कुछ घटनाएँ ऐसी होती हैं की कुछ सोचने पर मजबूर कर देती हैं और वे अपने जीवन का सा विषय लगाती हैं। आज हम भी घर में अकेले हैं लेकिन सक्षम है तो सब कर लेते हैं लेकिन कल किसने देखा है? हमें कब किस हाल में किसकी जरूरत हो?
आज के दौर में चाहे संयुक्त परिवार हों या एकाकी परिवार या फिर निःसंतान बुजुर्ग हों। सब का एक हाल है कि वे कभी न कभी मजबूर औरअसहाय हो जाते हैं। उम्र के इस पड़ाव पर बीमारी , कमजोर दृष्टि या शारीरिक अक्षमता के चलते इंसान इतना मजबूर हो जाता है कि उसे दूसरे दो हाथों के सहारे की जरूरत होती है - दो युवा या फिर सक्षम हाथों की। सबकी ऐसी किस्मत नहीं होती कि उन्हें हर पड़ाव पर दो हाथों का सहारा मिलता ही रहे . चाहे वे हाथ घर में ही मौजूद क्यों न हों ? फिर जिनके बच्चे दूर हैं चाहे नौकरी के लिए या फिर पढाई के लिए वे तो कभी कभी आकस्मिक दुर्घटना के अवसर पर विवश हो जाते हैंै।
इस बात विषय के लिए मैं प्रेरित हुई कल की एक घटना से मैं घर से निकली थी किसी काम से वहीँ पास में रहने मेरी एक रिश्तेदर अपने गेट पर खड़ीं काँप रही थी , मुझे देखा तो बोली कि पास डॉक्टर के यहाँ तक जाना है बुखार चढ़ा है अकेले जाने की हिम्मत नहीं है। मैंने उन्हें सहारा दिया और डॉक्टर के यहाँ तक ले गयी . वहां से दवा दिलवा कर घर छोड़ गयी। उनके एक बेटी और एक बेटा है। बेटी शादीशुदा और थोड़ी दूर पर रहती है लेकिन बेटा साथ में रहता है। वे 74 वर्षीय हैं और बेटे का कहना है की इस उम्र में तो कुछ न कुछ लगा ही रहता है . इन्हें कहाँ तक डॉक्टर के यहाँ ले जाएँ ? ये शब्द मुझसे एक बार खुद उन्होंने कहे थे। मैं उसे सुन कर रह गयी लेकिन उनकी माँ की खोज खबर अक्सर लेने पहुँच जाती हूँ ।
एक वही नहीं है बल्कि कितने बुजुर्ग ऐसे हैं जिनके पास कोई नहीं रहता है या फिर वे दोनों ही लोग रहते हैं। चलने फिरने में असुविधा महसूस करते हैं। ऐसे लोगों के लिए एक सामाजिक तौर पर मानव सेवा केंद्र होना चाहिए . यह काम सरकार तो क्या करेगी ? हम समाज में रहने वाले कुछ संवेदनशील लोग इस दिशा में प्रयास करें तो कुछ तो समस्या हल कर ही लेंगे . इसमें सिर्फ सेवा और दया का भाव चाहिए।
आज बुजुर्ग जिनके बच्चे बाहर हैं और वे अपने काम या घर के कारण उनके साथ जाना नहीं चाहते हैं या फिर बच्चे उनको अपने साथ रखने में असमर्थ हैं या फिर उनकी कोई मजबूरी है।माता - पिता जब तक साथ हैं तब तक तो एक दूसरे का सहारा होता है लेकिन जब उनमें से एक चल बसता है तो फिर दूसरे के लिए अकेले जीवन को मुश्किल हो जाता है , एक बोझ बन जाता है। तब तो और ज्यादा जब वे बीमार हों या फिर चलने फिरने में अक्षम हों।
इसके लिए हर मोहल्ले में या अपने अपने दायरे में ऐसे युवाओं या फिर सक्षम वरिष्ठ नागरिकों के पहल की जरूरत है कि एक ऐसी समिति या सेवा केंद्र बनाया जाय जिसमें ऐसे लोगों की सहायता के लिए कार्य किया जा सके . इस काम के लिए बेकार युवाओं को या फिर समाज सेवा में रूचि रखने वाले लोगों को नियुक्त किया जा सकता है लेकिन जिन्हें नियुक्त किया जाय वे विश्वसनीय और जिम्मेदार होने चाहिए। जो लोग ऐसे बुजुर्गों को अस्पताल ले जाने के लिए, बैंक जाने या ले जाने के लिए , बिल जमा करने के लिए या फिर घर की जरूरतों को पूरा करने वाले सामान की खरीदारी के लिए सहयोग दे सकें . इसके