चित्र गूगल के साभार |
अगर हम आज ही पेपर उठा कर देखे तो पता चलेगा की कितने मानवाधिकारों का हनन मानव के द्वारा ही किया जा रहा है। मानव के द्वारा मानव के दर्द को पहचानने और महसूस करने के लिए किसी खास दिन की जरूरत नहीं होती है . अगर हमारे मन में मानवता है ही नहीं तो फिर हम साल में पचासों दिन ये मानवाधिकार का झंडा उठा कर घूमते रहें कुछ भी नहीं किया जा सकता है। ये तो वो जज्बा है जो हर इंसान के दिल में हमेशा ही बना रहता है बशर्ते की वह इंसान संवेदनशील हो। क्या हमारी संवेदनाएं मर चुकी है अगर नहीं तो फिर चलें हम अपने से ही तुलना शुरू करते हैं कि हम मानवाधिकार को कितना मानते हैं? क्या हम अपने साथ और अपने घर में रहने वाले लोगों के मानवाधिकारों का सम्मान करते हैं ?
जब हम खुद ही अपने अधिकारों से वाकिफ नहीं हैं तो फिर मानवाधिकार का प्रयोग कैसे जान सकते हैं? जब हम अपने अधिकारों से परिचित होते हैं तभी तो उनको हासिल करने के लिए प्रयास कर सकते हैं . जब हमने अपने अधिकारों को हासिल करने के लिए संकल्प लिया तो वह दूर नहीं होता कि साथ हम अपने लक्ष्य तक पहुँच जाते हैं। जब एक आवाज अपने हक को पाने की लिए उठती है और उस आवाज में बुलंदी होती है तो लोग खुद ब खुद उस आवाज का साथ देने लगते हैं। इसके लिए अब अकेले लड़ने की जरूरत भी नहीं है बल्कि विश्व स्तर पर ही नहीं बल्कि हर देश और राज्य में मानवाधिकारों की रक्षा के लिए आयोग बने हुए हैं। अब देखना यह है की इन आयोगों को किस आधार पर मानव को न्याय पाने के लिए सहायता करनी होती है।
मानवाधिकारों का औचित्य और स्वरूप
मानव के जन्म लेने के साथ ही उसके अस्तित्व को बनाये रखने के लिए कुछ अधिकार उसको स्वतः मिल जाते हैं और वह उनका जन्मसिद्ध अधिकार होता है। इस दुनियाँ में प्रत्येक मनुष्य के लिए अपनी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए अधिकार एक मनुष्य होने के नाते प्राप्त हो जाता है। चाहे वह अपने हक के लिए बोलना भी जानता हो या नहीं . एक नवजात शिशु को दूध पाने का अधिकार होता है और तब वह बोलना भी नहीं जानता लेकिन माँ उसको स्वयं देती है और अगर नहीं देती है तो उसके घरवाले , डॉक्टर सभी उसको इसके लिए कहते हैं क्योंकि ये उस बच्चे का हक है और ये उसे मिलना ही चाहिए। एक बच्चे के अस्तित्व को बनाये रखने के लिए ये जरूरत सबसे अहम् होती है। लेकिन उसके बड़े होने के साथ साथ उसके अधिकार भी बढ़ने लगते हैं . बच्चा पढ़ने लिखने अपनी परवरिश के लिए उसको समुचित सुविधाएँ और वातावरण भी मिलना भी उनके जरूरी अधिकारों में आता है। उन्हें आत्मसम्मान के साथ जीने के लिए , अपने विकास के लिए और आगे बढ़ने के लिए कुछ हालत ऐसे चाहिए जिससे की उनके रास्ते में कोई व्यवधान न आये . पूरे विश्व में इस बात को अनुभव किया गया है और इसी लिए मानवीय मूल्यों की अवहेलना होने पर वे सक्रिय हो जाते हैं। इसके लिए हमारे संविधान में भी उल्लेख किया गया है। संविधान के अनुच्छेद 14,15,16,17,19,20,21,23,24,39,43,45 देश में मानवाधिकारों की रक्ष करने के सुनिश्चित हैं। सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि इस दिशा में आयोग के अतिरिक्त कई एनजीओ भी काम कर रहे हैं और साथ ही कुछ समाजसेवी लोग भी इस दिशा में अकेले ही अपनी मुहिम चला रहे हैं। सामान्य रूप से मानवाधिकारों को देखा जाय तो मानव जीवन में भोजन पाने का अधिकार , शिक्षा का अधिकार , बाल शोषण , उत्पीडन पर अंकुश , महिलाओं के लिए घरेलु हिंसा से सुरक्षा, उसके शारीरिक शोषण पर अंकुश , प्रवास का अधिकार , धार्मिक हिंसा से रक्षा आदि को लेकर बहुत सरे कानून बनाये गए हैं . जिन्हें मानवाधिकार की श्रेणी में रखा गया है .
