चित्र गूगल के साभार |
आज ये सब पढ़कर याद आता है कि बचपन में अपनी दादी के मुँह से सुना था - एक जमाना वह आएगा कि लोग दिन में सोया करेंगे और रात में काम करेंगे। तब इसका अर्थ समझ नहीं आता था, लेकिन सुन लेती। आज हमेशा की तरह याद रह जाने की आदत में एक स्मृति यह भी संचित रह गयी। वे न ओजोन परत के बारे में जानती थीं और न 1977 में जब उनका स्वर्गवास हुआ तब तक इस तरह की कोई बात सुनाई दी थी।
आज तो सिर्फ सुन नहीं रहे हैं बल्कि सुनकर और उसको झेलकर भी हम उससे अनजान बने उसकी उपेक्षा कर रहे हैं। आज ओजोन परत संरक्षण दिवस है। ओजोन की परत है जो हमें सूर्य की पराबैंगनी किरणों (अल्ट्रावायलेट रेज ) से सुरक्षित रखती हैं . ये पराबैंगनी किरणें हमारे लिए बेहद घातक है - इससे रोग प्रतिरोधकता क्षमता का ह्रास हो रहा है। रोज नयी नयी समस्याएं जो देखने में आने लगी हैं इसके पीछे एक कारण यह भी है। इससे त्वचा कैंसर, आखों की बीमारियाँ , शिशुओं में विकलांगता का होना और खेतों में पैदा होने वाली फसलों के उत्पादन में भी इसका असर होता है। वही हमारी सेहत पर अपना प्रभाव डालती हैं।
हम इस ओजोन परत क्षरण में कैसे भागीदर हो रहे हैं ? इस बात को जानना भी बेहद जरूरी है। हमारे द्वारा प्रयोग किये जा रहे विभिन्न इलेक्ट्रॉनिक्स उपकरण से भी कुछ गैसों का उत्सर्जन होता है, लेकिन हम अपने सुख से वास्ता रखते हुए इन सब बातों से अनभिज्ञ बने हुए हैं। बल्कि अगर किसी समझदार व्यक्ति द्वारा इसके बारे में बताया भी गया तो कहेंगे कि कौन सा हम ही ऐसी चीजों को प्रयोग कर रहे है। बात बिलकुल सही है , अगर हम पहल अपने से ही नहीं करेंगे तो फिर दोष तो दूसरे में निकाल ही सकते हैं। आज हमारे दैनिक प्रयोग की चीजें जिनके बिना हम जीवन संभव मान ही नहीं सकते हैं, लेकिन हमारे माता पिता उनके बिना ही जिए हैं और वे जीवन भर स्वस्थ रहे हैं , कभी रोज खाने वाली दवाओं जैसी जरूरत उनके जीवन में कभी आई ही नहीं। हमें इस बारे में कितना पता ,यह तो हम नहीं जानते हैं, लेकिन इस लेख में यह बताना भी चाहिए कि हमारे ए सी , फ्रिज, और वाटर कूलर की मरम्मत के दौरान , परफ्यूम, साबुन, क्लीनिंग करने वाली चीजों के निर्माण से निकलने वाली क्लोरो-फ्लोरो कार्बन, ब्रोमोफ्लोरो कार्बन, मिथाइल ब्रोमाईट/क्लोफोर्म आदि रसायन उत्सर्जित होते हैं और जो कि ओजोन परत के क्षरण के कारक बनते हैं। ये उत्सर्जित होकर वायुमंडल में पहुँच जाते हैं और धीरे धीरे इनकी रासायनिक प्रक्रिया से ओजोन परत का क्षरण होता रहता है। सूर्य को पराबैंगनी किरणों को रोकने वाली ओज़ोन परत तेजी से क्षरित होती जा रही है तो फिर हम इसका अनुभव कर रहे हैं। दिन ब दिन तापमान बढ़ रहा है। कभी चार चार महीने चलने वाले मौसम अब ख़त्म हो चुके हैं। चार महीने के वर्षा काल के लिए बचपन में माँ पापा सूखी लकड़ी का व्यवस्था करते थे। पूरे चार महीने पानी बरसा करता था, फिर चार महीने शीत काल चलता था। उस समय अक्टूबर से सर्दी शुरू हो जाती थी और मार्च तक इसका प्रभाव रहता था। मार्च से जून तक गर्मियां होती थीं। सारे मौसम बराबर समय चला करते थे। लेकिन आज सिर्फ गर्मी पड़ती है। सर्दियाँ सिर्फ कुछ दिनों में सिमट गयी है और वर्षा तो जरूरी नहीं कि बारिश के मौसम में समय से हो ही। इस के पीछे जो कारण है वह सामने आ रहे हैं। दिन पर दिन बढ़ती गर्मी ने खुले निकलने की हिम्मत ख़त्म कर दी है. आज सिर्फ खुले शरीर के हिस्सों को भी ढकना पड़ता है क्योंकि सूर्य की बढती हुई गर्मी और तेजी को सहन करना अब संभव नहीं हो रहा है , इसके पीछे यही ओजोन परत का क्षरण ही है.
