वर्षों पहले जब हमारी माँ ने अपने बच्चों को जन्म दिया था , तब की काल , परिस्थितियाँ और शिक्षा का परिदृश्य कुछ और था। लेकिन रोज रोज सामने आने वाली स्थितियाँ और घटनाएँ हमें फिर सोचने पर मजबूर कर रही हैं कि क्या हम वाकई एक तरफ चाँद से बातें कर रहे हैं और दूसरी तरफ अन्धविश्वास के दलदल से अभी तक बाहर नहीं आ पा रहे हैं।
वर्षों पहले जब हम भाई बहनों का जन्म हुआ था तो मेरी माँ को विटामिन 'ए ' की कमी से रतौंधी (रात में रोगी को दिखाई नहीं देता ) आती थी। कम उम्र , संयुक्त परिवार के काम खान पान वही सब की तरह कोई विशेष परवाह नहीं। चूल्हे पर रोटियां सेकते वक़्त दिखाई न देने के कारण कितनी बार अंगुलियां रोटी पलटने में तवे पर पड जाती और जल जाती। एक 17 - 18 साल की लड़की कुछ बोलने के लायक तो वैसे भी नहीं होती थी। घर की बड़ी बुजुर्ग कहती 'बच्चा गुनाह होता है ' इसी लिए रतौधी आने लगती है जब बच्चा हो जाएगा तो ठीक हो जायेगी। लेकिन तब न डॉक्टर को दिखाना होता था और न अस्पताल में डिलीवरी होती थी , परिणाम जब तक हम लोगों का जन्म हुआ हम पहले तीन भाई बहन दूर दृष्टि के कमजोर होने के शिकार हो गए। लेकिन तब इस बात से हम भी वाकिफ न थे। सोचते रहे कि जैसा हमको दिखता है वैसा ही सबको दिखता होगा। हम माँ के प्रति पल रहे अन्धविश्वास की कीमत जीवन भर चुकाते रहे।
वो जमाना और था न शिक्षा थी न गर्भिणी के प्रति जागरूकता। लेकिन जब हम शिक्षित हो गए तब भी इस अन्धविश्वास से मुक्त कहाँ हो पाये ? मैं जिस घर में ब्याह कर आई थी उसमें चिकित्सा जगत से जुड़े लोग थे लेकिन अपनी देख रेख के प्रति जागरूक बराबर रहे , पूरा पूरा उचित संरक्षण मिला , समय से टीकाकरण और मेडिकल चेक अप सब कुछ होता रहा । लेकिन अन्धविश्वास यहाँ भी कम न हुआ। मेरी जिठानी को एक बच्चे के जन्म के समय घुटनों में दर्द की शिकायत रहने लगी। सारी दवाएं उपलब्ध थीं लेकिन वह कम नहीं हो रहा था। आस पास की अनुभवी महिलायें वही जुमला सुनाने लगीं - जब बच्चा होगा तो सब ठीक हो जाएगा। नौ महीने तक इन्तजार किया। बच्चा हुआ और भयंकर पीलिया का शिकार , चंद दिनों में चल बसा। दर्द फिर भी ठीक न हुआ। तब एक्सरे और बाकी टेस्टिंग कराई गयी तो पता चला कि उनको बोन टी बी है और पीलिया भी। फिर एक साल तक बिस्तर पर। ये मध्य काल था। लेकिन अन्धविश्वास और किवदंतियों का प्रभाव कहीं भी कम नहीं था।
इसके बाद आज की बात कर सकती हूँ -मेरे एक बहुत करीबी की बेटी जो एक कंपनी में सेक्रेटरी थी। पति ने प्रसव के कुछ महीने पहले अपनी माँ के पास भेज दिया। माँ स्वयं स्कूल में प्रिंसिपल उच्च शिक्षित और प्रगतिशील विचारों वाली लेकिन बहू के मामले में अन्धविश्वास और किवदन्तियों से ग्रस्त दिखाई दीं। उनके घर की स्थिति ऐसी है कि वहां धूप बिलकुल भी नहीं आती। सारे दिन बिजली जला कर रखी जाती। सर्दियों के समय में हीटर या ब्लोअर चला कर रखती। धीरे धीरे उसको विटामिन 'डी ' की कमी होने लगी और उसको कमर में दर्द होने लगा और एक समय ऐसा भी आया कि वह उठने बैठने के