ब्लॉगिंग के 11 वर्ष !
वह साल 2008 का था जब मेरा ब्लॉगिंग से परिचय हुआ था और वहीँ से दिशा मिली थी खुद को अपनी मर्जी से प्रकाशित करने की सुविधा। इसमें ये कोई चिंता नहीं थी कि कोई पढ़ेगा या नहीं फिर भी धीरे धीरे लोग पढ़ने लगे और उस समय चल रहे ब्लॉग की सूचना देने वाले एग्रीगेटर थे और आज भी है जो ब्लॉग के लिखने और उसके प्रकाशित होने की सूचना सबको देते थी। "हमारी वाणी" ने बहुत काम किया।
कई वर्षों तक ब्लॉग अपने चरम पर थे, हमारे पास समय भी था और सब नियमित लिखते थे। आलोचना , समालोचना , बहस से लेकर सब कुछ होता था फिर भी वह एक मंच है , जहाँ पर सब एक दूसरे को पढ़ते थे और नहीं भी पढ़ पाते थे तो कोई शिकायत जैसी बीच नहीं थी। एक परिवार की तरह से थे हम और आज भी ब्लोगर्स के बीच वही भावना है। कभी भी किसी को पुकारों उत्तर जरूर देता है। वह रिश्ते क्यों इतने गहरे थे क्योंकि उसे समय तू मुझे दे और मैं तुझे दूँ ऐसा नहीं था। जब जिसको जहाँ समय मिला पढ़ लिया और नहीं मिला तो नहीं पढ़ पाए। फेसबुक का मंच आया तो इसने सेंध लगा दी ब्लॉग में। तुरंत लिखना और तुरंत पाठकों की प्रतिक्रिया मिलाने का खेल सबको अधिक भाया और फिर वही मंच पकड़ लिया। हजारों की संख्या में मित्र बन गए लेकिन वे कितना आपसे जुड़े हैं इसके लिए आप अंदाज नहीं लगा सकते हैं। नाम के मित्रों का मजमा लगा रहता है। उससे बड़ा झटका तब लगा जब हर हाथ में स्मार्ट फोन आ गया और फिर उसमें हिंदी लिखने की सुविधा भी मिल गयी। इस हालत में ब्लॉग पर कौन जाए ? एक बार में फेसबुक खोली और चेप दिया। हर हाथ में मोबाइल और हर हाथ में फेसबुक ने ब्लॉग को बुरी तरह से झटका दिया। ब्लॉग पर सभी अर्थ पूर्ण पढ़ने के आदी थे और वहां लिखा भी वही जाता था। सही अर्थों में ब्लॉग में फेसबुक ने सेंध लगायी और हम उससे खुद ब खुद दूर होते गए। कुछ समर्पित ब्लॉगर आज भी उतनी ही लगन से अपने ब्लॉग को चला रहे हैं और फेसबुक को भी भी दे रहे हैं।
अरे मैं फेसबुक की आलोचना करने में लग गयी। हमारे ब्लॉग ने हमें जितना बड़ा संसार दिया उसके लिए मैं शुक्रगुजार हूँ। डायरियों में बंद पड़ी रचनाएँ , जो खो चुकी थी पन्नों के ढेरों में, फिर से मंच पर आ गयी। सबने मुझे दिशा दी , सिखाया क्योंकि मैं काम जरूर कंप्यूटर साइंस विभाग में थी और सारे दिन सिर्फ डेस्कटॉप पर होते थे और तब हमें नेट सुविधा उपलब्ध नहीं थी। ईमेल आई डी जरूर थी और मैं से काम चल जाता था। बाद में नेट सुविधा मिलने पर जुडी , लेकिन इस ब्लॉग के टिप्स से मैं अपरिचित थी। धीरे धीरे हमारी मित्रों ने मुझे दिशानिर्देश दिया और फिर धीरे धीरे सब तो नहीं हाँ कुछ तो करना आ ही गया।
बीच में साथ छूट गया था लेकिन फिर उस मंच की गरिमा और उसके महत्व को स्वीकार करते हुए , उस पर लिखना शुरू कर दिया है। बहुत सारी सामग्री है जिसको अभी लिखना शेष है। अपने ब्लॉग का महत्व समझें तो ये एक ऑनलाइन डायरी है , किताब है जो सबके लिए उपलब्ध है। जो ब्लॉग़र बंधु और बहने इससे दूर हैं वो वापस आ जाय और फेसबुक को मंच बनाने वाले भी अपने को इसा पर संचित रख सकते हैं।
ग्यारह वर्ष में एक काम २०१२ में किया था और वह भी अपने सभी ब्लॉगर साथियों के सहयोग से , उसको पुस्तकाकार देने का कार्य चल रहा है , जो मेरे ब्लॉगर होने के नाते ब्लॉगर साथियों के संस्मरण को संचित कर सबके सामने लाने का प्रयास है। "अधूरे सपनों की कसक " विषय को लेकर अंदर पलने वाली कसक को उजागर किया है। भले ही वो कसक अब कोई मायने नहीं रखती लेकिन जीवन के लिए देखे सपने एक धरोहर तो हैं ही इस जीवन के। मेरे उस सपने को साकार करने में भी हमारे ब्लॉगर साथियों का सहयोग है और उनकी मैं शुक्रगुजार हूँ।
वह साल 2008 का था जब मेरा ब्लॉगिंग से परिचय हुआ था और वहीँ से दिशा मिली थी खुद को अपनी मर्जी से प्रकाशित करने की सुविधा। इसमें ये कोई चिंता नहीं थी कि कोई पढ़ेगा या नहीं फिर भी धीरे धीरे लोग पढ़ने लगे और उस समय चल रहे ब्लॉग की सूचना देने वाले एग्रीगेटर थे और आज भी है जो ब्लॉग के लिखने और उसके प्रकाशित होने की सूचना सबको देते थी। "हमारी वाणी" ने बहुत काम किया।
