www.hamarivani.com

मंगलवार, 7 अप्रैल 2020

वर्तमान परिप्रेक्ष्य : साहित्यकार की भूमिका!


                 
               
                     वर्तमान परिप्रेक्ष्य में साहित्यकार की भूमिका बहुत  महत्वपूर्णं है क्योंकि आज जो सामाजिक और सांस्कृतिक मूूू्ल्यों  का अवमूल्यन हो रहा है, इसके लिए साहित्यकार का सृजन ही समाज में एक प्रभावी परिवर्तन या फिर उसके सही विश्लेषण के लिए सहायक हो सकता है।  साहित्य समाज का दर्पण होता है और वो हम उस काल की बात साहित्य से ही जान सकते हैं क्योंकि हम उस समय नहीं होते हैं और आने वाली पीढ़ी तो वही स्वीकार करती है , जो उसके सामने प्रस्तुत किया जाता है।  लेकिन इसकी पूरी जानकारी हमें उस काल मेेंं साहित्यकारों के द्वारा रचित साहित्य में करके रख दिया है और उस समय भी उन्होंने वही रचा जो कि उचित समझा था।  परिपाटियों और पूर्वाग्रहों का अंधभक्ति से समर्थन नहीं किया था।  वो सदैव उचित ही हो ऐसा नहीं समझा जा सकता है।   उन्होंने जो रचा वह  हमने पढ़ा और जिसे स्वीकार कर सके किया अन्यथा उसको नकार कर या फिर उसको परिमार्जित करके रच दिया।
                        साहित्य ही वह साधन है जिसके द्वारा संस्कृति और सभ्यता को एक पीढ़ी से दूसरी  पीढ़ी के मध्य हस्तांतरित करता है।  ये एक वो सत्य है जिसे हम अतीत को स्वीकार करने की बात कर सकते हैं लेकिन समय के साथ साथ हमारा दायरा बढ़ा है और हम बाहरी संस्कृतियों के संपर्क में आते रहते है जिससे साहित्यकार की भी जिम्मेदारी बढ़ जाती है।  नैतिक और सामाजिक मूल्यों के अवमूल्यन के चलते साहित्यकार की भूमिका महत्वपूर्ण हो गयी है।  गलत को सही रूप से व्याख्यायित करने के प्रभावी तरीके को साहित्यकार ही प्रस्तुत कर सकता है।  आज जब कि युवा ही नहीं किसी भी उम्र के लोगों की सोच दिग्भ्रमित हो रही है तो उनको सही दिशा कैसे मिलेगी ? एक ऐसे साहित्य की जरूरत है जो देेेशहित, मानवहित की विचारधारा रखने वाला हो । लेकिन उसको किसी भी पूर्वाग्रह या विचारधारा से प्रभावित नहीं होना चाहिए , उसको तो एकदम तटस्थ और समाज हित की सोचने वाला होना चाहिए। हम  कुछ भी रच कर साहित्यकार नहीं बन सकते हैं और अगर बन भी जाते हैं तो अपनी कलम के प्रति ईमानदार नहीं हो सकते हैं।
                   लेखन का कोई भी क्षेत्र हो लेकिन साहित्यकार को  अपने क्षेत्र में पूरी ईमानदारी से लिखने का दायित्व होता है। राजनीति ,  धर्म और  कोई भी वर्ग हो , सब के लिए एक नैतिक मूल्य होते हैं और जो सर्वमान्य होते हैं तो एक साहित्यकार को उनका पालन करते हुए रचना चाहिए।  आज दिशा भ्रमित होते हुए जीवन के हर क्षेत्र को आपके दिशा निर्देश की जरूरत है और भटक रही जनमानस की सोच को सकारात्मक दिशा में मोड़ने की जरूरत है और वह अनुकरणीय तभी बन सकती है , जब कि साहित्यकार का उस क्षेत्र के आधारभूत मूल्यों को हमेशा जीवित  रखने का दायित्व निभा रहा  हो । ऐसा नहीं कि हम देश के इतिहास को अपनी इच्छानुसार तोड़ मरोड़ कर प्रस्तुत करके अपने दायित्व को पूरा नहीं कर रहे हैं। साहित्यकार के द्वारा रचित साहित्य से ही हम आने वाली पीढ़ी के लिए बनाये गए पाठ्यक्रम में शामिल करते हैं और अगर साहित्यकार ने आपने दायित्व को ईमानदारी से पूरा न किया तो हम अपने दायित्व को पूरा नहीं कर रहे हैं।
                 लेखक समाजशास्त्री, अर्थशास्त्री , मनोवैज्ञानिक , विधिवेत्ता , राजनीतिशास्त्री या धर्मशास्त्री कोोई भीी हो उसका अपने क्षेत्र के प्रति एक ईमानदार सोच और लेखन के प्रति भी ईमानदारी होनी जरूरी है।  एक विखंडित और विघटित समाज की  परिकल्पना किसी भी साहित्यकार की ईमानदार भूमिका नहीं हो सकती है।  साहित्यकार भी याद किया जाता तो उसके लेखन के लिए और गलत या भ्रमित करने वाला साहित्य आलोचना का भी शिकार होता है। समाज और देश को सही दिशा में न कानून ले जाता है और न ही राजनीति बल्कि उसे संचित और वर्तमान रचित साहित्य ले जाता है ।
                 समाजशास्त्री होकर अगर साहित्यकार सामाजिक मूल्यों की अवहेलना करे या फिर ऐसे मूल्यों को बढ़ावा दे जो कि समाज हित  में ही न हो तो ऐसे साहित्यकार का दायित्व कौन निश्चित करेगा?  वो साहित्य जो सामाजिक मूल्यों और मान्यताओं का पोषक हो और गलत आचरण का समर्थक न हो , वही अपने दायित्व को पूरा कर रहा होता है। हम चाहे लेख , कहानी या कविता कोई भी प्रस्तुति करें लेकिन मानव हित में हो। हर साहित्यकार की रचना एक सुशिक्षित , सुसंस्कृत और सभ्य समाज की रचना के लिए सबसे अधिक उत्तरदायी होता है।