बदले में सेवा शुल्क उनसे उनकी सामर्थ्य के अनुसार लिया जा सकता है और वे इसको ख़ुशी ख़ुशी देने के लिए तैयार भी हो जायेंगे . इस काम को संस्था अपनी देख रेख में करवाएगी - जिसमें इलाके के बुजुर्ग और एकाकी परिवारों की जानकारी दर्ज की जाय और उनको कैसा सहयोग चाहिए ये भी दर्ज होना चाहिए। लोगों के पास पैसा होता है लेकिन सिर्फ पैसे होने से ही सारे काम संपन्न नहीं हो सकते हैं। इसके लिए उन्हें सहयोग की जरूरत होती है। ये सहयोग किसी भी तरीके का हो सकता है।
ऐसा नहीं है कि ये बहुत मुश्किल काम हो क्योंकि काफी युवा सिर्फ झूठी नेतागिरी में विभिन्न दलों के छुटभैयों के पीछे पीछे चल कर जिंदाबाद जिंदाबाद के नारे लगते हुए मिल जाते हैं और उनको इससे क्या मिलता है? इससे वे भी वाकिफ हैं लेकिन ऐसे युवाओं को सपारिश्रमिक ऐसे कामों के लिए अगर प्रोत्साहित किया जाय तो समाज के इस वर्ग की बहुत बड़ी समस्या हल हो सकती है . ऐसे हालत में ये सवाल पैदा होता है कि ये युवा ऐसे कामों के लिए क्यों तैयार होंगे? उन्हें इस दिशा में समझाना होगा और उन्हें मानसिक तौर पर तैयार होगा क्योंकि उन्हें तथाकथित नेताओं और छुटभैयों से कुछ मिलता तो नहीं है लेकिन इस काम से उन्हें आज नहीं तो कल कुछ संतुष्टि तो जरूर मिलेगी . मानवता एक ऐसा भाव है जिसकी कीमत कभी कम नहीं होती और इसके बल पर ही ये समाज आज भी मानवीय मूल्यों को जिन्दा रखे हुए हैं। भले इसका मूल्य लोग कम आंकते हों लेकिन जो इसको महसूस करता है उसकी दृष्टि में यह अमूल्य है। इस काम के लिए सोशल साइट्स को अपने लिए काम करने वाले युवाओं को खोजने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है क्योंकि अपने व्यस्त काम में भी सेवा भाव से जुड़े लोग कुछ समय निकाल सकते हैं और निकालते ही हैं। सिर्फ युवा ही क्यों ? कुछ घरेलू महिलायें भी इस काम के लिए समय निकाल सकती हैं, जो अपना समय गपबाजी या फिर सीरियल देखने में गुजराती हैं वे इस काम में भी लगा सकती हैं। सिर्फ एक जागरूक महिला के आगे आने की जरूरत होती है फिर उसके साथ चलने वालों का कारवां तो बन ही जाता है।
इसके लिए नियुक्त किये गए युवाओं के विषय में उनकी चारित्रिक जानकारी को संज्ञान में रखना बहुत ही जरूरी होगा क्योंकि अकेले बुजुर्गों के साथ कितनी दुर्घटनाये हो रही हैं और वे भी जान पहचान वालों के द्वारा तो हमारा प्रयास इस जगह अपने उद्देश्य में विफल हो सकता है। इसके लिए सुरक्षा की दृष्टि से भी काम करने वालों की विश्वसनीयता को परख कर ही नियुक्त किया जा सकता है। मेरे परिचय में एक परिवार है जिसमें तीन बेटे हैं और तीनों ही अपने इष्ट मित्रों , जान पहचान वालों या रिश्तेदारों के लिए उनकी मुसीबत में खबर मिलने पर हर तरह से सहायता करने के लिए तैयार रहते हैं। तीनों नौकरी करते हैं फिर भी अपने सहायता कार्य में कभी भी उदासीनता नहीं बरतते हैं। अगर दस परिवारों में एक परिवार का एक बेटा भी ऐसा हो जाय तो फिर हमें अपने काम के लिए कहीं और न खोज करनी पड़े . इस प्रयास को हम व्यक्तिगत स्तर पर तो कर ही सकते हैं। वैसे मैं बता दूं कि इसकी पहल मैं अपने स्तर पर बहुत समय से कर रही हूँ . मेरा और मेरे पतिदेव का फोन नंबर ऐसे हमारे परिचितों के पास रहता है कि जब भी उन्हें जरूरत हो हमें कॉल कर सकते हैं। हम अपनी शक्ति भर उनके लिए भी संभव है करने को तैयार रहते हैं।
