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बुधवार, 21 मई 2014

माँ तुझे सलाम ! (८)



















































माँ ऐसा शब्द है कि हर इंसान के लिए बचपन से लेकर बड़े होने तक के सारे काल को और उनके स्नेह , कर्तव्य और समर्पण ही तो याद आता है।  कोई एक घटना होती ही नहीं है जिसमें माँ को बाँध कर प्रस्तुत किया जा सके।  असीम और अनंत ममता से लिपटी माँ को बस सब अपने मन में संजो कर रखे रहते हैं और जब अवसर मिला तो उनको निर्बाध गति से चलती हुई कलम लिपिबद्ध कर रचना  है।  अपने मन  भावनाओं को मूर्त रूप देकर प्रस्तुत कर रही हैं : साधना वैद्य।  






  
 
मातृ दिवस --- एक संस्मरण


कितना दुष्कर है ना गहरे सागर में डुबकी लगा बेशकीमती रत्नों के अनमोल खज़ाने में से किन्हीं एक दो मोतियों को चुन कर लाना और उनके आधार पर किसी “माँ’’ की ममता, उनके लालन पालन, उनके दिये संस्कारों और शिक्षा दीक्षा का आकलन करना ! लगभग बीस वर्ष तक जिस माँ के ममता भरे आँचल की छाँव तले हर दिन गुज़ारा, जिस अवधि का हर एक पल उनके अकथनीय प्यार, परिश्रम एवं अगाध समर्पण का महाकाव्य बन सकता है उसे चंद पंक्तियों में कैसे निबटा दूँ ! यूँ तो माँ ने अपने गृहस्थ जीवन का हर लम्हा हम बच्चों के चरित्र निर्माण एवं व्यक्तित्व को निखारने सँवारने में ही समर्पित कर दिया लेकिन फिर भी कुछ घटनायें ऐसी मेरे जीवन में घटीं कि उन दिनों अपने प्रति माँ की चिंता, प्रेम, परिश्रम एवं समर्पण ने मुझे अभिभूत कर दिया ! आज आपसे वैसी ही एक घटना शेयर करने जा रही हूँ !

सन् १९६२ के वसंत का महीना था ! पिताजी, श्री बृजभूषण लाल जी सक्सेना, की पोस्टिंग उन दिनों मध्य प्रदेश के रीवा शहर में थी ! मैं कक्षा ९ की छात्रा थी और शहर के ‘सुदर्शन कुमारी गर्ल्स हायर सेकेंडरी स्कूल’ में पढ़ने जाती थी ! माँ, श्रीमती ज्ञानवती सक्सेना ‘किरण’ जी, भी उन दिनों शाम की शिफ्ट में वहाँ के कॉलेज में एल.एल.बी. की क्लासेज़ अटेंड कर रही थीं ! उन दिनों स्कूल में वसंत पंचमी के अवसर पर सरस्वती पूजा का आयोजन धूमधाम से करने की प्रथा थी ! पूजा के लिये सरस्वती वन्दना गाने का दायित्व मुझे सौंपा गया था ! उन्हीं दिनों स्कूल में बी एड की छात्राओं की शिक्षण की प्रैक्टिकल परीक्षाएं भी चल रही थीं ! अच्छे नंबर पाने के लिये कक्षा की होशियार मानी जाने वाली छात्राओं के सहयोग की उन्हें भी अपेक्षा रहती थी ! वसंत पंचमी के दिन हमारी कक्षा में भी एक मैडम की प्रैक्टिकल परीक्षा थी और उन्होंने मुझसे बड़े आग्रह के साथ वचन ले लिया था कि मैं उनकी क्लास में अवश्य उपस्थित रहूँ ! हमारे ग्रुप की सभी सहेलियों ने यह तय किया था कि सभी लड़कियाँ वसंती फ्रॉक पहन कर सरस्वती पूजा के लिये स्कूल आयेंगी ! इतनी सारी वजहें और इतना महत्वपूर्ण आयोजन ! स्कूल से अनुपस्थित रहने का तो सवाल ही नहीं था !