कई वर्षों तक ब्लॉग अपने चरम पर थे, हमारे पास समय भी था और सब नियमित लिखते थे। आलोचना , समालोचना , बहस से लेकर सब कुछ होता था फिर भी वह एक मंच है , जहाँ पर सब एक दूसरे को पढ़ते थे और नहीं भी पढ़ पाते थे तो कोई शिकायत जैसी बीच नहीं थी। एक परिवार की तरह से थे हम और आज भी ब्लोगर्स के बीच वही भावना है। कभी भी किसी को पुकारों उत्तर जरूर देता है। वह रिश्ते क्यों इतने गहरे थे क्योंकि उसे समय तू मुझे दे और मैं तुझे दूँ ऐसा नहीं था। जब जिसको जहाँ समय मिला पढ़ लिया और नहीं मिला तो नहीं पढ़ पाए। फेसबुक का मंच आया तो इसने सेंध लगा दी ब्लॉग में। तुरंत लिखना और तुरंत पाठकों की प्रतिक्रिया मिलाने का खेल सबको अधिक भाया और फिर वही मंच पकड़ लिया। हजारों की संख्या में मित्र बन गए लेकिन वे कितना आपसे जुड़े हैं इसके लिए आप अंदाज नहीं लगा सकते हैं। नाम के मित्रों का मजमा लगा रहता है। उससे बड़ा झटका तब लगा जब हर हाथ में स्मार्ट फोन आ गया और फिर उसमें हिंदी लिखने की सुविधा भी मिल गयी। इस हालत में ब्लॉग पर कौन जाए ? एक बार में फेसबुक खोली और चेप दिया। हर हाथ में मोबाइल और हर हाथ में फेसबुक ने ब्लॉग को बुरी तरह से झटका दिया। ब्लॉग पर सभी अर्थ पूर्ण पढ़ने के आदी थे और वहां लिखा भी वही जाता था। सही अर्थों में ब्लॉग में फेसबुक ने सेंध लगायी और हम उससे खुद ब खुद दूर होते गए। कुछ समर्पित ब्लॉगर आज भी उतनी ही लगन से अपने ब्लॉग को चला रहे हैं और फेसबुक को भी भी दे रहे हैं।
अरे मैं फेसबुक की आलोचना करने में लग गयी। हमारे ब्लॉग ने हमें जितना बड़ा संसार दिया उसके लिए मैं शुक्रगुजार हूँ। डायरियों में बंद पड़ी रचनाएँ , जो खो चुकी थी पन्नों के ढेरों में, फिर से मंच पर आ गयी। सबने मुझे दिशा दी , सिखाया क्योंकि मैं काम जरूर कंप्यूटर साइंस विभाग में थी और सारे दिन सिर्फ डेस्कटॉप पर होते थे और तब हमें नेट सुविधा उपलब्ध नहीं थी। ईमेल आई डी जरूर थी और मैं से काम चल जाता था। बाद में नेट सुविधा मिलने पर जुडी , लेकिन इस ब्लॉग के टिप्स से मैं अपरिचित थी। धीरे धीरे हमारी मित्रों ने मुझे दिशानिर्देश दिया और फिर धीरे धीरे सब तो नहीं हाँ कुछ तो करना आ ही गया।
बीच में साथ छूट गया था लेकिन फिर उस मंच की गरिमा और उसके महत्व को स्वीकार करते हुए , उस पर लिखना शुरू कर दिया है। बहुत सारी सामग्री है जिसको अभी लिखना शेष है। अपने ब्लॉग का महत्व समझें तो ये एक ऑनलाइन डायरी है , किताब है जो सबके लिए उपलब्ध है। जो ब्लॉग़र बंधु और बहने इससे दूर हैं वो वापस आ जाय और फेसबुक को मंच बनाने वाले भी अपने को इसा पर संचित रख सकते हैं।
ग्यारह वर्ष में एक काम २०१२ में किया था और वह भी अपने सभी ब्लॉगर साथियों के सहयोग से , उसको पुस्तकाकार देने का कार्य चल रहा है , जो मेरे ब्लॉगर होने के नाते ब्लॉगर साथियों के संस्मरण को संचित कर सबके सामने लाने का प्रयास है। "अधूरे सपनों की कसक " विषय को लेकर अंदर पलने वाली कसक को उजागर किया है। भले ही वो कसक अब कोई मायने नहीं रखती लेकिन जीवन के लिए देखे सपने एक धरोहर तो हैं ही इस जीवन के। मेरे उस सपने को साकार करने में भी हमारे ब्लॉगर साथियों का सहयोग है और उनकी मैं शुक्रगुजार हूँ।
All the best रेखा जी
जवाब देंहटाएंढेरों शुभकामनाएं 💐
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (23-09-2019) को "आलस में सब चूर" (चर्चा अंक- 3467) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बधाईयाँ!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुभकामनाएं, रेखा दी।
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएं .
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुभकामनाएं 11, 51 तक पहुंचे ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति।
पुराना समय ब्लोगिंग का स्वर्णिम समय था ....धीर धीरे ये फिर हो जयेगा बस सभी को सक्रीय होने की जरूरत है ...
जवाब देंहटाएंबहुत शुभकामनायें ...
शुभकामनाएं !!
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