आज के दौर में चाहे संयुक्त परिवार हों या एकाकी परिवार या फिर निःसंतान बुजुर्ग हों। सब का एक हाल है कि वे कभी न कभी मजबूर औरअसहाय हो जाते हैं। उम्र के इस पड़ाव पर बीमारी , कमजोर दृष्टि या शारीरिक अक्षमता के चलते इंसान इतना मजबूर हो जाता है कि उसे दूसरे दो हाथों के सहारे की जरूरत होती है - दो युवा या फिर सक्षम हाथों की। सबकी ऐसी किस्मत नहीं होती कि उन्हें हर पड़ाव पर दो हाथों का सहारा मिलता ही रहे . चाहे वे हाथ घर में ही मौजूद क्यों न हों ? फिर जिनके बच्चे दूर हैं चाहे नौकरी के लिए या फिर पढाई के लिए वे तो कभी कभी आकस्मिक दुर्घटना के अवसर पर विवश हो जाते हैंै।
इस बात विषय के लिए मैं प्रेरित हुई कल की एक घटना से मैं घर से निकली थी किसी काम से वहीँ पास में रहने मेरी एक रिश्तेदर अपने गेट पर खड़ीं काँप रही थी , मुझे देखा तो बोली कि पास डॉक्टर के यहाँ तक जाना है बुखार चढ़ा है अकेले जाने की हिम्मत नहीं है। मैंने उन्हें सहारा दिया और डॉक्टर के यहाँ तक ले गयी . वहां से दवा दिलवा कर घर छोड़ गयी। उनके एक बेटी और एक बेटा है। बेटी शादीशुदा और थोड़ी दूर पर रहती है लेकिन बेटा साथ में रहता है। वे 74 वर्षीय हैं और बेटे का कहना है की इस उम्र में तो कुछ न कुछ लगा ही रहता है . इन्हें कहाँ तक डॉक्टर के यहाँ ले जाएँ ? ये शब्द मुझसे एक बार खुद उन्होंने कहे थे। मैं उसे सुन कर रह गयी लेकिन उनकी माँ की खोज खबर अक्सर लेने पहुँच जाती हूँ ।
एक वही नहीं है बल्कि कितने बुजुर्ग ऐसे हैं जिनके पास कोई नहीं रहता है या फिर वे दोनों ही लोग रहते हैं। चलने फिरने में असुविधा महसूस करते हैं। ऐसे लोगों के लिए एक सामाजिक तौर पर मानव सेवा केंद्र होना चाहिए . यह काम सरकार तो क्या करेगी ? हम समाज में रहने वाले कुछ संवेदनशील लोग इस दिशा में प्रयास करें तो कुछ तो समस्या हल कर ही लेंगे . इसमें सिर्फ सेवा और दया का भाव चाहिए।
आज बुजुर्ग जिनके बच्चे बाहर हैं और वे अपने काम या घर के कारण उनके साथ जाना नहीं चाहते हैं या फिर बच्चे उनको अपने साथ रखने में असमर्थ हैं या फिर उनकी कोई मजबूरी है।माता - पिता जब तक साथ हैं तब तक तो एक दूसरे का सहारा होता है लेकिन जब उनमें से एक चल बसता है तो फिर दूसरे के लिए अकेले जीवन को मुश्किल हो जाता है , एक बोझ बन जाता है। तब तो और ज्यादा जब वे बीमार हों या फिर चलने फिरने में अक्षम हों।
इसके लिए हर मोहल्ले में या अपने अपने दायरे में ऐसे युवाओं या फिर सक्षम वरिष्ठ नागरिकों के पहल की जरूरत है कि एक ऐसी समिति या सेवा केंद्र बनाया जाय जिसमें ऐसे लोगों की सहायता के लिए कार्य किया जा सके . इस काम के लिए बेकार युवाओं को या फिर समाज सेवा में रूचि रखने वाले लोगों को नियुक्त किया जा सकता है लेकिन जिन्हें नियुक्त किया जाय वे विश्वसनीय और जिम्मेदार होने चाहिए। जो लोग ऐसे बुजुर्गों को अस्पताल ले जाने के लिए, बैंक जाने या ले जाने के लिए , बिल जमा करने के लिए या फिर घर की जरूरतों को पूरा करने वाले सामान की खरीदारी के लिए सहयोग दे सकें . इसके बदले में सेवा शुल्क उनसे उनकी सामर्थ्य के अनुसार लिया जा सकता है और वे इसको ख़ुशी ख़ुशी देने के लिए तैयार भी हो जायेंगे . इस काम को संस्था अपनी देख रेख में करवाएगी - जिसमें इलाके के बुजुर्ग और एकाकी परिवारों की जानकारी दर्ज की जाय और उनको कैसा सहयोग चाहिए ये भी दर्ज होना चाहिए। लोगों के पास पैसा होता है लेकिन सिर्फ पैसे होने से ही सारे काम संपन्न नहीं हो सकते हैं। इसके लिए उन्हें सहयोग की जरूरत होती है। ये सहयोग किसी भी तरीके का हो सकता है।
