१४ सितम्बर हिंदी दिवस घोषित किसने किया - हमारी सरकार ने क्योंकि आजादी के इतने वर्षों बाद भी सरकारी स्तर पर उसको उसकी जगह दिला पाने में असमर्थ रही है और रही नहीं है बल्कि आज भी है. तभी अपनी नाकामी पर परदा डालने के लिए हिंदी माह , हिंदी पखवारा , हिंदी सप्ताह और हिंदी दिवस अपने प्रयासों को प्रदर्शित करने का एक प्रयास मात्र है।जब कि देश को राजभाषा की दुर्दशा पर कहने का एक अवसर प्रदान किया जाता है।
सरकारी प्रयासों से इसमें कुछ होने वाला नहीं है , वह सिर्फ एक औपचारिकता मात्र है। अभी पिछले दिनों सर्वोच्च न्यायालय ने किसी जानकारी को हिंदी में देने से इनकार कर दिया , आखिर क्यों ? क्या हमारे लिए अपनी राजभाषा में कोई सरकारी सूचना प्राप्त करने की मांग करना न्यायसंगत नहीं है। जब हमारे सरकारी तंत्र में यह रवैया चल रहा है फिर इस हिंदी के दिवस , सप्ताह , पखवारा या माह का क्या औचित्य है ?
आज के दिन हिंदी की वकालत करते हुए हिंदी में काम करने को बढ़ावा देने की बात करते हैं और दिवस के गुजरते ही सब बातें एक साल के लिए दफन कर जाती है। जब हमारी सरकारी नीतियां ऐसी हैं हिंदी की दुर्दशा के लिए किसी और को दोषी कैसे कह सकते हैं ? कम वाले आमदनी वाले अभिभावक भी बच्चों को अंग्रेजी माध्यम से पढाना पसंद करते हैं और फिर उसके लिए ट्यूशन भी रखने के लिए मजबूर होते हैं। क्यों करते हैं ऐसा क्योंकि वे अंग्रेजी के महिमा मंडन से परिचित होते हैं। अंग्रेजी माध्यम से बुरा नहीं है लेकिन स्कूल में हिंदी की उपेक्षा और पाठ्यक्रम में उसके विषयवस्तु का ठीक से चयन न करना ही इसका सबसे बड़ा कारण है . जब संसद में हिंदी भाषी प्रदेश के सांसद अंग्रेजी में बोल कर अपने आपको विद्वान सिद्ध करने की कोशिश करते हैं और प्रधानमंत्री अपनी मेधा से हिंदी में भाषण देने में स्वयं को असमर्थ पाते हैं तो फिर हिंदी भाषी लोग अपने लिए कहाँ जगह खोजें ? आम आदमी चिल्लाता रहे कि हिंदी को आगे लाओ लेकिन सरकारी तंत्र आज भी अंग्रेजों का मुंहताज है। जहाँ तक मुझे पता है की करीब करीब सभी संस्थानों में हिंदी प्रभाग और हिंदी अधिकारी का पद होता है लेकिन वहां वह हिंदी को बढ़ावा देने के लिए होता है यह तो वहां पता चल सकेगा ?
सरकार क्या कर रही है और उसके क्या करना चाहिए ? बस इतना कि अपने बच्चों को घर में हिंदी ही बोलने को कहें और उनको इसा भाषा में अपने ज्ञान को भी बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करें। वे स्कूल या कॉलेज के अलावा घर में अधिक सुधारे जा सकते हैं।
स्कूल में हिंदी ज्ञान के नाम पर चुटकुला नहीं कहेंगे बल्कि ये वास्तविकता है कि प्राइमरी स्कूल में कुछ अधिकारी औचक निरीक्षण के लिए गए तो वहां पर बच्चे मातृभूमि शब्द शुद्ध नहीं लिख पाए और फिर जब शिक्षिका जी ने लिखा तो वह भी गलत था। अधिकारी ने खुद लिख कर कहा - मैडम आप तो सही जानकारी रखिये नहीं तो इन बच्चों को क्या पढ़ाएंगी?
