गुरु के बिना ज्ञान नहीं मिलता लेकिन गुरु भी अपने शिष्य को जीवन में कई कसौटियों पर कसा करते हैं। जब हम पढाई करते हैं तो शिक्षक परीक्षा लेते हैं और हमारी दी हुई परीक्षा के आधार पर हमें पास करते जाते हैं। वहां दी हुई परीक्षा चाहे हम पाठ रट कर दें , नक़ल करते हुए दें या फिर उनके दिए हुए ज्ञान को आत्मसात करके दें। लेकिन गुरु प्रसन्न तभी होता है , जब उसका दिया हुआ ज्ञान सार्थक होता है।
मेरे आध्यात्मिक गुरु मेरे फूफा जी ही थे . बचपन से जिनकी गोद में खेली और बड़ी हुई। उनका विशेष स्नेह और पूजा के दिशा निर्देश सब को मैं सहज ही लेती थी क्योंकि वे हमारे परिवार से विशेष स्नेह रखते थे। इत्तेफाक से बड़े होने पर शादी भी मेरी कानपूर में हुई और उनका सानिंध्य मुझे बराबर मिलता रहा। कभी कोई परेशानी , समस्या सब के लिए हम उनके ही पास पहुँच जाते थे। वह हमारी समस्या का समाधान भी बताते थे और उसके पीछे के कारणों को भी बताते थे।
शादी के चार साल बाद मेरे परिवार की एक सदस्य बहुत बीमार पड़ी। पीलिया और बोन टी बी के चलते वह सेमी कोमा में चली गयीं। परिवार पर मुसीबत तो थी ही तो घर में सलाह दी गयी की जाकर फूफा जी से पूछो। उनकी दो छोटी ५ - ३ साल की बेटियां थी। मेरी बेटी १ साल की थी। अभी तो घर पर आई मुसीबत के लिए सारी जिम्मेदारी उठा ही रही थी , मैं उस समय एम एड भी कर रही थी। कॉलेज जाना , घर सम्भालना और साथ ही मरीज को भी देखना था।
मैंने इस बारे में उनसे पूछा कि उनके ठीक होने के लिए क्या किया जा सकता है ? तो उन्होंने बताया कि इनका मारकेश चल रहा है , दोनों ही संभावनाएं हैं तुम बोलो क्या चाहती हो ? मैंने कहा - 'मैं चाहती हूँ कि वह ठीक हो जाएँ . कोई भी इंसान इतना बुरा नहीं होता है दुनियां में कि उसकी न रहने की बात जान कर हम कुछ सकारात्मक न का सकें। '
इस पर उन्होंने कहा - 'एक बात मैं तुम्हें स्पष्ट बता दूँ कि ये इंसान जिंदगी में कभी भी तुम्हारा भला नहीं चाहेगा और न होने देगा। '
मैंने कहा - फूफा जी , उनकी दो छोटी छोटी बेटियां हैं , अगर कुछ होता है तो वे बिना माँ की हो जाएंगी और माँ की तरह परवरिश कोई नहीं कर सकता। आप कुछ भी बताइये मैं पूजा कर लूंगी। '
फूफा जी बोले वह तो मुझे ही करनी पड़ेगी लेकिन मैं तो तुम्हारी परीक्षा ले रहा था कि हमारे साथ से तुमने क्या ग्रहण किया है ? आज मुझे पूरा संतोष है कि तुम्हारी सोच वैसी ही है जैसी मैंने तुम्हें दी है। '
उसके बाद मेरे गुरु ने उनकी बीमारी अपने ऊपर ली और उनको पीलिया हो गया , वह भी काफी बीमार रहे और बाद में दोनों ठीक हो गए। फूफा जी अब नहीं है लेकिन उनके द्वारा दी गयी दिशा और शिक्षा मेरा मार्गदर्शन आज भी कर रही है।
मेरे आध्यात्मिक गुरु मेरे फूफा जी ही थे . बचपन से जिनकी गोद में खेली और बड़ी हुई। उनका विशेष स्नेह और पूजा के दिशा निर्देश सब को मैं सहज ही लेती थी क्योंकि वे हमारे परिवार से विशेष स्नेह रखते थे। इत्तेफाक से बड़े होने पर शादी भी मेरी कानपूर में हुई और उनका सानिंध्य मुझे बराबर मिलता रहा। कभी कोई परेशानी , समस्या सब के लिए हम उनके ही पास पहुँच जाते थे। वह हमारी समस्या का समाधान भी बताते थे और उसके पीछे के कारणों को भी बताते थे।
शादी के चार साल बाद मेरे परिवार की एक सदस्य बहुत बीमार पड़ी। पीलिया और बोन टी बी के चलते वह सेमी कोमा में चली गयीं। परिवार पर मुसीबत तो थी ही तो घर में सलाह दी गयी की जाकर फूफा जी से पूछो। उनकी दो छोटी ५ - ३ साल की बेटियां थी। मेरी बेटी १ साल की थी। अभी तो घर पर आई मुसीबत के लिए सारी जिम्मेदारी उठा ही रही थी , मैं उस समय एम एड भी कर रही थी। कॉलेज जाना , घर सम्भालना और साथ ही मरीज को भी देखना था।
मैंने इस बारे में उनसे पूछा कि उनके ठीक होने के लिए क्या किया जा सकता है ? तो उन्होंने बताया कि इनका मारकेश चल रहा है , दोनों ही संभावनाएं हैं तुम बोलो क्या चाहती हो ? मैंने कहा - 'मैं चाहती हूँ कि वह ठीक हो जाएँ . कोई भी इंसान इतना बुरा नहीं होता है दुनियां में कि उसकी न रहने की बात जान कर हम कुछ सकारात्मक न का सकें। '
इस पर उन्होंने कहा - 'एक बात मैं तुम्हें स्पष्ट बता दूँ कि ये इंसान जिंदगी में कभी भी तुम्हारा भला नहीं चाहेगा और न होने देगा। '
मैंने कहा - फूफा जी , उनकी दो छोटी छोटी बेटियां हैं , अगर कुछ होता है तो वे बिना माँ की हो जाएंगी और माँ की तरह परवरिश कोई नहीं कर सकता। आप कुछ भी बताइये मैं पूजा कर लूंगी। '
फूफा जी बोले वह तो मुझे ही करनी पड़ेगी लेकिन मैं तो तुम्हारी परीक्षा ले रहा था कि हमारे साथ से तुमने क्या ग्रहण किया है ? आज मुझे पूरा संतोष है कि तुम्हारी सोच वैसी ही है जैसी मैंने तुम्हें दी है। '
उसके बाद मेरे गुरु ने उनकी बीमारी अपने ऊपर ली और उनको पीलिया हो गया , वह भी काफी बीमार रहे और बाद में दोनों ठीक हो गए। फूफा जी अब नहीं है लेकिन उनके द्वारा दी गयी दिशा और शिक्षा मेरा मार्गदर्शन आज भी कर रही है।
आप उत्तीर्ण हुई और गुरु की गुरुता सफल हुई ऐसे शिष्य पाकर !
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