मुकेश कुमार सिन्हा
वैसे तो मम्मी पापा का सान्निध्य मुझे अब तक
मिल रहा है, और ता-जिंदगी
उनका प्यार प्राप्त हो, ऐसी ही उम्मीद है । पर जब भी माँ की बात
होती है तो मुझे समय नजर के सामने मुझे मेरी मैया नजर आती है। मैंने शायद अपने पहले
शब्द मे मैया का ही उच्चारण ही किया था, मैया मेरी दादी थी। सच
कहूँ तो मैया ने ऐसा कुछ भी नहीं किया जो मैंने उसके त्याग, आदर्श
या उसकी दी हुई शिक्षा के लिए याद करूँ। पर फिर भी मेरे लिए मेरी मैया का प्यार अविस्मरणीय
था, उसकी वो छोड़ी हुई ग्लास में चाय का सुगंध अब तक महसूसता हूँ
। उसका प्यार मेरे लिए ता-जिंदगी मेरी थाती है, जो उसके जाने के बावजूद
मेरे लिए बहुत कुछ है, जो मेरे हर शब्द मे झलकता है। उसकी की
हुई बहुत सी छोटी छोटी बातें, जो अहम थी, जो मुझे इंसान बनाती है, मैंने कविताओं मे कई बार लिखी
है। ये एक कविता उसके लिए ......
मैया
!! मैं बड़ा हो गया हूँ.
इसलिए
बता रहा हूँ
क्यूंकि
तू तो बस
हर
समय फिक्रमंद ही रहेगी....
.
याद
है तुझे
मैं
देगची में
तीन
पाव दूध लेकर आया था
चमरू
यादव के घर से
.....
पर मैंने बताया नहीं था
कितना छलका था
लेकिन तेरी आँखे छलक गयी थी
तुमने बलिहारी ली थी
मेरे बड़े होने का...
.
एक और बात बताऊँ
जब तुमने कहा था
सत्यनारायण कथा है
..राजो महतो के दुकान से
गुड लाना आधा सेर...
लाने पर तुमने बलाएँ ली थी
बताया था पत्थर के भगवान को भी
गुड "मुक्कू" लाया है !!
पर तुम्हें कहाँ पता
मैं बहुत सारा गुड
खा चूका था रस्ते में
पर बड़ा तो हो गया हूँ न....!
मैया याद है ...
मेरी पहली सफारी सूट
बनाने के लिए तुमने
किया था झगडा, बाबा
से
पुरे घर में सिर्फ
मैंने पहना था नया कपडा
उस शादी में...
पर मुझे तो तब भी बाबा ही बुरे लगे थे
उस दिन भी
आखिर बड़े होने पर फुल पेंट जरुरी है न...
.
मैया मैं जब भी
रोता, हँसता, जागता, उठता
खेलता पढता
तेरे गोद में सर रख देता
और तू गुस्से से कहती
कब बड़ा होगा रे.....
अब तू नहीं है !!!
पर मैं सच्ची में बड़ा हो गया...
मेरा मन कहता है
एक बार तू मेरे
गोद में सर रख के देख
एक बार मेरी बच्ची बन कर देख
मेरी बलिहारी वाली आँखों में झांक
कर तो देख..
देखेगी.............??????
(मैया बाबा... मेरे माँ-पापा नहीं मेरे
दादा-दादी थे, और मुक्कू ..मैं !!!)
भावुक प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंमेरे शब्दो को ब्लॉग पर जगह देने के लिए धन्यवाद दी :)
जवाब देंहटाएंभावुक ... मन को छूते हैं रचना के भाव ...
जवाब देंहटाएंpariwar,pyar,pukar.....kitne bhav yeksath...yesa hi to hota hai....ham hamesha bachhe hi bane rahte hain.....bahut achhe...
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर ! अत्यंत भावपूर्ण ! ममत्व जिस किसीसे भी मिले माँ कहलाने का अधिकार भी उसीका हो जाता है ! बहुत प्यारी रचना !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस' प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (20-05-2014) को "जिम्मेदारी निभाना होगा" (चर्चा मंच-1618) पर भी होगी!
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
वाह , बहुत प्यारी गहरी अभिव्यक्ति , मंगलकामनाएं मुकेश को !
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंभावप्रवण संस्मरण
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया मर्मस्पर्शी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत भावभीनी रचना, ममता के सुगंध से भरपूर।
जवाब देंहटाएंमुकेश जी ,आपकी इस अनौखी रचना के लिये क्या कहूँ । क्योंकि यह आपके दिल की गहराइयों से बहुत सच्चाई क् साथ निकली है इसलिये दिल को छू लेने वाली है । आपने एक और खास बात कही है कि अपनों से लगाव किसी आदर्श या विशिष्ट गुण के कारण नही होता । बस होता है क्योंकि वह आत्मीय है । दादी के प्रति आपका लगाव अनुकरणीय और अभिनन्दनीय है है ।
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