20 अक्टूबर 1962 को चीन ने भारत के ऊपर आक्रमण कर उसे युद्ध की विभीषिका में धकेल दिया था . भारत चीन की सीमायें जहाँ हैं वहां पर सर्दी का हर समय आलम बहुत बुरा रहता है, यहाँ का तापमान सदैव ही माइनस में होता है। । वे उसके आदी हुआ करते है और हमारे जैसे देश में हर सैनिक में इतनी सर्दी सहने का माद्दा न था। लेकिन हमारे सैनिक अपनी जान की बाजी लगाये दुश्मनों का सामना करते रहे। वहां पर रसद और हथियार पहुँचाने में भी इतनी कठिनाई होती थी कि सैनिकों के पास इसका अभाव बना रहता था। उनके पास लड़ने के लिए पर्याप्त हथियार भी नहीं होते थे। खाने के लिए सामग्री उपलब्ध नहीं होती थी . खाली पेट ही वे सीमा पर डटे रहते थे।
उस समय मैं बहुत ही छोटी थी लेकिन घर के माहौल के अनुसार चूंकि घर में पत्र और पत्रिकाओं का नियमित आगमन हम सभी भाई बहनों को इन सब खबरों से अवगत कराये रहता था। उस समय सीमा पर कितनी सर्दी होगी ? उस साल उरई में भी इतनी सर्दी पड़ रही थी कि खुले रखी बाल्टियों में बर्फ जम जाया करती थी। घर में लकड़ी के बड़े बड़े लक्कड़ हर समय जला करते थे ताकि सर्दी से बचा जा सके .
उस सर्दी में सैनिक किसी छावनी से उरई से होते हुए झाँसी की ओर मिलेट्री की गाड़ियों में भर कर जाया करते थे . हमारा घर सड़क के किनारे था और हम दूसरी मंजिल पर रहते थे। घर के सामने बनी छत पर एक बड़ा सा खुला हुआ हिस्सा था, जिससे हम लोग खड़े होकर सड़क का नजारा देखा करते थे। दिन में जब सैनिकों की गाड़ियों निकलना शुरू होती तो लगातार निकलती रहती . हम भाई बहन उस खिड़की में खड़े हो जाते और सैनिकों से जयहिन्द किया करते थे। उनमें से जो आगे खुले हुए ऊपर के हिस्से में बनी जगह में खड़े होकर देखता रहता वे हमें देख कर जयहिन्द का उत्तर दिया करते थे। हम लगातार उसी मुद्रा में खड़े रहते और गाड़ियाँ निकलती रहती , सैनिक उत्तर देते रहते , कभी कोई सैनिक नहीं देख पाता या उत्तर नहीं देता तो हमारा मुंह लटक जाया करता था देखो न इसने हमसे जयहिन्द नहीं किया। वह समय था जब राष्ट्रीय रक्षा कोष के लिए पैसा दिया जा रहा था . हम अपनी गोलक से निकाल कर पापा को पैसे देते कि आप इन्हें जमा करवा दें .
हमारे बड़े बूढ़े यही कहा करते थे की हमारे सैनिक वहां मरे जा रहे हैं क्योंकि चीन वाले तो उस सर्दी के आदी है और हमारे सैनिकों के लिए ये भारी पड़ रहा है और उन लोगों ने लड़ाई सर्दी में इसी लिए छेडी है जिससे कि आधे सैनिक तो इस सर्दी से ही भर जायेंगे और ये हकीकत भी थी। आज 50 वर्षों के होने पर आज की नयी पीढी उस युद्ध के बारे में जानती , तक नहीं है क्योंकि उस युद्ध का जिक्र कहीं पाठ्यक्रम में मिलता ही नहीं है। मैं उन सभी शहीदों को नमन करती हूँ जो उस युद्ध में दुश्मन की साजिश में मारे गए या फिर प्रकृति के कहर से . ये देश और देशवासी उनके सदैव ऋणी रहेंगे . भारतमाता भी अपने लालों पर गर्व करती है।
जय हिन्द , जय भारत
चीन सीमा पर हमारे सैनिक ( चित्र गूगल के साभार ) |
उस समय मैं बहुत ही छोटी थी लेकिन घर के माहौल के अनुसार चूंकि घर में पत्र और पत्रिकाओं का नियमित आगमन हम सभी भाई बहनों को इन सब खबरों से अवगत कराये रहता था। उस समय सीमा पर कितनी सर्दी होगी ? उस साल उरई में भी इतनी सर्दी पड़ रही थी कि खुले रखी बाल्टियों में बर्फ जम जाया करती थी। घर में लकड़ी के बड़े बड़े लक्कड़ हर समय जला करते थे ताकि सर्दी से बचा जा सके .
