व्यावसायिक चिकित्सा पद्धति के अंतर्गत हमने बहुत से प्रकार से अपंग बच्चों के बारे में जाना था . अब प्रश्न यह उठता है कि ये सारी कमियां पहले भी हुआ करती थी लेकिन उनकी संख्या इतनी अधिक न हुआ करती थी. तब तो गाँव में और घर में ही प्रसव हुआ करते थे और उनकी संख्या भी बहुत अधिक होती थी. सभी बच्चे चाहे कम अन्तराल पर हुए हों या फिर अधिक स्वस्थ होते थे.
अधिक सुविधायों ने अगर हमको इस क्षेत्र में अधिक सक्षम बनाया है तो हमें उससे अधिक समस्याओं की जानकारी भी होने लगी है. उससे जनित समस्याओं के कारणों और उनके निराकरण पर भी विचार होने लगा है . पहले हम इससे वाकिफ नहीं थे क्योंकि उपचार की इन शाखाओं का विकास ही नहीं हुआ था बल्कि आज भी लोगों को इस चिकित्सा पद्धति के विषय में अधिक जानकारी नहीं है.
आज मैं पहले के समय की बात देखती हूँ तो समझ आता है. मेरे पड़ोस में विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार रहते थे और उनके पहले तीन लड़कियाँ थी और स्वस्थ थी. लड़के की चाह ने उनको सबसे अंत में पुत्र प्राप्त करने का सुयोग भी दिया किन्तु लड़का मानसिक तौर पर अपंग था. ऐसे एक उनका ही मामला नहीं देखा बल्कि और कई मामले देखे और लोगों को कहते सुना - 'भगवान का अन्याय तो देखो कि लड़कियाँ सब भली चंगी और लड़का कैसा दिया? इस कैसा के पीछे क्यों को किसी ने न जाना और न ही जानने कि कोशिश की, ये कहिये कि तब इस प्रकार कि जानकारी हासिल भी नहीं हुई थी.
आज आमतौर पर लड़कियों की पढ़ाई और करियर के चलते विवाह कि उम्र बढ़ गयी है , हम इसको अच्छा मानते हैं या बुरा अपना अपना दृष्टिकोण है और कुछ तो शादी के बाद भी करियर के पीछे संतान का बोझ नहीं उठना चाहती हैं और बाद में प्लान करेंगे की तर्ज पर इस विषय को महत्व नहीं देती हैं. इन सब चीजों से शत प्रतिशत तो नहीं फिर भी मानसिक अपंगता के कारणों में प्रमुख बन रहे हैं. आइये उन कारणों पर विचार करें कि ये क्यों बढ़ रही है और इसमें कितनी सत्यता है?
१. उम्र -- इसमें माँ की उम्र का बहुत अधिक महत्व है अगर माँ कि उम्र बहुत अधिक या बहुत कम होती है तब भी इस तरह के बच्चे होने की संभावना में वृद्धि हो जाती है.
२. बेमेल विवाह -- बच्चे की मानसिक अपंगता में बेमेल विवाह की भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है. पति या पत्नी दोनों की आयु के बीच अधिक अंतर होना भी भावी बच्चे के पूर्ण विकास पर प्रश्नचिह्न लगा देता है.
३. माँ की शारीरिक स्थिति -- वर्तमान समय में मधुमेह, रक्ताल्पता, उच्च रक्तचाप या निम्न रक्तचाप आम बीमारी बन चुकी हैं लेकिन इन बीमारियों के रहते अगर वे गर्भ धारण करती हैं तो उसका प्रभाव बच्चे पर पड़ता है जिससे कि उसके सामान्य होने के रास्ते में कई अवरोध खड़े हो जाते हैं.
४. मद्यपान/ ध्रूमपान --माँ का मद्यपान या ध्रूमपान दोनों ही बच्चे के मानसिक अपंग होने के लिए जिम्मेदार होते हैं. माँ के शरीर में अल्कोहल का जाना और ध्रूमपान से फेफड़ों पर पड़ने वाला दबाव बच्चे को प्रभावित करता है क्योंकि वह गर्भ में हवा पानी और भोजन सब माँ से ही ग्रहण करता है तो इन चीजों को जो भ्रूण ग्रहण करेगा उसके लिए कैसे सोचा जा सकता है कि वह एक सामान्य बच्चा हो सकता है.