मानवाधिकारों की रक्षा के लिए कानून बनाये गए और उनको लागू करना या करवाने के लिए प्रयास भी हो रहे हैं लेकिन वह सिर्फ कागजी दस्तावेज बन कर रह गए हैं। समाज में होने वाले इसके उल्लंघन के प्रति अगर मानव ही जागरूक नहीं है तो फिर इनका औचित्य क्या है? हम अपने घरों में काम करवाने के लिए छोटे छोटे बच्चों बच्चों को रखना पसंद करते हैं क्योंकि उनकी जरूरतें कम होती हैं , वे गरीब परिवार से होते हैं इसलिए उन्हें कुछ भी कहा जाय या दिया जाय वे आपत्ति करने की स्थिति में नहीं होते हैं। छोटी छोटी बच्चियां घरों में भारी भरकम काम करती मिल जायेंगी। सिर्फ घर में ही नहीं बल्कि कारखानों में काम करने के लिए महिलायें 10 से 12 घंटे काम करती हुई मिल जायेंगी। भवन निर्माण में लगी महिलायें अपने छोटे छोटे बच्चों को कहीं जमीन पर लिटा कर काम करती हुई मिल जायेंगी और उन्हें अपने बच्चे को दूध पिलाने की भी छुट्टी नहीं दी जाती है। पैसा उन्हें पुरुषों की अपेक्षा कम मिलते हैं। इस दिशा में कहाँ हैं मानवाधिकार?
छोटे छोटे बच्चे कारखानों में काम करते मिल जायेंगे , वे बच्चे जिन्होंने कभी स्कूल का मुंह नहीं देखा है। गरीब है तो घर में पैसे लाने के लिए घर वालों के द्वारा काम पर भेज दिए जाते हैं। सड़क पर नशे की चीजों को बेचते हुए बच्चे किस दृष्टि से मानवाधिकार के उल्लंघन का प्रतीक नहीं है।
घर में महिलाओं के साथ हो रहे घरेलु हिंसा की घटनाएँ क्या हैं? हम दंभ भरते हैं कि नारी सशक्तिकरण हो रहा है, महिलायों की स्थिति सुधर चुकी है , वे आत्मनिर्भर हो अपने स्थान को सुरक्षित कर रही हैं लेकिन सच इसके विपरीत है सिर्फ कुछ प्रतिशत महिलायें हैं जो आत्मनिर्भर हो कर अपने बारे में सोचने और करने के लिए स्वतन्त्र है, नहीं तो उनकी कमाई भी घर के नाम पर उनसे ले ली जाती है और उनको मिलता है सिर्फ अपने खर्च भर का पैसा।
महिलाओं और बच्चियों के यौन शोषण के प्रति क़ानून बने है लेकिन फिर भी इसकी घटनाओं में कोई भी कमी नहीं आ रही है . उन्हें सुरक्षित रहने और इज्जत से जीने का अधिकार तो मानवाधिकार दिलाता ही है लेकिन उन्हें मिलता कब है? जिन्हें उन सबकी डोर थमाई गयी है वे ही कभी कभी उसका हनन करते हुए पाए जाते हैं।
आज भी बचपन भूख से बिलखता हुआ और शिक्षा से बहुत दूर जी रहा है . प्रयास किये जा रहे हैं लेकिन वे अभी तक अपर्याप्त हैं। उनका लागू होने में बहुत देर है अभी। अभी देश का बचपन अपने लिए जमीन तलाश कर रहा है . उनके अधिकारों का हनन हम कर रहे हैं।
बड़े बड़े समाजसेवी लोगों के घर में महिलाओं के शोषण , बाल शोषण की घटनाएँ हुआ करती हैं . वे सफेदपोश लोग ही मानवाधिकारों का हनन कर रहे होते हैं। हम उन्हें उसके रक्षक समझ रहे होते हैं लेकिन वे न्याय नहीं कर रहे होते हैं। उनके खिलाफ बोलने का साहस भी लोग नहीं कर पते हैं।
