आज की जीवन शैली और जीवन में बढ़ता तनाव - इंसान को परेशान करके रखा है। चाहे ऑफिस वालों , चाहे बिज़नेस वालों या फिर चाहे कभी कॉर्पोरेट जगत में लगे लोग हों। अपनी जगह को , अपनी साख को या फिर अपने परिवार को सुख से रखने के लिए संघर्ष की स्थिति से गुजरने वालों लोगों की संख्या करीब करीब 80 % है। इसमें महिला और पुरुष दोनों ही है लेकिन महिला इस स्थिति को काफी हद तक सहन करके बाहर निकल आती है क्योंकि उसको उसके बाद घर बच्चे और परिवार के प्रति अपने दायित्व भी निभाने होते हैं। लेकिन पुरुष वर्ग घर में आकर अधिकतर चित्त हो जाता है वैसे तो कहते हैं कि पुरुष अधिक सहनशील होता है लेकिन मेरे अपने अनुभव के अनुसार नारी अधिक सहनशील और संघर्षशील होती है।
बात यहाँ इन सबसे आराम पाने की है। सिर दर्द और तनाव की स्थिति सबसे अधिक सामने आ रही है और इसके लिए हम विज्ञापन टीवी पर , अखबार में और वह भी बड़े बड़े सेलिब्रिटीज के द्वारा प्रचार करते हुए मिल जाते हैं। वाकई कुछ वर्षों पहले मैं भी इस बात को अनुभव करती थी कि जल्दी से आराम मिले। सिर दर्द में ठण्डे तेल की भूमिका बहुत ही सार्थक मानी और दर्शायी जा रही है और इससे त्वरित आराम भी मिल जाता है। खासतौर पर गर्मियों में तेज धूप के थपेड़ों से परेशान होकर सबसे पहले सिर में दर्द ही शुरू होता है। अब तो इस ठण्डे तेल पान मसाले की तरह से १ या २ रुपये के छोटे छोटे पाउच में भी आने लगा है।
आज अचानक एक शोध के विषय में पढ़ कर लगा कि हममें से कितने इसको प्रयोग कर रहे हैं और इसके बारे में पूरी तरह से जानते भी नहीं है। इसका स्याह पहलू ये है कि इसके प्रयोग से इंसान धीरे धीरे अंधेपन की और बढ़ता चला जा रहा है। इस बात की पुष्टि बी एच यू स्थित सर सुन्दरलाल चिकित्सालय के न्यूरोलॉजी की ओ पी डी ने की है। यहाँ पर ऐसे मरीज मिले जिनकी ठण्डे तेल के प्रयोग से आँखों की रोशनी चली गयी . वहां के डॉ ने बताया कि यहाँ पर २१ मरीज अंधेपन और सिरदर्द की शिकायत लेकर पहुंचे। पता चला कि वे सभी लगभग दस वर्षों से या उससे लम्बे समय से सिर पर नियमित रूप से ठंडा तेल लगाते चले आ रहे थे। जब उनका टेस्ट करवाया गया तो पता चला - कोटेक्स और पेरिबेलम नस गल चुकी थी . ऐसे लोगों के सामने आने के बाद वहां पर ३०० सिरदर्द के मरीजों पर अध्ययन शुरू किया गया, जो पिछले पाँच वर्षों से ठण्डे तेल का प्रयोग कर रहे थे। इनमें ३० प्रतिशत लोगों को मिर्गी और शेष में माइग्रेन तेजी से बढ़ रहा था। उनका इलाज न्यूरोलॉजी विभाग में चल रहा है।
इस तथ्य को पता करने के लिए न्यूरोलॉजी विभाग की टीम ने ठण्डे तेल के गुण - तत्वों को पता करने के लिए चूहों और खरगोशों पर शोध करना शुरू किया। पाया गया कि ठण्डे तत्वों से बने सब्सटैंस में नशे की लत भी होती है जो बिना खाए या स्मोक किये ही नशेड़ी बनाती है। शोध के बाद ये ज्ञात हुआ कि चूहों और खरगोशो पर किये गए प्रयोग से उनकी कोटेंक्स और पेरिबेलम नसें गलने लगी। ये शोध पत्र सितम्बर २०१३ में बी एच यू के न्यूरोलॉजी विभागाध्यक्ष प्रो. वी एन मिश्र ने राष्ट्रीय न्यूरोलॉजी एकेडमी की संगोष्ठी, इंदौर में प्रस्तुत किया था। ये अवलोकन ' जर्नल ऑफ़ मेडिकल साइंस एंड क्लीनिकल रिसर्च ' में प्रकाशित हो चुका है।
कृपया इस विषय को गंभीरता से लें और इसके विषय में और लोगों को भी अवगत कराएं। ठंडा ठंडा - कूल कूल :
