"क्षिति जल पावक गगन समीरा"
ये पांच तत्त्व है जिनसे मिलकर हमारा शरीर बना है , इससे ही हमारा जीवन चलता है और वापस इन्हीं में उसको विलीन हो जाना है। धरती माँ इसको ऐसे ही नहीं कहा जाता है, ये माँ की तरह से हमको पालती है लेकिन कहा जाता है न कि एक माँ अपने कई बच्चों को पाल लेती है लेकिन जैसे जैसे उसके बच्चे बढ़ते जाते हैं, माँ की दुर्गति सुनिश्चित हो जाती है। यही तो हो रहा है न, मानव जनसंख्या बढती जा रही है और पृथ्वी का विस्तार तो नहीं हो रहा है। मानव ये भी नहीं सोच पा रहा है कि हम अपनी बढती हुई जनसंख्या के साथ कहाँ रहेंगे? उसने विकल्प खोज लिया और उसने तो बहुमंजिली इमारतें बनाने की पहल शुरू कर दी और बसने लगे बगैर ये सोचे कि इस धरा पर बोझ चाहे हम एक दूसरे के ऊपर चढ़ कर रहे या फिर अकेले बराबर बढेगा।
ये पांच तत्त्व है जिनसे मिलकर हमारा शरीर बना है , इससे ही हमारा जीवन चलता है और वापस इन्हीं में उसको विलीन हो जाना है। धरती माँ इसको ऐसे ही नहीं कहा जाता है, ये माँ की तरह से हमको पालती है लेकिन कहा जाता है न कि एक माँ अपने कई बच्चों को पाल लेती है लेकिन जैसे जैसे उसके बच्चे बढ़ते जाते हैं, माँ की दुर्गति सुनिश्चित हो जाती है। यही तो हो रहा है न, मानव जनसंख्या बढती जा रही है और पृथ्वी का विस्तार तो नहीं हो रहा है। मानव ये भी नहीं सोच पा रहा है कि हम अपनी बढती हुई जनसंख्या के साथ कहाँ रहेंगे? उसने विकल्प खोज लिया और उसने तो बहुमंजिली इमारतें बनाने की पहल शुरू कर दी और बसने लगे बगैर ये सोचे कि इस धरा पर बोझ चाहे हम एक दूसरे के ऊपर चढ़ कर रहे या फिर अकेले बराबर बढेगा।
उसके गर्भ को हमने खोखला करना शुरू कर दिया। इतना दोहन किया कि भू जल स्तर बराबर नीचे जाने लगा और हमने मशीनों की शक्ति बढ़ा कर पानी और नीचे और नीचे से खींचना शुरू कर दिया। परिणाम ये हुआ कि जब पृथ्वी के ऊपर पानी की बर्बादी बढ़ रही है तो फिर नीचे जल कहाँ से आएगा? हम अपना आज देख रहे हैं और कल जो भावी पीढ़ी का होगा उसके लिए क्या छोड़ कर जा रहे हैं? उस भविष्यवाणी कि तीसरा विश्वयुद्ध पानी के लिए होगा को जीवंत करने के विकल्प। उसके विषय में हम अभी भी सोचने की जरूरत नहीं समझते हैं। जो समझते हैं और इस विषय में किसी को सजग करने का प्रयास करते हैं तो ये उपदेश अपने पास ही रखें , क्या हम ही अकेले बर्बादी कर रहे है? उन्हें रोकिये जो बहा रहे हैं। ये किसी एक की जिम्मेदारी नहीं है कि उसका सारा फायदा उसी को मिलने वाला है। ये शिक्षित समाज है और ऐसा नहीं है कि इन चीजों से वाकिफ नहीं है।हम सब जानते हैं लेकिंन जान कर अनजान बने रहते हैं और कल किसने देखा की तर्ज पर जी रहे हैं।
धरती कुछ नहीं कहती लेकिन क्या उसकी क्रोध की अग्नि से बढ़ता उसका तापमान हमारे लिए घातक नहीं बनता जा रहा है। तप्त पृथ्वी की ज्वाला ने मौसम के क्रम को बिगाड़ कर रख दिया है और इसी लिए ये साल के दस महीने में तपती ही रहती है। अब तो इतनी भी बारिश नहीं होती कि उसका आँचल भीग जाये और उसको तपन शांत हो जाए। नदियाँ अपने किनारे छोड़ने लगी हैं और कुछ तो विलुप्त होने की कगार पर आ गयी हैं।
