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गुरुवार, 30 जनवरी 2020

बसंत.पंचमी !

बसंत पंचमी पर्व:-
     
                  बसंत पंचमी  हिन्दू धर्म का एक अत्यंत महत्वपूर्ण पर्व  है।  यह त्यौहार हर साल हिंदू पंचांग (कैलेंडर) के अनुसार माघ की शुक्ल पक्ष की पंचमी को मनाया जाता है।  ऐसा माना जाता है कि  बसंत पंचमी के दिन ही ब्रह्मांड की रचना हुई तथा समस्त जीवों और मानवों का प्रादुर्भाव इसी दिन हुआ था।   ब्रह्मा जी इस सृष्टि से संतुष्ट नहीं थे क्योंकि जीव वाणी रहित थे , तब ब्रह्मा जी ने भगवन विष्णु से अनुमति प्राप्त करके अपने कमंडल से पृथ्वी पर जल सिंचित किया और इस सिंचन से एक देवी का प्राकट्य हुआ और ये देवी चार भुजाओं वाली थीं ।  इनके एक हाथ में वीणा , दूसरा हाथ वर मुद्रा में था।  , शेष दो हाथों में पुस्तक और माला थी।  ब्रह्माजी ने देवी से वीणा वादन का अनुरोध किया और जैसे ही देवी ने वीणा वादन आरम्भ किया पृथ्वी के समस्त जीवों को वाणी प्राप्त हुई।  उस देवी को ही माँ सरस्वती कहा जाता है।  माँ सरस्वती ने ही प्राणियों को विद्या और बुद्धि प्रदान की। इसी लिए बसंत पंचमी को सरस्वती पूजा की जाती है।  बच्चों का विद्यारम्भ इसी दिन करवाया जाता है।  इस दिन बसंत का भी आगमन होता है  इस दिन  को श्री पंचमी व सरस्वती पंचमी भी कहते हैं| इस दिन लोग अपने घर, स्कूल व दफ्तरों को पीले फूल व रंगोली से सजाते हैं।

              इस दिन लोग सरस्वती माता की पूजा पूरी विधि विधान से करते हैं जिससे कि उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हो सके और माता का आशीर्वाद बना रहे। माँ सरस्वती को बुद्धि, ज्ञान और कला की देवी माना जाता है और इसी लिए इस दिन गुरु के समक्ष बैठ कर उनसे शिक्षा  ग्रहण करने का शुभारम्भ  किया जाता है। पुस्तक , वाद्य आदि देवी के समक्ष रख कर पूजा की जाती है।

                बसंत  ऋतु को सभी छह ऋतुओं  का राजा माना जाता है , इसी कारण इस दिन को बसंत पंचमी कहा जाता है तथा इसी दिन से बसंत ऋतु की शुरुआत होती है | इस ऋतु में खेतों में फसलें लहलहा उठती है और फूल खिलने लगते है।  जब धरती पर फसल लहलहाती है तो चारों तरफ पीले रंग की बहार नजर आती है।  खासतौर पर सरसों के फूलने पर जो छटा निखरती है , वही बसंत शब्द को चरितार्थ करती है।  ।

        बसंत पंचमी का त्यौहार बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है | इस दिन देवी सरस्वती की पूजा करने के पीछे एक पौराणिक कथा है | सर्वप्रथम श्री कृष्ण और ब्रह्मा जी ने देवी सरस्वती की पूजा की थी | देवी सरस्वती ने जब श्री कृष्ण को देखा तो वो उनके रूप को देखकर मोहित हो गयी और पति के रूप में पाने के लिए इच्छा करने लगी | इस बात का भगवान श्री कृष्ण को पता लगने पर उन्होंने देवी सरस्वती से कहा कि वे तो राधा के प्रति समर्पित है परन्तु सरस्वती को प्रसन्न करने के लिए भगवान श्री कृष्ण देवी सरस्वती को वरदान देते है कि प्रत्येक विद्या की इच्छा रखने वाले को माघ महीने की शुल्क पंचमी को तुम्हारा पूजन करेंगे | यह वरदान देने के बाद सर्वप्रथम ही भगवान श्री कृष्ण ने देवी की पूजा की |

 |               देवी सरस्वती को बागीश्वरी, भगवती, माँ शारदा, वीणावादिनी और वाग्देवी सहित अनेक नामों से पूजा जाता है ।

बसंत पंचमी का महत्व !

