आज सरदार पटेल के जन्मदिन को राष्ट्रीय एकता दिवस के रूप में मनाने की घोषणा बहुत सुखदाई लगी । सरदार वल्लभभाई पटेल राष्ट्रीय एकता के अदभुत प्रणेता थे, जिनके ह्रदय में भारत की आत्मा बसती थी। वास्तव में वे भारतीय जनमानस अर्थात किसान की आत्मा थे। स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी एवं स्वतन्त्र भारत के प्रथम गृहमंत्री सरदार पटेल एक शांत ज्वालामुखी थे। वे नवीन भारत के निर्माता थे। उन्हे भारत का ‘लौह पुरूष‘ कहा जाता है।
वह व्यक्तित्व जो इस भारत के शुरूआती निर्माण में पूरे मन से समर्पित रहा और गृह मंत्री जैसे महत्वपूर्ण पद पर रह कर भी उनके हाथ अपने वचन के कारण बंधे रहे और जहाँ जहाँ विवश पाये गए या उनके निर्णयों को गांधीजी या नेहरूजी के कारण दरकिनार कर दिए गए वे आज भी नासूर बन कर रिस रहे हैं।
सरदार पटेल ने भारत विभाजन स्वीकार किया था क्योंकि पूरे भारत के हाथ से जाने का भय सामने खड़ा दिख रहा था - नवंबर,1947 में संविधान परिषद की बैठक में उन्होंने अपने इस कथन को स्पष्ट किया, मैंने विभाजन को अंतिम उपाय के रूप में तब स्वीकार किया था, जब संपूर्ण भारत के हमारे हाथ से निकल जाने की संभावना हो गई थी। वे गांधीजी और नेहरूजी की बात का सम्मान करते थे लेकिन विभाजन के समय पाकिस्तान को ५५ करोड़ रूपयें देने के निर्णय के सर्वथा विरोधी थे और तत्कालीन सरकार ने इसको अस्वीकार भी कर दिया था लेकिन गांधीजी के अनशन ने सरकार के इस फैसले को पलटवाया गया था। उस समय सरकार को अपने विवेक से निर्णय लेने का अधिकार न था। गांधी जी का अंधानुकरण ही सबसे घातक सिद्ध होने वाला था ये बात सरदार पटेल को आभास दे गयी थी और उन्होंने कहा था - 'अब मैं इस शासन में न रह सकूँगा। '
वे एक समर्थ और जागरूक गृहमंत्री थे और देशहित में उनके विचारों को कितना स्वीकार किया गया ये बात और है। शायद उस समय हम सिर्फ और सिर्फ आजादी को गांधी जी और नेहरूजी द्वारा दिलवाई गई नियामत समझ रहे थे।
जब चीन के प्रधानमंत्री चाऊ एन लाई ने नेहरू को पत्र लिखा कि वे तिब्बत को
चीन का अंग मान लें तो पटेल ने नेहरू से आग्रह किया कि वे तिब्बत पर चीन
का प्रभुत्व कतई न स्वीकारें, अन्यथा चीन भारत के लिए खतरनाक सिद्ध होगा।
नेहरू नहीं माने बस इसी भूल के कारण हमें चीन से पिटना पड़ा और चीन ने हमारी
सीमा की 40 हजार वर्ग गज भूमि पर कब्जा कर लिया। वह चीन १९६२ में जिस रूप में हमारे सामने खड़ा हुआ वह हमारी उस भूल का ही परिणाम था और तब से लेकर आज कितने नापाक इरादे हमें देखने को मिलते ही रहते हैं।
बहुत जल्दी चले गए थे सरदार पटेल अगर देश को उनका साथ कुछ और बरसों तक मिल गया होता तो शायद देश का स्वरूप कुछ और ही होता। उनके जन्मदिन पर कुछ लिखने का मन था सो लिखा।
लौह के समान ही दृढ व्यक्तित्व था पटेल का। उनके विषय में जानकारी साझा करने के लिए आभार एवं साधुवाद !
जवाब देंहटाएंसटीक रचना. सरदार साहब को नमन
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