माँ हो वो शख्स होती है जो बच्चों को पहला शब्द बोलना सिखाती है। जीवन में बड़े होने के साथ साथ जीवन के नैतिक मूल्यों और संस्कारों की नींव डालती है। तभी तो हम जीवन में अपने व्यक्तित्व को एक अलग रूप दे पाते हैं। कुछ तो होता है उनकी सीख में , उनके समझने के तरीके में कि बच्चा हो बड़ा उसको ठुकरा नहीं पाता है। यही वो इंसान है जो सदैव नमनीय होता है। आज अपनी माँ के साथ संस्मरण प्रस्तुत कर रही हैं -- गुंजन श्रीवास्तव
माँ को मैने कभी नहीं देखा किसी से उँची आवाज़ में बात करते हुए .......हमेशा सबसे मधुर व्यवहार करते ही देखा ......उन्हीं के दिये हुए संस्कार लेकर ससुराल आयी .......जब बेटा छोटा था तो अक्सर मेरे पैर पर चढ़कर झूला झूलता ..... और कई बार पैर के बिछुए दबकर मुझे चुभ जाते ...... इसलिए मैने उन्हेँ उतार दिया ...... पर छोटे शहर के संयुक्त परिवार में मुझे बिछुए न पहनने की वजह से कई बार ताने सुनने पड़ते ........ जिनकी चुभन उस बिछुए से कुछ ज्यादा ही होती ....... आँख मे आँसू आ जाते पर कुछ कह नहीं पाती .....और ........बिछुए शब्द से चिढ़ सी हो गयी .......उसी दौरान मायके मे जाना हुआ ......और माँ की नज़र भी मेरे बिछुए विहीन पैरों पर पड़ी .......उन्होंने मुझे नज़र भरकर देखा और अपनी मधुर आवाज़ मे धीरे से कहा ......बिछुआ नहीँ पहनी हो .......पहना करो बेटा ......बड़े भाग्य से ये सब पहनने को मिलता है ......वही कहा उन्होंने जो बाकी सब कहते थे पर कहने का अंदाज़ इतना प्यारा कि बिछुए तुरन्त पहनने की इच्छा हो आयी ......बड़े भाग्य से जो ये सब पहनने को मिलता है .......
माँ को मैने कभी नहीं देखा किसी से उँची आवाज़ में बात करते हुए .......हमेशा सबसे मधुर व्यवहार करते ही देखा ......उन्हीं के दिये हुए संस्कार लेकर ससुराल आयी .......जब बेटा छोटा था तो अक्सर मेरे पैर पर चढ़कर झूला झूलता ..... और कई बार पैर के बिछुए दबकर मुझे चुभ जाते ...... इसलिए मैने उन्हेँ उतार दिया ...... पर छोटे शहर के संयुक्त परिवार में मुझे बिछुए न पहनने की वजह से कई बार ताने सुनने पड़ते ........ जिनकी चुभन उस बिछुए से कुछ ज्यादा ही होती ....... आँख मे आँसू आ जाते पर कुछ कह नहीं पाती .....और ........बिछुए शब्द से चिढ़ सी हो गयी .......उसी दौरान मायके मे जाना हुआ ......और माँ की नज़र भी मेरे बिछुए विहीन पैरों पर पड़ी .......उन्होंने मुझे नज़र भरकर देखा और अपनी मधुर आवाज़ मे धीरे से कहा ......बिछुआ नहीँ पहनी हो .......पहना करो बेटा ......बड़े भाग्य से ये सब पहनने को मिलता है ......वही कहा उन्होंने जो बाकी सब कहते थे पर कहने का अंदाज़ इतना प्यारा कि बिछुए तुरन्त पहनने की इच्छा हो आयी ......बड़े भाग्य से जो ये सब पहनने को मिलता है .......
और ये इच्छा भी कहने की हो रही है ....... कि बड़े भाग्य से ऐसी माँ
मिलती है ........जो अपने हर काम से कुछ अच्छा सिखा जाती है ... :)
गुंजन श्रीवास्तव
maa yesi hi to hoti hai....unki nasihat me bhi pyar or samjha hua dard hota hai.....
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस' प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (18-05-2014) को "पंक में खिला कमल" (चर्चा मंच-1615) (चर्चा मंच-1614) पर भी होगी!
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
बस यही तो माँ होती है सुन्दर संस्मरण
जवाब देंहटाएंबच्चों के व्यक्तित्व में जीवन मूल्यो को एक माँ ही अभिसिंचित करतीं है ! बहुत सुंदर संस्मरण !
जवाब देंहटाएंमाँ का अंदाज़ निराला ही होता है
जवाब देंहटाएंछोटी छोटी बातों से ही माँ संस्कार देती है ...
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