'सत्यमेव जयते ' में एक एपिसोड में यह कहते सुना था कि रिश्वत माँगने वाले की तरह रिश्वत देने वाला भी उतना ही अपराधी होता है , ठीक उसी तरह से जैसे कि दहेज़ देने और लेने वाले दोनों अपराधी होते हैं . लेकिन एक घटना ऐसी मैंने अपने आँखों से देखी कि कह नही सकती कि अमन चैन पसंद आदमी और जो गलत कामों के झमेले से दूर है उससे ये घूसखोर डरा धमाका कर वसूल कर लेते है।
बस चार दिन पहले की घटना है - मैं सुबह पौने पांच बने मोर्निंग वॉक के लिए निकलने वाली थी कि देखा मेरे सामने वाले पोल के पास करीब 5-6 लोग खड़े हुए हैं और पोल की फोटो ले रहे थे। मेरे बाहर निकलते ही पूछा - 'क्या आपके पड़ोस में दो मीटर लगे हुए हैं?'
मैंने कहा - ' मुझे नहीं मालूम वैसे मीटर तो एक ही लगा है.'
'इनके घर में कोई जगा होगा?'
मैंने कहा - ' नहीं देर से उठते हैं।'
'अच्छा फिर हम थोड़ी देर बाद आते हैं। ' कह कर वो दूसरी तरफ चले गये और मैं वॉक के लिए. करीब के एक घंटे के बाद जब मैंने लौट कर आई तो वे लोग बाहर बैठे हुए थे और उनमें से कुछ अन्दर भी थे।
पता चला माजरा यह है की पड़ोस में पहले की पड़ी हुई केबिल डैड हो चुकी थी और उन्होंने दूसरी केबिल डलवा कर सही करवाया था . वह डैड केबिल ऐसे ही लटकी हुई थी न पोल से जुडी थी और न ही कहीं उनके मीटर से जुडी थी। लेकिन वह इस बात के पीछे पद गए कि हमने इस केबिल की फोटो ले ली है , इसके चलते आप की ऍफ़ आई आर करवा सकते हैं। और पेनाल्टी में आपको सत्तर अस्सी हजार देने पड़ेंगे . पुलिस और कचहरी का अलग चक्कर पड़ जायेगा .
पड़ोस में जो परिवार रहता है , उसके बेटे झाँसी में काम करते हैं और उनके पत्नी बच्चे रिटायर्ड पिता और माँ यहाँ पर रहते हैं। वह कभी कभी आ पाते हैं। उनकी समझ नहीं आ रहा था कि वे क्या करे? या तो ये लेकर ही टलेंगे या फिर रोज रोज आ कर पिता जी को परेशान करेंगे । इसलिए उन्होंने इसका रास्ता उन्हीं से पूंछा . शायद उनमें से जो सीनियर थे अपने हाथ में नहीं लेना चाहते थे इसलिए वे बाहर निकल गए और उनके रिश्वत लेने में माहिर जूनियर आया -' देखिये हम इतने लोग हैं कोई एक तो इस मामले को अकेले निबटा नहीं सकता है इसलिए सबकी सहमती से ही कुछ काम किया जाएगा। मैंने बात करता हूँ मामला 15 हजार तक निबटा दूंगा। उन्होंने साफ मना कर दिया कि मैं न तो इतने घर में रखता हूँ और न ही मैं दे पाऊंगा। आपको जो भी करना हो कर लीजिये।
'ये मीटर किसके नाम है? '
मेरे पिताजी के नाम ' पडोसी ने कहा .
'तब आपके पिताजी के नाम ही कार्यवाही होगी, कुछ तो सोचिये ये वृद्ध आदमी कहाँ भागते फिरेगे? सरकारी काम तो भागने और दौड़ने से ही निबटते हैं। मैं फिर से बात करता हूँ शायद कुछ कम में मामला निबट जाए।
पडोसी बेचारे इस झंझट से मुक्त होना चाहते थे क्योंकि यहाँ पर उनके पिता जी अकेले पुरुष मेंबर थे और शेष घरेलु औरतें थी। इसलिए वह हम लोगों से विचार विमर्श कर कुछ देने के लिए तैयार हो गए। बात 5 हजार रुपये में तय हुई और वे लोग उन्हें दूसरी जगह आकर पैसे देने के लिए कह कर चले गए और एक घंटे बाद उन्होंने कहीं और जाकर उन लोगों को पैसे दिए।
ऐसी हालत में कौन दोषी है? वह जो इन सब झंझटों से दूर रहता है। हमेशा समय से बिल जमा करना और कोई भी नियम विरुद्ध काम करने की कौन कहे वह तो यहाँ पर आकर परिवार के दायित्वों को निबटा कर वापस अपने काम पर भाग जाते हैं। ऐसे लोगों को ऐसे रिश्वतखोर डरा कर वसूली कर लेते हैं।
बस चार दिन पहले की घटना है - मैं सुबह पौने पांच बने मोर्निंग वॉक के लिए निकलने वाली थी कि देखा मेरे सामने वाले पोल के पास करीब 5-6 लोग खड़े हुए हैं और पोल की फोटो ले रहे थे। मेरे बाहर निकलते ही पूछा - 'क्या आपके पड़ोस में दो मीटर लगे हुए हैं?'
मैंने कहा - ' मुझे नहीं मालूम वैसे मीटर तो एक ही लगा है.'
'इनके घर में कोई जगा होगा?'
