हिंदी है भारत की शान- हिंदी है भारत की पहचान
हिंदी भाषा भारत के लिए महत्वपूर्ण है, फिर भी इस बात को जताने की जरूरत हमको साल में एक बार पड़ती है लेकिन कभी हमने ये सोचा है कि ऐसा क्यों होता है? हम मातृभाषा के प्रति इतने उदासीन क्यों है? जब कि हमारी माँ और पिता ने हमें इसी भाषा में बोलना सिखाया है और हमने भी पहला शब्द माँ बोला हिंदी में ही। लेकिन हम चाहते हें कि हमारा बच्चा पहला शब्द अगर अंग्रेजी का बोले तो हमारा जन्म कृतार्थ हो जाए. ये हम ही हैं न. बच्चों के लिए बड़े से बड़े अंग्रेजी स्कूल में जाकर एडमिशन करने के लिए कुछ भी देने को तैयार हो जाते हैं. आज की पीढी को देखा है कि बच्चे के जन्म पहले ही अच्छे अंग्रेजी स्कूल में पंजीकरण के लिए चक्कर लगाते हुए। जन्म बाद में पहले उसके लिए सीट सुरक्षित करवा ली जाय . क्या सिर्फ अंग्रेजी माध्यम से पढ़ाने से ही मेधा बढ़ जाती है. ऐसा कुछ भी नहीं है, ज्ञान और शिक्षण के लिए हिंदी माध्यम के स्कूल भी बहुत उच्चकोटि का ज्ञान देने वाले हैं और साथ ही भारतीय संस्कार और संस्कृति से परिचित कराने वाले हैं. हमें फिर इसको एक विशेष दिवस पर याद करने की जरूरत क्यों पड़ने लगी है? हम अंग्रेजों के जाने के बाद भी अंग्रेजी भाषा के व्यामोह से मुक्त नहीं हो पाए हैं. आज स्थिति यह है कि हिंदी भाषी प्रदेशों में हिंदी की परीक्षा में फेल होने वालों की संख्या सबसे अधिक मिलेगी.
हिंदी की उपेक्षा के लिए हम बहुत जल्दी सरकारी नीतियों पर अंगुली उठाने लगते हैं लेकिन कभी हमने इस तरह से अपने गिरेबान में झांक कर देखा है कि इसमें हमारी क्या भूमिका है? बाहर बड़ी बड़ी बातें करने वाले लोग घर में बच्चों को सख्त हिदायत देकर रखते हैं कि वे आप में अंग्रेजी में ही बात करेंगे आख़िर क्यों? जब हम अपने प्रति अपनत्व रखने वाले भावों , विचारों और अभिव्यक्ति के माध्यम से उनको अलग रखेंगे तो फिर उनसे भारतीयता और भारतीय संस्कृति की अपेक्षा कैसे कर सकते हैं? भारतीय संस्कृति हिंदी में ही सीखी जा सकती है. अंग्रेजी में उसके लिए कोई स्थान नहीं है.
हम जो ऑफिस में अंग्रेजी में बोलते हैं, औरों से यही अपेक्षा करते हैं वह हम ही हैं न जो कि हिंदी दिवस पर बड़ी बड़ी बातें बोलकर अपने को हिंदी का हिमायती होने का दावा करते हैं. हमें आजकल ऑफिस में हिंदी अधिकारी रखने की जरूरत क्यों होती है? कोई विशेष भूमिका होती है या फिर सिर्फ इस लिए कि अंग्रेजी दस्तावेजों के लिए उसकी आवश्यकता होती है. हिंदी बाहर विदेश में अपने अस्तित्व को स्वीकार करवा रही है. वहाँ पर हिंदी विदेशी भाषा के रूप में पाठ्य विषय बनायीं जा रही है.
अब तो हमें ये सोचना होगा कि इसको समुचित सम्मान देने के लिए और इसके प्रचार एवं प्रसार के लिए हम व्यक्तिगत तौर पर जो प्रयास कर सकते हें वह अपने घर , परिवार और समाज से ही शुरू किअरें और लोगों की भ्रांतियां ख़त्म करें कि अंग्रेजी हिंदी से अधिक उपयोगी है. उपयोगी हमेशा ज्ञान होता है कोई भाषा नहीं अपनी मातृभाषा से अधिक प्रगति और उन्नति देने वाली भाषा कोई हो ही नहीं सकती है.
