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बुधवार, 19 सितंबर 2012

सरकार : अपराध व आत्महत्याएं !

                              सत्ता में आकर मद तो आ जाता है लेकिन लोकतंत्र में इतनी मदमस्त सरकार आई ही नहीं और शायद इससे सबक लिया तो कोई आएगी भी नहीं। इतनी ढीठ सरकार रोज बा रोज खुलते घोटालों     के बाद भी महंगाई की दर दिन पर दिन बढाती चली जा रही है . जो निर्णय सिर्फ और सिर्फ एक दल के हैं साझा सरकार होने के बाद भी वह निर्णय खुद लेती चली जा रही है और इसी का परिणाम है की उसके सहयोगी दलों ने समर्थन वापस लेने निर्णय ले लिए है।
                            
                       राजनीति में इसका असर जो भी हो लेकिन समाज में  इसके प्रभाव  को एक समाजशास्त्री और मनोवैज्ञानिक  इस बात को बहुत अच्छी तरह से जान चुके हें कि अब सामाजिक परिदृश्य क्या होने वाला है? अब इस मंहगाई के दौर में बड़े से बड़ा और छोटे से छोटा व्यक्ति इसका शिकार बनने लगा है. अगर वह गाड़ी में चलने वाला है तो रोज ब रोज पेट्रोल और डीजल के दाम बढ़ने से उसकी जेब अधिक हल्की  होने लगी है. उनकी हर महीने होने वाली बचत घर के खर्च पूरे करने में खर्च होने लगी है. फिर वह संतुलन कहाँ से बना पायेगा . कर्ज कहाँ से ले कर काम चलाएगा और कर्ज एक बार ले भी लिया तो फिर उसको चुकाएगा कहाँ से? जहाँ पर अंधी कमाई है उन्हें इसके लिए कोई फर्क नहीं पड़ता है लेकिन इसमें सबसे अधिक त्रसित मध्यम वर्ग और श्रम जीवी वर्ग या निम्न  वर्ग  होने वाला है.
                             ये मध्यम वर्ग न तो अपने बच्चों को भूखा मरता हुआ देख सकता है और न ही अपने को उनके आगे असहाय दिखा सकता है. फिर क्या करेगा वह? दिन पर दिन बढ़ती मंहगाई की दर नके चलते ,जो बच्चे कहीं पढ़ रहे हें और माता पिता पेट से कटौती करके उन्हें खर्च भेज रहे हें , वे क्या करेंगे? घर में रहने वाले बच्चों का पेट भरेंगे या फिर उस बच्चे को भेजेंगे. अगर नहीं भेजेंगे तो वह बच्चा क्या करेगा? उसको वहाँ रहकर भी मंहगाई की मार झेलनी है. परिणाम मानसिक दबाव बढ़ने से या तो बच्चा ख़ुदकुशी की कगार पर आ कर खड़ा हो जाता है या फिर माता पिता. हर इंसान इतना दृढ इच्छा शक्ति वाला नहीं है कि वह इन आने वाली परिस्थितियों से लड़ सके. पैसे और खर्चे के लिए घर में बढ़ता हुआ तनाव उन्हें क्या देगा? सिर्फ अवसाद और कुंठा - इससे छुटकारे की आशा भी वह नहीं देख पाता है क्योंकि न तो उसकी आमदनी बढ़ने वाली है और न ही मंहगाई कम होने वाली है. रोज रोज नए नए करों के नाम पर , एक डीज़ल में दाम बढ़ा देने से बाकी चीजों के दाम खुद बा खुद बढ़ जाने वाले हें. क्योंकि जब ट्रक आदि का भाडा बढेगा तो आने वाली चीजें खुद ही मंहगी हो जायेंगी. कहाँ से वह खाना खिलायेगा और कहाँ से वह बीमारी के आने पर इलाज करा पायेगा ? जब वह खुद को असमर्थ पायेगा तो न तो उससे बीमार की तकलीफ और दर्द सहन होगा और न ही वह उसके लिए अच्छा इलाज उपलब्ध करा पायेगा और फिर अवसाद की हालात में उसको सिर्फ और सिर्फ आत्महत्या जैसी चीज सबसे सहज लगती है. कोई बेकारी से परेशान होकर, कोई खर्च पूरा न कर पाने के लिए, कोई निरंतर कर्ज में डूबते जाने से परेशान हो कर क्या करेगा? आज के हालात में उनके कंधे पर कोई हाथ रखने वाला भी नहीं मिलेगा क्योंकि आज के इस दौर में सभी परेशान होकर जीवन गुजार रहे हें.
