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शनिवार, 11 अगस्त 2012

आजादी की ६६ वीं वर्षगाँठ !

चित्र गूगल के साभार



           आ रही है आजादी की ६६ वीं वर्षगाँठ जिसे हम बहुत जोर शोर से मनाते हें और कुछ लोग इस लिए ख़ुशी मनाते हें कि एक दिन ऑफिस से छुट्टी मिलेगी परिवार के साथ मौज मस्ती में कटेगा. बच्चों के लिए एक दिन पहले स्कूल में स्वतंत्रता दिवस मना लेने का भी चलन बढ़ चुका है और १५ अगस्त के दिन छुट्टी. तुम भी मस्त और हम भी मस्त. खैर ये शिकवा शिकायतें तो आम आदमी से हैं ही. अगर आजादी की इस जंग के लिए हुए शहीदों के मन को आज टटोलने का कोई संसाधन होता तो जरूर हम टटोलते और फिर उनके आंसुओं को गिरते हुए देखते कि उनके सपने को कैसे छिन्न भिन्न कर दिया है ? एक आजाद भारत में जीने का जज्बा उनमें भी था लेकिन वे जानते थे कि इस दिन को देखने का सुख उनके नसीब में नहीं है लेकिन हम नहीं तो हमारे तो देखेंगे ऐसा सोच कर ही वे फाँसी हंसते हंसते चढ़ गए थे. भारत माता की जय बोलते बोलते कोड़ों की मार सहने की शक्ति वे अर्जित करते थे. हम सिर्फ किताबों में पढ़ते हें और रोंगटे खड़े हो जाते हें कि हमारे देश के अमर शहीदों ने कैसे अपने को स्वतंत्रता की वेदी पर बलि चढ़ा दिया था.


आज हम आजाद हें तो फिर उनके सपने को दूसरी तरीके से एन्जॉय कर रहे हें न, हम स्वतन्त्र है -- किस दृष्टि से विवेचना की जाय. हम स्वतन्त्र है घोटाले करने के लिए, हम स्वतन्त्र है आम जनता को महंगाई की भट्टी में झोंकने के लिए, हम स्वतन्त्र है कोई भी बयान देने के लिए, हम स्वतन्त्र है कोई भी अपराध करने और करवाने के लिए क्योंकि हमको पकड़ने का साहस किसी में है ही नहीं. या तो अग्रिम जमानत करवा लेंगे और न हो पायी तो खुद शान से आत्मसमर्पण करेंगे . जेल में हम ससुराल जैसे शान से रहेंगे . कानों हमारे ठेंगे पर. हम स्वतन्त्र है अपनी मर्जी से जीने के लिए और क़ानून को ठेंगा दिखाने के लिए.

आज जो अंग्रेजों के ज़माने के लोग शेष है वो कहते हें कि ऐसा अंधेर तो अंग्रेजों के ज़माने में भी नहीं था. यहाँ अपराधी तो अपराधी है ही उस अपराध को रोकने के लिए नियुक्त की गयी पुलिस भी अपराधी है. उसको कटघरे में खड़े करने का साहस काम ही लोग कर पाते हें और अगर ऐसी नौबत आई तो उनके साथी ही उनको बचाने के लिए खड़े होते हें. वे सबसे अधिक स्वतन्त्र हैं. सबसे अधिक स्वतन्त्र तो इस देश के सरकारी मुलाजिम हैं ( अपवाद की बात यहाँ नहीं हो रही है , सिर्फ और सिर्फ उन लोगों की जो अपने को सरकार से कम नहीं समझते हैं.) .

हम स्वतन्त्र है अपनी संस्कृति की धज्जियाँ उड़ाने के लिए फिर चाहे परिवार का मामला हो या फिर सामाजिक मूल्यों का. आधुनिक कहलाने के चक्कर में हमने सब कुछ त्याग दिया है. यहाँ सबसे अधिक स्वतन्त्र तो हैं राजनैतिक व्यक्तित्व जो एक निरंकुश शासक की तरह आचरण कर रहे हैं वह भी लोकतंत्र में. लोकतंत्र कितनी देर होता है? जितनी देर उन्हें लोक से वोट चाहिए होता है. फिर वे राजा और आप प्रजा. नहीं अधिकार है आपका उस आका से मिलने का. आज इतना व्यक्तिवाद हावी हो चुका है कि अब देश में या प्रदेश में शहीदों की मूर्तियाँ नहीं लगा करती हैं बल्कि जीवित लोगों की मूर्तियाँ लगने लगी हैं. हम स्वतन्त्र है कुछ भी कर सकते हैं, हम सत्ता पर काबिज हैं तो फिर उसको कैसे प्रयोग किया जाय यह मेरे ऊपर ही निर्भर करता है. शहीदों की नई मूर्तियाँ स्थापित करने का विचार कैसे लाया जा सकता है?

हम स्वतन्त्र है तभी तो लाखों और करोड़ों रुपये खेलों पर खर्च कर सकते हैं लेकिन जब विश्व के पटल पर जाते हैं तो हमारे खिलाडी खाली हाथ होते हैं किसलिए? क्या इसके लिए सिर्फ हमारे खिलाडी ही दोषी हैं नहीं इसके लिए दोषी हमारी नीतियां हैं और दोषी वे लोग हैं जो इसके लिए सुविधाएं जुटाने के स्थान पर अपने घर में इकठ्ठा कर रहे हैं. घर में खेल हुए तो हम ही खा गए और बाहर हुए तो हम ही खा गए फिर इतने बड़े स्वतन्त्र देश से हम क्या उम्मीद कर सकते हैं? देश का बचपन अभावों में जी रहा है, उनके लिए सिर्फ योजनायें बन रही हैं और उसको खाने वाले दुगनी गति से बढ़ रहे हैं और चुनौती देते हैं कि कभी उनको पकड़ लिया जाय. योजनाओं की घोषणा हुई नहीं कि उससे कमाने के रास्ते लोग खोजने लगते हैं और फिर जो उसके हक़दार हैं वे वही के वही हैं और लाभ उठाने वाले पात्रता के बिना भी लाभ उठा रहे हैं. हमारी स्वतन्त्रता की कितनी कसौटी और चाहिए? क्या इतना ही काफी नहीं है. हम स्वतन्त्र भारत के वासी अब ये सोचने लगे हैं कि ये भारत नाम सही है या फिर इंडिया सही है. अब इसके अस्तित्व पर भी प्रश्न उठने लगा है कि इसको भारत होने का प्रमाण प्रस्तुत करने के लिए रास्ता खोजना होगा. इसके लिए दुष्यंत पुत्र भरत के नाम पर रखे गए इस नाम का कोई दस्तावेज तो हमारे सामने नहीं है तो फिर अब हम दस्तावेजों में साबित करने के रास्ते पर चलने के लिए आगाज कर रहे हैं. हम स्वतन्त्र है और स्वतन्त्र ही रहेंगे लेकिन सिर्फ अपनी मर्जी से जीने के लिए

6 टिप्‍पणियां:

  1. आपसे सहमत शत प्रतिशत, सार्थक पोस्ट.......

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  2. आज़ादी के दिवस के उपलक्ष्य में एक सार्थक चिंतन।

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  3. सही कहा आपने कैसी आजादी पहले अंग्रेजों के गुलाम थे आज भ्रष्टाचारियों और आतंकवाद के गुलाम कहाँ है आजादी कैसी स्वतंत्रता

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  4. बहुत कुछ नहीं बदला है, प्रयास लगने हैं..

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  5. बिल्‍कुल सच कहा आपने ... आभार

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