फाल्गुन के जाने के बाद उल्लासित रूप से चैत्र मास का आगमन होता है। प्रकृति ने चारों और पीत रंग बिखेर कर मन उल्लास से भर दिया होता है। मौसम भी दिन में अगर थोड़ी सी गर्मी लिए होता तो सुबह और शाम में गुलाबी ठंडक मन को सुकून भी देती है।
गुड़ी पड़वा कहानी
गुड़ी पड़वा पर्व पर पौराणिक ग्रंथों में कई कहानियां मिलती हैं उनमें से प्रचलित कहानी है वह है भगवान श्री राम की बाली पर विजय की। मान्यता है कि इस दिन भगवान श्री राम ने दक्षिण में लोगों को बाली के अत्याचारों व कुशासन से मुक्ति दिलाई थी। इसी खुशी में हर घर में गुड़ी यानि कि विजय पताका फहराई गई। यह परंपरा तभी से कई स्थानों पर आज तक जारी है।
इसी पर्व से जुड़ी एक और कहानी है जो शालिवाहन शक से भी जुड़ी हुई है। मान्यता है कि किसी जमाने में शालिवाहन नामक एक कुंभकार के पुत्र ने मिट्टी के सैनिकों की सेना बनाई व पानी छिड़कर उस सेना में प्राण फूंक दिये। फिर इसी सेना की मदद से उसने शक्तिशाली शत्रुओं का नाश किया। शालिवाहन की शत्रुओं पर प्राप्त की गई इसी विजय के प्रतीक स्वरूप शालिवाहन शक का भी आरंभ हुआ। इसी विजय के उपलक्ष्य में गुड़ी पड़वा का यह पर्व भी मनाया जाता है।
कैसे मनाते हैं गुड़ी पड़वा पर्व?
हिंदू लोग इस दिन गुड़ी का पूजन तो करते ही हैं साथ ही घर के दरवाजे आम के पत्तों से बनी बंदनवार से सजाये जाते हैं। ऐसा करने के पीछे यही मान्यता है कि बंदनवार घर में सुख-समृद्धि व खुशियां लेकर आती है। पर्व की खुशी में विभिन्न क्षेत्रों में विशेष प्रकार के व्यंजन भी तैयार किये जाते हैं। पूरनपोली नाम का मीठा व्यंजन इस पर्व की खासियत है। महाराष्ट्र में श्रीखंड भी विशेष रूप से बनाया जाता है। वहीं आंध्रा में पच्चड़ी को प्रसाद रूप मे बनाकर बांटने का प्रचलन भी गुड़ी पड़वा के पर्व पर है। बेहतर स्वास्थ्य की कामना के लिये नीम की कोपलों को गुड़ के साथ खाने की परंपरा भी है। मान्यता है कि इससे सेहत ही नहीं बल्कि संबंधों की कड़वाहट भी मिठास में बदल जाती है।
नव संवत्सर प्रारम्भ : चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा 'वर्ष प्रतिपदा' कहलाती है। इस दिन से ही नया वर्ष प्रारंभ होता है। इसी दिन ब्रह्माजी ने सृष्टि का निर्माण किया था। इसमें मुख्यतया ब्रह्माजी और उनकी निर्माण की हुई सृष्टि के मुख्य-मुख्य देवी-देवताओं, यक्ष-राक्षस, गन्धर्वों, ऋषि-मुनियों, मनुष्यों, नदियों, पर्वतों, पशु-पक्षियों और कीटाणुओं का ही नहीं, रोगों और उनके उपचारों तक का पूजन किया जाता है।
संवत्सर अर्थात बारह महीने का कालविशेष। संवत्सर उसे कहते हैं, जिसमें सभी महीने पूर्णतः निवास करते हों।नवसंवत्सर का आरम्भ भी इसी दिन से होता है। नववर्ष का आरम्भ होता है और हिन्दू पंचांग का आरम्भ इसी दिन से होता है और इसको बड़े उत्सव की तरह ही मनाया जाता है। चैत्र नवरात्रि का आरम्भ भी इसी दिन से होता है।
