बड़ा भयावह शब्द है "मौत" फिर भी इस जीवन का एक शाश्वत सत्य और सुखद अंत है। हाँ यह जरूर है कि इसके सुखद और दुखद होने पर उस व्यक्ति के ऊपर निर्भर करता है जिसने इसको वरण किया है।
पिछले दिनों "दया मृत्यु" पर चर्चा चली। सर्वोच्च न्यायालय ने इसके लिए अनुमति नहीं दी। उस व्यक्ति के लिएजो खुद बोल न सके, उठ, चल, सोच और खा भी न सके , उसके जीवन का अधिकार दूसरों के हाथ में सौप दिया।अगर वे चाहें तो उसे मुक्ति दी जाय। जो नहीं चाहते हैं उन्हें जबरन मुक्ति दे दी जाती है । कभी आदमी दे देता है औरकभी कोई और। घर से निकल कर इंसान अगर शाम घर आ जाये तो समझिये कि जिन्दगी का एक दिन बचगया। हर इंसान बहुत सुरक्षित ढंग से जीना चाहता है। हर शरीफ इंसान। वे जो इसके खिलाडी हैं वे तो अगर रोजकिसी को इस अंजाम तक पहुंचा कर खुश होते हैं तो उनकी मौत तो समाचार ही बन कर रह जाती है।पहले कहा जाता था कि जिन्दगी और मौत ईश्वर के हाथ में होती है लेकिन अब यह काम भी हम इंसानों ने ही लेलिया है। कब किसको कहाँ और कैसे ऊपर भेजना है ? इसकी सौदा भी होती है और इसके लिए ठेका भी दियाजाता है। जब भगवान की सारी सत्ता इंसान ने ले ली है तो फिर यह भी सही। ये बात और है कि उस प्राणी को गर्भसे लेकर जमीन तक कब मारना है ये बताना पड़ेगा।बाकी काम नीचे वाले ही कर देंगे क्यों ऊपर वाले को परेशानकिया जाय कि यमराज अपने गुर्गों को भेजें और चित्रगुप्त जी लिख कर लेखा जोखा देखे और फिर मौत का तरीकानिश्चित किया जाय। एकदम रेडीमेड तरीका।
बतलाइए कैसे ठेका देना है? क्योंकि प्राणी तो गर्भ से ही इस काबिल हो जाता है कि उसको मौत बख्श दी जाये।पहली स्टेज तो यही है कि प्राणी को गर्भ से बाहर आने के पहले ही चलता कर दिया जाय। ऊपर से धकेला गया किनीचे जा और नीचे वाले ने फिर ऊपर का रास्ता दिखा दिया। ये त्रिशंकु वाली स्थिति बहुत बुरी होती है। जब किसीतरह से बाहर आ ही गए तो फिर ये उन पर निर्भर करता है कि वे आपको अपनाने के लिए तैयार हैं या नहीं , नहींतो किसी कचरा पेटी, सड़क के किनारे , रेल की पटरी पर या किसी नाली या नाले में डाल दिया जाएगा और आपबहुत शरीफ आदमी हैं और। बहुत ही नियम और क़ानून से चलने वाले। हैं हमें त्रफ्फिक नियमों का पालन करते हैंमानव मनाने मानने क्या गया है? मेरी सत्ता की चुनौती देने लगा है।
यहाँ से बचे तो निर्भर करता है कि आप कैसे घर में जन्मे हैं - खुदा न खास्ता आप अमीर परिवार के सदस्य है तोबचपन और जवानी की जरूरत नहीं होती कोई फिरौती वाला आप को उठा लेगा और फिर हालातों पर निभर करताहै कि वह आपको छोड़ दिया जाय या मार दिया जाय के लिए टॉस करता है और फिर निर्णय लेता है। मिल गयी तोठीक है नहीं तो पहले ही टपका दिया। कैसे टपकाना है ये उसकी मर्जी है। ऊपर वाला सिर्फ देखता रहता है कि कामठीक से अंजाम दिया गया या नहीं।
अगर प्राणी स्त्री है तो फिर बचपन से लेकर जवानी तक कभी भी वो मारी जा सकती है। बचपन कोई नहीं देखता , न उम्र की कोई सीमा देखता है maarane vala कैसे और किस गति से मारेगा ये उसका काम है। वह कुकर्म औरदुष्कर्म सब कुछ कर सकता है और फिर मौत इनाम में दे सकता है। इसके लिए बस स्त्री लिंग होना ही काफी है।कुछ हरकारे सिर्फ ऐसे ही काम करते हैं।
अगर इनकी नजर से बच गयी और आपकी नजर में कोई बस गया तो फिर जरूरी नहीं कि वो आप को मिल हीजाय। इसके लिए हैं न - "ऑनर किलिंग " वह तो आपको कोई भी दे सकता है , आपके अपने घर वाले , दूसरे केघर वाले या फिर किराये के लोग। इसके लिए कोई सीमा निर्धारित नहीं की है भगवान ने। हाँ कैसे मिलेगी. ये दूसरेपर ही निर्भर करती है।
