लोगों ने जीना हराम कर दिया। तरह तरह के सवाल कभी कभी हमें खुद अपराधबोध कराने लगे थे।
--पांच पांच लड़कियां है कब करेंगे शादी ?
--अरे बेटियों की कमाई खा रहे हैं पैसा किसे बुरा लगता है ?
--हमें लगता है कि इन लोगों के पास पैसा नहीं है , लड़कियां कमा कर इकठ्ठा कर लेंगी तो कर देंगे।
-- इन लोगों को रात में नींद कैसे आती है ? जवान लड़कियां घर में बैठी हैं।
कोई किसी से कहता तो दूसरा आकर हमें बताता या फिर खुद अपने मन से गढ़ कर बताता। जो भी हो हम बहुत शांत भाव से सुन लेते और कह देते कि कुछ चीजें इंसान के वश में नहीं होती , जब भाग्य साथ देगा तो सब हो जाएगा। अंदर ही अंदर ये बातें सुन मन कभी कभी खुद को दोषी ठहराने लगता.।
फरवरी २०१० में बड़ी बेटी की शादी पक्की हुई। अंतर्जातीय थी कर्नाटक के रहने वाले थे। प्रश्न उठे और सिर पटक कर दम तोड़ गए। हमने वहीँ जाकर शादी की थी और फिर अनुभव किया कि हमारे उत्तर भारत में जैसे लड़की का पिता और उसके पक्ष के लोग "बेचारे " बने लडके वालों के नखरे उठाया करते हैं। वहां ऐसा कुछ भी न था। सारा इंतजाम उन्होंने ही किया था और सम्मान भी पूरा किया।
अभी तो चार बाकी हैं , फिर वही एक से गिनती गिनना शुरू करना था। दूसरे नंबर की बेटी लम्बे समय के लिए यू एस में रही कंपनी के काम से , और लोगों को लगा कि हम चुपचाप बैठे हैं। खोज जारी थी दूसरे और तीसरे नंबर की बेटियों के लिए। तीसरी भी तब तक अपनी पढाई पूरी करके दिल्ली में जॉब करने लगी थी।शायद विवाह की कोई भी ऐसी साइट नहीं थी जिस पर मैंने उसका विज्ञापन न दे रखा हो। आज भी वह डायरी मेन्टेन करके रखी है।
इसी बीच मेरी छोटी बेटी का चयन भी IPH दिल्ली में ही हो गया और उससे बड़ी वाली की इंटर्नशिप चल रही थी ।
दिल्ली में लडके देखने की जिम्मेदारी मैंने अपने मानस पुत्र हरीश को दे रखी थी। चूँकि वह दिल्ली में जॉब कर रही थी तो मेरी प्राथमिकता यही थी कि वही एनसीआर में कोई लड़का मिले तो अच्छा है। फिर हरीश ने एक लड़का बताया जो महाराष्ट्रीय था और ये बात मेरे पतिदेव को बिलकुल भी पसंद न थी। हरीश ने बहुत समझाया क्योंकि वह कई रिश्तों के लिए दौड़ रहा था और हर जगह कभी मेरी बेटी की पांच फुट लम्बाई और कभी उसका रंग आड़े आ रहा था। कोई बीस लाख की शादी करने पर समझौता करने को तैयार था। पहली दो चीजों को तो हम बदल नहीं सकते थे।हमारे पास इतने सारे पैसे भी नहीं थे कि हम लाखों दहेज़ में देकर शादी कर पाते।
वह लड़का उसके पापा के विभाग एनपीएल से डॉक्ट्रेट करके पुर्तगाल में पोस्ट डॉक्ट्रेट फ़ेलोशिप लेकर काम कर रहा था। उससे भी हरीश ने संपर्क साध रखा था और फिर हम लोगों से कहा। किसी तरह से पतिदेव नागपुर लडके के घर वालों से मिलने को तैयार हुए। उससे पहले उन्होंने अपने सभी मित्रों और रिश्तेदारों से इस पर चर्चा कर ली और सब से पॉजिटिव उत्तर मिलने के बाद वह तैयार हुए।
उसके बाद सब कुछ ठीक रहा और शादी पक्की हो गयी। शादी की तिथि हमने करीब ग्यारह महीने के बाद रखी क्योंकि इससे पहले पवन को छुट्टी भी न मिलती और हमारी दूसरे नंबर की बेटी के लिए वर खोजने समय भी मिल जाता क्योंकि संयुक्त परिवार में बड़ी बैठी रहे और छोटी की शादी जो जाए एक बड़ा प्रश्न बन जाता है। उसको यूएस से वापस आने को कहा गया और फिर खोज शुरू हुई। भाग्य ने साथ दिया और उसकी भी शादी पक्की हो गयी।