भूकंप आया तो हम सिहर गए, उसके वैज्ञानिक कारणों की खोज में लग गए किन्तु खुद को तब भी नहीं संभाल पाए। धरती का संतुलन नहीं बनेगा तो भूकंप आना सुनिश्चित है। समुद्र में सुनामी आई और मानव उस समय खिलौने की तरह बह गए लेकिन जो बह गया वह उसकी नियति थी हम बच गए और हम इससे कुछ सीख भी नहीं पाए । फिर अपने ढर्रे पर चलने लगे।
जब उर्वरक नहीं आये थे , तब भी ये धरती सोना उगलती थी और फसलें लहलहाती थी। सब का पेट भी भरती थी। हम उन्नत उपज की चाह में उर्वरकों को ले आये और धरती को बंजर बना दिया। क्या मिला? फसल खूब होने लगी लेकिन खड़ी फसल में बेमौसम की आंधी, बरसात और ओले की वृष्टि ने सब कुछ तबाह कर अपने साथ हो रहे खिलवाड़ का एक सबक दे दिया।
जंगल पर जंगल उजड़ते जा रहे हैं और कागजों में सारी सुरक्षा बनी हुई है। वृक्षारोपण के नाम पर बहुत काम हो रहा है, लेकिन एक बार लगाने के बाद कितने बचे इसकी किसी को चिंता नहीं है। कहाँ से शुद्ध वायु और वर्षा की उम्मीद करें? पेड़ लगाने की भी सोची जाती है तो वह जिसे बाद में बेच कर धन कमाया जा सके। यूकेलिप्टस जैसे पेड़ जो पानी भी सोखते हैं और इंसान के लिए लगे हुए न छाया देते है और न ही फल।
अपनी कमियों का बखान बहुत हो चुका है अब अगर हम स्वयं संयमित होकर अपना जीवन बिताने की सोचें तो शायद इस धरती माँ को बचाने की दृष्टि में एक कदम बढ़ा सकते हैं। हम किसी को उपदेश क्यों दें? हम सिर्फ अपने लिए सोचें और अगर कोई पूछे तो उसको भी बता दें की अगर आप ऐसा करें तो हमारे और हमारी भावी पीढ़ी के भविष्य के लिए बहुत अच्छा होगा।
जल का प्रयोग अपनी जरूरत के अनुसार ही करें। अगर सब्मार्सिबिल लगा ही रखा है तो उसका सदुपयोग करें न कि दुरूपयोग करते हुए उससे घर की दीवारें और सड़क धोने में उसको बर्बाद न करें। घर के सभी नलों को सावधानी से बंद रखें उनसे टपकता हुआ पानी भी बर्बादी की ही निशानी है। जल ही जीवन है इस बात को हमेशा याद रखें।
प्रदूषण की दृष्टि से भी पृथ्वी को सुरक्षित रखना होगा। हमारी आर्थिक सम्पन्नता बढती चली जा रही है और वह इस बात से दिखाई देती है कि घर के हर सदस्य के पास गाड़ी का होना। उससे उत्सर्जित होने वाली गैस के बारे में किसी ने नहीं सोचा है कि ये पर्यावरण को कितना विषैला बना रहा है। वायु प्रदूषण हमको रोगी और अल्पायु बना रहा है। बढाती हुई गाड़ियों की संख्या से ध्वनि प्रदूषण को नाकारा नहीं जा सकता है। इस लिए गाड़ियों का उपयोग करने में सावधानी बरतें । एक गाड़ी में दो लोगों का काम चल सकता है तो उसको उसी तरह से प्रयोग करें।एक घर में कई कई ए सी का होना कितना प्रदूषण का कारण बन रहा है ? लोग नहीं जानते ऐसा नहीं है बल्कि अपने जीवन स्तर को ऊँचा दिखाने के लिए भी ऐसा किया जा रहा है।
वृक्ष पृथ्वी का श्रंगार भी हैं तो उनको अगर रोपें तो उनको बड़ा होने तक देखें भी ताकि ये पृथ्वी पुनः हरी भरी हो सकें।
प्रकृति के साथ जीना होगा।
जवाब देंहटाएंbadhiya jaankari mili
जवाब देंहटाएंविश्व पृथ्वे दिवस पर आपने एक विचारोत्तेजक आलेख प्रस्तुत कर धरती पर किए जा रहे अत्याचार के प्रति सचेत करने का महत्वपूर्ण काम किया है।
जवाब देंहटाएंwaqt badla hai di, ab log jaagrook ho rahe hain...:)
जवाब देंहटाएं-------- यदि आप भारत माँ के सच्चे सपूत है. धर्म का पालन करने वाले हिन्दू हैं तो
जवाब देंहटाएंआईये " हल्ला बोल" के समर्थक बनकर धर्म और देश की आवाज़ बुलंद कीजिये...
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