इस के लिए एक और तरीका निश्चित है - हाँ अगर आप बहुत ही नियम और क़ानून को मनाने वाले हो तो भी जरूरीनहीं कि आप कि जिन्दगी सुरक्षित है क्योंकि कोई भी बिगडैल नबाव अपनी बाइक या गाड़ी से लहराते हुए चले आरहे और ठोक दिया आपको तो आप तो स्वर्गीय की श्रेणी में आ गए और बिगड़े नवाब के बड़े बाप तो बैठे ही हैंउनको बचाने के लिए. मौत का ये तरीका बड़ा ही खतरनाक है क्योंकि इसमें बेकुसूर ही इंसान ऊपर भेज दियाजाता है. फिर कुछ तो हमारी सरकार मेहरबान भी हो जाती है. महानगरों कि श्रेणी में आने वाले शहरों में चलेजाइए. कहीं भी सड़के आपको इतनी खुदी हुई मिल जाएँगी कि अगर आप अपनी सवारी में हैं तो फिर कोई बातनहीं, नहीं तो झूला हिंडोला सबका आनंद देते हुए कहीं भी बस पलट सकती है, टेम्पो पलट सकती है और अगर बचभी गए तो फिर कोई भी ट्रक चालाक अंगूर की बेटी के नशे में आपको चलता करने में जरा सी भी कोताही नहींकरेगा. वैसे आजकल यही तरीका सबसे अधिक लोकप्रिय और प्रचलित हो रहा है क्योंकि रोज ही दो चार इस तरहसे मौत का वरण करते ही रहते हैं.
अब एक ही रूप और रह गया है, वह है आत्महत्या का - दुनियाँ में आये हैं और मनचाहा नहीं मिला तो सबसेसस्ता और सुलभ उपाय है कि फाँसी लगा लो, मन आये तो सुसाइड नोट छोड़ दो और वजह बता कर चले जाओपुलिस और घर वालों को आसानी रहेगी और नहीं तो फिर दौड़ते रहेंगे घर वाले पुलिस तो सिर्फ दौड़ाने के लिए होतीहै. इसके लिए तो चुनने वाले आप ही होते हैं, फाँसी लगानी है, आग लगा कर मरना है, या फिर रेल कि पटरी परलेट कर मरना है. ऊँची इमारत के ऊपर चढ़ कर कूद कर मरने के भी किस्से आम होते हैं. हाँ अगर आप बहुतहैसियत वाले हैं तो अपनी लाइसेंस धारी बन्दूक या पिस्तौल से भी दुनियाँ से विदा हो सकते हैं.
ये अब आपकी मर्जी है कि इससे अधिक मौत के रूप हों तो सूचित करें इस लिस्ट में बढ़ा लिए जायेंगे ताकि अगरये विषय परीक्षा में शामिल कर लिया जाय तो सारी जानकारी एक ही स्थान पर मिल सके.
स्वरूप तो एक ही है, निष्कर्ष भी एक।
जवाब देंहटाएंतरीका कोई भी हो निष्कर्ष तो एक ही है.और वो हमारे हाथ में नहीं.
जवाब देंहटाएंज़िन्दगी अपने साथ एक ही सच्चाई लेकर आती है ,वो है मौत !
जवाब देंहटाएंमौत ki baat karte hue aapne samaaj के kai chahre bhi dikha diye !
मृत्युमाँ अमृतं गमय . राम नवमी की शुभकामनाये .
जवाब देंहटाएंमौत को वरदान था कि वो सीधे सीधे नहीं आएगी ..कोई बहाना ले कर आएगी ...तो अब बहुत से रूप धर लिए हैं ...
जवाब देंहटाएंजीवन के अंतिम सत्य से परिचय करता आलेख...
जवाब देंहटाएंजीवन का सबसे बड़ा सच सिर्फ़ मौत ही है ....
जवाब देंहटाएंlastly jana hi hoga............!!
जवाब देंहटाएंmarna to sabhi ko hai ek din.par jo kar gaye woh maayne rakhta hai.maut ka ek din mukarrar hai neend kyon raat bhar nahin aati.isliye hamesha achha socho achha karo baki bhagwan ki marji.madhyam koi bhi ho par hota prabhu ki marji se hai.ek videshi ke ek ghante main 4accident hue woh bhi car aur truck crash ke par sirf kharonche aayee.isko hum ittephak nahin kah sakte.jeevan ke satya ko avgat karane ke liye dhanyavaad.
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