ये हमारी शिक्षा के नाम पर एक बदनुमा दाग के अलावा कुछ भी नहीं है।
सरकारी प्रयासों से इसमें कुछ होने वाला नहीं है , वह सिर्फ एक औपचारिकता मात्र है। अभी पिछले दिनों सर्वोच्च न्यायालय ने किसी जानकारी को हिंदी में देने से इनकार कर दिया , आखिर क्यों ? क्या हमारे लिए अपनी राजभाषा में कोई सरकारी सूचना प्राप्त करने की मांग करना न्यायसंगत नहीं है। जब हमारे सरकारी तंत्र में यह रवैया चल रहा है फिर इस हिंदी के दिवस , सप्ताह , पखवारा या माह का क्या औचित्य है ?
आज के दिन हिंदी की वकालत करते हुए हिंदी में काम करने को बढ़ावा देने की बात करते हैं और दिवस के गुजरते ही सब बातें एक साल के लिए दफन कर जाती है। जब हमारी सरकारी नीतियां ऐसी हैं हिंदी की दुर्दशा के लिए किसी और को दोषी कैसे कह सकते हैं ? कम वाले आमदनी वाले अभिभावक भी बच्चों को अंग्रेजी माध्यम से पढाना पसंद करते हैं और फिर उसके लिए ट्यूशन भी रखने के लिए मजबूर होते हैं। क्यों करते हैं ऐसा क्योंकि वे अंग्रेजी के महिमा मंडन से परिचित होते हैं। अंग्रेजी माध्यम से बुरा नहीं है लेकिन स्कूल में हिंदी की उपेक्षा और पाठ्यक्रम में उसके विषयवस्तु का ठीक से चयन न करना ही इसका सबसे बड़ा कारण है . जब संसद में हिंदी भाषी प्रदेश के सांसद अंग्रेजी में बोल कर अपने आपको विद्वान सिद्ध करने की कोशिश करते हैं और प्रधानमंत्री अपनी मेधा से हिंदी में भाषण देने में स्वयं को असमर्थ पाते हैं तो फिर हिंदी भाषी लोग अपने लिए कहाँ जगह खोजें ? आम आदमी चिल्लाता रहे कि हिंदी को आगे लाओ लेकिन सरकारी तंत्र आज भी अंग्रेजों का मुंहताज है। जहाँ तक मुझे पता है की करीब करीब सभी संस्थानों में हिंदी प्रभाग और हिंदी अधिकारी का पद होता है लेकिन वहां वह हिंदी को बढ़ावा देने के लिए होता है यह तो वहां पता चल सकेगा ?
सरकार क्या कर रही है और उसके क्या करना चाहिए ? बस इतना कि अपने बच्चों को घर में हिंदी ही बोलने को कहें और उनको इसा भाषा में अपने ज्ञान को भी बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करें। वे स्कूल या कॉलेज के अलावा घर में अधिक सुधारे जा सकते हैं।
स्कूल में हिंदी ज्ञान के नाम पर चुटकुला नहीं कहेंगे बल्कि ये वास्तविकता है कि प्राइमरी स्कूल में कुछ अधिकारी औचक निरीक्षण के लिए गए तो वहां पर बच्चे मातृभूमि शब्द शुद्ध नहीं लिख पाए और फिर जब शिक्षिका जी ने लिखा तो वह भी गलत था। अधिकारी ने खुद लिख कर कहा - मैडम आप तो सही जानकारी रखिये नहीं तो इन बच्चों को क्या पढ़ाएंगी?
ये हमारी शिक्षा के नाम पर एक बदनुमा दाग के अलावा कुछ भी नहीं है।
स्थितियाँ सही नहीं है, अंग्रेजी दीमक हिन्दी को खाये जा रही है।
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