५. असामान्य प्रसव - नारी की शारीरिक रचना के अनुसार सामान्य प्रसव होना एक प्राकृतिक गुण है किन्तु जब ये सामान्य नहीं हो पाता है तो इसके लिए डॉक्टर को कुछ और तरीके अपनाने पड़ते हैं . उन तरीकों का प्रभाव अगर गलत हो गया तो बच्चे के मानसिक अपंग होने के अवसर बढ़ जाते हैं.
६. अल्ट्रा साउंड / एक्स रे -- गर्भावस्था के दौरान माँ के अल्ट्रा साउंड या एक्स रे अधिक होते हैं तो इससे बच्चे के स्वस्थ पर विपरीत प्रभाव पड़ता है. देखने में ये एक सामान्य प्रक्रिया होती है लेकिन अधिक होने पर यही घातक बन जाती है और बच्चे के लिए मानसिक अपंगता का कारण भी बन सकते हैं.
७. माँ की चोट -- गर्भावस्था में अगर किसी कारणवश माँ को चोट लग जाती है तो हमेशा तो नहीं लेकिन ये भी बच्चे के लिए मानसिक अपंगता का कारण सिद्ध होती है क्योंकि ऊपरी तौर पर यह पता नहीं लगाया जा सकता है कि बच्चे कि मानसिक स्थिति क्या है? डॉक्टर बच्चे कि शारीरिक स्थिति विभिन्न तरीके से पता लगा लेते हैं लेकिन मानसिक अपंगता तो उसके कुछ बड़े होने पर ही पता लगती है..
८. नाल फँसना - कई बार बच्चे कि नाल उसके गले में फँस जाती है और इसका पता लगने में यदि देर हो जाती है तो बच्चे कि मौत तक हो जाती है लेकिन अगर नाल फंसने के बाद उसका जन्म होता है तो उस दौरान उसके जिन नसों पर उसका दबाव बना रहता है वे सामान्य तौर पर कार्य करें ये आवश्यक नहीं होता है और यही उसके मानसिक अपंग होने कि संभावना को बढ़ा देता है.
९. गन्दा पानी - कई बार डॉक्टर कहते हैं कि बच्चे के मुँह में या फिर पेट में भी गन्दा पानी चला गया है, उसके लिए कई उपाय किये जाते हैं कि उसको निकला जाय लेकिन जन्म से पूर्व ऐसा होना उनके सामान्य जीवन पर प्रश्न चिह्न खड़ा कर सकता है.
१०. बच्चे का रोना - बच्चे का पैदा होते ही रोना बहुत जरूरी होता है क्योंकि माँ के गर्भ में तो वह सारी चीजें माँ से ग्रहण कर्ता है उसको बाहर के वातावरण या फिर अपनी शारीरिक क्रियाओं के लिए माँ पर निर्भर रहना पड़ता है लेकिन जैसे ही वह गर्भ से बाहर आता और जोर से रोता है तो वह बाहर से आक्सीजन ग्रहण कर्ता है और उसके उसके मष्तिष्क की नसों में रक्त प्रवाह आरम्भ होता है और वे सामान्यतौर पर कार्य करती हैं . यही अगर विपरीत होता है तो सबसे पहले डॉक्टर बच्चे को मार कर रुलाने का प्रयास करते हैं और तब भी नहीं रोता है तो उसको कृत्रिम तरीके से आक्सीजन देने कि व्यवस्था करते हैं . लेकिन जो इस बीच में देर होती है उससे मष्तिष्क कि नसे आपस में जुड़ जाती हैं और फिर कृत्रिम ढंग से आक्सीजन देने पर भी यदि नहीं खुल पति हैं तो उन नसों का जिन अंगों से सम्बन्ध होता है वे अंग सामान्य तौर पर कार्य नहीं कर पाते हैं इसमें अपंगता मानसिक और शारीरिक दोनों ही हो सकती हैं.