चेटीचंड : सिंधी समाज का नववर्ष के रूप में चैत्र की प्रतिपदा को ही झूलेलाल जी के जन्मोत्सव के रूप में ही मनाया जाता है।
युगादि पर्व : उगादी या युगादि नव वर्ष की ख़ुशी में मनाया जाता है।जैसे की इस शब्द से प्रकट होता है युग आदि अर्थात युग या वर्ष का प्रारम्भ। यह पर्व दक्षिण राज्यों में बहुत ही धूम धाम से मनाया जाता है। यह माना जाता है ब्रह्मा जिन्होंने इस सृष्टि की रचना की , उन्होंने इसी दिन इस ब्रह्माण्ड को बनाना शुरू किया था। इस दिन को कर्णाटक और आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में नव वर्ष की शुरुआत भी माना जाता है।
भारतीय संस्कृति में गुड़ी पड़वा को चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को
विक्रम संवत के नए साल के रूप में मनाया जाता है। इस तिथि से पौराणिक व
ऐतिहासिक दोनों प्रकार की ही मान्यताएं जुड़ी हुई हैं।
ब्रह्म पुराण के अनुसार चैत्र प्रतिपदा से ही ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना
प्रारंभ की थी। इसी तरह के उल्लेख अथर्ववेद और शतपथ ब्राह्मण में भी मिलते
हैं। इसी दिन चैत्र नवरात्रि भी प्रारंभ होती हैं। यह आंध्र प्रदेश व महाराष्ट्र में तो विशेष रूप से लोकप्रिय पर्व है। चैत्र
शुक्ल प्रतिपदा को ही हिंदू नववर्ष का आरंभ भी माना जाता है। इसी दिन से संवत्सर का आरम्भ होता है।
गुड़ी पड़वा: गुड़ी
पड़वा यदि शाब्दिक रूप से देखा जाये तो गुड़ी कहते हैं , गुड़ी का अर्थ है विजय पताका तो वहीं पड़वा प्रतिपदा तिथि को कहा
जाता है।
इसीलिये इस दिन लोग घरों में गुड़ी फहराते हैं। आम के पत्तों की बंदनवार से
घरों को सजाते हैं। गुड़ी पड़वा कहानी
गुड़ी पड़वा पर्व पर पौराणिक ग्रंथों में कई कहानियां मिलती हैं उनमें से प्रचलित कहानी है वह है भगवान श्री राम की बाली पर विजय की। मान्यता है कि इस दिन भगवान श्री राम ने दक्षिण में लोगों को बाली के अत्याचारों व कुशासन से मुक्ति दिलाई थी। इसी खुशी में हर घर में गुड़ी यानि कि विजय पताका फहराई गई। यह परंपरा तभी से कई स्थानों पर आज तक जारी है।
इसी पर्व से जुड़ी एक और कहानी है जो शालिवाहन शक से भी जुड़ी हुई है। मान्यता है कि किसी जमाने में शालिवाहन नामक एक कुंभकार के पुत्र ने मिट्टी के सैनिकों की सेना बनाई व पानी छिड़कर उस सेना में प्राण फूंक दिये। फिर इसी सेना की मदद से उसने शक्तिशाली शत्रुओं का नाश किया। शालिवाहन की शत्रुओं पर प्राप्त की गई इसी विजय के प्रतीक स्वरूप शालिवाहन शक का भी आरंभ हुआ। इसी विजय के उपलक्ष्य में गुड़ी पड़वा का यह पर्व भी मनाया जाता है।
कैसे मनाते हैं गुड़ी पड़वा पर्व?
