हमें गर्व है कि हम एक स्वतन्त्र भारत और धर्मनिरपेक्ष भारत के निवासी हैं. हमारे संविधान में किसी भी धर्म या आस्था को लेकर भेदभाव न करने की बात कही गयी है और हम उसको मानते हैं. जब संविधान बना तो ये पता नहीं था कि हमें ये दिन भी देखना पड़ेगा और हम अपने ही घर में एक ऐसे कटघरे में खड़े करने की कगार पर आ जायेंगे जिसमें न सजा की कोई मियाद है और सफाई की कोई जरूरत है.
अब तक तो सबके संज्ञान में आ चुका सांप्रदायिक हिंसा निषेध बिल जिसकी तैयारी हमारी मौजूदा सरकार कर रही है .वह सारी धर्म निरपेक्षता और समानता के संविधान के नियमों को ताक में रख कर अपना नया ही इतिहास रचने जा रही है , इतिहास क्या ये औरंगजेबी फरमान जारी होने के लिए तैयार खड़ा है. इसके विषय में कुछ न कुछ तो सभी ने सुना ही होगा लेकिन इसके औचित्य को आज तक हम समझ नहीं पाए. हमारे संविधान निर्माताओं का तो एक है सपना था कि हम किसी भी तरीके से गुलामी से आजाद हों और एक ही झंडे तले चैन और अमन के साथ रह सकें . किसी को देश छोड़ने के लिए बाध्य नहीं किया गया. जिसे जहाँ रहना था रहे. अगर कुछ अलगाववादी तत्वों की बात छोड़ दें तो देश में अमन और चैन में आज भी कोई कमी नहीं है. लेकिन इसके विपरीत जिस घातक कदम को उठाने का काम सरकार कर रही है, वह देश में नहीं बल्कि देश वासिओं के दिलों में एक दीवार खींचने का काम करने की तैयारी में है लेकिन ये है किस लिए ? इस बात का को भी उत्तर किसी के पास नहीं है.
अगर ये औरंगजेबी फरमान पास हो गया तो संवैधानिक दृष्टि से , न्याय की दृष्टि से इस बिल में घोषित 'समूह' - जो सिर्फ हिन्दू है, कहीं भी किसी भी हिंसा में दोषी करार कर दिए जायेंगे और उसके बाद इस अपराध की कोई भी जमानत नहीं होगी यानि कि वर्ग विशेष के लोग सत्यापित आतंकवादी करार दिए जायेंगे.
भारत एक हिन्दू राष्ट्र है नहीं इसको धर्मनिरपेक्ष का जामा पहना कर सांप्रदायिक हिंसा निषेध बिल को कानूनी अधिकार प्रदान कर रही है और इस बात से सभी वाकिफ है कि ये हिंसा फैलाने वाले किसी भी आस्था या विश्वास के अनुयायी नहीं होते,. इनकी कोई जाति नहीं होती यहाँ तक कि ये लोग तो मानव भी कहलाने लायक नहीं होते.
फिर इस बिल को तैयार करने वालों की सोच क्या है? अन्य वर्ग मुस्लिम , सिख , इसाई अगर इसमें लिप्त पाए गए तब भी दोषी हिन्दू ही माने जायेंगे यानि कि सांप्रदायिक हिंसा को खुला निमंत्रण और हिन्दुओं के लिए जेल का खुला फरमान. ये किस संविधान में लिखा है? हमने तो अपना दामन इतना बड़ा रखा कि सारी दुनिया को इसमें समां लिया और हम अपने घर में नजरकैद किये जाने वाले हैं. दहशत की बेड़ियों का इंतजाम अगर आपकी गर्दन भी दल दें तो चुप रहिये क्योंकि आख़िर में आपकी कटी गर्दन के साथ आपके घर वाले भाई विरादरी ही जेल की सलाखों के पीछे होंगी.
इस बिल को लाने वाले इसका मसौदा तैयार करने वालों की सोच क्या है? आज तक स्पष्ट नहीं हियो - यह तो फिर किसी नाथूराम गोडसे को जन्म देने वाली पृष्ठभूमि बन रही है फिर एक नहीं कई नाथो राम गोडसे तैयार होंगे क्योंकि अगर मर मर कर जीना है तो फिर एक बार मर कर सदियों तक जीना बेहतर है.
मंगलवार, 12 जुलाई 2011
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रेखा जी यह कोई नयी प्रष्ट भूमि नहीं बन रही. यह हिन्दुस्तान की राजनीति है. धर्म के नाम पे पार्टियाँ बंट गयी हैं. कोई हिन्दू का साथ ले के अपने वोट बैंक मज़बूत कर रहा है कोई धर्म निरपेक्ष बना पड़ा है. हैं सब एक जैसे ही.
जवाब देंहटाएंइंसानों की पार्टी कोई नहीं. सांप्रदायिक हिंसा को रोकना अवश्य चाहिए लेकिन इसके जिमेदार आम जानता नहीं यही राजनितिक पार्टियाँ ही हैं.
मैं इधर जाऊं या उधर जाऊं
जब तक सरकार को अपने वोट नज़र आयेंगे वो ऐसा ही करते रहेंगे ... जनता को जरूरत है जागने की बस ...
जवाब देंहटाएंआपका लेख पढ़ कर "रंग दे बसंती " पिक्चर याद आ रही है ...
जवाब देंहटाएंगहन चिन्तन, दिशा यह न हो देश की।
जवाब देंहटाएंबिल के बारे में काफी कुछ सुना है किन्तु सभी अपुष्ट से खबरे है पहले कुछ स्पष्ट बात आये तभी कुछ प्रतिक्रिया दी जाये जो बाते सामने आ रही है उनके सच होने के प्रमाण नहीं है यहाँ तो बात का बतंगड़ बनाते चीजो को कुछ और रूप देते लोगों को देर नहीं लगती इसलिए पहले इस बिल को खुल कर सामने आने दीजिये |
जवाब देंहटाएंकानून तो बनते ही रहते हैं।
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साइंस फिक्शन की तिलिस्मी दुनिया
लोग चमत्कारों पर विश्वास क्यों करते हैं ?
आप लोगों ने सही कहा लेकिन कानून अपने स्वार्थ के लिए और राजनीति में अपनी पैठ को बनाये रखने के लिए जब बनाने लगते हैं तो देश और यहाँ के लोगों का भविष्य डाव पर लगा दिया जाता है और आने वाले समय में वही होने वाला है.
जवाब देंहटाएंएक बहुत महत्वपूर्ण मुद्दा -विचारों से सहमति !
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