हम और दिनों की तरह से इस दिन को भी एक रस्म समझ कर निभा लेते हैं लेकिन खुद को नहीं बदल पते हैं। किसी के प्रति न्याय करने के लिए पहल भी अगर कर सकें तो एक एक कदम कुछ तो सुधर ला सकता है। बस हमेशा के तरह से ये संकल्प तो ले ही सकते हैं कम से कम हम तो इन मानवाधिकारों का हनन करने की कोशिश नहीं करेंगे
मनुष्य ही ऐसा प्राणी है जो अपनी ही प्रजाति पर वार करता है। इसे जब भी मौका मिलता है दूसरों के हक छीनता ही रहता है। इसलिए ही हमारे यहाँ संस्कारों की बात कही गयी थी लेकिन आज संस्कारविहीन पीढ़ी पैदा की जा रही है, इसलिए मानवाधिकारों की आवश्यकता अनुभूत की जा रही है।
जवाब देंहटाएंसर्वे भवन्तु सुखिनः ही मूलमन्त्र हो..
जवाब देंहटाएंशुरुआत अपने घर से ही की जाय!घरों में काम करनेवाली स्त्रियों के साथ न्यायोचित व्यवहार और उनके कम से कम एक बच्चे को पढ़ने की सुविधा दे कर.हमने यह किया है और परिणाम बहुतसंतोषजनक रहा.इसका यह मतलब नहीं कि यहीं पर इति-श्री कर दें.
जवाब देंहटाएंकिसी के प्रति न्याय करने के लिए पहल भी अगर कर सकें तो एक एक कदम कुछ तो सुधर ला सकता है।
जवाब देंहटाएंबहुत सार्थक आलेख रेखा जी ...सही है घर से ही प्रारम्भ होना चाहिए ....वही शुरुआत एक बड़ा परिवर्तन ला सकती है ...
मानवाधिकार के लिए सबसे पहले उसका पूओरा ज्ञान होना जरूरी है... अपने अधिकारों की जानकारी को प्रेरित करती अच्छी पोस्ट ...
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल मंगलवार (11-12-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
जवाब देंहटाएंसूचनार्थ!
प्रतिभा जी , आपकी पहल बहुत अच्छी लगी . हम सब कुछ तो कर ही सकते हैं उनके लिए . अपने घर से इसी लिए शुरुआत करनी चाहिए . लेकिन घरों में हो रहे अपने ही घर वालों के साथ अमानवीय व्यवहार को क्या करेंगे?
जवाब देंहटाएंबिलकुल ठीक लिखा आपने हमें खुद ही नहीं पता की हमारे अधिकार क्या है तो भला ऐसे में मानव अधिकार का झण्डा उठाकर घूमने का क्या फायदा लेकिन हाँ इन मैं से बहुत सी बाते ऐसी है जिन पर यदि गंभीरता से विचार किया जाये तो स्वाभाविक रूप से ही हम कुछ हद तक मानव अधिकार की रक्षा स्वम कर सकते हैं जिनका उल्लेख आपने स्वयं किया है जरूरत है बस अपने अंदर झांक कर देखने की ,कि क्या हां स्वयं ऐसा कुछ करना चाहते भी है या नहीं....विचारणीय आलेख
जवाब देंहटाएंसार्थकता लिये सशक्त लेखन ... आभार आपका
जवाब देंहटाएंमानवाधिकार पर बहुत सारी महत्वपूर्ण बातें ..सारगर्भीत और सुंदर आलेख के लिए धन्यवाद
जवाब देंहटाएंसार्थक लेख
जवाब देंहटाएंज्ञानपरक आलेख। बहुत कुछ जानने को मिला। मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंसार्थक आलेख.............
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