आज के दिन सब लोग पितृ दिवस के रूप में अपने अपने पिताओं को याद कर रहे हैं और वे भाग्यशाली पिता हैं जिनके बच्चे उन्हें श्रद्धा और सम्मान से याद करते हैं और आज का दिन उनके लिए यादगार बना देते हैं।
वैसे मौका तो नहीं है लेकिन हम सिक्के का दूसरा पहलू भी देखते चलें या फिर हो सकता है कि पढने वालों में कितनों के लिए ये आइना ही हो। ये तो नहीं कह सकती कि इसके पढने के बाद कोई बदल सकता हो अपने आपको। कानपूर अपने बुजुर्गों प्रताड़ित करने वाले लोगों को पालने वाला भारत का दूसरा शहर है , बताते चलें कि मदुरै का स्थान पहला है।
एक बार का वाकया याद कर रही हूँ। मेरे बहुत करीबी रिश्तेदार हैं , जीवन में बहुत ईमानदारी से नौकरी की और अपनी मेहनत से सब कुछ अर्जित किया बच्चों को पॉश एरिया में में रहने के लिए एक तीन मंजिला मकान बनवाया। गाड़ी खरीदी और सारी सुख सुविधाएँ उनके लिए जुटाई। वो सब कुछ दिया जो संभव था लेकिन खुद सदैव सीधी सादी जिंदगी जी। उनकी जिंदगी को मैंने उस समय से जाना जब वे एक कमरे के मकान में रहते थे। सुख सुविधा देने के बाद वे निश्चिन्त हो गए कि अब बच्चे सब कुछ चला ही लेंगे। लेकिन पैसे की चकाचौंध ने बेटों को अँधा बना दिया और माँ की शह ने उन्हें बर्बाद कर दिया।
कोई भी दुर्व्यसन से वे अधूरे न रहे और फिर शुरू हुआ बरबादी का दौर - पिता ने रिटायर होने पर सारा पैसा अपने और बेटे के नाम जमा कर दिया।
एक बेटा असमय नशेबाजी के चलते गुजर गया और दूसरा उनको आत्महत्या की धमकी देकर ब्लैकमेल करने लगा। सब कुछ बिक गया। इतना उधार ले कर उड़ाया कि लोग तगादे के लिए दरवाजे खटखटाने लगे। पिता मुंह नहीं दिखा पाते।
एक दिन मैं उनके घर में बैठी थी और बेटा पता नहीं किस लिए बेचने के लिए माँ से गले की जंजीर मांग रहा था। पिता ने सुना तो वह अंदर आये और बेटे को डांटने लगे और नशे में धुत बेटे ने एक तलवार लेकर अपनी माँ के ऊपर रख दी कि मुझे डांटा कैसे ? कान पकड़ कर उठक बैठक लगाओ नहीं तो किसी की गर्दन काट दूंगा। मैंने ऐसा अपनी जिंदगी देखा ही नहीं था और वो रिश्ते में मेरे जेठ होते थे। एक व्यक्तित्व के तौर पर वे अनुकरणीय थे मेरे लिए। उन्होंने मजबूर होकर उठक बैठक लगायी और मुझसे ये सहन नहीं हुआ और मैं वहां से रोती हुई तुरंत चली आई लेकिन एक बार यही कहूँगी की ऐसे बेटों से बेऔलाद होना ज्यादा अच्छा होगा।
वैसे मौका तो नहीं है लेकिन हम सिक्के का दूसरा पहलू भी देखते चलें या फिर हो सकता है कि पढने वालों में कितनों के लिए ये आइना ही हो। ये तो नहीं कह सकती कि इसके पढने के बाद कोई बदल सकता हो अपने आपको। कानपूर अपने बुजुर्गों प्रताड़ित करने वाले लोगों को पालने वाला भारत का दूसरा शहर है , बताते चलें कि मदुरै का स्थान पहला है।
एक बार का वाकया याद कर रही हूँ। मेरे बहुत करीबी रिश्तेदार हैं , जीवन में बहुत ईमानदारी से नौकरी की और अपनी मेहनत से सब कुछ अर्जित किया बच्चों को पॉश एरिया में में रहने के लिए एक तीन मंजिला मकान बनवाया। गाड़ी खरीदी और सारी सुख सुविधाएँ उनके लिए जुटाई। वो सब कुछ दिया जो संभव था लेकिन खुद सदैव सीधी सादी जिंदगी जी। उनकी जिंदगी को मैंने उस समय से जाना जब वे एक कमरे के मकान में रहते थे। सुख सुविधा देने के बाद वे निश्चिन्त हो गए कि अब बच्चे सब कुछ चला ही लेंगे। लेकिन पैसे की चकाचौंध ने बेटों को अँधा बना दिया और माँ की शह ने उन्हें बर्बाद कर दिया।
कोई भी दुर्व्यसन से वे अधूरे न रहे और फिर शुरू हुआ बरबादी का दौर - पिता ने रिटायर होने पर सारा पैसा अपने और बेटे के नाम जमा कर दिया।
एक बेटा असमय नशेबाजी के चलते गुजर गया और दूसरा उनको आत्महत्या की धमकी देकर ब्लैकमेल करने लगा। सब कुछ बिक गया। इतना उधार ले कर उड़ाया कि लोग तगादे के लिए दरवाजे खटखटाने लगे। पिता मुंह नहीं दिखा पाते।
एक दिन मैं उनके घर में बैठी थी और बेटा पता नहीं किस लिए बेचने के लिए माँ से गले की जंजीर मांग रहा था। पिता ने सुना तो वह अंदर आये और बेटे को डांटने लगे और नशे में धुत बेटे ने एक तलवार लेकर अपनी माँ के ऊपर रख दी कि मुझे डांटा कैसे ? कान पकड़ कर उठक बैठक लगाओ नहीं तो किसी की गर्दन काट दूंगा। मैंने ऐसा अपनी जिंदगी देखा ही नहीं था और वो रिश्ते में मेरे जेठ होते थे। एक व्यक्तित्व के तौर पर वे अनुकरणीय थे मेरे लिए। उन्होंने मजबूर होकर उठक बैठक लगायी और मुझसे ये सहन नहीं हुआ और मैं वहां से रोती हुई तुरंत चली आई लेकिन एक बार यही कहूँगी की ऐसे बेटों से बेऔलाद होना ज्यादा अच्छा होगा।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज सोमवार (16-06-2014) को "जिसके बाबूजी वृद्धाश्रम में.. है सबसे बेईमान वही." (चर्चा मंच-1645) पर भी है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत दुखद स्तिथि...आज के हालात में अपने जीवित रहते हुए किसी पर आर्थिक रूप से विश्वास नहीं करना चाहिए...
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