मेरी बेटी की शादी के लिए पवन के परिवार ने हमें पूरा पूरा सहयोग किया बल्कि वहां पर मेरे चचेरे भाई के होने से सारी जिम्मेदारी उसने संभाल रखी थी। हमें बड़ा आश्चर्य हुआ और बड़े सुखद अनुभव भी हुए और अहसास हुआ कि लड़की वाले भी इज्जत पाने के हक़दार होते हैं। हमें कहीं न लगा कि हम निरीह बेटी वाले हाथ जोड़े खड़े हैं ।
दहेज़ हमारे पास देने को न था और न उन्होंने कुछ माँगा। मन से बड़े ही सहृदय लोग हमने पाये। शादी हम दोनों की रस्मों के अनुसार नवम्बर 2011 सम्पन्न हो गयी। दूसरे नं की बेटी की फरवरी 2012 में हुई ।
तीन बेटियों की शादी दो साल के अंदर हो गयी तो लोगों के मुंह बंद हो गए। बाद की दोनों छोटी थी अभी पढ़ रही थीं सो कुछ दिन के लिए सब कुछ शांत हो गया। एक बात और कि तीनों बड़ी के बीच दो दो साल का अंतर था और चौथी पाँच साल छोटी थी
चौथी बेटी की शादी 2014 फरवरी में हो गई । सब कुछ ऊपर वाले की मर्जी से हो रहा था । उसकी जॉब भी दिल्ली में ही थी और दामाद की गुड़गांव में । बस अब एक रह गई थी । वह मुम्बई के सरकारी संस्थान से BSLP .का कोर्स कर रही थी । उसके वहीं से मास्टर्स के दौरान ही डॉक्टर लड़का मिल गया और उसकी पढ़ाई पूरी होते है 2016 में उसकी भी शादी हो गई ।
आज बड़ी अपने पति व बेटे के साथ यूएस में , उससे छोटी अपने परिवार के साथ आस्ट्रेलिया , तीसरी नागपुर , चौथी दिल्ली और पाँचवी झाँसी में अपना क्लीनिक चला रही है । हमें बेटियाँ देकर दामाद नहीं पाँच बेटे मिले और पाँच नाती भी मिल गये ।
जमाने का दंश जी लिया , अब चिंतामुक्त हूँ।
--पांच पांच लड़कियां है कब करेंगे शादी ?
--अरे बेटियों की कमाई खा रहे हैं पैसा किसे बुरा लगता है ?
--हमें लगता है कि इन लोगों के पास पैसा नहीं है , लड़कियां कमा कर इकठ्ठा कर लेंगी तो कर देंगे।
-- इन लोगों को रात में नींद कैसे आती है ? जवान लड़कियां घर में बैठी हैं।
कोई किसी से कहता तो दूसरा आकर हमें बताता या फिर खुद अपने मन से गढ़ कर बताता। जो भी हो हम बहुत शांत भाव से सुन लेते और कह देते कि कुछ चीजें इंसान के वश में नहीं होती , जब भाग्य साथ देगा तो सब हो जाएगा। अंदर ही अंदर ये बातें सुन मन कभी कभी खुद को दोषी ठहराने लगता.।
फरवरी २०१० में बड़ी बेटी की शादी पक्की हुई। अंतर्जातीय थी कर्नाटक के रहने वाले थे। प्रश्न उठे और सिर पटक कर दम तोड़ गए। हमने वहीँ जाकर शादी की थी और फिर अनुभव किया कि हमारे उत्तर भारत में जैसे लड़की का पिता और उसके पक्ष के लोग "बेचारे " बने लडके वालों के नखरे उठाया करते हैं। वहां ऐसा कुछ भी न था। सारा इंतजाम उन्होंने ही किया था और सम्मान भी पूरा किया।
बड़ी बेटी ऋतु और दामाद विनय केशव |
अभी तो चार बाकी हैं , फिर वही एक से गिनती गिनना शुरू करना था। दूसरे नंबर की बेटी लम्बे समय के लिए यू एस में रही कंपनी के काम से , और लोगों को लगा कि हम चुपचाप बैठे हैं। खोज जारी थी दूसरे और तीसरे नंबर की बेटियों के लिए। तीसरी भी तब तक अपनी पढाई पूरी करके दिल्ली में जॉब करने लगी थी।शायद विवाह की कोई भी ऐसी साइट नहीं थी जिस पर मैंने उसका विज्ञापन न दे रखा हो। आज भी वह डायरी मेन्टेन करके रखी है।
इसी बीच मेरी छोटी बेटी का चयन भी IPH दिल्ली में ही हो गया और उससे बड़ी वाली की इंटर्नशिप चल रही थी ।
