आज २३ मार्च उन तीन वीरों भगत सिंह, राजगुरू और सुखदेव के बलिदान होने का दिन हैं, जिन्होंने अंग्रेजी सरकार की चूलें हिला दी थीं। हम कुछ लोग नम आखों से उनको याद करते हैं और उनकी क़ुर्बानी को नमन करते हैं। बस हम कुछ संवेदनशील ही न - बाकी वे जो संसद में बैठे हें , जो विधान सभा में बैठे हें और वे जो बड़े बड़े मंत्रालयों को संभाल रहे हें उनके लिए ये दिन पता नहीं कैसा गुजरता होगा? उनके पास समय नहीं होगा इन वीरों को याद करने का क्योंकि अब वे बीते कल के नायक हो चुके हें और आज के नायक तो यही है हर स्याह और सफेद करने के लिए।
ये पत्र पत्रिका में कुछ संवेदनशील लेखक और मीडिया इसको याद कर लेती है . हो सकता है कि हमारे सांसदों और विधायकों को ये पता भी न हो कि आज के दिन को शहीद दिवस कहा क्यों जाता है? आने वाले समय में हमारी भावी पीढ़ी इस बात को बिल्कुल ही याद नहीं कर पायेगी क्योंकि कभी स्कूलों में ऐसे दिन कोई याद करने जैसी बात तो होती ही नहीं है कि प्रारंभिक कक्षाओं में ही बच्चों को शिक्षक इन शहीदों के बलिदान दिवस पर कुछ मौखिक ही बता में भी कभी लघु कथा के रूप में और कभी पूरे पाठ के रूप में देश के इन शहीदों की कहानी होनी चाहिए। इस देश की स्वतंत्रता के इतिहास के ये नायक गुमनाम न रह जाएँ।
इन्होने किस जुल्म में अपने को फाँसी पर चढ़ा दिया ये भी तो बच्चों को पता होना चाहिए। कहीं ये सब कालातीत तो नहीं हो चुकी है । क्योंकि कहीं कहीं पाठ्यक्रम में इन्हें आतंकवादी भी उल्लिखित किया जा चुका है । ऐसा विचार मेरे मन में क्यों आया? ये भी मैं आप सबको बताती चलूँ- आज डॉ राम मनोहर लोहिया जी का भी जन्मदिन है , जिन्होंने इस समाज के लिए बहुत कुछ किया । समाजवादी विचारधारा के जनक उन्हीं को माना जाता है ।
आज कोरोना के चलते सिर्फ मानव जाति को बचाने की जद्दोदहद में सब लगे हैं और हम शायद फुर्सत में हूँ और उन शहीदों को नमन करती हूँ , जो इस स्वतंत्र भारत के लिए न्योछावर हो गये थे ।
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