नवरात्रि में हम सभी हिन्दू धर्म के मानने वाले इन शुभ दिनों में देवी की आराधना विशेष ढंग से करते हैं और इन दिनों में कन्या को देवी मान कर पूजते हैं . इन दिनों में दुर्गा सप्तशती का विशेष रूप से लोग पाठ करते हैं और इसके देवी के श्लोकों को उच्च स्वर में ध्वनि सहित पाठ भी करते हैं। लेकिन इसके अर्थ के अनुरूप आज के सन्दर्भ में सब अर्थ बदल गए क्योंकि देवी ने तो सभी मानवों में एक जैसे ही गुण दिए थे लेकिन हमने उनको अपने अनुरूप विकसित कर स्वयंभू बन उनकी सत्ता को भी चुनौती देने लगे हैं।
या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता , नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः .
इसके अर्थ के अनुरूप अब शक्ति सिर्फ कुछ ही लोगों के अन्दर शेष रह गयी है शेष तो शोषित हैं न उनके द्वारा और शोषक ही उच्च स्वर में इन मन्त्रों को उच्चारित करते हैं। ( ये बात सब पर लागू नहीं होती। अतः इसे अन्यथा न लें )
या देवी सर्वभूतेषु मातृरूपेण संस्थिता , नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः .
अगर देवी सभी प्राणिओं में माँ के रूप में स्थित हों तो फिर कन्या भ्रूण हत्या, कन्या के साथ बलात्कार और घर से बेघर करने वाले लोग इस दुनियां में होते ही नहीं क्योंकि माँ का रूप जीवन दायिनी और ममता भरा होता है।
या देवी सर्वभूतेषु दयारूपेण संस्थिता , नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः .
अगर सभी मानवों में दया होती तो फिर इस विश्व में फैले हुए अत्याचार और अनाचार से मानव जाति त्राहि माम न कर रही होती। इतनी हत्याएं और आतंकी हादसे न होते। लोग अपने ही घर के लोगों के खून के प्यासे न होते। किस दृष्टि से माँ दया रूप में दिख रही हैं।
या देवी सर्वभूतेषु बुद्धिरूपेण संस्थिता , नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः .
यही तो एक ऐसी चीज है जो सभी प्राणियों में सिर्फ मनुष्य के पास है लेकिन फिर भी अन्य प्राणी तो बुद्धि से कम होते हुए भी अपनी जाति के प्रति सहृदयता का व्यवहार करते हैं। मनुष्य इस गुण के रूप में धारण करते हुए भी आपका ही अपहरण करने पर अमादा न रहता है।ये कैसी बुद्धि है माँ?
या देवी सर्वभूतेषु लक्ष्मीरूपेण संस्थिता , नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः
अज विश्व में सिर्फ आपका यही रूप ही तो भाता है , अपने अंतर में झांक कर तुझे पाने की चाह किसी को नहीं है . वह अपनी जेबों और तिजोरियों में खोजता फिर रहा है और फिर जो आपके रूप में विराजमान है उन्हें भी खोता जा रहा है।
या देवी सर्वभूतेषु तुष्टिरूपेण संस्थिता , नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः .
तुष्टि रूप में तुझे पा लेता तो शायद आज की दुनियां में जो कुछ भी हो रहा है , हत्या , लूटपाट , डकैती और सबसे बड़ा घोटालों का जो सिलसिला चल रहा है वह तो होना ही नहीं चाहिए तुष्टि तो शायद इंसान अपने विकास के मार्ग में एक रोड़ा मानता आ रहा है।
या देवी सर्वभूतेषु शांतिरूपेण संस्थिता , नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः .
इसकी खोज में तो संत पर्वतों और कंदराओं की खाक छानते रहते हैं और अपने अंतर में आपके इस रूप को नहीं देख पाते हैं।कैसा अजीब है आपका ये रूप और इसीलिए न वह सुख शांति से खुद रहता है और न ही औरों को रहने देता है।
क्या हमारी श्रद्धा से जुड़े ये सारे भाव अपने अर्थ को खोते चले जा रहे हैं। वही एक इंसान सुबह उठकर नौ दिन तक सात्विक भोजन से लेकर आचरण के साथ सब कुछ करना स्वीकार कर लेता है और फिर भी अपने अंतर में देवी प्रदत्त इन गुणों को खोज नहीं पाता है .
माँ हमें शक्ति बुद्धि, तुष्टि , शांति प्रदान करें और उन्हें भी जो इस बात से नावाकिफ है कि वे कर क्या रहे हैं?
मां की हर छवि मनोरम ... नवरात्रि पर्व की अनंत शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंआज सब रटे रटाये तोते हैं इससे ज्यादा कुछ नही यदि वास्तव मे माँ की अराधना करते तो अपने कर्म सुधार लेते और कर्म सुधरने से धर्म अपने आप सुधर लेता ।
जवाब देंहटाएंमाँ दुर्गा की कृपा सब पर बनी रही यही प्रार्थना है ..
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया प्रस्तुति
आपको सपरिवार नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनायें
आपको नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंअन्तर्मन तक पूजा पाठ नहीं पहुंचता ....बस दिखावा मात्र है ... बहुत सार्थक पोस्ट
जवाब देंहटाएंआडम्बर ही रह गया है अब तो ..... माँ को नमन
जवाब देंहटाएंसार्थक पोस्ट..
जवाब देंहटाएंनवरात्रि की हार्दिक शुभकामनायें
http://bulletinofblog.blogspot.in/2012/10/blog-post_17.html
जवाब देंहटाएंमन्त्र पठन और मनोभावों के फर्क को खूब उकेरा आपने
जवाब देंहटाएंनवरात्र की शुभकामनायें!
जवाब देंहटाएंमाँ सब पर शक्ति बरसाए.
जवाब देंहटाएंया देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता , नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः .
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति .
जवाब देंहटाएंनवरात्रि की हार्दिक शुभकामनायें .....
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