वह कथोक्ति है न कि जो दूसरों के लिए कुआँ खोदता है ईश्वर उनके लिए खाई खोद कर तैयार कर देता है. लेकिन ये कहावतें त्रेता , द्वापर या सतयुग में चिरतार्थ होती होंगी. अब तो दूसरों को मौत बेचने वाले किसी जेल में नहीं बल्कि मखमली सेजों पर सोते हैं. उनपर हाथ डालने की हिम्मत किसी नहीं है.
कुछ दिन पहले पढ़ा कि CSIR के एक अधिकारी की मृत्यु लौकी का रस पीने से हो गयी. ये आयुर्वेद चिकित्सा की औषधि है और इसमें गलत कुछ भी नहीं है. हाँ कुछ ऐसी मानसिकता वाले लोगों ने इसे दूषित करने की कसम खाई है. जो प्रकृतिका चिकित्सा कि औषधियों को भी जहर बना रहे हैं.
कानपुर में गाँव से दूध वालों के डिब्बों को पकड़ा गया तो सब डिब्बे छोड़ कर भाग गए क्योंकि उस दूध में यूरिया और फार्मोलीन मिला हुआ होता है जो किसी विष से कम घातक नहीं है. ये भी मौत परोस रहे है. हम सभी इस बात से वाकिफ हैं कि हरी सब्जियों में विशेषरूप से लौकी, खीर, तरबूज, और खरबूजे में किसान ऑक्सीटोसिन के injection लगाकर रातोंरात बड़ा करके बाजार में लाकर बेच लेते हैं. ये oxytocin भी जहर ही है. हरी और मुलायम सब्जियां सबको आकर्षित करती हैं और हम सभी उस जहर को जज्ब करते रहते हैं और फिर एक दिन -
*बहुत दिनों से पेट में दर्द की शिकायत थी , पता चला की कैंसर है.
*भूख नहीं लगाती थी, पेट भारी रहता था लीवर सिरोसिस निकला.
*इसी पीलिया, आँतों में सूजन और पता नहीं कितनी घातक बीमारियाँ एकदम प्रकट होती है. फिर
उनका अंजाम कुछ भी होता है.
सिर्फ यही क्यों? सभी खाद्य पदार्थों में मिलावट एक आम बात हो चुकी है और उसको जहरीला बनाने वाले लोग हम में से ही तो होते हैं. सिर्फ धनवान बनने की चाहत में जहर बो रहे हैं और इन चीजों से दूर रहने वाला आम आदमी इस जहर को अपने शरीर में उतार रहा है और उसके दुष्परिणामों को भी झेल रहा है .
वे जो ऑक्सीटोसिन का इंजेक्शन लगा कर जानवरों से दूध निकाल रहे हैं या सब्जियां उगा रहे हैं वे इस ख्याल में हैं कि वे अपनी चीजों को प्रयोग नहीं करेंगे लेकिन यह भूल जाते हैं कि सारी वस्तुएं वे ही नहीं बना सकते हैं और उनके भाई बन्धु उनके लिए भी जहर परोस रहे हैं जिसको वे निगल रहे हैं. इस बात से अनजान तो नहीं हो सकते हैं फिर क्यों मानवजाति के दुश्मन अपनी भौतिक इच्छाओं की पूर्ति के लिए ये जहर खा और खिला रहा है. वह क्या सोचते हैं कि इस जहर से बच जायेंगे? क्या धनवान बनने से वे दूसरों के खिलाये जा रहे जहर से ग्रसित होकर खून की उल्टियाँ नहीं करेंगे?
क्या वे कैंसर से ग्रसित नहीं होंगे?
पक्षाघात या हृदयाघात का शिकार नहीं होंगे?
हमारे बच्चे क्या इसकी पीड़ा नहीं झेलेंगे?
अगर वे इस बात से इनकार कर रहे हैं या अनजान हैं तो कोई बात नहीं. लेकिन ऐसा कोई भी चोर नहीं होता कि अपने किये अपराध की सजा न जानता हो. जब तक नजर से बचा हैं तो सफेदपोश और जिस दिन ये भ्रम टूट गया तो इससे बच वे भी नहीं सकते .हाँ ये हो सकता है कि पैसे के बल पर वे इन रोगों से लड़ सकते हैं लेकिन उस पीड़ा को उनकी तिजोरियों में रखा हुआ धन नहीं झेलेगा और क्या पता वह भी मौत से हार जाये और आप खुद अपने ही हाथों मौत परोस कर खुद ही उसके शिकार हो जाएँ.