दिल्ली में लडके देखने की जिम्मेदारी मैंने अपने मानस पुत्र हरीश को दे रखी थी। चूँकि वह दिल्ली में जॉब कर रही थी तो मेरी प्राथमिकता यही थी कि वही एनसीआर में कोई लड़का मिले तो अच्छा है। फिर हरीश ने एक लड़का बताया जो महाराष्ट्रीय था और ये बात मेरे पतिदेव को बिलकुल भी पसंद न थी। हरीश ने बहुत समझाया क्योंकि वह कई रिश्तों के लिए दौड़ रहा था और हर जगह कभी मेरी बेटी की पांच फुट लम्बाई और कभी उसका रंग आड़े आ रहा था। कोई बीस लाख की शादी करने पर समझौता करने को तैयार था। पहली दो चीजों को तो हम बदल नहीं सकते थे।हमारे पास इतने सारे पैसे भी नहीं थे कि हम लाखों दहेज़ में देकर शादी कर पाते।
वह लड़का उसके पापा के विभाग एनपीएल से डॉक्ट्रेट करके पुर्तगाल में पोस्ट डॉक्ट्रेट फ़ेलोशिप लेकर काम कर रहा था। उससे भी हरीश ने संपर्क साध रखा था और फिर हम लोगों से कहा। किसी तरह से पतिदेव नागपुर लडके के घर वालों से मिलने को तैयार हुए। उससे पहले उन्होंने अपने सभी मित्रों और रिश्तेदारों से इस पर चर्चा कर ली और सब से पॉजिटिव उत्तर मिलने के बाद वह तैयार हुए।
उसके बाद सब कुछ ठीक रहा और शादी पक्की हो गयी। शादी की तिथि हमने करीब ग्यारह महीने के बाद रखी क्योंकि इससे पहले पवन को छुट्टी भी न मिलती और हमारी दूसरे नंबर की बेटी के लिए वर खोजने समय भी मिल जाता क्योंकि संयुक्त परिवार में बड़ी बैठी रहे और छोटी की शादी जो जाए एक बड़ा प्रश्न बन जाता है। उसको यूएस से वापस आने को कहा गया और फिर खोज शुरू हुई। भाग्य ने साथ दिया और उसकी भी शादी पक्की हो गयी।
मेरी बेटी की शादी के लिए पवन के परिवार ने हमें पूरा पूरा सहयोग किया बल्कि वहां पर मेरे चचेरे भाई के होने से सारी जिम्मेदारी उसने संभाल रखी थी। हमें बड़ा आश्चर्य हुआ और बड़े सुखद अनुभव भी हुए और अहसास हुआ कि लड़की वाले भी इज्जत पाने के हक़दार होते हैं। हमें कहीं न लगा कि हम निरीह बेटी वाले हाथ जोड़े खड़े हैं ।
दहेज़ हमारे पास देने को न था और न उन्होंने कुछ माँगा। मन से बड़े ही सहृदय लोग हमने पाये। शादी हम दोनों की रस्मों के अनुसार नवम्बर 2011 सम्पन्न हो गयी। दूसरे नं की बेटी की फरवरी 2012 में हुई ।
तीन बेटियों की शादी दो साल के अंदर हो गयी तो लोगों के मुंह बंद हो गए। बाद की दोनों छोटी थी अभी पढ़ रही थीं सो कुछ दिन के लिए सब कुछ शांत हो गया। एक बात और कि तीनों बड़ी के बीच दो दो साल का अंतर था और चौथी पाँच साल छोटी थी
चौथी बेटी की शादी 2014 फरवरी में हो गई । सब कुछ ऊपर वाले की मर्जी से हो रहा था । उसकी जॉब भी दिल्ली में ही थी और दामाद की गुड़गांव में । बस अब एक रह गई थी । वह मुम्बई के सरकारी संस्थान से BSLP .का कोर्स कर रही थी । उसके वहीं से मास्टर्स के दौरान ही डॉक्टर लड़का मिल गया और उसकी पढ़ाई पूरी होते है 2016 में उसकी भी शादी हो गई ।
आज बड़ी अपने पति व बेटे के साथ यूएस में , उससे छोटी अपने परिवार के साथ आस्ट्रेलिया , तीसरी नागपुर , चौथी दिल्ली और पाँचवी झाँसी में अपना क्लीनिक चला रही है । हमें बेटियाँ देकर दामाद नहीं पाँच बेटे मिले और पाँच नाती भी मिल गये ।
जमाने का दंश जी लिया , अब चिंतामुक्त हूँ।
समझ सकते हैं। मेरी खुद की छ: बहने हैं :)
जवाब देंहटाएंblog par aane ke lie aabhar !
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (17-09-2019) को "मोदी का अवतार" (चर्चा अंक- 3461) (चर्चा अंक- 3454) पर भी होगी।--
जवाब देंहटाएंचर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत ही उम्दा पोस्ट , हमें अपने परिवार की यादों को फिर से दोहराने के लिए
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