घर पहुँच कर कपड़ों की अलमारी टटोली तो पाया कि एक भी फ्रॉक वसंती नहीं थी जो उत्सव के अवसर पर पहनी जा सके ! अब मम्मी के सिवाय और कौन सहारा हो सकता था ! “नयी फ्रॉक चाहिये”, “अभी बाज़ार चलो”, “रात को सिल देना”, “मुझे सुबह वही पहन कर स्कूल जाना है” वगैरह वगैरह ! मेरा रिकॉर्ड चालू हो गया था ! मम्मी का ब्लड प्रेशर भी उस दिन काफी हाई था ! लेकिन हमें कहाँ समझ थी इन सब बातों की ! जो ठान ली सो ठान ली ! अपनी लॉ की क्लासेज़ छोड़ कर हार कर मम्मी को हमारे साथ बाज़ार जाना पड़ा ! उन दिनों घर में हम लोगों के पास कोई वाहन नहीं था ! कहीं जाना हो तो रिक्शे का सहारा ही लेना होता था ! मम्मी ने मेरे लिये वसंती रंग के क्रेप का बहुत ही खूबसूरत फ्रॉक का कपड़ा खरीदा ! लौटते समय काफी अन्धेरा हो गया था ! अमहिया क्वार्टर्स, जहाँ हमारा घर था, मुख्य मार्ग से थोड़ी दूरी पर अंदर की तरफ स्थित थे ! क्वार्टर्स की तरफ मुड़ने के लिये मुख्य मार्ग से दो रास्ते थे ! बीच में कटीली झाड़ियों का एक बड़ा सा त्रिभुज बना हुआ था जिसमें सड़क के किनारे वाली लाइन में शायद बरसाती पानी के बहने के लिये गहरी नाली थी जो इन दिनों सूखी पड़ी थी ! बाज़ार से घर लौटते समय अँधेरे के कारण रिक्शे वाले को ठीक से दिखाई नहीं दिया और क्वार्टर्स की तरफ मुड़ने के लिये उसने रिक्शा पहले रास्ते से थोड़ा आगे बढ़ा कर झाड़ियों वाले हिस्से में मोड़ दिया जहाँ सड़क के किनारे गहरी नाली थी ! परिणामस्वरूप रिक्शा पलट गया और मम्मी व मैं दोनों ही काँटों वाली झाड़ियों के ऊबड़ खाबड़ मैदान में गिर गये ! सबसे पहले मुझे मम्मी की चिंता हुई ! उनका बी पी उस दिन बहुत बढ़ा हुआ था ! मैं भाग कर मम्मी के पास पहुँची ! उन्हें अधिक चोट तो नहीं लगी थी लेकिन उनके कपड़ों में काँटे घुस गये थे जिनकी वजह से वे खड़ी नहीं हो पा रही थीं ! उधर रिक्शे वाले को राहगीर मिल कर पीट रहे थे और वह करूण स्वर में रहम की भीख माँग रहा था ! उसके रिक्शे का अगला पहिया मुड़ कर दोहरा हो गया था ! घर पास ही था ! सबसे पहले तो मैंने रिक्शेवाले को बचाया ! फिर रिक्शे वाले की सहायता से मम्मी को उठा कर सुरक्षित जगह पर बैठाया ! उसके बाद भाग कर घर जाकर बाबूजी को दुर्घटना के बारे में सूचना दी ! बाबूजी ने रिक्शेवाले को बहुत सारे पैसे देकर उसके नुक्सान की भरपाई की ! और उसके बाद जैसे तैसे हम लोग घर पहुँचे ! अभी तक अपने बारे में सोचने की मुझे फुर्सत ही नहीं मिली थी ! अपनी ज़िद पूरी करने के लिये मम्मी को इतनी तकलीफ दी इसीका अपराध बोध मुझे कचोट रहा था ! लेकिन थोड़ी देर बाद जब खाना खाने बैठे तो मेरी आँखों के सामने चाँद सितारे नाच रहे थे और बाँए कंधे में बहुत तेज़ दर्द हो रहा था ! मम्मी ने देखा तो उन्हें समझ में आ गया कि मेरी कॉलर बोन में गंभीर चोट आई है ! बाबूजी को बताया तो कुछ देर पहले की मेरी भाग दौड़ के बारे में सोच उन्हें सहज ही विश्वास नहीं हुआ ! बोले कंधे के बल गिरी होगी तो दर्द हो गया होगा ! दवा लगा दो ! पेन किलर दे दो सुबह तक ठीक हो जायेगी ! लेकिन मम्मी को तसल्ली नहीं हो रही थी ! उनकी तसल्ली के लिये बाबूजी मुझे रीवा हॉस्पीटल के सी एम ओ डॉक्टर झा के यहाँ ले गये ! मुझे एक्ज़ामिन करने के बाद बड़ी देर तक वे बाबूजी से गप्पें लगाते रहे, हँसते हँसाते रहे, कदाचित् मेरे डर को कम करने के लिये ! उस वक्त शायद सम्बंधित डॉक्टर शहर में नहीं थे ! उन्होंने मेरे हाथ को कोहनी से मोड़ कर गले में एक स्लिंग से लटका दिया और सुबह ठीक आठ बजे मुझे अस्पताल ले आने की हिदायत बाबूजी को दे दी !