११. सिर में औजार लगना -- प्रसव के दौरान कई बार ऐसे स्थितियां आ जाती हैं कि बच्चे के जन्म के लिए कुछ औजारों का प्रयोग करना जरूरी होता है और यदि ये औजार बच्चे के सिर में कहीं भी लग जाते हैं तो वे घातक सिद्ध होते हैं. क्योंकि बच्चे का सिर सबसे महत्वपूर्ण अंग होता है उससे उसके सारे शरीर कि प्रक्रिया जुड़ी होती है और औजार लगने पर यदि कोई भी रक्तवाहिनी क्षतिगस्त हो गयी तो उसका मानसिकतौर अपार अपंग होना निश्चित हो जाता है.
१२. सिर की चोट - बच्चे के सिर में यदि जन्म के कुछ दिनों के अंतर में ही चोट लग जाती है तो ये उसके लिए अच्छा नहीं होता है. उस समय तो पता नहीं चलता है लेकिन बाद में उसके लक्षण प्रकट होने लगते हैं.
१३. उल्टा पैदा होना - सामान्य अवस्था में प्रसव में बच्चे का सिर पहले बाहर आता है और पैर बाद में , लेकिन कभी कभी बच्चे के उल्टे पैदा होने से पहले पैर बाहर आते हैं और फिर उसका सिर फँस भी सकता है या फिर बाहर की हवा उसके सिर को बाद में मिलती है तो उसके जो कार्य सिर से आरम्भ होते हैं उनमें विलम्ब होता है और फिर उसके लिए यह घातक हो सकता है.
इन स्थितियों से बचाने का प्रयास तो किया ही जा सकता है ताकि माँ एक स्वस्थ बच्चे को जन्म दे. इन कारणों को शत प्रतिशत बच्चे कि मानसिक अपंगता के लिए जिम्मेदार नहीं मना जाता है लेकिन ऐसी परिस्थिति में हम बहुत हद तक ऐसे ही बच्चों को पा रहे हैं. इससे भावी को माँ को सतर्क करना या फिर स्वयं माँ का सावधानी बरतना अच्छा ही हो सकता है. इस प्रकार के बच्चे कभी भी पूरी तरह से सामान्य नहीं हो पाते हैं इनके लिए ही व्यावसायिक चिकित्सा उनको अपने कार्यों के लिए आत्मनिर्भर बनाने कि दिशा में सकारात्मक रास्ता दिखाती है और उनको उस ओर ले भी जाती है.
रोचक जानकारी के साथ ज्ञानवर्धक आलेख्।
जवाब देंहटाएंबहुत ही उपयोगी जानकारी |कई बार मै भी सोचती कितनी ही जगह चार पञ्च भाई भाई बहनों में एक बच्चा ओसतन ऐसा ही देखती थी |आपके आलेख से काफी बाते पता चली |
जवाब देंहटाएंबढिया जानकारियों से भरपूर आलेख.
जवाब देंहटाएंरेखा जी बहुत सुंदर जानकारियां दी काफ़ी के बारे तो पता था, लेकिन कुछ नयी जानकारियां भी मिली, मै दोनो बच्चो के जन्म के समय वही था, ओर बीबी की मदद कर रहा था, जिस से बीबी को होसला रहता हे,भगवान की दया से दोनो बच्चे ठीक हे , लेकिन बडे वाला समय से पहले हुआ, ओर वजन भी उस समय कम था, सो दिखने मै वो कमजोर लगता हे, लेकिन हर जगह सब से तेज हे, यानि वो धीरे धीर से बढा हे, ओर कद भी छोटे के मुकबले छोटा हे, धन्यवाद इस बहुत अच्छी जानकारी के लिये
जवाब देंहटाएंयह पोस्ट हमें विचार मंथन करने पर विवश करती है और समस्या का बहुत सारे समाधान की राह भी दिखाती है।
जवाब देंहटाएंलेख जानकारी परक है।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी जानकारी देती पोस्ट.
जवाब देंहटाएंशुक्रिया.
Rekha ji aapki lekhni ko salam karne ko jee chahta hai.
जवाब देंहटाएंBahut hi sundar aur upyogi lekhan.
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यौन शोषण : सिर्फ पुरूष दोषी?
क्या मल्लिका शेरावत की 'हिस्स' पर रोक लगनी चाहिए?
बेहद आवश्यक और उपयोगी लेख ...शायद इस विषय पर मैं पहला लेख पढ़ रहा हूँ ! आप अच्छा कार्य कर रही हैं हार्दिक शुभकामनायें
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