लिए लाचार हो गयी। जब वह अपनी समस्या सास से कहती तो वह कहती -अरे बच्चा गुनाह होता है , इतनी पीरें तो आती ही हैं। चिंता मत करो सब ठीक हो जाएगा। जब सहन शक्ति से बाहर हो गया तो उसने पति को बाहर से बुलाया और उसके साथ डॉक्टर के पास गयी। तब तक बच्चे का पूर्ण विकास हो चुका था। डॉक्टर ने पति को डांटा कि आप लोग कैसे पढ़े लिखे हैं ? इसको विटामिन डी की बहुत कमी है , इसको धूप मिलना बहुत जरूरी है। उसको विटामिन डी की हाई डोज दी। तब उसको आराम मिला लेकिन बच्चा होने के बाद जब उसने चलना शुरू किया तो पता चला कि उसमें भी विटामिन डी की कमी के कारण पैरों में कुछ कमजोरी है। वह सीधे नहीं चल पा रहा था और उसको भी विटामिन डी देनी पड़ी , तब जाकर वह ठीक से चल पाया ।
ये तीन पीढ़ियों की सच्ची घटनाएँ मैंने इसलिए लिखी ताकि चिकित्सा सम्बन्धी कमियों को अन्धविश्वास और किवदंतियों की बलि चढ़ कर माताओं को कोई शारीरिक और मानसिक कष्ट न झेलना पड़े।
वर्षों पहले जब हम भाई बहनों का जन्म हुआ था तो मेरी माँ को विटामिन 'ए ' की कमी से रतौंधी (रात में रोगी को दिखाई नहीं देता ) आती थी। कम उम्र , संयुक्त परिवार के काम खान पान वही सब की तरह कोई विशेष परवाह नहीं। चूल्हे पर रोटियां सेकते वक़्त दिखाई न देने के कारण कितनी बार अंगुलियां रोटी पलटने में तवे पर पड जाती और जल जाती। एक 17 - 18 साल की लड़की कुछ बोलने के लायक तो वैसे भी नहीं होती थी। घर की बड़ी बुजुर्ग कहती 'बच्चा गुनाह होता है ' इसी लिए रतौधी आने लगती है जब बच्चा हो जाएगा तो ठीक हो जायेगी। लेकिन तब न डॉक्टर को दिखाना होता था और न अस्पताल में डिलीवरी होती थी , परिणाम जब तक हम लोगों का जन्म हुआ हम पहले तीन भाई बहन दूर दृष्टि के कमजोर होने के शिकार हो गए। लेकिन तब इस बात से हम भी वाकिफ न थे। सोचते रहे कि जैसा हमको दिखता है वैसा ही सबको दिखता होगा। हम माँ के प्रति पल रहे अन्धविश्वास की कीमत जीवन भर चुकाते रहे।
वो जमाना और था न शिक्षा थी न गर्भिणी के प्रति जागरूकता। लेकिन जब हम शिक्षित हो गए तब भी इस अन्धविश्वास से मुक्त कहाँ हो पाये ? मैं जिस घर में ब्याह कर आई थी उसमें चिकित्सा जगत से जुड़े लोग थे लेकिन अपनी देख रेख के प्रति जागरूक बराबर रहे , पूरा पूरा उचित संरक्षण मिला , समय से टीकाकरण और मेडिकल चेक अप सब कुछ होता रहा । लेकिन अन्धविश्वास यहाँ भी कम न हुआ। मेरी जिठानी को एक बच्चे के जन्म के समय घुटनों में दर्द की शिकायत रहने लगी। सारी दवाएं उपलब्ध थीं लेकिन वह कम नहीं हो रहा था। आस पास की अनुभवी महिलायें वही जुमला सुनाने लगीं - जब बच्चा होगा तो सब ठीक हो जाएगा। नौ महीने तक इन्तजार किया। बच्चा हुआ और भयंकर पीलिया का शिकार , चंद दिनों में चल बसा। दर्द फिर भी ठीक न हुआ। तब एक्सरे और बाकी टेस्टिंग कराई गयी तो पता चला कि उनको बोन टी बी है और पीलिया भी। फिर एक साल तक बिस्तर पर। ये मध्य काल था। लेकिन अन्धविश्वास और किवदंतियों का प्रभाव कहीं भी कम नहीं था।
