आज दशहरे पर हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी हर शहर में और कई जगह पर रावण के पुतलों को जलाया जाएगा और परंपरागत रूप से घर के बड़े बच्चों को ये कहते हुए सुने जा सकते हैं कि ये तो बुराई के अंत और भलाई की बुराई के ऊपर विजय का पर्व है, इसी लिए बुराई के प्रतीक रावण को भलाई के प्रतीक राम जी इसको जलाते हैं।
रावण एक प्रतीक है और जब ये प्रतीक था तो सिर्फ और सिर्फ एक ही रावण था . उसके अन्दर पलने वाली हर बुराई उसके अन्दर के विद्वान पर भारी पड़ी थी और फिर उसका अंत हुआ . लेकिन कभी हमने सोचा है कि रावण तो आज भी जिन्दा है और आज वह एक नहीं है बल्कि आज तो हर जगह बहुत रूपों में हर इंसान में कहीं न कहीं जरूर मिल जाता है। अगर रावण की बुराइयों से हम अपने अन्दर पलने वाली आदतों और बुराइयों से तुलना करें तो कहीं न कहीं कुछ तो जरूर सबमें मिल ही जाता है। अब राम भी हम है और रावण भी . फिर हम पर निर्भर करता है कि हम किस तरह से अपने अंतर में पलने वाले रावण को ख़त्म करने की दिशा में प्रयास करें। राम तो पूरी तरह से इस युग में कोई शायद ही होगा और होगा भी तो वह मानव की श्रेणी में रखा जा सकता है।
रावण के कई रूप बिखरे पड़े हैं कि हर कोई दूसरे को देख कर अपने को राम और उसको रावण साबित करने में लगा रहता है। इस जगह अगर हम सभी , सभी न भी सही कुछ लोग जो वाकई इस समाज में शुभचिंतक इंसान कहे जाते हैं। लेकिन हर कोई सम्पूर्ण नहीं होता फिर भी ऐसा नहीं है कि हम अपनी कमजोरियों या अपने दोषों को न जानते हों फिर हम ही तो हैं जो उन पर विजय पा सकते हैं। ये तो निश्चित है कि असंभव कुछ भी नहीं है।
रावण की तरह हम लोगों में भी तो स्वयं को सर्वोच्च और सर्वश्रेष्ठ समझने की बुराइ समाई होती है और अपने इस गुण के कारण दूसरों को नीचा दिखाने और अपमानित करने की भावना से भी भरे होते हैं जो रावण का भी एक रूप है। इसी रावण को तो हमें पराजितकर अपने को इससे मुक्त करने का प्रयास करना ही आज के दिन की सार्थकता हो सकती है।
रावण का एक रूप ये भी है कि उसको जीवन में अपनी प्रशस्ति को ही सुनना पसंद था , उसके विरुद्ध उसे सच सुनना भी गवारा नहीं था। कहीं हमारे अन्दर भी तो ऐसा ही दुर्गुण नहीं है। अगर हमें अपनी प्रशंसा पसंद आती है तो आलोचना सुनकर हम अपनी कमियों से वाकिफ होते हैं . अपनी आलोचना को खुले मन से स्वीकार करना और उसका अपने आप में विश्लेषण करके उससे मुक्ति पाने का संकल्प ही लेना ही हमारे लिए उस रावण पर विजय पाने का अवसर होगा।
रावण के एक रूप है - नारी के देवी स्वरूप का अपमान करना, जीवन में पत्नी एक होती है शेष सभी चाहे वह बेटी के रूप में हो , बहन के रूप में हो या फिर किसी अनजान महिला के रूप में लेकिन उसके प्रति कलुषित विचार मन में रखना उसी का ही एक रूप है। रावण का यह रूप सर्वाधिक समाज में दिखाई दे रहा है . वह भी हम जैसे लोग हैं - जो उसकी अस्मत को मान नहीं देते बल्कि उससे खेलने का प्रयास करते हैं या उनके प्रति मानसिक तौर पर ही सही दूषित विचार मन में रखते हैं। इस पर विजय पाना या फिर लोगों को इस रावण के प्रति आगाह करना भी एक सार्थक प्रयास होगा।