उस सर्दी में सैनिक किसी छावनी से उरई से होते हुए झाँसी की ओर मिलेट्री की गाड़ियों में भर कर जाया करते थे . हमारा घर सड़क के किनारे था और हम दूसरी मंजिल पर रहते थे। घर के सामने बनी छत पर एक बड़ा सा खुला हुआ हिस्सा था, जिससे हम लोग खड़े होकर सड़क का नजारा देखा करते थे। दिन में जब सैनिकों की गाड़ियों निकलना शुरू होती तो लगातार निकलती रहती . हम भाई बहन उस खिड़की में खड़े हो जाते और सैनिकों से जयहिन्द किया करते थे। उनमें से जो आगे खुले हुए ऊपर के हिस्से में बनी जगह में खड़े होकर देखता रहता वे हमें देख कर जयहिन्द का उत्तर दिया करते थे। हम लगातार उसी मुद्रा में खड़े रहते और गाड़ियाँ निकलती रहती , सैनिक उत्तर देते रहते , कभी कोई सैनिक नहीं देख पाता या उत्तर नहीं देता तो हमारा मुंह लटक जाया करता था देखो न इसने हमसे जयहिन्द नहीं किया। वह समय था जब राष्ट्रीय रक्षा कोष के लिए पैसा दिया जा रहा था . हम अपनी गोलक से निकाल कर पापा को पैसे देते कि आप इन्हें जमा करवा दें .
हमारे बड़े बूढ़े यही कहा करते थे की हमारे सैनिक वहां मरे जा रहे हैं क्योंकि चीन वाले तो उस सर्दी के आदी है और हमारे सैनिकों के लिए ये भारी पड़ रहा है और उन लोगों ने लड़ाई सर्दी में इसी लिए छेडी है जिससे कि आधे सैनिक तो इस सर्दी से ही भर जायेंगे और ये हकीकत भी थी। आज 50 वर्षों के होने पर आज की नयी पीढी उस युद्ध के बारे में जानती , तक नहीं है क्योंकि उस युद्ध का जिक्र कहीं पाठ्यक्रम में मिलता ही नहीं है। मैं उन सभी शहीदों को नमन करती हूँ जो उस युद्ध में दुश्मन की साजिश में मारे गए या फिर प्रकृति के कहर से . ये देश और देशवासी उनके सदैव ऋणी रहेंगे . भारतमाता भी अपने लालों पर गर्व करती है।
जय हिन्द , जय भारत
बहुत अच्छा लेख
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अपने ब्लॉग को ई-पुस्तक में बदलिए
देश के लिये बहुत कुछ सीखने का समय था वह। सीमाओं की सुरक्षा किसी दर्शन से नहीं होती हैं।
जवाब देंहटाएंअतीत के गह्वर में दबी छिपी बहुत सारी यादें जागृत कर दीं आपने रेखा जी ! उन दिनों हम लोग भी स्कूल में पढते थे और युद्ध की इस विभीषिका और देश पर छाये संकट से बहुत उत्तेजित और चिंतित रहा करते थे ! सन ६४ की लड़ाई के वक्त हमने एन डी एफ के लिये धन जमा करने के लिये एक ड्रामा भी किया था 'देश नहीं टूटेगा' ! सारे शहर में घूम-घूम कर ढेर सारा चन्दा भी एकत्रित किया था जिसे हमारे कॉलेज के प्रिंसीपल साहेब ने प्रधान मंत्री कार्यालय को भेजा था ! उस समय देश की एकजुटता देखने लायक थी ! आभार आपका इतनी बहुमूल्य स्मृतियाँ जगाने के लिये !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भाव पूर्ण लेख मन भर आया....जय हिंद
जवाब देंहटाएं1962 की लड़ाई के बारे मेन बस इतना ही याद है की घरों की खिड़कियों और रोशनदान पर काले कागज चिपका दिये गए थे और जब सायरन बजता था सब घरों से निकल कर पास ही बनाई हुई बंकर ( घरों के आस गड्ढे बना दिये गए थे ) में चले जाते थे सुरक्षा की दृष्टि से .... और हर समय रेडियो पर समाचार सुने जाते थे ...
जवाब देंहटाएंआज हम सिर्फ़ नमन ही कर सकते हैं। जय हिंद ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर पोस्ट ,आपको बधाई.इसी तरह अपना लेखन सफ़र आगे बढ़ाते रहें.
जवाब देंहटाएंमोहब्बत नामा
मास्टर्स टेक टिप्स
इंडियन ब्लोगर्स वर्ल्ड
sach mein .....bas main padh kar naman hi kar sakte hain
जवाब देंहटाएंआप का लेख पढ़कर मन द्रवित हो गया,आपका आभार एवं बलिदानी वीरों को शत् शत् नमन।
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