बिल्कुल सही कहा आपने ... पूर्णत: सहमत हूँ आपकी बात से
जवाब देंहटाएंहिन्दी दिवस की अनंत शुभकामनाएं
विचारणीय आलेख
जवाब देंहटाएंहिन्दी ना बनी रहो बस बिन्दी
मातृभाषा का दर्ज़ा यूँ ही नही मिला तुमको
और जहाँ मातृ शब्द जुड जाता है
उससे विलग ना कुछ नज़र आता है
इस एक शब्द मे तो सारा संसार सिमट जाता है
तभी तो सृजनकार भी नतमस्तक हो जाता है
नही जरूरत तुम्हें किसी उपालम्भ की
नही जरूरत तुम्हें अपने उत्थान के लिये
कुछ भी संग्रहित करने की
क्योंकि
तुम केवल बिन्दी नहीं
भारत का गौरव हो
भारत की पहचान हो
हर भारतवासी की जान हो
इसलिये तुम अपनी पहचान खुद हो
अपना आत्मस्वाभिमान खुद हो …………
बस इतना ही कहूँगी ...कि हिंदी है हम ...हिंदुस्तान हमारा
जवाब देंहटाएंयथासंभव हिन्दी का उपयोग हो, यही एक उपाय है।
जवाब देंहटाएंसहमत हूँ आपकी बातों से इसलिए मैं कभी हिन्दी दिवस पर कुछ नहीं लिखती क्यूंकि हर साल एक ओपचारिकता के रूप में अपने ब्लॉग पर कुछ विशेष महत्व देना या यूं कहें कि एक दिन के लिए हिन्दी की बिंदी चिपकाना मुझे पसंद नहीं, क्यूंकि जो चीज़ें हमेशा सम्माननीय हों उन्हें यूं ढिंढोरा पीट-पीट कर केवल एक दिन महत्वपूर्ण दिखाना महज़ सम्मान करने का दिखावा ही है इसके अतिरिक्त और कुछ नहीं
जवाब देंहटाएंहिंदी दिवस के अवसर पर हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंजब तक हिंदी को सरकारी कामकाज कि भाषा नहीं बनाया जाएगा तब तक हिंदी के उज्जवल भविष्य की कामना बेमानी है !!
जवाब देंहटाएंहार्दिक बधाई और शुभकामनाएं।...औचित्य को कैसे नकारें?? आप भी तो प्रश्न चिन्ह से प्रस्तुत कर रहीं हैं.... :)
जवाब देंहटाएंसमीर जी, औचित्य क्या है? यही तो हमें देखना है, लेकिन सिर्फ हिंदी दिवस मना लेने से हम उनकी सोच नहीं बदल सकते हें. हमें इसके लिए दूसरी पहल करनी होगी. अपने आप से शुरू करनी होगी. हम उन्हें समझाएं कि अपनी जमीन से दूर होकर हम अपनी ही पहचान खो देंगे. उन जड़ों से तो हमें जुड़े ही रहना है. दूसरों को अपना कर अपनत्व बाँट सकते हें लेकिन अपने को त्याग कर नहीं. हिंदी हमारी साँसों से लेकर रगों तक में समाई है और उसको इसी तरह रखना होगा.
हटाएंहिन्दी-दिवस के दिन यह आकलन होना चाहिये कि पिछले वर्ष की तुलना में हिन्दी की व्याप्ति में क्या अंतर आया,कौन सी बाधायें हैं, कितनी योजनायें पूरी हुईँ और अगले वर्ष के लिये क्या लक्ष्य है !
जवाब देंहटाएंयोजनायें तो बनती ही रहती हें लेकिन उनके पूरा होने के रिकार्ड कागजों पर आपको पूरे नजर आयेंगे और हकीकत इससे बहुत दूर होती है. हम राजनीति के मकडजाल के कारण ही वह नहीं देख पाते हें जो होना चाहिए. देश, भाषा और जनतंत्र सब अपने अर्थ खो चुके हें. अब क्या और कैसे किया जाय? अपने ही स्तर पर सोच कर हमें अपने परिवेश में सुधार के लिए बीड़ा उठना होगा. शायद आने वाली पीढ़ी को इसका फायदा मिल सके और वे अपनी भाषा के प्रति सजग हों.
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