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शनिवार, 7 अप्रैल 2012

ये कैसे संरक्षा गृह ?

चित्र गूगल के साभार : बालिका संरक्षा गृह




सरंक्षा गृह अपने नाम को कितना सार्थक कर रहे हें ? इस बात को सिर्फ एक घटना के प्रकाश में आने से ही सिद्ध हो गया है। बाकी और गृहों के बारे में भी छानबीन जरूरी है। सरकार इनके पोषण के लिए पर्याप्त अनुदान देती है और पर्याप्त कर्मचारी होते हें । शेष सभी सुविधाएँ भी दी जाती हें । वह बात और है कि वहाँ के जिम्मेदार अधिकारी उन सुविधाओं को कितना उनको उपलब्ध कराते हें और शेष कहाँ उपयोग में लाते हें?
इलाहबाद के तेलियर गंज स्थित बाल संरक्षा गृह शिवकुटी में जो बात सामने आई है वह शर्म से डूबने वाली होने के साथ साथ बच्चियों के साथ हो रही अनदेखी या फिर जानबूझ कर की गयी अनदेखी को प्रकाश में लगा रही है। वहाँ के एक चौकीदार द्वारा बच्चियों के साथ दिन में लगातार कर रहे दुराचार की घटना ने मानवता का सिर नीचे तो किया है वहाँ के प्रशासन के ऊपर भी सवालिया निशान लगा दिया है। वहाँ दिन में ड्यूटी पर रहने वाले चौकीदार के द्वारा एक नहीं कई बच्चियों के साथ दुराचार होता रहा और वहाँ की अधीक्षिका जो कि दिन भर वहाँ रहती हें और शेष महिला कर्मचारी इस बात से बेखबर कैसी रही ? इस तरह के लोगों के हावभाव और गतिविधियाँ संदिग्ध रहती हें और उसे अगर एक महिला न भांप पाए तो शर्म की बात है या फिर सिर्फ अपने पद और वेतन के लिए वहाँ उपस्थिति दर्ज करने वाली बात कही जायेगी।
अधीक्षिका महोदया वह सिर्फ अपने चैम्बर में या कमरे में बैठ कर क्या करती रहती थी ? कभी उन्होंने उन बच्चियों से उनका हालचाल पूछा होता तो शायद वे कुछ बता पाती वे बच्चियां जो दस साल से काम उम्र की हैं इसका अर्थ नहीं जानती हें , वे क्या शिकायत करेंगी ? और अधीक्षिका महोदया इस बात के इन्तजार में रही कि जब तक बच्चियां शिकायत नहीं करेंगी तो वे जांच कैसी करवाती ? उनके पास कोई शिकायत आई ही नहीं।
उनसे एक सवाल क्या वे अपनी बेटियों को भी इसी तरह आँखें मूँद कर नौकरों के सहारे छोड़ कर आती हें और लौट कर अपने बच्चियों से कुछ भी नहीं पूछती हें? या फिर उनसे शिकायत के लिए इन्तजार में रहती हें और आँखें मूँद कर रहती हें। क्या वे अपने बच्चों को आया के सहारे भी छोडती हें तो अपनी सारी इन्द्रियां सक्रिय नहीं रखती हें?
कहीं के भी हॉस्टल या संरक्षा गृह की बच्चियां वहाँ की अधीक्षिका के लिए अपने बच्चों के समान ही होती हें। वे अनाथ या तिरस्कृत बच्चियां अपनापन और प्यार कहाँ से खोजेंगी? फिर इतना गैर जिम्मेदाराना काम क्यों?
इसके साथ तमाम प्रश्न खड़े हो जाते हें --
- क्या वहाँ के किसी भी कर्मचारी ने ये नहीं देखा कि इस चौकीदार का बच्चियों के प्रति क्या हाव भाव और गतिविधियाँ हैं? एक नहीं दो नहीं वहाँ पर पूरे ९ कर्मचारी काम करते हें और सब के सब बेखबर रहते हें या फिर सब की जानकारी में बच्चियों के साथ दुराचार होता रहा ?
--जहाँ पर बच्चियां रहती हों वहाँ पर संरक्षा गृह में अन्दर खाने या सफाई का काम करने वाले कर्मचारी महिला ही होनी चाहिए। पुरुषों की आवश्यक हो तो उन्हें बाहर तक ही रखा जाय।
--संरक्षिका को सिर्फ दिन में नहीं बल्कि पूर्णकालिक रहना चाहिए , रात की सुरक्षा को अनदेखी न किया जाय।
--सरकारी संस्थान क्या सिर्फ कागजों पर सुविधाओं और सुरक्षा के दावे करते हें?
--ऐसे संरक्षा गृहों में औचक निरिक्षण ही होना चाहिए जैसे कि अभी कानपुर में भी एक महिला संरक्षा गृह में हुआ कि वहाँ पर रहने वाली युवतियों में आधे से अधिक बीमार थीं और उनके रहने की व्यवस्था सबके साथ ही थी। न तो वहाँ के प्रशासन को फैलाने वाले संक्रमण की चिंता थी और न ही उन सबके स्वास्थ्य की।
इन सवालिया निशानों को सिर्फ एक संरक्षा गृह के कर्मचारियों के निलंबन से उत्तर नहीं खोजा जा सकता है बल्कि लगाम ऐसी सभी संस्थानों पर कासी जानी चाहिए ताकि भविष्य में इसकी कहीं भी पुनरावृत्ति न हो।

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