रावण के एक रूप है भ्रष्टाचार से लिप्त होना - यह तो घर से लेकर बाहर निकलने पर हर कदम पर हमें देखने को मिलता है। छोटे से छोटे अवसर को भी लोग छोड़ते नहीं है . उनके खजानों में करोड़ों रुपये और संपत्ति भी कम दिखाई देती है। उनके अन्दर बैठा हुआ रावण उन्हें ये नहीं समझने देता है कि ऐसी संपत्ति जिसे हम चोरी से संग्रह करके रख रहे हैं , उसको कभी अपने लिए प्रयोग नहीं कर पायेंगे फिर वो किस लिए संग्रह कर रहे हैं? सिर्फ उस संपत्ति पर एक नाग की तरह बैठने के लिए। अगर हम इस भाव से मुक्त हो सकें तो दशहरे की सार्थकता बढ़ सकती है।
रावण का एक स्वरूप है बाहुबल का अभिमान - यह तो सारी बुराइयों का स्रोत है लेकिन रावण तो श्रेष्ठ विद्वान और धर्मचारी भी था। आज उस रावण के सद्गुणों को नहीं बल्कि उसके दुर्गुणों को ही अपना कर अपने को स्वयम्भू समझने की जो भूल मानव कर चूका है वह उसके लिए एक दिन अंत का कारण बन जाता है। जीवन में कोई भी वस्तु ऐसी नहीं है जिसका क्षय न हो और क्षय होने पर खुद अपनी ही दृष्टि में वह इतना बेबस हो जाता है कि उसको अपने पर पश्चाताप करने का अवसर नहीं मिलता है।
इसा विजय दशमी को सार्थक बनाने के लिए हर कोई अपने अन्दर बैठे रावण को मार भागने में सफल हो और खुद उस पर विजय पाकर एक सुन्दर और सुखद जीवन की और एक कदम बढ़ने की पहल कर लोगों को प्रेरित करें । ऐसे ही अगर कुछ लोग ही इस दिशा में सक्रिय हों तो फिर जीवन जीवन होगा। जीवन का उद्देश्य भी बदल जायेगा और हम सही अर्थों में खुद को मानव बन मानवता के हित में एक सफल प्रयोग करते हुए पाए जायेंगे .
विजयादशमी पर अपने अन्दर के रावण के पुतले को जला कर खुद को उससे मुक्त करें .
अपनी बुराइयों को जला दें..
जवाब देंहटाएंआप सबको भी विजयादशमी की शुभकामनायें।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंஜ▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬●ஜ
♥(¯*•๑۩۞۩~*~विजयदशमी (दशहरा) की हार्दिक बधाई~*~۩۞۩๑•*¯)♥
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आओ फिर दिल बहलाएँ ... आज फिर रावण जलाएं - ब्लॉग बुलेटिन पूरी ब्लॉग बुलेटिन टीम की ओर से आप सब को दशहरा और विजयादशमी की हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनायें ! आज की ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंयदि इतना कोई विचार कर ले तो बुराइयों का नाश हो जाये ...
जवाब देंहटाएंरावण अपने ही अन्दर है जो आत्मप्रशस्ति में जीता है और मर्यादाओं की हत्या करता है ... विरोध रावन का नाश ही है . ख़ामोशी रावण को आयु देती है
जवाब देंहटाएंरावण एक प्रतीक है और इसके पुतले का जलाया जाना भी एक प्रतीक है। आपने बड़ी रोचकता से विभिन्न प्रतीकों की व्याख्या की है, हमें दैत्य रूपी अपने अवगुणों को जलाना ही चाहिए।
जवाब देंहटाएंविजयादशमी की; अब यहाँ हिंदी शब्द लिखना ठीक मालूम नहीं पड़ रहा है; अतएव अंग्रेजी शब्द को ही हिंदी में लिखते हुए; "बिलेटेड" बधाई..... सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सार्थक चर्चा ,इस पर लोग ध्यान दें तो हमारा समाज कितना स्वस्थ और स्वच्छ हो जाये!
जवाब देंहटाएंhttp://bulletinofblog.blogspot.in/2012/10/blog-post_31.html
जवाब देंहटाएंसार्थक चर्चा ... काश के हम सब अपने भीतर के रावण को
जवाब देंहटाएंहटा पाते .......आभार !!!