इस जहर से कोई नहीं बच सकता है. अगर हम नहीं बचेंगे तो ये मौत के सौदागर भी नहीं बचेंगे.
शुक्रवार, 16 जुलाई 2010
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आपकी पोस्ट आज चर्चा मंच पर भी है...
जवाब देंहटाएंhttp://charchamanch.blogspot.com/2010/07/217_17.html
जी आप की बात से सहमत हुं अगर यह लोग लालच मै हम सब की जानो से खेल रहे है तो यह ओर इन के बच्चे भी नही बच सकते, यानि ऎसा कर्म करने वाले हमारे संग खुद को भी मार रहे है, किसी भी मिलावटिये को या ऎसा जहर बेचने बाले को, ओर उसे बचाने बाले को सख्त से सख्त सजा होनी चाहिये साथ मै उस की जमा पुंजी को भी जब्त कर देना चाहिये, धन्यवाद इस जाग्रुक लेख के लिये
जवाब देंहटाएंसब जानते हुए भी कोई चारा नहीं है...वही दूध लेना पड़ता है और ऐसी ही सब्ज़ी और फल खाने पड़ते हैं....इन घटनाओं को रोकने के लिए जब तक सरकारी तंत्र सजग नहीं होगा तब तक कुछ नहीं हो सकता
जवाब देंहटाएंab to in ke khilaf jbrdast muhim chedni chahiye .kyoki t v ke chlte sbko maloom hai ki kitni vastuye milavti hai aur kya kya milaya ja raha hai?
जवाब देंहटाएंसही बतला रही हैं आप। यह जहर हरा हरा है। जगह जगह भरा पड़ा है। इसी ने किया स्वास्थ्य का कचरा है।
जवाब देंहटाएंआपकी बात से शतप्रतिशत सहमत हूँ...आज के युग में कोई सुरक्षित नहीं है...सब जगह ज़हर है..सब्जियों में, फलों में, अनाज में , पानी में, हवा में यहाँ तक इंसानों के दिल में भी...
जवाब देंहटाएंनीरज
बात तो बिल्कुल सही कही है आपने……………सहमत हूँ।
जवाब देंहटाएंhum ye vastiviktayen jaan kar bhi chup rahte hain kyonki dekh kar undekhi karna hamara swabhav hai hum currupt logon ko chun kar desh unke hawale kar dete hain jinhe desh ki parvah nahin kyoki hum apne baare main sochte hain .bahut dhanyavad sakhi jagrookta laane ke liye agar hum sab milkar ye samajh paaye kihum jo karenge aage ki generation uska bhugtan bharegi
जवाब देंहटाएंअब इंसान क्या खाए और क्या न खाए ..सरकार को ही सख्त कदम उठाने चाहिए.
जवाब देंहटाएंरेखा जी इस बात में कोई दो मत नहीं हैं कि खाने में मिलावट नहीं होनी चाहिए। पर विडम्बना यह भी है कि जब इस देश के अस्सी प्रतिशत लोग केवल 20 से 40 रूपए रोज पर अपना गुजारा करते हैं,वहां उनके पास इसके अलावा क्या विकल्प है कि जो मिले वे खाएं।
जवाब देंहटाएंाब तो हर चीज़ खाते हुये डर सा लगता है। रोज़ टी वी पर मिलावट के बारे मे देख कर लगता है कि मिलावट से कुछ भी अछूता नही। मगर वही कि क्या किया जाये। सरकार सो रही है चेक करने वालों मे भीइसी समाज के गद्दर छिपे हैं उनको पहले सख्त सजा हो बाद मे मिलावट करने वालों को तब शायद कुछ बचाव हो। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सार्थक आलेख...सबकुछ जानते हुए भी हमलोग इस जहर को खाने के लिए मजबूर है...सब्जी खरीदते समय साफ़ दिखता है ...परवल हरे रंग से रंगे हुए हैं...सेब पर मोम की परत जमी हुई ..दूध उबालते समय ही अजीब सा दिखता है ..पर मजबूर हैं इसे निगलने को.
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