आज से २५ वर्ष पूर्व १९८७ में अंतर्राष्ट्रीय संधि में क्लोरो फ्लोरो कार्बन पर अंकुश लगाने का फैसला काफी देशों ने लिया था लेकिन उस पर कुछ भी न हो सका। वर्तमान में ओजोन परत का १५ प्रतिशत क्षतिग्रस्त हो चुका है। जब इसका १५ प्रतिशत क्षरण ही ग्लेशियर को पिघलाने में कारण बन रहा है तो फिर इसके क्षरण के लिए चल रही सतत प्रक्रिया से भविष्य में क्या होगा? इस बारे में अगर जल्दी न सोचा गया तो जरूर ही हम दिन में सोने और रात में काम करने के अलावा कुछ भी नहीं कर सकेंगे।
आज अगर हम कुछ इस दिशा में कर सकते हैं तो फिर इस समस्या को कुछ समय के लिए और रोक सकते हैं, अगर हम उस ओजोन परत क्षरण को रोक नहीं सकते तो उसके क्षरण की गति को कम तो कर ही सकते हैं। इसके लिए हमारी कोशिशें ये होंगी कि हम अपने इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को इस तरह से प्रयोग करें कि वे जल्दी ख़राब न हों ताकि उनके मरम्मत से उत्सर्जित होने वाली गैसों का उत्सर्जन कम हो। फोम से निर्मित वस्तुएं प्रयोग करने के स्थान पर रुई और जूट के गद्दे और गद्दियाँ प्रयोग करें। प्लास्टिक के पात्रों का उपयोग काम करें। बर्तन भी हम काँच, मिट्टी और धातु से बने ही प्रयोग में लायें। सिर्फ फैशन या सुंदर दिखने के लालच में प्रकृति से समझौता न करें जो हमारे लिए ही नहीं बल्कि आने वाली पीढ़ी के लिए अधिक घातक सिद्ध होने वाला है। घर के हर कमरे में ए सी का लगाना अब चलन बन चुका है क्योंकि अब कूलर लगा होना तो लोगों के स्तर को कम करके दिखता है लेकिन एक घर में कई एसी कितना नुक्सान कर रहे हैं इसको कोई नहीं जानता है। हमें कपड़ों के बदलते फैशन के बारे जानकारी होगी , जेवरात , हीरे और सोने के बारे सम्पूर्ण जानकारी होगी लेकिन इस बारे में किसी भी गृहणी से पूछा जाय तो नहीं जानती। सिर्फ गृहणी ही क्यों? आम आदमी भी इसके बारे में पूर्ण जानकारी नहीं रखता है।
जब भी कहीं भी बदलते मौसम की बात चले, गर्मी की
बात चले तो सहज भाषा में अपने परिवेश में इस ओजोन परत क्षरण के विषय में
जानकारी दीजिये। उसको रोकने में अपने सहयोग को स्पष्ट कीजिये और उनसे भी
आग्रह कीजिये कि अगर पृथ्वी को सूर्य की पराबैंगनी किरणों से बचाना है तो
फिर जितना संभव हो इस दिशा में जागरूक होकर रहें। इस दिन की सार्थकता सिर्फ
एक दिन में नहीं है बल्कि ये प्रयास सम्पूर्ण वर्ष भर होना चाहिए। ये कोई
मनाने वाले दिवस की औपचारिकता नहीं है और न ही एक दिन में ही इसके प्रति
अपनी जिम्मेदारी ख़त्म हो जाती है. खुद सजग रहे और दूसरों को भी करें। मानव जाति को अगर स्वस्थ जीवन जीना है तो फिर अपनी जरूरतों को उसके अनुरुप ही पूरी करना चाहिए।
यदि यही हाल रहा तो हम भी निशाचर हो जायेंगे।
जवाब देंहटाएंआज के परिप्रेक्ष्य में एक सार्थक और उम्दा लेख |
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग पर भी पधारे-"मन के कोने से..."
आभार |
बहुत सुंदर आलेख। मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंबुजुर्गों की बाते सही होती हैं!
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