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रविवार, 17 अप्रैल 2011

रगों में बहता भ्रष्टाचार !

अन्ना हजारे की भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम में सारा देश एक साथ खड़ा दिखाई दिया। लगा कि धरा वीरों से खाली नहींहै सिर्फ उनको दिशा चाहिए। बहुत अच्छा लगा - अभी शेष है अन्याय के विरुद्ध लगने की भावना और उस आंधी मेंभ्रष्टों की संकलित सरकार भी झुकने के लिए तैयार हो गयी। हमने सोचा कि हमारी जीत हो गयी लेकिन किसकोण से हम अपनी जीत का आकलन करेंगे?
भ्रष्टाचार आज सबकी ( अपवाद भी हैं उनको इसमें शामिल नहीं किया गया है) नसों में बहने वाले रक्त में घुला हुआहै। भ्रष्टाचार सिर्फ बड़ी बड़ी हस्तियों की बपौती नहीं है इसके लिए तो फैक्टरी या ऑफिस के गेट पर बैठा हुआचौकीदार भी दाँत निकाले बैठा है कि कुछ मिले तो अन्दर जाने को मिलेगा। सारे नियमों को ताक पर रखकर रक्षासंस्थान जैसे स्थानों पर भी प्रवेश मिल जाता है।
ऊपर वाले अगर करोड़ों खाते है तो जैसे जैसे नीचे की ओर क्रम चलता है उसकी रकम कम होती जाती है। किसी भीसरकारी या निजी संस्थान के तंत्र में बहुत बारीकी से झांक कर देखा है। जो पद पर बैठे हैं -- वे तो पूरा पूरा लाभउठा ही रहे हैं।
हमारी लड़ाई भ्रष्टाचार के खिलाफ शुरू हुई थी फिर लोकपाल बिल पर केन्द्रित हो गयी और फिर दूसरी लड़ाई पीछेरह गयी . एक से निपट लिया जाय फिर दूसरे के खिलाफ मोर्चा बनाया जाएगा। इस बात को मैं निःसंकोच रूप सेकह सकती हूँ कि आज हमारी रगों में भ्रष्टाचार खून के साथ घुल कर बह रहा है। जो स्वयं भ्रष्ट नहीं है वे किसी किसी तरीके से इसके शिकार हो रहे हैं और उससे निपटने के लिए छोटे स्तर पर १०० या ५० रुपये खर्च करके कामनिकाल लेते हैं अगर नहीं निकालें तो फिर कहाँ जाएँ? उनकी कौन सुनेगा?
क्या कोई एक नागरिक शपथ उठा कर ये कह सकता है कि वह कभी कभी और कहीं कहीं इस भ्रष्टाचार काशिकार नहीं हुआ है। अगर उसने इसको अपनाने से इनकार कर दिया तब भी वह अपने उस अधिकार से वंचितकर दिया गया जिसका कि वो हकदार था। अगर ऐसा नहीं तो फिर वह अपने काम के लिए दो दिन के स्थान परमहीनों और सालों दौड़ता रहा आख़िर शिकार तो वह भी हुआ। हम खुद भ्रष्टाचार में लिप्त सही लेकिन हम उसकेत्रसित तो अवश्य ही हुए। जिनके पास पॉवर है वे अपनी पॉवर से इस में आगे बढ़ रहे हैं और जो कुछ भी नहीं है - एक मेहनतकश को लें , एक रिक्शा वाला अपने रिक्शे के लाइसेंस के लिए नगरपालिका में चक्कर लगाता है औरअगर वह कुछ देता नहीं है तो इसी तरह से चक्कर लगाता ही रहेगा। उसके पास कौन सी थाती रखी होती है कि वहदे लेकिन उससे भी लेने में लोग संकोच नहीं करते और वह अगर दो दिन रिक्शा नहीं चलाएगा तो उसके बीवीबच्चे भूखे मरने लगेंगे। वह देना ही एकमात्र विकल्प समझ कर लाइसेंस हाथ में लेकर खुश हो लेता है। उसेभ्रष्टाचार नहीं पेट की भूख दिखाई देती है।
असंगठित मजदूर अगर बाजार में खड़ा है तो शायद उसके खरीदार उसे मिले लेकिन अगर किसी ठेकेदार से जुड़जाता है तो उसको काम मिल जाता है और वह ठेकेदार उसको निर्धारित मजदूरी से भी कम देता है लेकिन उसकोकुछ दिन के लिए रोजी का भरोसा तो हो जाता है। अगर महिलायें मजदूरी करती हैं तो उन्हें पुरुषों से कम भुगतानदिया जाता है। ये सब क्या है? ये सब बेचारे भ्रष्टाचार नहीं जानते लेकिन उनको तो पेट पलने की मजबूरी दिखाईदेती है। जब वह रोज कमा कर लाएगा तभी उसके घर में चूल्हा जलेगा।
सड़क के किनारे गाँव से लेकर सब्जी बेचने वाले भी इस का शिकार होते हैं। मीलों दूर से सिर पर सब्जी की गठरीलेकर आने वाले सड़क के किनारे बैठने के लिए भी भुगतान करते हैं उनसे गरीब होते हैं वे लोग जो उनकीमेहनत की कमाई से भी लेकर चले जाते हैं। ये सरकारी लोग नहीं होते ये होते हैं दबंगई करने वाले लोग - जो सड़कऔर फुटपाथ को अपनी निजी संपत्ति समझ बैठते हैं।