उस रात मैं तो दवा खाकर कुछ देर के लिये सो भी गयी लेकिन बी पी खूब हाई होने के बावजूद भी मम्मी ने सारी रात बैठ कर मेरी फ्रॉक सिली ! उन दिनों दर्ज़ी से बच्चों के कपड़े सिलवाने का विशेष चलन नहीं था ! वैसे भी सिलाई, कढ़ाई, बुनाई में मम्मी का कोई सानी नहीं था ! अस्पताल जाने की बजाय मुझे स्कूल जाने की अधिक उत्सुकता थी ! स्कूल के वसंतपंचमी के आयोजन में सरस्वती वन्दना गाने का चांस, बी एड की टीचर को दिया हुआ वचन, सहेलियों के साथ नयी फ्रॉक पहनने का चाव सब मुझे स्कूल जाने के लिये प्रेरित कर रहे थे ! कंधे में दर्द के कारण मैं साइकिल भी नहीं चला पा रही थी ! लिहाज़ा मुझे पैदल ही स्कूल जाना पड़ा ! असहनीय पीड़ा में भी स्कूल के सारे कार्यक्रम भली भाँति निबटा कर शाम को चार बजे के बाद जब मैं सहेलियों के साथ घर पहुँची तो दर्द के मारे मेरा बुरा हाल हो रहा था ! सुबह से कुछ खाया भी नहीं गया था ! चिंता और उद्विग्नता के मारे मम्मी का टेंशन बहुत बढ़ गया था ! मुझे लेकर बाबूजी फ़ौरन अस्पताल गये ! मेरी कॉलर बोन डिस्लोकेट हो गयी थी और इतनी देर तक उसी कंडीशन में रहने के कारण काफी हार्ड भी हो गयी थी ! दर्द इतना अधिक था कि हाथ हिलाना भी नामुमकिन था ! जब किसी भी तरह से फ्रॉक उतर नहीं सकी तो डॉक्टर ने बड़ी बेरहमी से उसे कैंची से काट दिया ! पूरी ताकत से कॉलर बोन को दबा कर जगह पर बैठाया और मेरी पीठ पर एक बड़ी सी तख्ती लगा कर कस कर पट्टी बाँध दी ! यह तख्ती दोनों ओर मेरे शरीर से लगभग छ:-छ: इंच बाहर थी ! अब मैं डेढ़ महीने के लिये बिस्तर की शरण में थी !