                बसंत पंचमी फूलों के खिलने और नई फसल के आने का त्योहार है।  ऋतुराज बसंत का बहुत अत्यधिक महत्व है।  सर्दी के बाद प्रकृति की छटा देखते ही बनती है।  इस मौसम में खेतों में सरसों की फसल पीले फूलों के साथ , आम के पेड़ पर आए बौर , चारों तरफ हरियाली और गुलाबी ठण्ड मौसम को और भी खुशनुमा बना देती है।  यदि सेहत की दृष्टि से देखा जाए तो यह मौसम बहुत अच्छा होता है।  इंसानों के साथ-साथ पशु पक्षियों में नई चेतना का संचार होता है।  इस ऋतु  को कामबाण के लिए भी अनुकूल माना जाता है।  हिन्दू मान्यताओं के अनुसार प्रमुख हिन्दू त्यौहार में पवित्र नदियों में स्नान किया जाता है। बसंत पंचमी पर भी पवित्र नदियों में स्नान किया जाता है।   कुम्भ और अर्धकुम्भ होने पर भी बसंत पंचमी को विशेष स्नान पर्व होता है। 

                 बसंत पंचमी के दिन को बच्चों की शिक्षा-दीक्षा के आरंभ के लिए शुभ मानते हैं। इस दिन बच्चे की जीभ पर शहद से ॐ बनाना चाहिए। माना जाता है कि इससे बच्चा ज्ञानवान होता है व शिक्षा जल्दी ग्रहण करने लगता है । 6 माह पूरे कर चुके बच्चों को अन्न का पहला निवाला भी इसी दिन खिलाया जाता है । अन्नप्राशन के लिए यह दिन अत्यंत शुभ है । बसंत पंचमी को परिणय सूत्र में बंधने के लिए भी बहुत सौभाग्यशाली माना जाता है इसके साथ-साथ गृह प्रवेश से लेकर नए कार्यों की शुरुआत के लिए भी इस दिन को शुभ माना जाता है ।

विभिन्न राज्यों में बसंत पंचमी !

                  बसंत पंचमी भारत के  विभिन्न राज्यों में धूमधाम से मनाया जाता है।  पीले रंग के कपड़े , पीले रंग का भोजन और पीले फूलों से देवी सरस्वती का पूजन विशेष रूप से किया जाता है।  यह सब तो सामान्य विधि है लेकिन कुछ राज्यों में बसंत पंचमी अलग अलग ढंग से मनाई जाती है। 

1. राजस्थान और उत्तर प्रदेश :                                           

         यहाँ पर स्कूलों में बच्चों को पीले कपड़ों में और पीले फूलों की माला या फिर फूल लाने को कहा जाता है और वहां पर माँ सरस्वती की पूजा करवा कर , सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है।  विभिन्न प्रतियोगिताएं भी आयोजित की जाती हैं। 

2. बिहार :-
                   बिहार में लोग भी पीले वस्त्र पहन कर माथे पर हल्दी का टीका लगा कर मंदिर दर्शन के लिए जाते हैं और खूब  नाच गाने के साथ पर्व को मनाते  हैं। यहाँ पर केशर डाल कर चावल की खीर बनाई जाती है।  बेसन की बूंदी भी बनाई जाती है और उसकी चाशनी में केसर डाली जाती है। मालपुआ के बगैर बिहार का कोई पर्व नहीं मनाया जाता है। 

   3. बंगाल :-
                      ललित कलाओं के अतिरिक्त बंगाल में देवी पूजन को विशेष महत्व दिया जाता है।  दुर्गा पूजा और काली पूजा की तरह सरस्वती पूजा में भी पंडाल लगाए जाते हैं और वहां पर मूर्ति की विधिवत् पूजा कर प्रसाद बाँटा जाता है। प्रसाद में बूंदी के लड्डू , खिचड़ी ( इससे देवी का भोग भी लगाया जाता है।) केशरी राजभोग में चाशनी में केशर डाल दिया जाता है।   राजभोग विशेष रूप से बनाये जाते हैं।   इसके अतिरिक्त नृत्य समारोह और सांस्कृतिक कार्यकर्ताओं का आयोजन भी होता है। 

4. उत्तरकशी  : -
                                       उत्तरकाशी में लोग अपने घरों के दरवाजे पर पीले फूल उगाते हैं और पीले वस्त्र पहन कर और मिष्ठान्न के साथ पूजा अर्चना करके पर्व मानते हैं।

5. पंजाब और हरियाणा :-
                                            देश के इन दो राज्यों में बसंत पंचमी  के अवसर पर पतंगे उड़ाई जाती हैं।  नृत्य आदि का आयोजन होता है। यहाँ पर मक्के की रोटी और चने के साग के साथ मीठे चावल केशर डाल कर बनाये जाते हैं।    गुरुद्वारे में सार्वजनिक उत्सव आयोजित किये  जाते हैं।  लंगर  का प्रबंध होता ।

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