इसके बाद आज की बात कर सकती हूँ -मेरे एक बहुत करीबी की बेटी जो एक कंपनी में सेक्रेटरी थी। पति ने प्रसव के कुछ महीने पहले अपनी माँ के पास भेज दिया। माँ स्वयं स्कूल में प्रिंसिपल उच्च शिक्षित और प्रगतिशील विचारों वाली लेकिन बहू के मामले में अन्धविश्वास और किवदन्तियों से ग्रस्त दिखाई दीं। उनके घर की स्थिति ऐसी है कि वहां धूप बिलकुल भी नहीं आती। सारे दिन बिजली जला कर रखी जाती। सर्दियों के समय में हीटर या ब्लोअर चला कर रखती। धीरे धीरे उसको विटामिन 'डी ' की कमी होने लगी और उसको कमर में दर्द होने लगा और एक समय ऐसा भी आया कि वह उठने बैठने के लिए लाचार हो गयी। जब वह अपनी समस्या सास से कहती तो वह कहती -अरे बच्चा गुनाह होता है , इतनी पीरें तो आती ही हैं। चिंता मत करो सब ठीक हो जाएगा। जब सहन शक्ति से बाहर हो गया तो उसने पति को बाहर से बुलाया और उसके साथ डॉक्टर के पास गयी। तब तक बच्चे का पूर्ण विकास हो चुका था। डॉक्टर ने पति को डांटा कि आप लोग कैसे पढ़े लिखे हैं ? इसको विटामिन डी की बहुत कमी है , इसको धूप मिलना बहुत जरूरी है। उसको विटामिन डी की हाई डोज दी। तब उसको आराम मिला लेकिन बच्चा होने के बाद जब उसने चलना शुरू किया तो पता चला कि उसमें भी विटामिन डी की कमी के कारण पैरों में कुछ कमजोरी है। वह सीधे नहीं चल पा रहा था और उसको भी विटामिन डी देनी पड़ी , तब जाकर वह ठीक से चल पाया ।
ये तीन पीढ़ियों की सच्ची घटनाएँ मैंने इसलिए लिखी ताकि चिकित्सा सम्बन्धी कमियों को अन्धविश्वास और किवदंतियों की बलि चढ़ कर माताओं को कोई शारीरिक और मानसिक कष्ट न झेलना पड़े।
बिलकुल सही कहा। हम लोग पढ़ लिख कर भी ऐसी बातों पर विशवास करने लगते है। आजकल अधिकतर लोग विटामिन डी की कमी के शिकार हैं । ए सी से निकलर तो ए सी गाडर् में बैठ गए धुप ली नहीं वेज खाने वाले तो अधिक शिकार है। तकलीफ में टोन टोटके या नीम हकीमो के चक्कर में पड़े रहते है।
जवाब देंहटाएंपढ़े लिखे लोगों में सच में आज भी कही न कहीं अन्धविश्वास दिख जाता है, जो दुखद है. इसमें भी सबसे बड़ी विडम्बना ये है कि इसका शिकार अधिकांश औरत ही होती हैं
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (05-07-2015) को "घिर-घिर बादल आये रे" (चर्चा अंक- 2027) (चर्चा अंक- 2027) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
आँखें खोलने वाली घटनाएँ
जवाब देंहटाएंअंधविश्वास हेशा बना रहता है ... कभी कभी लगता है इसका पढने लिखने से कोई सम्बन्ध ही नहीं है ...
जवाब देंहटाएंअंधिवश्वास हटाना बहुत जरूरी है। हम ऐसा होता देखते हैं मगर टाल जाते हैं।
जवाब देंहटाएंआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन धार्मिक मानसिकता के स्थान पर तुष्टिकरण की नीति में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
जवाब देंहटाएंvery educatiove post exposing superstions prevelant in our homes
जवाब देंहटाएंvery educatiove post exposing superstions prevelant in our homes
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