8 टिप्‍पणियां:

  1. आदरणीया/आदरणीय आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर( 'लोकतंत्र संवाद' मंच साहित्यिक पुस्तक-पुरस्कार योजना भाग-२ हेतु नामित की गयी है। )

    'बुधवार' ०८ अप्रैल २०२० को साप्ताहिक 'बुधवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य"

    https://loktantrasanvad.blogspot.com/2020/04/blog-post_8.html

    https://loktantrasanvad.blogspot.in/



    टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'बुधवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।


    आवश्यक सूचना : रचनाएं लिंक करने का उद्देश्य रचनाकार की मौलिकता का हनन करना कदापि नहीं हैं बल्कि उसके ब्लॉग तक साहित्य प्रेमियों को निर्बाध पहुँचाना है ताकि उक्त लेखक और उसकी रचनाधर्मिता से पाठक स्वयं परिचित हो सके, यही हमारा प्रयास है। यह कोई व्यवसायिक कार्य नहीं है बल्कि साहित्य के प्रति हमारा समर्पण है। सादर 'एकलव्य'

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत सही और उचित कहा आपने. किसी भी कालखंड को जानना है तो हमें उस समय के साहित्य से जानकारी मिलती है. इस लिए साहित्यकारों पर बहुत बड़ी जवाबदेही होती है कि वे क्या लिखते हैं. सार्थक आलेख के लिए बधाई.

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत ही सटीक और सार्थक लिखा गया आलेख है दीदी । यही सर्वथा सत्य है । दीदी अब आता रहूँगा ।

    जवाब देंहटाएं
  4. अपने ज़माने का सच लिखो
    ईमानदारी से लिखो.
    बहुत सटीक लेख है ये.
    नई रचना- एक भी दुकां नहीं थोड़े से कर्जे के लिए 

    जवाब देंहटाएं
  5. बिलकुल सही बात है दी असल मायने में वही साहित्यकार है जो समाज के हित की सोच कर लिखता हो।

