सिर्फ एक पक्ष देख लेने भर से ही तो जीवन में महत्वपूर्ण निर्णय नहीं किये जा सकते हैं। पत्नी के बाद मैंने पति का भी पक्ष पूछा और उनसे ऐसे ही सवाल किये कि ' वे परिवार में निजता को कितना महत्व देते हैं? '
'परिवार तो एक खुली किताब की तरह होनी चाहिए इसमें निजता का सवाल कहाँ से आता है? '
'नहीं अगर सारे दिन के बाद आपसे कोई पूछे कि आप किस किस से मिले क्या बात हुई तो? '
'किसी ने पूछा ही नहीं - नहीं तो बता देता।' उन्होंने बड़े ही सहज भाव से कहा।
'हमें अपनी समस्या और बातें शेयर करनी ही चाहिए नहीं तो एक दूसरे के साथ कैसे जीवन बिताया जा सकता है।'
उनकी बातों में जो सहजता और खुलापन था उससे नहीं लगा कि वे किसी के शक के दायरे में ऐसा कर रहे होंगे। यह उनके स्वभाव का एक हिस्सा है लेकिन जिसे नहीं पसंद उसे अपनी बात खुल कर कहानी ही चाहिए। इस बात को उनकी पत्नी ने स्वीकार किया था कि मेरे पति बहुत अच्छे हैं , केयरिंग है फिर इस व्यवहार एक प्रश्न चिह्न खड़ा कर रही थी।
कुछ लोगों कि प्रकृति ही ऐसी होती है कि लोग उसको शक कह सकते हैं और वह शक हो भी सकता है किन्तु इस बात से वह व्यक्ति खुद भी अनभिज्ञ होता है कि वह जो कर रहा है वह दूसरे कि नजर में गलत है। उसके व्यवहार की कमियों को तो कोई दूसरा ही पकड़ सकता है। इसके लिए दोनों की ही काउंसलिंग होनी चाहिए। या तो व्यक्ति का इतना बड़ा मित्रों का दायरा हो कि वह अपना समय उनके बीच गुजारता रहे और उसे घर के प्रति इतनी अधिक लगाव न हो कि वह हर बात में खुद को साझीदार बनने की चाह रखता हो। ये कुछ मुद्दे हैं जो कि जीवन भर इंसान भागता रहता है और ऐसी छोटी मोटी बातों के लिए उसके पास समय ही नहीं होता है लेकिन जब वह अपनी बहुत सी जिम्मेदारियों सेमुक्त हो जाता है तो फिर दो लोगों के बीच ही जीवन गुजरना होता है और इसमें उसकी अपेक्षा कि वे आपस में हर बात को शेयर करें कुछ भी गलत नहीं होती है। बच्चों के रहते हुए माँ उनके भविष्य के प्रति चिंतित उनके खाने पीने और स्वास्थ्य रहने के प्रति संवेदनशील होती है और पिता उनके लिए साधन जुटाने के लिए। जब बच्चे बाहर चले गए तो फिर घर में दो ही प्राणी बचे रहते हैं। फिर एक दूसरे के प्रति निष्ठां और समर्पण का भाव ही रह जाता है। इस समय सभी ये चाहते हैं कि उनका जीवनसाथी जो अब तक घर बच्चों और दायित्वों में बँटा रहा है , अब सब से निवृत होकर उसके साथ रहे। अगर वे पत्नी कि उदासी से परेशान न होते तो फिर उन्हें क्यों मेरे पास लाये होते लेकिन वे अपने स्वभाव वश अपनी टाक झांक को गलत नहीं मान पा रहे थे। इस बात के लिए उनसे बात की जातीतो शायद वे अपने को उनके सामने भी व्यक्त कर पाते।
ये स्थिति सिर्फ और सिर्फ किसी नारी के लिए ही खड़ी होती है ऐसा नहीं है, पुरुष भी इसके शिकार हैं। जहाँ पत्नी अपने स्वभाव वश पति के लिए एक समस्या बन कर खड़ी होती है। ऐसे समय में जरूरी है कि जो भी गलत है रहा हो उसकी काउंसिलिंग करवाई जाए। इसमें संकोच जैसी कोई बात नहीं होनी चाहिए कई बारकोई बात न होते हुए भी ऐसे हालात बन जाते हैं की शक जैसी स्थिति बन जाती है और फिर उसका परिणाम अच्छानहीं होता है। इस लिए सही व्यक्ति का ही इलाज होना चाहिए और ऐसी बातों में परिपक्वता और समझदारी काप्रयोग होना चाहिए।
सही और सटीक बात कही है आपने...अगर घर में संवाद होता रहता है तो तनाव की स्तिथि कम बनने की सम्भावना होती है...आपसी मतभेद बातों से सुलझाए जा सकते हैं...
जवाब देंहटाएंनीरज
आद.रेखा जी,
जवाब देंहटाएंआपने बड़ी ही व्यावहारिक बातों पर अपने लेख को केन्द्रित किया है ! ज़िन्दगी के कई ऐसे ही अनसुलझे सवाल कई बार जीवन को बर्बाद कर देते है !
इस सुदर,उपयोगी लेख के लिए साधुवाद !
dono hi shikaar hain , per unki tahon tak pahunchker kya , apne kadam khud sunishchit karne hote hain
जवाब देंहटाएंनिजता की शुचिता , और जीवन में सामंजस्य पारिवारिक जीवन को जीने लायक बनाता है .एक बहुत ही उपयोगी और सार्थक विषय पर सुन्दर प्रस्तुति .
जवाब देंहटाएंबहुत ही सही बात कही आपने.
जवाब देंहटाएंसादर
सहज बुद्धि का प्रयोग ही पर्याप्त है सम्बन्धों में।
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