घर पहुँचने पर जब मम्मी ने मुझे देखा तो उनके हाथ से गिलास छूट कर नीचे गिर गया, “हाय मेरी फूल सी बच्ची को यह क्या हो गया !’’ उनके मुँह से बेसाख्ता निकले ये शब्द आज भी मेरे कानों में अक्सर गूँज जाते हैं ! नहीं कह सकती उनके सहानुभूति भरे ये बोल थे या बेतहाशा दर्द का अहसास, नयी फ्रॉक के कटने का अफसोस था या डेढ़ माह की लंबी अवधि के लिये बिस्तर पर पड़े रहने का भय कि बड़ी दृढ इच्छाशक्ति से रोका हुआ मेरे सब्र का बाँध अचानक ही भरभरा कर टूट गया और मम्मी की गोद में मुँह छिपा कर मैं कितना रोई और कब सो गयी मुझे याद नहीं है !

मम्मी के लिये बड़ी मुश्किल घड़ी आ गयी थी ! अपने हर काम के लिये अब मैं मम्मी पर आश्रित हो गयी थी ! मेरे दोनों हाथ निष्क्रिय साइड में लटके रहते थे ! जिनसे ना तो मैं अपने आप कुछ खा सकती थी ना ही कुछ पी सकती थी ! अपनी इस निर्भरता ने मुझे चिड़चिड़ा बना दिया था ! पीठ के नीचे तकिया लगाये करवट बदले बिना बिलकुल सीधे बिस्तर पर लेट कर डेढ़ महीने का लम्बा पीरियड बिताना आसान नहीं था ! लेकिन मम्मी के धैर्य का जवाब नहीं था ! मेरे कहे बिना ही मेरा चेहरा देख कर वे समझ जाती थीं कि मुझे किस चीज़ की ज़रूरत हो रही है ! मैं उनकी थकान का अंदाज़ लगा कर कभी-कभी सोने का बहाना कर उन्हें आराम देने की कोशिश भी करती लेकिन वे चौबीसों घंटे सजग प्रहरी की तरह अथक मेरे पास ही डटी रहतीं ! कभी फल तो कभी दूध कभी नाश्ता तो कभी खाना ! मेरे मुख में हर एक बूँद और हर एक दाना उनके हाथों ही पहुँचता था ! उनका काम बहुत बढ़ गया था लेकिन उनके चहरे पर कभी खीझ या ऊब के चिन्ह दिखाई नहीं देते थे ! हाथ मुँह धोने से लेकर नहाने धोने कंघी चोटी तक हर काम के लिये मेरी एकमात्र सहायक मेरी मम्मी ही थीं ! इसके दो वर्ष पूर्व जब मुझे टाइफाइड हो गया था तब भी मम्मी ने मेरी देखभाल में इसी तरह दिन रात एक कर दिया था ! जितनी चिंता, प्यार और समर्पण के साथ मम्मी ने हर बार मेरा ख़याल रखा था स्वयम् को उनकी जगह रख कर देखती हूँ तो अनुभव कर पाती हूँ कि मैं शायद उसका सौवाँ अंश भी किसीको नहीं दे पाउँगी ! ऐसी थीं मेरी मम्मी ! ममता, प्यार, त्याग और जीवट की साकार प्रतिमा !

