटाएं