कौन बीमार औ' दवा किसकी?
वह दंपत्ति नीला के पास आया था और उनके पति अपनी पत्नी की काउंसिलिंग के लिए उन्हें लाये थे। उन्हें शिकायत थी कि वे बहुत गुमसुम रहने लगी हैं। उन्हें लगता है कि घर से बाहर और ऑफिस में खुश रहती हैं, फिर घर में हीआकर क्या हो जाता है? वे इसका निदान चाहते थे और उन्होंने ये बात नीला को फ़ोन पर पहले ही बता दी थी। पति और पत्नी दोनों ही उच्च शिक्षित और अच्छी जगह पर नौकरी कर रहे थे।
जब उन दोनों ने मेरे कमरे में प्रवेश किया तो मुझे ये समझते देर नहीं लगी कि बीमार कौन है? जहाँ घर में सिर्फ दो ही लोग रहते हों और फिर भी तनाव तो उसका कारण कोई एक तो बनता ही होगा। मैंने दोनों से ही अलग-अलग बात करना चाहा तो पति से कहा कि आप बाहर बैठें , मैं इनसे अकेले में कुछ पूछना चाहती हूँ। पतिदेव बाहर चले गए।
जब पति बाहर निकल गए और दरवाजा बंद हो गया तो पत्नी ने पीछे मुड़कर देखा और एक गहरी साँस ली। उनकी सिर्फ एक साँस ने पूरी कहानी बयान कर दी। फिर भी उनकी हिस्ट्री तो जाननी ही थी।
"आपके घर में कितने सदस्य हैं?"
"हम दोनों ही हैं - बच्चे बाहर पढ़ रहे हैं।"
"आप जॉब करती हैं?"
"जी।"
"कहाँ?"
"बैंक में पी आर ओ हूँ।"
"आपकी सेलरी भी अच्छी होगी, फिर आप तनाव में क्यों रहती हैं?"
"क्या सिर्फ पैसा न होना ही तनाव का वायस होता है?"
"ऐसा तो नहीं है फिर भी 70 प्रतिशत तो होता ही है।"
"मेरे साथ ऐसा नहीं है - मेरे तनाव का करण सिर्फ इनकी कुछ आदतें हैं, जिन्हें बहुत सहा लेकिन अब झेल नहीं पाती हूँ तो खामोश रहती हूँ। पहले बच्चे थे उनसे सब शेयर कर लेती थी किन्तु अब घुटकर रह जाना पड़ता है किससे बाँटूं?"
"मुझे बतलाइये शायद कोई समाधान निकल सके।"
"मेरे पतिदेव वैसे बहुत अच्छे हैं, केयरिंग हैं किन्तु उनकी कुछ आदतें अब मुझे भारी पड़ने लगी हैं। पहले किसी और तरीके से ये सामने आती तो टाल जाती थी किन्तु अब मेरे सहन शक्ति भी जवाब देने लगी है।"
"जैसे"
"सबसे पहले जब भी उन्हें मौका मिलेगा मेरे मोबाइल की सर्च करेंगे। ये किसका नंबर है? ये कौन है? इस नंबर पर इतनी देर क्या बात हुई? आज दिन में किस किस कि कॉल आई और क्या बात हुई? किसी नए नम्बर को देखकर सवाल। मेरे मैसेज बॉक्स को खोल कर पढ़ना। बच्चों से इतनी इतनी देर तक क्या बात करती हो? वैसे चाहे जितना पैसा खर्च करो कोई बात नहीं लेकिन मोबाइल पर सेंसर बैठा रहता है और ये बातें अब मेरी सहनशक्ति से बाहर हो चुकी हैं तो मैं संक्षेप में उत्तर देकर चुप ही रहती हूँ। "
"बस इतनी सी बात।"
"आपको ये बात इतनी सी लगती होगी , मेरे लिए ये मेरे अस्तित्व पर प्रश्न चिह्न जैसा लगता है। आख़िर क्यों मैं सारी बातें शेयर करूँ? ऑफिस में क्या होता है? क्या समस्या मेरे सामने आई और कैसे निपटी? ये मेरा काम है। मेरा मोबाइल मेरी निजी संपत्ति है उसको छूना और उसका पोस्ट मार्टम -- मैं तनाव बढ़ाना नहीं चाहती हूँ इसलिए चुप ही रहती हूँ।"
अब माजरा मेरी समझ में आया कि यहाँ बीमार पत्नी नहीं बल्कि पति स्वयं हैं और ऐसे लोग खुद इस बात को कभी स्वीकार या महसूस ही नहीं कर सकते हैं कि उनके द्वारा किया जा रहा व्यवहार असामान्य है। उनकी दृष्टि में ये उनका अधिकार है कि पति और पत्नी का कुछ भी बँटा नहीं है, फिर भी निजी जिन्दगी हर एक की अलग होती है। अपने निजत्व में कौन किसको कितना हिस्सा देना चाहता है उसका सम्मान करना चाहिए।
एक सिर्फ एक पति या पत्नी का ही मामला नहीं है बल्कि ये तो माँ बाप और उनके बच्चों के मध्य भी हो सकता है। ऐसा व्यवहार करने पर बच्चे विद्रोही तक हो जाते हैं। जरूरत से ज्यादा नजर रखने पर बच्चे जानबूझकर उसका उल्लंघन करने लगते हैं। इसका मतलब ये कतई नहीं है कि बच्चों पर नजर रखना छोड़ दें। ये विद्रोह किशोरावस्था में अधिक होता है और यही वह उम्र होती है जब कि बच्चों के कदम गलत रास्ते पर जा सकते हैं। आप उन पर दृष्टि रखिये लेकिन उनके पीछे से । उन्हें समझाइए लेकिन दूसरों का उदाहरण देकर ताकि उन्हें ये न लगे कि ये सारी बातें उन पर थोपी जा रही हैं। इलाज उसी का होना चाहिए जो वास्तव में बीमार हो लेकिन पुरुष अपने को और अपनी गलतियों को खासतौर पर ऐसे पुरुष मानने के लिए तैयार ही नहीं होते हैं और फिर इसका कोई भी इलाज संभव ही नहीं है। ऐसा सिर्फ स्त्रियों के साथ ही होता हो ऐसा नहीं है इसके ठीक विपरीत स्थिति भी मैंने देखी है। अपने परिवार की सुख और शांति के लिए समझदारी का प्रयोग तो दोनों को ही करना होगा। अगर आप गलत हैं तो उसको स्वीकारिये भले न खुद में उसे महसूस कीजिये और दूसरे को अपने निजत्व के साथ जीने का अधिकार दीजिये। ऐसे चीजों को समस्या मत बनाइये बल्कि सहजता से लीजिये। घर बाहर निकलने वाली नारी हो या पुरुष सबका अपना अपना दायरा बन जाता है और फिर उस दायरे के हर व्यक्ति से वह परिचित नहीं करा सकता/सकती है। इस लिए ऑफिस को घर में मत लाइए और एक दूसरे के प्रति विश्वास और निष्ठां को बनाये रखें।
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ऑफिस को घर में मत लाइए और एक दूसरे के प्रति विश्वास और निष्ठां को बनाये रखें...
जवाब देंहटाएंसही कहा आपने।
अच्छेआ और गंभीर विषयों पर ध्याकन आकर्षित करने और मनन करने का अवसर देने के लिए आपका आभार।
रिश्ते में निजता का ख्याल तो रखना ही चहिये. विश्वास ही रिश्ते का स्तम्भ है .
जवाब देंहटाएंआपने भी दूसरे का उदाहरण दे कर सबको बहुत कुछ समझाना चाहा है ...अच्छा चिंतन और मनन करने योग्य लेख ...
जवाब देंहटाएंविश्वास से दुनिया कायम है।
जवाब देंहटाएंपरिवार मे विश्वास बहुत जरुरी हे, आप ने बहुत सुंदर बात कही, ओर सुंदर सलाह भी दी, धन्यवाद
जवाब देंहटाएंप्रेम और विश्वास के अलावा इन समस्याओं का दूसरा कोई उपाय नहीं है !
जवाब देंहटाएंप्रेम और विश्वास पर ही दुनिया कायम है.अच्छी कहानी
जवाब देंहटाएंpyari si salah...:)
जवाब देंहटाएंwaise aap ho hi aise!