                            अगर वह अपने को किसी तरह से काबू कर भी लेता है और आत्महत्या जैसे त्रासदी से खुद को बचा लेता है तो फिर उसका दिमाग किसी और तरफ भी जा सकता है. एक परिपक्व व्यक्ति इस काम से दूर जरूर रह सकता है लेकिन युवा पीढ़ी जिसके भटकने की सबसे ज्यादा आशा होती है. अपराध की दुनियाँ में कदम रखने में जरा सा भी संकोच नहीं करता है. जो युवा आज बाइक पर सवार होकर चेन खींचने में जरा सा भी संकोच नहीं करता है, बैंक से रुपये लेकर जाते हुए लोगों को लूट सकता है , बैंक लूट सकता है और इस तरह से बढ़ती हुई मंहगाई में वो बच्चे भी जो संवेदनशील है और ऐसे कामों में विश्वास नहीं रखते हें वे भी मजबूर होकर खुद को इस रास्ते पर धकेलने में जरा सा भी संकोच नहीं करेंगे क्योंकि संवेदनशील होने के नाते उन्हें घर के हालातों से दो चार होते हुए माता पिता को रोज देखना होता है. उनकी मजबूरी और संघर्ष  उनके संवेदनशील मन को मंजूर नहीं होता है और वे अगर अपने पर काबू नहीं कर पाते है तो वे इस अपराध की दिशा में अपने काम बढ़ा देते हें. जब बड़े लोगों के बेटे पिता से बाइक मिलते ही अपने शौकों को पूरा करने के लिए इस दिशा में बढ़ाने को मजबूर कर देते हें लेकिन गरीब का बेटा अगर इस तरफ बढ़ जाता है तो फिर उसका सारा भविष्य बर्बाद हो जाता है और फिर वह कहीं पुलिस की गोली का शिकार हो जाता है या फिर  अपने मित्रों की साजिश का शिकार हो कर मरता है. अभी अपराध में कमी नहीं है लेकिन सरकार की इन नीतियों के चलते अपराध का ग्राफ कहाँ पहुँचता है इसको अभी देखना बाकी है.
                      आज वरिष्ठ नागरिक घर में सुरक्षित नहीं है, क्यों नहीं है? इसके पीछे समाज में मची हुई पैसे की तंगी है, कभी कोई मजदूर बन कर आया और मार कर सब लूट ले गया. वरिष्ठ नागरिक ही क्यों ? गृहिणी जो घर में अकेले रहती हें वे कब सुरक्षित है? इसके पीछे क्या कारण है ? इसके बारे में बताने की जरूरत नहीं है. बैंक से निकल कर घर जाते हुए कितने लोग लूट लिए जाते हें किस लिए? या तो फिर अय्याशी के लिए या फिर मजबूरी में घर के खर्चों को पूरा करने के लिए. जो अपराध करते हें वे हालात के मजबूर ही होते हें और देश की जो स्थिति अब आगे होने वाली है उससे देश चलने वाले वाकिफ नहीं है क्योंकि उनकी दृष्टि से देश में जो गरीबी का पैमाना है उससे तो अभी देश में बहुत खुशहाली है.
                              ये तो निश्चित है कि सरकार की इस नीति से जहाँ पर उसको न जन से मतलब है और न जनमत से देश में एक बहुत बहुत बड़ा परिवर्तन होने वाला है , जिसकी पूरी तरह से सत्ता दल ही जिम्मेदार होगा . इस लोकत्रांतिक देश का एक नया स्वरूप अब जो होने वाला है उसको रोकने  के लिए हम अगर सक्रिय न हुए तो फिर हमारा और हमारे समाज का स्वरूप ही बदल जाएगा.

6 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    गणेशचतुर्थी की हार्दिक शुभकामनाएँ!

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  2. मनमोहन सिंह को अब ये पता चल गया है की उनकी विदाई निश्चित है, इसलिए उन्होंने देश के साथ भरपूर दुश्मनी निकालने की ठान ली है ! अब विदेशी कंपनियों को दी घुसपैठ की इज़ाज़त ! FDI को मंज़ूरी ! गरीबों के पेट पर लात और देश पर कब्जा करने वाली अमीर कंपनियों को हरी झंडी !

    I tried to post this comment on your post but there is something wrong so I'm unable to post it there.
    -- Dr. Divya Srivastava

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  3. एक कड़वे सच को उजागर करता लेख

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  4. हर ओर से निराश हो लोग अपराध की दुनिया में कदम रख देते हैं ....यह आपके लेख से बखूबी पता चल रहा है .... विचारणीय लेख

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ये मेरा सरोकार है, इस समाज , देश और विश्व के साथ . जो मन में होता है आपसे उजागर कर देते हैं. आपकी राय , आलोचना और समालोचना मेरा मार्गदर्शन और त्रुटियों को सुधारने का सबसे बड़ा रास्ताहै.