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शुक्रवार, 23 नवंबर 2012

राजकोष से राजनीति !

                   आज एक हैडिंग पढ़ी - "वादे सुनकर फूल गए , सरकार बनी तो भूल गए "  ऐसा तब होता है जब की जल्दी ही दुबारा मत के लिए जनता जनार्दन के सामने झोली न फैलानी हो और अपने ऊपर अंकुश लगाने वाला भी कोई न हो क्योंकि जनता तो ठग चुकी होती हैं . जब उत्तर प्रदेश में सपा सरकार के बनाने का अवसर था तब उनको यह पता था कि  अभी उनको केंद्र के लिए मत के लिए इन लोगों के बीच फिर से आना होगा और उसने अपने किये वादों को पूरा करने की कोशिश पूरी की भले ही उसमें उसने अपने वादे के मुताबिक न रख कर फिर से उसके स्वरूप और उद्देश्य को बदल दिया हो। 
                    सत्ता में आकर सरकार पूरे राजकोष को खर्च करने की हकदार होती है और फिर शुरू होता है उसके वादों को पूरा करने का अवसर . पूर्व सरकार ने राजकोष को अपने नाम को और दल को अमर बनाने के लिए उडा  डाला और राज्य के विकास में कितने प्रतिशत खर्च हुआ इसका आकलन करने वालों की कोई औकात ही नहीं होती है क्योंकि प्रजातंत्र में एक निरंकुश सरकार को चलाने  के लिए सदन में बहुमत होने की जरूरत होती है और फिर थोड़े से लाभ या पद के प्रलोभन में वे राज्य और अपने क्षेत्र के हितों को गिरवी रखने में नहीं चूकते हैं। राजकोष को खाली करके अपने वादों को पूरा करने के लिए प्रयोग करके वाहवाही लूटना अधिक आसान  होता है। अपनी गाँठ का क्या जाता है? एक हाथ से आधा  पैसा दिया और दूसरे हाथ से 10 पैसे वसूल कर लिए लेकिन राजनीति  की इन चालों से दूर आम आदमी सिर्फ सर पटकता रह जाता है . राजनीति  में राजकोष सबसे पहले प्रयोग किया जाता है। हम कहते हैं कि  अरे इस सरकार ने तो कम से कम इतना तो अच्छा किया लेकिन वह किसी भी सरकार की कृपा नहीं होती है बल्कि वह हमारे ही पैसे पर अपनी मुहर लगा कर हमें देते हुए दिखलाई देते हैं। 
                      उत्तर प्रदेश की सरकार  ने कुछ ही महीनों में अपने किये वादों में से कुछ को पूरा करना आरम्भ किया लेकिन जितनी तेजी उसने दिखाई शायद कोई और होता तो अभी इसमें वक्त लग जाता लेकिन क्या हम ये सोच सकते हैं कि हर पार्टी के पास अपना एक अलग कोष होता है और वह कोष राजकोष से अलग होता है और हर दल के पास अकूत संपत्ति होती है क्या कभी किसी भी दल ने अपने निजी कोष से जनहित में कुछ पैसे भी खर्च किये सिर्फ उस समय को छोड़ कर जब चुनाव होने वाले हों। क्योंकि तब तो वे महिलाओं के लिए साडी , बच्चों के लिए किताबें या कपडे देने के लिए दानदाता बन जाते हैं लेकिन सत्ता पर काबिज होने के बाद किस दल ने अपनी कोष से जनहित में कुछ भी खर्च किया है। राजकोष से राजनीति करना सबको आता है और फिर हम अपनी पीठ थपथपाते रहे - ये कुछ लोगों को तो रिझा सकता है लेकिन जब राजनीति  के लटके झटकों के बाद आम आदमी रहत महसूस करने के बजाय त्राहि त्राहि करने लगे तो उसको हम क्या कहेंगे? 
                        लड़कियों को 30 हजार की एकमुश्त रकम देकर उसने वाहवाही लूटी लेकिन वह 30 हजार कितने दिनों तक उस परिवार को राहत  दे पायेगा . उसमें भी कितने सम्पन्न लोगों के घर गया होगा ये धन और उनके लिए इस धन की कोई भी कीमत नहीं है। इस धन को बांटने के लिए उनकी पात्रता के लिए उनकी स्थिति  को जान  लिया जाता तो शायद कुछ और परिवार इससे लाभान्वित होकर कुछ राहत महसूस कर पाते . 
                  बेरोजगारी भत्ता मिला लेकिन क्या ये रोजगार मिलने से बेहतर विकल्प नहीं हो सकता है। लोगों ने साम दाम दंड भेद सब कुछ इस्तेमाल करके अपने आपको इसके लिए सुपात्र घोषित कर दिया है। सरकार  की घोषणाओं  के साथ  उसके लिए जुगाड़ भिड़ाने लगते हैं और फिर शुरू होता है उसके लिए लाभ प्राप्त करने के लिए जुगाड़ की जुगत करने की प्रक्रिया जिसने जुगाडू लोग सफल हो ही जाते हैं। रोज नयी घोषणायें सरकार के लिए एक नयी छवि बनाने की पहल है और उसकी पृष्ठभूमि को और सुदृढ़ बनाने के लिए काफी है। सारी परियोजनाएं और सुविधाएँ प्रदेश के सिर्फ एक ही जिले में केन्द्रित करके ये राजकोष का दुरूपयोग करने के सिवा कुछ और नहीं कर रहे हैं। पूर्व सरकार और इनमें बस  इतना सा अंतर है कि उसने पत्थरों  को तराश कर अपनी छवि बनायीं और ये सिर्फ गृह नगर को राजधानी बनाने के काम को छोड़ कर सब कुछ बनाने पर राजकोष खाली कर रहे  हैं। अभी राज्य में ये हाल है जब ये केंद्र पर काबिज हो गए तो फिर ??????????????