हिंदू लोग इस दिन गुड़ी का पूजन तो करते ही हैं साथ ही घर के दरवाजे आम के पत्तों से बनी बंदनवार से सजाये जाते हैं। ऐसा करने के पीछे यही मान्यता है कि बंदनवार घर में सुख-समृद्धि व खुशियां लेकर आती है। पर्व की खुशी में विभिन्न क्षेत्रों में विशेष प्रकार के व्यंजन भी तैयार किये जाते हैं। पूरनपोली नाम का मीठा व्यंजन इस पर्व की खासियत है। महाराष्ट्र में श्रीखंड भी विशेष रूप से बनाया जाता है। वहीं आंध्रा में पच्चड़ी को प्रसाद रूप मे बनाकर बांटने का प्रचलन भी गुड़ी पड़वा के पर्व पर है। बेहतर स्वास्थ्य की कामना के लिये नीम की कोपलों को गुड़ के साथ खाने की परंपरा भी है। मान्यता है कि इससे सेहत ही नहीं बल्कि संबंधों की कड़वाहट भी मिठास में बदल जाती है।
नव संवत्सर प्रारम्भ : चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा 'वर्ष प्रतिपदा' कहलाती है। इस दिन से ही नया वर्ष प्रारंभ होता है। इसी दिन ब्रह्माजी ने सृष्टि का निर्माण किया था। इसमें मुख्यतया ब्रह्माजी और उनकी निर्माण की हुई सृष्टि के मुख्य-मुख्य देवी-देवताओं, यक्ष-राक्षस, गन्धर्वों, ऋषि-मुनियों, मनुष्यों, नदियों, पर्वतों, पशु-पक्षियों और कीटाणुओं का ही नहीं, रोगों और उनके उपचारों तक का पूजन किया जाता है।
संवत्सर अर्थात बारह महीने का कालविशेष। संवत्सर उसे कहते हैं, जिसमें सभी महीने पूर्णतः निवास करते हों।नवसंवत्सर का आरम्भ भी इसी दिन से होता है। नववर्ष का आरम्भ होता है और हिन्दू पंचांग का आरम्भ इसी दिन से होता है और इसको बड़े उत्सव की तरह ही मनाया जाता है। चैत्र नवरात्रि का आरम्भ भी इसी दिन से होता है।
चेटीचंड : सिंधी समाज का नववर्ष के रूप में चैत्र की प्रतिपदा को ही झूलेलाल जी के जन्मोत्सव के रूप में ही मनाया जाता है।
युगादि पर्व : उगादी या युगादि नव वर्ष की ख़ुशी में मनाया जाता है।जैसे की इस शब्द से प्रकट होता है युग आदि अर्थात युग या वर्ष का प्रारम्भ। यह पर्व दक्षिण राज्यों में बहुत ही धूम धाम से मनाया जाता है। यह माना जाता है ब्रह्मा जिन्होंने इस सृष्टि की रचना की , उन्होंने इसी दिन इस ब्रह्माण्ड को बनाना शुरू किया था। इस दिन को कर्णाटक और आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में नव वर्ष की शुरुआत भी माना जाता है।
इस दिन लोग अपने घरों और आस पास की अच्छे से साफ सफाई करते हैं और अपने घरों के प्रवेश द्वार में आम के पत्ते लगाते हैं। लोग इस दिन अपने लिए और अपने परिवार जनों के
लिए सुन्दर कपडे खरीदते हैं। इस दिन सभी लोग सवेरे से उठते हैं और तिल के
तेल को अपने सर और शारीर में लगाते हैं और उसके बाद वे मंदिर जाते हैं और
प्रार्थना करते हैं। लोग इस दिन बहुत ही स्वादिष्ट खाना और
मिठाइयाँ बनाते हैं और अपने परिवार और आस पास के लोगों को बाँटते भी हैं। तेलंगाना में इस त्यौहार को 3 दिन तक लगातार मनाया जाता है
बहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंघर मे ही रहिए, स्वस्थ रहें।
कोरोना से बचें।
भारतीय नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ।