www.hamarivani.com

शनिवार, 20 अप्रैल 2013

जिम्मेदार हम भी हैं !

                   रोज रोज की घटनाएँ हमें क्या दिखा रही हैं? हमारी ही तस्वीर , जिसे हम खुद गढ़ रहे हैं . दोष अगर हम अपने बच्चों को  दें तो फिर हम से अधिक समझदार  और कोई हो ही नहीं सकता है . कभी कभी तो हम उसका दोष दूसरों भी मढ़ने से नहीं चूकते है .
                             मेरी एक मित्र खुद बहुत अच्छे पद पर हैं और पतिदेव भी . बड़ा बेटा वाकई योग्य निकला और वह इंजीनियरिंग के बाद आइ ए  एस  बन गया .  जरूरी तो नहीं कि  सारे बच्चे एक ही तरह के निकलें . छोटा बेटा अभी अभी बालिग़ होने वाला है लेकिन उसके हाथ में गाड़ी है और खर्च करने के लिए पैसे भी . दोस्तों की फौज होना तो बड़े घर के बच्चों की शान ही होती है.
                             एक रात शराब पीकर गाड़ी चलते हुए एक्सीडेंट कर दिया और तुरंत पकड़ में भी आ गए क्योंकि एक्सीडेंट थाने  के आस पास ही हुआ था . पुलिस ने उन्हें साथियों सहित  बंद कर दिया  वो रात में पहले पुलिस वालों को डराने का प्रयास करता रहा कि  मेरे पापा ये हैं और मेरा भाई ये है लेकिन शायद पुलिस वाले उस समय  विश्वास नहीं कर रहे होंगे और उन्होंने छोड़ा नहीं और समाचार अखबार में आ गया . जब मैंने पढ़ा तो मेरी समझ आ गया कि  ये बिगड़े हुए नवाब कौन है? लेकिन दूसरे ही दिन के बाद इस खबर का कोई आगे का  हाल नहीं मिला कि पुलिस ने केस फाइल किया भी या नहीं और फिर कोई समाचार नहीं मिला . मैंने तो उसके घर जाना उचित नहीं समझा  क्योंकि हो सकता है कि वे समझें कि लोग उनके उपहास के लिए पूछने आ रहे हैं .
                      इस बिगड़े हुए बेटे के कार्य कलापों में क्या माता - पिता की कोई भी भूमिका नहीं है ? है  और शत प्रतिशत वे इसके लिए जिम्मेदार है . माना आप बहुत अच्छे और सम्मानीय लोग है लेकिन इस घटना के बाद एक मैं क्या उनके जानने वाले करीब करीब सभी लोगों ने यही कहा होगा की बच्चों की परवरिश हम पूरी पूरी सुख और सुविधा अपनी हैसियत के अनुसार देते ही हैं लेकिन जब हम उनकी नाजायज मांगों को मान लेते हैं या फिर बच्चे को अपने स्टेटस के अनुसार रखने की सोच बना लेते हैं तो वह हमारे लिए ही भारी पड़ता है. हम व्यस्त है लेकिन कितना ? अपने बच्चे के लिये कुछ तो समय निकाल  ही सकते हैं . हम अपनी जीवन शैली में कुछ तो परिवर्तन कर सकते हैं, कितनी ही व्यस्तता हो फिर भी बच्चे की शिक्षा और उसके आचरण के प्रति आपको सजग रहना होगा . रोज न सही लेकिन कभी कभी तो आप उसके कॉलेज में जाकर उसके बारे में पता कर ही सकते है . अगर नहीं कर सकते हैं तो हम गैर जिम्मेदार अभिभावक कहे जाएंगे .
                       बच्चों को बाइक देना तो अब जरूरी समझा  जाने लगा है क्योंकि स्कूल उनके दूर दूर होते हैं और बाइक हाथ में आते ही उनके पीछे बैठने वाले दोस्तों की भी कमी नहीं रहती है.  वे सब किस आचरण के हैं उसका प्रभाव आपके बच्चे पर जरूर ही पड़ेगा . आप उसके मित्रों पर भी नजर रख सकते हैं . ऐसे मित्र कभी न कभी घर पर भी आते रहते हैं और आप अपने परिपक्व होने के साथ ऐसे लोगों को पहचानने की क्षमता रखते जरूर हैं . बच्चों के जेब खर्च को एक सीमा में रखिये . इतना भी न दीजिये कि वे दोस्तों के साथ होटलों या फिर रेस्टोरेंट में जाकर रोज पार्टियाँ करें , ड्रिंक पार्टी एक आम चलन हो चुक  है. जेब खर्च दीजिये लेकिन ऐसा नहीं कि  उसके दुरूपयोग से वे अपनी दिशा भटक जाएँ .
                       बच्चों में चाहे लड़कियाँ हों या फिर लडके घर वापस लौटने की भी एक सीमा निश्चित कीजिये कि  उन्हें इस समय तक घर आना ही होगा . पार्टियाँ बड़े घर के बच्चों की देर से शुरू होकर देर तक चलती हैं , ये आधुनिकता की निशानी आप मान सकते हैं लेकिन ये स्वस्थ मानसिकता की निशानी तो बिलकुल भी नहीं है.  ये नहीं कि  उनके लौटने की कोई समय सीमा ही न हो . कई बार माता - पिता अपने आराम को ध्यान में रखते हुए एक चाबी बेटे को भी दे देते हैं कि  अगर वे देर से लौटें तो उनकी नीद ख़राब न हो , लेकिन शायद वे ये भूल जाते हैं की सिर्फ कभी कभी नींद ख़राब होने को बचने के लिए आप जीवन भर के लिए अपने बच्चे को दिन का चैन और रात की नींद ख़राब करने की छूट दे रहे है .
                          उनका बच्चा रात दो बजे घर से बाहर  घूम रहा है और माता - पिता निश्चिन्त कैसे रह सकते हैं? मोबाइल तो हर बच्चे के पास होता है फिर कैसे उनकी स्वतन्त्रता पर अंकुश लगाने की बात एक समझदार माता पिता नहीं सोचते हैं . किशोरों का अमर्यादित आचरण सिर्फ इसी बात और छूट का परिणाम है की माता - पिता जरूरत से अधिक पैसे और ऐशो आराम के साधनों को बच्चों को सौंप देते है .
                          बच्चों के कमरे और उसमें सभी आधुनिक संसाधन होना  कोई  नई  बात नहीं है. फिर  कमरे में उन संसाधनों के दुरूपयोग को तो आप नहीं रोक सकते हैं . हर बच्चा इतना समझदार भी नहीं होता है कि  वह उसका उचित प्रयोग ही करे. सुविधाएँ प्रदान जरूर करें लेकिन उसके प्रयोग पर एक नजर भी रखना बहुत जरूरी होता है. जो संसाधन उन्हें प्रदान करें उसमें अपनी दखल भी बनायें ताकि उनके प्रयोग पर नजर रखी जा सके . ये कोई गलत काम करने की वजह से  नहीं  बल्कि हमारे बच्चे उस दौर से गुजर रहे  हैं जहाँ उनके भटक जाने की पूरी पूरी गुंजाइश होती है . उसे रोकने के लिए या दिशा भटकने से पहले ही हम उन्हें रोक सकते है .
     जिम्मेदार हम भी हैं !

10 टिप्‍पणियां:

  1. आधुनिकता के इस झमेले में अभिभावकों को सचेत भी रहना होगा ..बहुत सटीक और ज़रूरी बिंदु रेखांकित किये हैं आपने

    जवाब देंहटाएं
  2. सच कहा ...आज आधुनिकता के नाम पर बच्चों को जो छूट मिली है उससे भी वातावरण खराब हो रहा है ...

    जवाब देंहटाएं
  3. ईमानदारी से कमाया होता तो पैसे की कदर जानते,बच्चों पर नियंत्रण रखते बेहिसाब सहूलियतें नहीं दे पाते तब न ये संस्कार बच्चों पर आते न इतनी छूट मिलती.

    जवाब देंहटाएं
  4. एक बार फिर बेहतरीन पेशकश |काश यह सभी माता पिता समझ पाते तो समाज ऐसा न होता |

    जवाब देंहटाएं
  5. बिलकुल वाजिब बात कही है आपने ! पैसा अधिक आ जाने का अर्थ यह नहीं होता कि बच्चों को आधुनिक जीवन शैली की सभी बुरी आदतों को अपनाने की छूट दे दी जाये ! ये ही बच्चे समाज के भावी नागरिक होते हैं ! जो स्वयं भटके हुए होंगे वे अपने बच्चों को कैसे अच्छे संस्कार दे पायेंगे ! बहुत बढ़िया आलेख !

    जवाब देंहटाएं
  6. जी हाँ बिलकुल ठीक कहा आपने वैसे मेरा बेटा तो अभी बहुत छोटा है लेकिन जितनी मेरी समझ कहती है उसके मुताबिक अपने बच्चों से संवाद बनाए रखना ही इस समस्या से निजात दिला सकता है।

    जवाब देंहटाएं
  7. बिलकुल शत प्रतिशत सहमत हूँ आपकी बात से ..एक बात और ..बच्चों को ऐशो आराम मुहैया कराने में कोई बुराई नहीं .है ..लेकिन साथ साथ हर चीज़ की गरिमा का भी अहसास कराने की ज़रुरत है ...छूट देने में भी कोई बुराई नहीं ..मगर साथ ही साथ सही और गलत का भेद भी बताना ज़रूरी है ...ताकि बच्चे इतने परिपक्व हो जायें की किसी भी चीज़ का दुरूपयोग न करें ....इसके लिए माता पिता को कुछ समय अपने बच्चों को भी देने की ज़रुरत है ...

    जवाब देंहटाएं
  8. हाँ सरस जी आपका कहना सही है , हम सब कुछ दे सकते हैं लेकिन उन चीजों के बाद के प्रभाव को ध्यान में रखते हुए उनको सजग भी करने की जरूरत होती है. वे तो उम्र के उस पड़ाव पर होते हैं कि उन्हें सही और गलत का अहसास नहीं हो पाता है. उन्हें इससे अवगत कराना हमारा काम है .

    जवाब देंहटाएं
  9. आज माता-पिता को चरित्र दिखायी नहीं दे रहा है बस बच्‍चों के केरियर के नाम पर विशिष्‍टता दिखायी दे रही है। साथ ही अपने पैसे का रौब भी समाज को दिखाना चाहते है, इसकारण बच्‍चों को सारी सुविधा देते हैं।

    जवाब देंहटाएं

ये मेरा सरोकार है, इस समाज , देश और विश्व के साथ . जो मन में होता है आपसे उजागर कर देते हैं. आपकी राय , आलोचना और समालोचना मेरा मार्गदर्शन और त्रुटियों को सुधारने का सबसे बड़ा रास्ताहै.