मैंने कहा - ' नहीं देर से उठते हैं।'
'अच्छा फिर हम थोड़ी देर बाद आते हैं। ' कह कर वो दूसरी तरफ चले गये और मैं वॉक के लिए. करीब के एक घंटे के बाद जब मैंने लौट कर आई तो वे लोग बाहर बैठे हुए थे और उनमें से कुछ अन्दर भी थे।
पता चला माजरा यह है की पड़ोस में पहले की पड़ी हुई केबिल डैड हो चुकी थी और उन्होंने दूसरी केबिल डलवा कर सही करवाया था . वह डैड केबिल ऐसे ही लटकी हुई थी न पोल से जुडी थी और न ही कहीं उनके मीटर से जुडी थी। लेकिन वह इस बात के पीछे पद गए कि हमने इस केबिल की फोटो ले ली है , इसके चलते आप की ऍफ़ आई आर करवा सकते हैं। और पेनाल्टी में आपको सत्तर अस्सी हजार देने पड़ेंगे . पुलिस और कचहरी का अलग चक्कर पड़ जायेगा .
पड़ोस में जो परिवार रहता है , उसके बेटे झाँसी में काम करते हैं और उनके पत्नी बच्चे रिटायर्ड पिता और माँ यहाँ पर रहते हैं। वह कभी कभी आ पाते हैं। उनकी समझ नहीं आ रहा था कि वे क्या करे? या तो ये लेकर ही टलेंगे या फिर रोज रोज आ कर पिता जी को परेशान करेंगे । इसलिए उन्होंने इसका रास्ता उन्हीं से पूंछा . शायद उनमें से जो सीनियर थे अपने हाथ में नहीं लेना चाहते थे इसलिए वे बाहर निकल गए और उनके रिश्वत लेने में माहिर जूनियर आया -' देखिये हम इतने लोग हैं कोई एक तो इस मामले को अकेले निबटा नहीं सकता है इसलिए सबकी सहमती से ही कुछ काम किया जाएगा। मैंने बात करता हूँ मामला 15 हजार तक निबटा दूंगा। उन्होंने साफ मना कर दिया कि मैं न तो इतने घर में रखता हूँ और न ही मैं दे पाऊंगा। आपको जो भी करना हो कर लीजिये।
'ये मीटर किसके नाम है? '
मेरे पिताजी के नाम ' पडोसी ने कहा .
'तब आपके पिताजी के नाम ही कार्यवाही होगी, कुछ तो सोचिये ये वृद्ध आदमी कहाँ भागते फिरेगे? सरकारी काम तो भागने और दौड़ने से ही निबटते हैं। मैं फिर से बात करता हूँ शायद कुछ कम में मामला निबट जाए।
पडोसी बेचारे इस झंझट से मुक्त होना चाहते थे क्योंकि यहाँ पर उनके पिता जी अकेले पुरुष मेंबर थे और शेष घरेलु औरतें थी। इसलिए वह हम लोगों से विचार विमर्श कर कुछ देने के लिए तैयार हो गए। बात 5 हजार रुपये में तय हुई और वे लोग उन्हें दूसरी जगह आकर पैसे देने के लिए कह कर चले गए और एक घंटे बाद उन्होंने कहीं और जाकर उन लोगों को पैसे दिए।
ऐसी हालत में कौन दोषी है? वह जो इन सब झंझटों से दूर रहता है। हमेशा समय से बिल जमा करना और कोई भी नियम विरुद्ध काम करने की कौन कहे वह तो यहाँ पर आकर परिवार के दायित्वों को निबटा कर वापस अपने काम पर भाग जाते हैं। ऐसे लोगों को ऐसे रिश्वतखोर डरा कर वसूली कर लेते हैं।
उन्हें एन्टी करप्शन में शिकायत करनी चाहिए थी और वहाँ से रंगे हुए नोट ले जा कर देने चाहिए थे। आप जब देख रही थीं तो आप उन को यह सुझाव दे सकती थीं। इस मामले को ले कर मुहल्ले में जागरूकता पैदा की जा सकती थी और मौके पर आए लोगों को मुहल्ले वाले पकड़ कर थाने के हवाले भी कर सकते थे।
जवाब देंहटाएंडरा धमकाकर धन वसूलना तो पुरानी परम्परा है..
जवाब देंहटाएंजिसकी लाठी उसकी भैंस
जवाब देंहटाएंहाँ दिनेश जी, आपका कहना सही है , लेकिन जब तक मैं वापस आई बहुत कुछ हो चुका था. फिर दूसरा यहाँ पर रहता नहीं है, उसके घर वालों को परेशान किया जाता . वह तो एक बुरे सपने की तरह आया हुआ क्षण था . वह खुद इन झंझटों में नहीं पड़ना चाहते थे.
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंद्विवेदी जी कह तो सही रहे हैं पर डरने वाले को सभी डराते हैं न
जवाब देंहटाएंकाजल जी,
जवाब देंहटाएंमैं भी द्विवेदी जी से सहमत हूँ लेकिन उसकी अपनी मजबूरी ये है कि वह कानपुर में नहीं रहता है और बार बार आ भी नहीं सकता फिर आगे बढ़ कर उनके खिलाफ कार्यवाही कैसे कर पाता?
काजल जी,
जवाब देंहटाएंमैं भी द्विवेदी जी से सहमत हूँ लेकिन उसकी अपनी मजबूरी ये है कि वह कानपुर में नहीं रहता है और बार बार आ भी नहीं सकता फिर आगे बढ़ कर उनके खिलाफ कार्यवाही कैसे कर पाता?
पर शिकायत करने पर भी झंझट कम नहीं..वो एक और सिर दर्द. शायद फिर वहाँ भी ले दे के रफा दफा करना पड़े सब.
जवाब देंहटाएंरश्मि जी की बात से सहमत हूँ।
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