उनकी किस छवि को याद करूँ किसे छोड़ दूँ यह निर्णय कर पाना असंभव है ! अन्नपूर्णा की तरह चौके में बैठ कर हम भाई बहनों को हर रोज़ स्वादिष्ट पकवान बना कर खिलाने वाली माँ, रेडियो स्टेशन, काव्य गोष्ठियों और कवि सम्मेलनों में प्रतिष्ठित कवियों के साथ मंच से काव्यपाठ करती माँ, समाज कल्याण बोर्ड के चेयर परसन की दायित्वपूर्ण कुर्सी को सुशोभित करती माँ, कोर्ट रूम में विपक्षी वकील से धुआँधार जिरह करती माँ, परिवार के बुज़ुर्ग सदस्यों के आने पर घूँघट की ओट से फुसफुसा कर हम लोगों के माध्यम से अपना सन्देश भिजवाती माँ, राजनीति में सक्रिय भागीदारी और जोशीले भाषण देने के जुर्म में आपातकाल में मीसा के अंतर्गत जेल की सलाखों के पीछे निरुद्ध माँ, घर के कच्चे आँगन को गोबर से लीपती माँ, घर की दीवार पर चावल के एपन से करवा चौथ और अहोई अष्टमी के स्वरूप उकेरती माँ, रक्षा बंधन और तीज के अवसर पर हम बहनों के लिये लहरिये की चूनर रंगती माँ, सलमे सितारों और महीन पोत से साड़ियों पर कलात्मक बेल बूटे काढ़ती माँ, हम बहनों की हथेलियों पर मेंहदी के आकर्षक बूटे रचाती माँ, नरम मुलायम ऊन से पेचीदा बुनाई वाले मनमोहक स्वेटर बुनती माँ, इतना सब करते हुए भी अनवरत रूप से स्वाध्याय में व्यस्त माँ, हमारी पढाई में सहयोग करती माँ और साहित्य सृजन के लिये सदा समर्पित माँ ! माँ के जिस रूप को याद करती हूँ उनके अवसान के इतने वर्षों के बाद भी उनके लिये मन असीम श्रद्धा एवं अभिमान से भर उठता है ! आज मैं जो कुछ भी हूँ अपनी माँ के दिये संस्कारों और शिक्षा दीक्षा की वजह से हूँ और जो कुछ सत्य शिव और सुंदर उनसे पाया वही अपने बच्चों को भी विरासत में दे पाई हूँ ! हैरान होती हूँ कि संतान अपनी माँ के ऋण से क्या कभी उऋण हो सकती है ! मातृ दिवस को ही क्या मेरा तो रोम-रोम हर पल उन्हें याद करता है ! वे आज भी मेरे लिये प्रेरणा का सबसे बड़ा स्त्रोत हैं ! अपना कोई भी निर्णय मैं आज भी यही सोच कर ले पाती हूँ कि इन परिस्थितियों में मम्मी का क्या निर्णय होता ! वे जहाँ हैं सदा सुखी रहें और हम पर इसी तरह अपना प्यार और आशीर्वाद लुटाती रहें यही कामना है !





10 टिप्‍पणियां:

  1. संस्मरण ने एक एक बात आँखों के सामने गुजरती तस्वीर खीच दी |माँ की ममता का तो कभी आकलन भी नहीं किया जा सकता |
    ना ही उनके अहसानों से उरिण हो सकते हैं मैं तो जब भी बीमार पड़ती थी वे ही मेरी केअर करतीं थीं |आज भी उनका चेहरा निगाहों में बसा है |वे अब नहीं हैं तो क्या उनका वरद हस्त तो अपने सर पर है |

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  2. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 22-05-2014 को चर्चा मंच पर अच्छे दिन { चर्चा - 1620 } में दिया गया है
    आभार

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  3. माँ के अनंत उपकोरों को हम कितनी जल्दी भुला देते है। जीवंत संस्मरण।

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  4. माँ तो हर रूप में सम्पूर्ण होते है पूजनीय होती है ...माँ को नमन

    बहुत सुन्दर संस्मरण

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  5. धन्यवाद आपका रेखा जी ! आभारी हूँ कि इस चर्चा के माध्यम से मुझे अपनी माँ के प्रति अपना सम्मान एवं कृतज्ञता व्यक्त करने का अवसर आपने प्रदान किया !

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  6. माँ हमेशा ही प्रेरणा देती है ... पल पल यादों में रहती है ...

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  7. माँ को तभी तो ईश्वर का रूप कहा गया है ………सुन्दर संस्मरण

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  8. बहोत सुन्दर और प्रेरित करने वाले संस्मरण ......उनका कुशल स्वरुप पढ़कर ....बहोत ख़ुशी हुई और गर्व हुआ एक स्त्री की क्षमता पर .....

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ये मेरा सरोकार है, इस समाज , देश और विश्व के साथ . जो मन में होता है आपसे उजागर कर देते हैं. आपकी राय , आलोचना और समालोचना मेरा मार्गदर्शन और त्रुटियों को सुधारने का सबसे बड़ा रास्ताहै.