शनिवार, 14 अप्रैल 2012
अम्बेडकर जयंती !
आज अवकाश का दिन है क्योंकि आज भीम राव अम्बेडकर जी की जयंती है। अम्बेडकर जी भारत के गणतंत्र राष्ट्र के लिए संविधान निर्माताओं में प्रमुख स्थान रखते हें और इसके लिए देश उनके प्रति कृतज्ञ है ।
लेकिन आज कई वर्षों से अम्बेडकर जी के नाम को एक तमगा बना लिया गया है और वे जातिगत संपत्ति बन गए हें । चाहे वह उनके नाम को लेकर हो या फिर उनकी मूर्ति को लेकर। चाहे वे जो उनकी मूर्ति के विभिन्न आकार में बनवा कर अपने घर या झोपड़ी के आगे लगा कर रहने लगते हें वह अवैध कब्जे के लिए एक साधन बना लिया गया है। हम कहते हें कि दलित और पिछड़ों को अपने अधिकार और उससे जुड़े कानूनों की जानकारी नहीं है इस लिए वे शोषित होते रहते हें। ऐसा कुछ भी नहीं है वे जो इससे अनभिज्ञ है वे तो इस बात के लिए जाने जा सकते हें लेकिन वे जो यह जानते हें कि वे अम्बेडकर जी की मूर्ति लगा कर खुद को सुरक्षित कर लेंगे क्योंकि प्रशासन ही अगर उस मूर्ति के नाम पर कब्जाई गयी जमीन को मुक्त करने के लिए कार्यवाही करेगा तो जरूर ही कुछ राजनीतिक दल वाले और कुछ अपने को उनका प्रतिनिधि कहने वाले लोग दंगा फसाद करने से नहीं चूकेंगे। राजीनीति के तवे पर तुरंत ही अफवाहों की रोटियां सिंकनी शुरू हो जायेंगी।
मैं इस बात के लिए खुद गवाह हूँ की घर से निकल कर ऑफिस जाने तक या कहीं भी शहर में जाने तक अगर सबसे अधिक मूर्तियाँ किसी की दिखेंगी तो वे अम्बेडकर जी की होंगी। क्या उनकी पूजा की जाती है या रोज उस पर फूलमालाएं चढ़ाइ जाती हें ऐसा कुछ भी नहीं है बल्कि ये सिर्फ इस बात का प्रतीक है कि इसके पीछे जो घर बने हें वे अवैध हें। हर आकार की छोटे से लेकर बड़े तक मूर्तियाँ आपको सड़क के किनारे मिल जायेंगी। जो इसको लगाकर कब्ज़ा किये बैठे हें उन्हें ये नहीं मालूम है कि इस व्यक्तित्व ने देश के लिए या फिर जाति के लिए क्या किया था? हाँ ये जरूर कहेंगे कि ये हमार मसीहा हें। शायद वे इस मसीहा शब्द के पूर्ण अर्थ से भी वाकिफ नहीं होंगे। हाँ इससे जरूर परिचित हें कि इसको लगा लेने से हम सुरक्षित हें और हमारा कब्ज़ा कल वैध हो जाएगा।
अम्बेडकर जी के नाम और उनकी मूर्ति को भुनाने का धंधा करने वाले कुछ स्वार्थी तत्व निजी स्वार्थ के लिए प्रयोग कर रहे हें। कोई गाँधी जी , नेहरु या किसी भी शहीद की मूर्ति नहीं लगाएगा. सबसे अधिक श्रद्धा स्वार्थ की होती है और वही बनी हुई है। इस विषय में भी आचार संहिता बनायीं जानी चाहिए कि अवैध कब्जों को वैध बनाने के लिए मूर्तियों या फिर मंदिरों को प्रयोग न किया जाय। अगर किया जाय तो फिर उसकी अनुमति स्थानीय सरकार द्वारा लेना आवश्यक कर दिया जाय। संविधान में दी गयी स्वतंत्रता के अधिकार का दुरूपयोग जो बढ़ता चला जा रहा है उस पर अंकुश भी लगाना उतना ही जरूरी है।
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bahut umada samyik vishleshan... aaj baba ambedkar jaise vyktitva ki jarurat hai ..lekin asfsos yahi hai hi aaj sirf apni roti sekne walon ki bheed kuch jayada hi hai..
जवाब देंहटाएंBaba ji ko shat-shat naman!
अम्बेडकर जी के नाम और उनकी मूर्ति को भुनाने का धंधा करने वाले कुछ स्वार्थी तत्व निजी स्वार्थ के लिए प्रयोग कर रहे हें।
जवाब देंहटाएंकोई इस विवाद में हाथ नहीं डालना चाहता , अपनी स्वार्थ की रोटियाँ सेकते हाथ जल जाएँगे
usa आग को बुझाने के जतन तो होने ही चाहिए, वर्ना संविधान में दिए अधिकारों का सदुपयोग नहीं दुरूपयोग करने में लगे हें लोग.
हटाएंक्या कहा जाये..अब तो कुछ कहने का भी मन नहीं होता.
जवाब देंहटाएंकहने का मन इसलिए नहीं होता कि इस सब को देखने के लिए तुम दूर बैठी हो और हम जब सड़क पर निकलते हैं तो अपने ही बाल नोचने का मन करता है.
हटाएंस्वार्थ सिद्धि!!
जवाब देंहटाएंआजादी के पूर्व देश में संविधान नहीं था। अम्बेडकर जी को यह गौरव प्राप्त है कि उन्होंने देश के लिए एक संविधान का निर्माण किया। लेकिन उन्हीं के प्रशंसक संविधान को नही मानकर अपनी इच्छा से जमीन पर कब्जा कर रहे हैं, यह दुखद है।
जवाब देंहटाएंअजित जी,
हटाएंये सब उनके प्रशंसक नहीं है बल्कि उनकी देश के लिए भूमिका से पूरी तरह परिचित भी नहीं है , हाँ इतना मालूम है कि इस मूर्ति से अपने लिए अवैध कब्जे को भी वैध बनाये रख सकते हैं. अगर मोहल्ले को ये नाम दे दिया तो उसको सारी सुविधाएँ मिल रही हैं और गाँव का नाम हो गया तो फिर वह शहर से बेहतर बन गया लेकिन इसके बाद ?
सबके अपने अपने आकाश..
जवाब देंहटाएंसहमत ....अब अम्बेडकर की मूर्तिया भी कब्जा करने का साधन हैं !
जवाब देंहटाएंअम्बेदकर साहब की मूर्तियों के द्वारा कब्ज़ा करना वैसा ही हो गया है जैसे किसी सरकारी ज़मीन पर कब्ज़ा करने के लिए एक पत्थर रख कर कुछ फूल माला चढा दो और किसी भगवान का मंदिर बना दो. ये सभी आस्था या प्रेम के लिए नहीं बल्कि संपत्ति या भूमि हथियाने का तरीका है और सरकार...
जवाब देंहटाएंअच्छा आलेख, आभार.