मैंने नीचे स्तर से इस लिए शुरू किया की भ्रष्टाचार हमारी रगों में खून के साथ मिलकर बह रहा है। क्या कोई ऐसायन्त्र होगा जो कि हमारी रगों में बहते हुए इस भ्रष्टाचार को निकाल कर बाहर कर सकेगा। छोटे स्तर से लेकर बड़ेस्तर तक भ्रष्टाचार की संजीवनी लिए बिना इंसान जीवित कहाँ रह पता है? हाँ हम भी उतने ही दोषी हैं जो इससंजीवनी को उन्हें दे रहे हैं क्योंकि हमें अगर व्यवसाय है तो उससे अपने बाल बच्चों का पेट भरना है और अगरनौकरी है तो फिर काजल की कोठारी में साबुत बचकर भी कैसे सकते हैं? बड़े बड़े घोटाले और करिश्मे तोफाइलों के बीच में दब कर दम तोड़ देते हैं , छोटों की गिनती कहाँ तक करेंगे? कोई खुद कहाँ कुछ करता है सारेकाम तो उनके इशारों पर ही होता है फिर कौन पकड़ा जाय और कैसे? इस रक्त में बहते हुए भ्रष्टाचार को कैसे अलगकिया जाय?
एक पी डब्ल्यू डी का इंजीनियर एक आलीशान बंगले का मालिक होताहै - इसमें कितना भ्रष्टाचार से कमाया धनलगा है इसका आकलन कैसे होगा?
सरकारी प्रतिष्ठानों में मार्च और अप्रैल के महीने में रूम हीटर के आर्डर दिए जाते हैं और सप्लाई भी होती हैकिसलिए? १०० रुपये की चीज के लिए ८०० रूपये का भुगतान किया जाता है। किसलिए? क्या इस प्रतिष्ठान मेंरहने वाले इतने नादाँ होते हैं कि रूम हीटर का उपयोग कब होता है और एक रूम हीटर की कीमत क्या होती है? इसबात से वाकिफ नहीं होते हैं। क्या ऊपर से लेकर नीचे तक कोई भी आम आदमी की तरह से जीवन नहीं गुजरता हैकि उन्हें रोजमर्रा की चीजों की कीमत का पता भी हो।
निजी प्रतिष्ठानों में भी खाने के तरीके खोज कर बैठे हैं। मुझे तो बड़े बड़े अस्पतालों का ही अनुभव है। अपने दिएगए सामान के बदले जब आप चैक लेने जाते हैं तो तो चैक देने वाले को उसमें से हिस्सा चाहिए. आपको अगरअपना भुगतान चाहिए तो दें नहीं तो अगली बार चैक आपको महीने बाद भी नहीं मिलेगी. ऐसे रिश्वत कोई हाथमें नहीं लेता बल्कि उनके छद्म नाम से खाते खुले होते हैं और आपको निर्देश होगा कि इतनी रकम इस खाते मेंजमा कर दें . वह भी आपकी चैक के राशि के अनुसार ही निश्चित की जाएगी.
इतने सारे उदाहरणों के बाद भी क्या हम कह सकते हैं कि भ्रष्टाचार हमारी रगों में बहते हुए खून में शामिल नहीं होचुका है। फिर हम इससे कैसे निपट सकते हैं? इसके लिए अलग से सोच पैदा करनी होगी। सभी इस बात को सोचेंऔर फिर अमल करें शायद हम अपने मकसद में सफल हो जाएँ।

9 टिप्‍पणियां:

  1. सच कहा आपने, हर जगह स्थिति खराब है।

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  2. सब बदलेगा..मगर धीरे धीरे...बस, कोशिश जारी रहना चाहिये.

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  3. हम चारा और ताबूत के घोटालों के युग में रह रहे है . बदलाव निहायत ही जरुरी है .

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  4. सच कहा आपने, हर जगह स्थिति खराब है।

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  5. सही बात है ...हर जगह बिना कुछ लिए दिए काम निकालना कठिन है ...शरुआत हुई है देखें कहाँ तक सफल होते हैं

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  6. लोकपाल बिल भ्रष्टाचार मिटाने की एक महत्वपूर्ण सीढ़ी होगी , यदि यह अन्ना हजारे के सपनों की तरह पूर्णरूपेण लागू हो गया तो !

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  7. भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ाई बहुत धैर्य और संयम से लड़ना होगा।

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  8. पूर्णरूपेण बदलाव होगा, धैर्य और संयम जरुरी है .

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