    जवाब देंहटाएं
  6. आदरणीया/आदरणीय आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर( 'लोकतंत्र संवाद' मंच साहित्यिक पुस्तक-पुरस्कार योजना भाग-२  हेतु इस माह की चुनी गईं नौ श्रेष्ठ रचनाओं के अंतर्गत नामित की गयी है। )

    'बुधवार' २२  अप्रैल  २०२० को साप्ताहिक 'बुधवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य"
    https://loktantrasanvad.blogspot.com/2020/04/blog-post_22.html  
     

    टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'बुधवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।


    आवश्यक सूचना : रचनाएं लिंक करने का उद्देश्य रचनाकार की मौलिकता का हनन करना कदापि नहीं हैं बल्कि उसके ब्लॉग तक साहित्य प्रेमियों को निर्बाध पहुँचाना है ताकि उक्त लेखक और उसकी रचनाधर्मिता से पाठक स्वयं परिचित हो सके, यही हमारा प्रयास है। यह कोई व्यवसायिक कार्य नहीं है बल्कि साहित्य के प्रति हमारा समर्पण है। सादर 'एकलव्य'  

    जवाब देंहटाएं
  7. 'लोकतंत्र संवाद' मंच साहित्यिक पुस्तक-पुरस्कार योजना भाग-२ का परिणाम घोषित।

    परिणाम





    अंतिम परिणाम
    ( नाम सुविधानुसार व्यवस्थित किये गये हैं। )
    1. भूख अब पेट में नहीं रहती

    २. वर्तमान परिप्रेक्ष्य : साहित्यकार की भूमिका!

    ३. अभी हरगिज न सौपेंगे सफ़ीना----------

    ४. एक दूजे का साथ देना होगा प्रांजुल कुमार/ बालकवि


    नोट: इन सभी पुरस्कृत रचनाकारों को लोकतंत्र संवाद मंच की ओर से ढेर सारी शुभकामनाएं। आप सभी रचनाकारों को पुरस्कार स्वरूप पुस्तक साधारण डाक द्वारा शीघ्र-अतिशीघ्र प्रेषित कर दी जाएंगी। अतः पुरस्कार हेतु चयनित रचनाकार अपने डाक का पता पिनकोड सहित हमें निम्न पते ( dhruvsinghvns@gmail.com) ईमेल आईडी पर प्रेषित करें! अन्य रचनाकार निराश न हों और साहित्य-धर्म को निरंतर आगे बढ़ाते रहें।


    जवाब देंहटाएं
  8. 'लोकतंत्र संवाद' मंच साहित्यिक पुस्तक-पुरस्कार योजना भाग-२ का परिणाम घोषित।

    परिणाम





    अंतिम परिणाम
    ( नाम सुविधानुसार व्यवस्थित किये गये हैं। )
    1. भूख अब पेट में नहीं रहती ( आदरणीया प्रतिभा कटियार )

    २. वर्तमान परिप्रेक्ष्य : साहित्यकार की भूमिका! ( आदरणीया रेखा श्रीवास्तव )

    ३. अभी हरगिज न सौपेंगे सफ़ीना----------( आदरणीय राजेश कुमार राय )


    ४. एक दूजे का साथ देना होगा प्रांजुल कुमार/ बालकवि


    नोट: इन सभी पुरस्कृत रचनाकारों को लोकतंत्र संवाद मंच की ओर से ढेर सारी शुभकामनाएं। आप सभी रचनाकारों को पुरस्कार स्वरूप पुस्तक साधारण डाक द्वारा शीघ्र-अतिशीघ्र प्रेषित कर दी जाएंगी। अतः पुरस्कार हेतु चयनित रचनाकार अपने डाक का पता पिनकोड सहित हमें निम्न पते ( dhruvsinghvns@gmail.com) ईमेल आईडी पर प्रेषित करें! अन्य रचनाकार निराश न हों और साहित्य-धर्म को निरंतर आगे बढ़ाते रहें।


    जवाब देंहटाएं

ये मेरा सरोकार है, इस समाज , देश और विश्व के साथ . जो मन में होता है आपसे उजागर कर देते हैं. आपकी राय , आलोचना और समालोचना मेरा मार्गदर्शन और त्रुटियों को सुधारने का सबसे बड़ा रास्ताहै.