हर साल की तरह फिर १ मई आई और मजदूर दिवस के लिए अखबारों में कुछ देख छपे . सरकारी कार्यालयों में छुट्टी हो गयी और वे मजदूर जो वास्तव में मजदूर हैं - उन्हें तो इसका अर्थ भी नहीं मालूम है . सरकारी दस्तावेजों में जो मजदूर दर्ज हैं वे तो हजारों और लाखों आम इंसानों से ज्यादा आरामदेह और पैसे से सक्षम व्यक्ति हैं क्योंकि वे सरकारी कर्मचारी है और उनको सवेतन छुट्टी भी मिलती है। उन्हें आज परिश्रम करके आज ही खाने की मजबूरी नहीं है , उन्हें काम पर न जाने से पैसे कटने का डर नहीं है , उन्हें मालिक या मालकिन की झिड़कियां खाने का डर नहीं है। उन्हें किसी मई दिवस की जरूरत भी नहीं है क्योंकि उन्हें तो पूरे साल में ढेरों छुट्टियां सरकार खुद ही देती रहती है।
फिर ये मई दिवस सरकार कैसे मनाये ? अगर उसको सुझाव दिया जाए तो सरकार सख्ती से सारे गैर सरकारी , निजी क्षेत्र में काम करने वाले मजदूरों को एक दिन का वेतन स्वयं दे या फिर उसके मालिक से दिलवाने की व्यवस्था करे। असंगठित मजदूरों के लिए भी एक दिन की छुट्टी और एक दिन का अतिरिक्त वेतन दिलवाने के लिए कुछ कड़े कदम उठाये। मजदूर सिर्फ वे ही नहीं है जो दूसरे के लिए काम करें , मजदूर वे भी है - जो रिक्शा चलाते हैं , जो बोझा ढोते हैं , घर घर जाकर काम करने वाली महिलायें , निर्माण या रंगाई पुताई करने वाले मजदूर भले ही वे अपने स्वयं के प्रयास से काम करते हों लेकिन उनके बारे में भी सरकार को सोचना चाहिए। वे इस विशाल लोकतान्त्रिक देश के सदस्य है और सरकार के चयन में उनकी भूमिका उतनी है अहम होती है जितनी कि एक करोड़पति की। उनकी ओर भी देखे सरकार - सिर्फ सरकार ही क्यों? हमें भी तो देखना चाहिए। हम अपना मकान बनवा रहे हैं , उसका पुनरुद्धार करवा रहे हैं , या फिर पेटिंग करवा रहे हैं तो आज के दिन उन्हें छुट्टी देकर और उनकी मजदूरी देकर कुछ भला कर सकते हैं। क्या ऐसा संभव है ? सिर्फ हमें अपने आप से एक सवाल करना चाहिए। अगर हाँ तो फिर मई दिवस की सार्थकता आपके प्रयास से ही संभव है। हम धार्मिक पर्वों पर दान करके पुण्य कमाने की लालसा से कुछ न कुछ दान करते हैं तो क्या इस गरीबों के पर्व पर हम कुछ पैसे , कपडे , या खाने का सामान दान कर सकते हैं। यकीन मानिए ये भी किसी धार्मिक पर्व पर किया गए दान से कम आपको पुण्य प्रदान नहीं करेगा। उस गरीब के दिल से जो दुआ निकलेगी वो हजारों और लाखों खर्च करके भी खरीदी नहीं जा सकती है।
हम दान किसको करते हैं ? उन भिखारियों को - जिनके पास हमारी दी हुई चीजों जैसी कई चीजें घरों में रखी होती हैं क्योंकि उन्हें तो हर कोई दान कर पुण्य कमाना जानता है लेकिन पुण्य मजबूर और जरूरतमंद को दिया हुआ दान सबसे अधिक पुण्यदायी होता है। हम अर्थ बदल सकते हैं अपने दान और पुण्य से इस दिवस का। सिर्फ कुछ लोग ही इस दिन को अपने मन से सोच कर अमल करें तो पता नहीं कितने मजदूरों के लिए ये मजदूर दिवस पर्व बन जाएगा।
आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (02.05.2014) को "क्यों गाती हो कोयल " (चर्चा अंक-1600)" पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, वहाँ पर आपका स्वागत है, धन्यबाद।
जवाब देंहटाएंहर कोई सोचे और अमल करे तो बहुत कुछ है सार्थक करने के लिये। छोटी छोटी ख़ुशी देने से बडा सुख मिलता है
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया सामयिक प्रस्तुति!.
VIcharniy Baat Kahi Aapne....
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज शुक्रवार (02-05-2014) को "क्यों गाती हो कोयल" (चर्चा मंच-1600) में अद्यतन लिंक पर भी है!
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
हमारे देश के हर नगर-कस्बे मे किसी चौराहे पर सुबह कूची,खुरपी,तसला ,कुल्हाड़ी आदि लिये मानव-शरीर किराए पर मिलते हैं सारे दिन खटने के लिए ,उन्हें दिन का रोज़गार मिल जाये यही बहुत है ,उनके लिए भी कुछ सोचना चाहिए .
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएंअच्छा विश्लेषण .....
जवाब देंहटाएंसीखने और समझने लायक लेख
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