ऐसा नहीं है कि ये बहुत मुश्किल काम हो क्योंकि काफी युवा सिर्फ झूठी नेतागिरी में विभिन्न दलों के छुटभैयों के पीछे पीछे चल कर जिंदाबाद जिंदाबाद के नारे लगते हुए मिल जाते हैं और उनको इससे क्या मिलता है? इससे वे भी वाकिफ हैं लेकिन ऐसे युवाओं को सपारिश्रमिक ऐसे कामों के लिए अगर प्रोत्साहित किया जाय तो समाज के इस वर्ग की बहुत बड़ी समस्या हल हो सकती है . ऐसे हालत में ये सवाल पैदा होता है कि ये युवा ऐसे कामों के लिए क्यों तैयार होंगे? उन्हें इस दिशा में समझाना होगा और उन्हें मानसिक तौर पर तैयार होगा क्योंकि उन्हें तथाकथित नेताओं और छुटभैयों से कुछ मिलता तो नहीं है लेकिन इस काम से उन्हें आज नहीं तो कल कुछ संतुष्टि तो जरूर मिलेगी . मानवता एक ऐसा भाव है जिसकी कीमत कभी कम नहीं होती और इसके बल पर ही ये समाज आज भी मानवीय मूल्यों को जिन्दा रखे हुए हैं। भले इसका मूल्य लोग कम आंकते हों लेकिन जो इसको महसूस करता है उसकी दृष्टि में यह अमूल्य है। इस काम के लिए सोशल साइट्स को अपने लिए काम करने वाले युवाओं को खोजने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है क्योंकि अपने व्यस्त काम में भी सेवा भाव से जुड़े लोग कुछ समय निकाल सकते हैं और निकालते ही हैं। सिर्फ युवा ही क्यों ? कुछ घरेलू महिलायें भी इस काम के लिए समय निकाल सकती हैं, जो अपना समय गपबाजी या फिर सीरियल देखने में गुजराती हैं वे इस काम में भी लगा सकती हैं। सिर्फ एक जागरूक महिला के आगे आने की जरूरत होती है फिर उसके साथ चलने वालों का कारवां तो बन ही जाता है।
इसके लिए नियुक्त किये गए युवाओं के विषय में उनकी चारित्रिक जानकारी को संज्ञान में रखना बहुत ही जरूरी होगा क्योंकि अकेले बुजुर्गों के साथ कितनी दुर्घटनाये हो रही हैं और वे भी जान पहचान वालों के द्वारा तो हमारा प्रयास इस जगह अपने उद्देश्य में विफल हो सकता है। इसके लिए सुरक्षा की दृष्टि से भी काम करने वालों की विश्वसनीयता को परख कर ही नियुक्त किया जा सकता है। मेरे परिचय में एक परिवार है जिसमें तीन बेटे हैं और तीनों ही अपने इष्ट मित्रों , जान पहचान वालों या रिश्तेदारों के लिए उनकी मुसीबत में खबर मिलने पर हर तरह से सहायता करने के लिए तैयार रहते हैं। तीनों नौकरी करते हैं फिर भी अपने सहायता कार्य में कभी भी उदासीनता नहीं बरतते हैं। अगर दस परिवारों में एक परिवार का एक बेटा भी ऐसा हो जाय तो फिर हमें अपने काम के लिए कहीं और न खोज करनी पड़े . इस प्रयास को हम व्यक्तिगत स्तर पर तो कर ही सकते हैं। वैसे मैं बता दूं कि इसकी पहल मैं अपने स्तर पर बहुत समय से कर रही हूँ . मेरा और मेरे पतिदेव का फोन नंबर ऐसे हमारे परिचितों के पास रहता है कि जब भी उन्हें जरूरत हो हमें कॉल कर सकते हैं। हम अपनी शक्ति भर उनके लिए भी संभव है करने को तैयार रहते हैं।
उपयोगी आलेख!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुती.आपने काफी गहराई में जाकर लिखा है.जो की सोचने को विवश कर देता है.