बात यहाँ इन सबसे आराम पाने की है। सिर दर्द और तनाव की स्थिति सबसे अधिक सामने आ रही है और इसके लिए हम विज्ञापन टीवी पर , अखबार में और वह भी बड़े बड़े सेलिब्रिटीज के द्वारा प्रचार करते हुए मिल जाते हैं। वाकई कुछ वर्षों पहले मैं भी इस बात को अनुभव करती थी कि जल्दी से आराम मिले। सिर दर्द में ठण्डे तेल की भूमिका बहुत ही सार्थक मानी और दर्शायी जा रही है और इससे त्वरित आराम भी मिल जाता है। खासतौर पर गर्मियों में तेज धूप के थपेड़ों से परेशान होकर सबसे पहले सिर में दर्द ही शुरू होता है। अब तो इस ठण्डे तेल पान मसाले की तरह से १ या २ रुपये के छोटे छोटे पाउच में भी आने लगा है।
आज अचानक एक शोध के विषय में पढ़ कर लगा कि हममें से कितने इसको प्रयोग कर रहे हैं और इसके बारे में पूरी तरह से जानते भी नहीं है। इसका स्याह पहलू ये है कि इसके प्रयोग से इंसान धीरे धीरे अंधेपन की और बढ़ता चला जा रहा है। इस बात की पुष्टि बी एच यू स्थित सर सुन्दरलाल चिकित्सालय के न्यूरोलॉजी की ओ पी डी ने की है। यहाँ पर ऐसे मरीज मिले जिनकी ठण्डे तेल के प्रयोग से आँखों की रोशनी चली गयी . वहां के डॉ ने बताया कि यहाँ पर २१ मरीज अंधेपन और सिरदर्द की शिकायत लेकर पहुंचे। पता चला कि वे सभी लगभग दस वर्षों से या उससे लम्बे समय से सिर पर नियमित रूप से ठंडा तेल लगाते चले आ रहे थे। जब उनका टेस्ट करवाया गया तो पता चला - कोटेक्स और पेरिबेलम नस गल चुकी थी . ऐसे लोगों के सामने आने के बाद वहां पर ३०० सिरदर्द के मरीजों पर अध्ययन शुरू किया गया, जो पिछले पाँच वर्षों से ठण्डे तेल का प्रयोग कर रहे थे। इनमें ३० प्रतिशत लोगों को मिर्गी और शेष में माइग्रेन तेजी से बढ़ रहा था। उनका इलाज न्यूरोलॉजी विभाग में चल रहा है।
इस तथ्य को पता करने के लिए न्यूरोलॉजी विभाग की टीम ने ठण्डे तेल के गुण - तत्वों को पता करने के लिए चूहों और खरगोशों पर शोध करना शुरू किया। पाया गया कि ठण्डे तत्वों से बने सब्सटैंस में नशे की लत भी होती है जो बिना खाए या स्मोक किये ही नशेड़ी बनाती है। शोध के बाद ये ज्ञात हुआ कि चूहों और खरगोशो पर किये गए प्रयोग से उनकी कोटेंक्स और पेरिबेलम नसें गलने लगी। ये शोध पत्र सितम्बर २०१३ में बी एच यू के न्यूरोलॉजी विभागाध्यक्ष प्रो. वी एन मिश्र ने राष्ट्रीय न्यूरोलॉजी एकेडमी की संगोष्ठी, इंदौर में प्रस्तुत किया था। ये अवलोकन ' जर्नल ऑफ़ मेडिकल साइंस एंड क्लीनिकल रिसर्च ' में प्रकाशित हो चुका है।
कृपया इस विषय को गंभीरता से लें और इसके विषय में और लोगों को भी अवगत कराएं। ठंडा ठंडा - कूल कूल :
बहुत अच्छी लाभप्रद जानकारी प्रस्तुति के लिए धन्यवाद ..
जवाब देंहटाएंगर्मी में ठंडा ठंडा - कूल कूल खतरनाक हो सकता है यह तो पता ही न था हमको ...
बहुत अच्छी लाभप्रद जानकारी प्रस्तुति के लिए धन्यवाद .
VERY USEFUL POST .THANKS REKHA JI
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (28-04-2014) को "मुस्कुराती मदिर मन में मेंहदी" (चर्चा मंच-1596) पर भी होगी!
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
लाभप्रद जानकारी शेयर करने के लिए धन्यबाद।
जवाब देंहटाएंसार्थक आलेख !!
जवाब देंहटाएंओह्ह्ह.... चलो अच्छा हुआ, मैने इसे कभी नहीं लगाया
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