मेरी पाँचों बेटियां |
बड़ी बेटी के नौकरी में जाते ही उससे छोटी वाली बेटी का भी एम सी ए पूरा हो गया और साथ ही उसको कैंपस से ही चुनाव भी हो गया। उसकी नौकरी इनफ़ोसिस कंपनी में लगी। रिश्तेदारों की नजरें चमकने लगी। कुछ लोगों ने हम लोगों के निर्णय का स्वागत किया और कुछ लोगों ने मुंह पर न सही पीठ पीछे तंज कसने शुरू कर दिए। असलियत ये थी कि एक मध्यम वर्गीय परिवार में बेटियों को उच्च शिक्षा दिलाने के लिए बहुत कुछ करना पड़ता है और ये तो आप बिलकुल भी उम्मीद नहीं लगा सकते हैं कि बेटियों को पढने के बाद हम लम्बा चौड़ा दहेज़ भी इकट्ठे कर चुके होंगे. हमारे कुछ शुभचिंतकों ने पहले ही समझाया था कि लड़कियों ज्यादा पढोगे तो उतना ही पढ़ा लड़का चाहिए. और जितना पढ़ा लिखा लड़का खोजेंगे तो दहेज़ भी उतना ही जुटाना पड़ेगा। लेकिन पूरे घर की एक ही तमन्ना थी कि अपनी बेटियों को आत्मनिर्भर बनाना है और उनकी रूचि के अनुसार ही उनको शिक्षा दिलानी हैं। कुछ लोगों ने ये भी कह रखा था कि जब आपकी लड़कियां कमाने लगेंगी तो प्रस्ताव खुद ब खुद आने लगेंगे। पर ऐसा हुआ तो लेकिन लम्बे चौड़े दहेज़ के साथ प्रस्ताव आने शुरू हो गए क्योंकि उन लोगों ने अपने बेटों की शिक्षा में जो पैसा खर्च किया था वह वसूल भी तो लडकी वालों से करना था।
अब रिश्तेदारों की आमद बढ़ने लगी कि सुराग लिया जाय कि ये लोग शादी के बारे में क्या सोचते हैं ? अपने अपने तरीके से मन की बात निकलवाने के प्रयास शुरू कर दिए। हमारी बेटियों के लिए कोई पॉलिटेक्निक किये हुए लड़कों के प्रस्ताव लाने लगे , कुछ लोग कहीं क्लर्क लड़कों के। मैं इन लोगों को बुरा नहीं मानती लेकिन अपनी बेटियों की शिक्षा के अनुरूप तो वर की कामना सभी करते हैं। लोग हमसे पूछने लगे --
--अब शादी कब करोगे ? तुम्हारे यहाँ तो एक के बाद एक लगी हैं। हाँ तीन के बाद कुछ सांस ले सकते हो।
--शादी में कितना खर्च करने का इरादा कर रखा है तो उसी हिसाब से लड़का बताया जाय।
--देखिये उन के घर में शादी हुई है , लड़का क्लर्क है उसको १० लाख नगद और एक गाड़ी मिली है।
--ये बात तो आप लोगों को पहले सोचनी चाहिए थी की इतना बेटी को पढ़ाएंगे तो फिर उसके लिए वैसा ही लड़का भी देखेंगे तो दहेज़ तो लगेगा ही।
--आपको दहेज़ की क्या चिंता ? लड़कियों ने खुद दहेज़ इकठ्ठा कर लिया होगा।
उन्हें क्या पता कि बेटियों ने अपनी पढाई में घर वालों को जिस तरह से कश्मकश करके सब कुछ पूरा करते देखा था वो उनके सपनों को पूरा करना चाह रही थी।
तीनों बड़ी बेटियां |
जब उनसे इस बारे में बात की जाती तो एकदम मना। अभी कुछ साल नौकरी कर लेने दो। हमारे भी कुछ सपने हैं उन्हें तो पूरा कर लें। दहेज़ वाले प्रस्तावों की बात उन लोगों को बिलकुल नहीं बताई जाती थी लेकिन बहनों के बीच इतनी अच्छी समझ थी कि घर में होने वाली बातों की सूचना उन लोगों को अपनी बहनों से मिल जाती थी।
अब लोगों ने सीधे सीधे कटाक्ष करने शुरू कर दिए।
--दहेज़ नहीं देंगे तो शादी के लिए अच्छा लड़का कैसे मिलेगा. ?
--लड़कियों को पढने से पहले सोचना चाहिए था कि बराबरी का लड़का देखेंगे तो पैसा लगेगा। लड़के की पढाई मुफ्त में थोड़े ही हो जाती है।
--क्या लड़कियों की कमाई खाने का इरादा है ? उनकी ही कमाई में कर दो उनकी शादी।
हम सबकी सुनते थे और करते अपनी मन की। लेकिन कभी कभी अपराध बोध मन में पालने लगता कि क्या हमने गलत किया है ? मेरे जेठ जी कभी कभी सिर पकड़ कर बैठ जाते कि मुझे लगता है कि हमें बी ए या एम ए करके शादी कर देनी चाहिए थी। उनको भी समझाया जाता कि परेशान होने की जरूरत नहीं है।लोगों के कहने से तो कोई निर्णय नहीं लिया जाएगा और बेटियों पर भी अपना निर्णय थोपा नहीं जा सकता है। कम से कम जिससे शादी की जाय उनका मानसिक स्तर तो बराबर होना चाहिए।
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, आज की हकीकत - ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंप्रेरक सच।
जवाब देंहटाएंआपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (21.08.2015) को "बेटियां होती हैं अनमोल"(चर्चा अंक-2074) पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, चर्चा मंच पर आपका स्वागत है।
जवाब देंहटाएंआपने बेटियों को पढ़ाया लिखाया और इस योग्य बनाया कि वे अपने पैरों पर खड़ी हो सकें, अब अपना भविष्य बनाने का उन्हें पूरा अधिकार है, रिश्ता उनकी इच्छा और मानसिक स्तर के अनुरूप ही होना चाहिए..शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंसच्ची तस्वीर है .लेकिन अब स्थितियाँ बदल रही हैं . लोग दहेज की बजाय योग्य व सद्गुणी वधू को प्राथमिकता दे रहे हैं .
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सही ! हम आज भी अपने इर्द-गिर्द ऐसा ही होते देख रहे हैं। उनके बराबरी के लड़के को सुयोग्य सुन्दर बहू एवं दहेज के साथ और भी बहुत कुछ चाहिए। हमारी बेटियों के लिये तो माता-पिता के अलावा इस समाज में कुछ भी नहीं बदला है। :(
जवाब देंहटाएंबेटियों को तभी आगे बढ़ाया जा सकता है जब हम समाज की उल्टी सीधी बातों की परवाह न करें। शानदार श्रृंखला है ये दीदी।
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