जवाब देंहटाएंमोहब्बत नामा
मास्टर्स टेक टिप्स
इंडियन ब्लोगर्स वर्ल्ड
बहुत अच्छी सोच !!
जवाब देंहटाएंएक ऐसा प्रयास है जो सराहनीय है और सार्थक भी आपके विचारों को सादर नमन
जवाब देंहटाएंएक दूसरे का तो साथ चाहिये ही होता है, बच्चों को भी, वृद्धों को भी। यथासंभव संयुक्त परिवार बने रहें।
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जवाब देंहटाएंप्रवीण जी , संयुक्त परिवार तो सबसे अच्छा विकल्प है लेकिन हालात कभी कभी ऐसा नहीं होने देते हैं इसलिए उन स्थितियों के लिए हमें कुछ विकल्प सोचने होंगे . कभी कभी तो निःसंतान दंपत्तिभी होते है जिनके लिए कोई सहारा होना चाहिए .
बहुत सराहनीय सुझाव है रेका जी ,और आपकी पहल भी स्वागत योग्य!अगर हमारे युवाओं में यह भावना आ जाय और मोहल्लेवार ऐसे दल बन जायें तो इसमें दोनो का हित है.मनोवृत्तियाँ बदलने लगेंगी ,सकारात्मकता आयेगी .
जवाब देंहटाएंहाँ प्रतिभा जी, बस युवाओं को प्रेरित करने की देर है और बुजुर्गों के लिए एक सहारे की जरूरत पूरी हो जाएगी .
हटाएंसराहनीय सुझाव ... प्रयास करने से क्या नहीं हो सकता .... सार्थक लेख ...
जवाब देंहटाएंआज के दौर में अनुकरणीय सुझाव..... बहुत अच्छी पोस्ट
जवाब देंहटाएंइस विषय पर गम्भीरता से विचार किया जाना चाहिए।
जवाब देंहटाएंएक सार्थक और गंभीर आलेख …………आपकी सोच और ऊर्जा को नमन हैं आप सही मायनों मे समाज सेवा को समर्पित हैं और हमें भी सही दिशा दे रही हैं।
जवाब देंहटाएंविचारणीय आलेख...
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया सोच लिये बहुत ही सार्थक एवँ विचारणीय मुद्दा उठाया है आपने ! वृद्ध जनों के लिये ऐसी सामाजिक संस्थाओं की आवश्यकता वाकई में बहुत अधिक है ! आपने जो सार्थक पहल की है उसका अनुकरण सभी लोग करें तभी कुछ बात बन सकती है ! हर शहर में ऐसी कई संस्थायें होनी ही चाहिए !
जवाब देंहटाएंरेखा दीदी ...आपके सार्थक प्रयास हम सबको सोचने पर मजबूर करते हैं ...आभार आपका और आपके लिखे लेखो का
जवाब देंहटाएंmotivating
जवाब देंहटाएंप्रेरक और क़ाबिल-ए-तारीफ़!
जवाब देंहटाएंसटीक सोच के साथ लिखा लेख | बढ़िया है |
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