                      इस को समझने के लिए सजग होने की जरूरत आम आदमी को है , सिर्फ आँख बंद करके मृग मरीचिका के झांसे में आने के पहले खुद इस बात पर गहन विचार करें कि दल की नीतियों का इतिहास क्या है? उसकी आज केंद्र की नीतियों में सहभागिता कितनी है? कितनी जनहित में आने वाले विधेयकों के प्रति दल सहिष्णु है या फिर वह अपने दल के निजी स्वार्थों के तहत हाँ में हाँ मिलाने वाले लोग हैं। राजकोष से राजनीती करने वाले लोगों को सावधान रहने की जरूरत नहीं है। सरकार के द्वारा स्थापित सुशासन की और ध्यान दीजिये . राजकोष से धन लुटाया जा सकता है लेकिन राज्य में सुख , शांति और क़ानून व्यवस्था के प्रति उदासीनता उन्हें एक अच्छा  सुशासक नहीं बना रहा है। जो आम इंसान को किसी भी दृष्टि से राहत  नहीं दे पा  रही है बल्कि उसको दैनिक जीवन जीने के लिए नए नए करों से दो चार करने को बाध्य कर रही है फिर कैसे विश्वास  किया जाय कि  ये आगे जाकर इस देश के लोकतंत्र को एक स्वच्छ और सुशासित शासन दे सकेंगे .
राजकोष को व्यक्तिगत स्वार्थ से अलग यदि प्रयोग किया जाय या फिर आम लोगों के लिए उसका उचित तरीके से प्रयोग किया जाय तो उस सरकार के लिए एक सकारात्मक सोच को बनाने के लिए पर्याप्त है। राज्य की सीमायें सिर्फ और सिर्फ एक जिले या परिवार से जुड़े स्थाओं तक ही नहीं होती हैं बल्कि सर्कार बनाने के बाद राज्य की साडी सीमायें उसके लिए अपना घर होना चाहिए और हर व्यक्ति अपने से जुदा हुआ होना चाहिए। उनकी समस्याओं से जुड़ कर देखा जाना चाहिए। उन की तरह से जी कर देखना और सोचना चाहिए। राजकोष किसी की निजी संपत्ति नहीं है बल्कि उस पर आपको अपने विवेक से जनहित में व्यय करने के लिए नियुक्त किया जाता है तो फिर आम आदमी बन कर देखिये और उसकी समस्याओं को महसूस  करते हुए उसका उपयोग करें .
                 

9 टिप्‍पणियां:

  1. जब तक जनता सजग नहीं होगी, शासक इसे लूटते ही रहेगे।

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  2. रुद्राक्ष का आध्यात्मिक और औषधीय महत्व - ब्लॉग बुलेटिन आज की ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  3. धन को इस तरह से लुटाना यदि विकास ला सकता तो कितना ही अच्छा होता..

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  4. राज कोष यदि वास्तविक जरूरत वालों पर या जरूरी विकास के लिए खर्च करें तो सही है ----बहुत अच्छे विषय पर आपने आलेख लिखा है जो सराहनीय है बधाई आपको

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  5. 'प्रभुता पाय काहि मद नाहीं' वाली स्थिति है. अपने को सर्वेसर्वा समझ लिया और मनमानी शुरू !

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  6. आपकी उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार 27/11/12 को राजेश कुमारी द्वारा चर्चा मंच पर की जायेगी आपका चर्चा मंच पर स्वागत है!

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  7. राजनेता और राजनीति ...सब एक से है ..कोई भी पार्टी आए या कोई भी नेता ....सब लूटने पर लगे रहते है .....सादर

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  8. शासक जमकर कर रहे, राजकोष से मौज।
    भरी हुई है देश में, मक्कारों की फौज।।

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