डॉ अरविन्द मिश्रा :
जिन्दगी में चुनौतियाँ कहाँ से और किस रूप में शुरू हो जाएँ ये कोई नहीं जनता है लेकिन परिस्थितियां कितनी भी विषम क्यों न हों अगर धैर्य और संयम से काम लिया जाय तो उसके लिए बहुत से रास्ते खुले होते हें। हम चुनौतियों के लिए बने है और वे हमारी परीक्षा लेने के लिए । हम उसमें सफल तभी होंगे जब हमारा मनोबल ऊँचा बना रहे । आज जानिए डॉ अरविन्द मिश्रा जी से उनके संघर्ष की गाथा --
मनुष्य का पूरा जीवन ही संघर्षों और चुनौतियों से भरा है -शोले का एक बड़ा ही
सटीक डायलाग है -"*जो डर गया समझो मर गया"* ..यह जिन्दगी जीने का भी मन्त्र
हैं -चुनौतियां आती ही हैं डराने के लिए ..मुझे ऐसे तमाम लोगों खासकर युवाओं
को लेकर काफी दुःख है जो जीवन के *'कभी खुशी कभी गम'* वाले इस खेल को खेल
भावना से नहीं ले पाते और गलत रास्तों को अख्तियार करते हैं और थक हार कर
कभी आत्महत्या तक का निर्णय ले लेते हैं ...
विरले ही होते होंगें जिन्हें जीवन में संघर्ष का सामना न करना होता होगा
..दैहिक दैविक और भौतिक कष्टों से किसी की भी निवृत्ति नहीं है ....चाहे वह
कोई धन कुबेर हो या फटेहाल .... मगर मनुष्य अपनी अजेय जिजीविषा ,आशावादी
दृष्टिकोण से इनसे छुटकारा पा सकता है ....जीवन जीने के कुछ फलसफे, कुछ
सूत्र इनमें बहुत मददगार हो सकते हैं ...........
मैं अपनी कहूं तो बचपन से आज* पचपन* तक अनेक ऐसी स्थितियां आयीं जिनसे मुझे
जूझना पड़ा है -मगर जीवन के प्रति एक अटूट आशा और विश्वास के चलते इनसे निजात
पाता आया हूँ ...मैं जब सातवीं में था तभी मुझे एक बार के बुखार और सर्दी
खांसी के चलते पहला एंटीबायोटिक इंजेक्शन दिया गया था -शायद पेंसिलिन था .मैं
ठीक तो हो गया मगर जीवन का एक अंधियारा पक्ष शुरू हो चुका था ..मुझे अक्सर
सर्दी जुकाम और उसके बाद सांस फूलने का दौरा शुरू हो गया ...हाई स्कूल और इंटर
मीडिएट आते आते मेरी स्थति बद से बदतर होती गयी ....परिवार और शिक्षकों तक ने
मुझे परीक्षा देने से रोका ..मगर मुझे यह भय था कि अगर मैंने ऐसा कुछ निर्णय
ले लिया तो जिन्दगी की लड़ाई ही हार जाऊँगा ....
यह वह वक्त था ..सच बताऊँ जब मैंने एक दो बार आत्महत्या की भी सोची ..पिता जी
ने कहाँ कहाँ इलाज नहीं कराया ...गाँव में हम रहते थे..आये दिन बनारस ,दिल्ली
जांच के लिए जाना होता था ...कोई डस्ट एलर्जी बताता तो कोई दमा तो कोई और
कुछ ....दमा शब्द सुनकर मैं सिहर जाता था ..उन दिनों और आज भी यही कहावत
प्रचलित है कि *दमा दम के साथ जाता है... *मैं सोचता क्या ऐसे ही घुट घुट कर
जीना होगा? ऐसे जीने से फिर फायदा ही क्या? मगर मुझे लगता था ..नहीं... नहीं
...मेरा जन्म ऐसे ही घुट कर दम तोड़ने के लिए नहीं हुआ होगा ....एक सकारात्मक
विचार सारी नकारात्मकता पर हावी रहता ..
फिर एक दिन एक चिकित्सक ने मुझसे स्पष्ट कहा - "*यह दमा ही है .*..मगर अब
दवाएं उपलब्ध हैं ..आप दारा सिंह की तरह अखाड़े में कुश्ती तो नहीं लड़
पायेगें... किसी मैराथन में हिस्सा नहीं ले पायेगें मगर एक सामान्य जिन्दगी तो
बितायेगें ही.... ...मतलब शारीरिक श्रम ज्यादा नहीं ...और मानसिक भी ज्यादा
नहीं -एक संतुलन रखना होगा ...अब कितने लोगों को दमा है ..स्वामी विवेकानंद
को था ....अमिताभ को है (जो उन दिनों बुलंदी पर थे ) ...निश्चिंत हो जाईये
..जीवन से ज्यादा अपेक्षायें मत पालिए....और निराशा भी मत पालिए ...एक सहज आम
नागरिक की तरह जिन्दगी गुजारिये.. ...." ...
और वो चिकित्सक मेरा मसीहा बन गया ....मैं जीवन की फिलासफी समझने लगा था
...फिर तो श्रीमदभगवतगीता ने बहुत हौसला और आसरा दिया है .....उसकी यह सोच कि
हम तो केवल निमित्त मात्र हैं ..कर्ता धर्ता तो कोई और है .*....तो फिर जहाँ जिस
; पर हमारा वश ही नहीं फिर उसके लिए क्यों रोते धोते रहना ....मुझे भौतिक
आसक्तियां भी नहीं भरमाती ..पड़ोसी ने कौन सी कार ली है ..कौन नया गैजेट खरीदा
...मैं उस ओर स्वभावतः ही उत्सुक नहीं रहता ....अम्बेसडर ,फिएट और अब टाटा
सुमो या नैनो के अलावा दीगर गाड़ियां नहीं पहचानता ....
जीवन में बहुत कुछ खोया है मगर जो बीत गया उसे सोचता नहीं ....और यह सब निरंतर
के मानसिक अनुशासन से सम्भव हुआ है -जीवन की सभी चुनौतियों, सभी संघर्षों को
ऐसे ही बिताता रहा हूँ और अभी तो जीवन बाकी है ...*यावत कंठ गतः प्राणः तावत
कार्य प्रतिक्रया* ..जब तक कंठ में साँसे हैं समभाव से संघर्ष तो करते ही रहना है .
जब तक कंठ में साँसे हैं समभाव से संघर्ष तो करते ही रहना है ....यही उचित फलसफा है जीवन जीने का...बहुत सही!!
जवाब देंहटाएंसंघर्ष के समय ही व्यक्ति की सही पहचान होती है।
जवाब देंहटाएंबहुत प्रेरक संस्मरण!
जवाब देंहटाएंसंघर्ष बिना जीवन संभव ही नहीं।
जवाब देंहटाएंहर साँस में आस है, ताल ठोंक कर जियेंगे। वाह..
जवाब देंहटाएंnice
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति.....
जवाब देंहटाएंसंघर्ष जी ज़िन्दगी का दूसरा नाम है ………मसीहा हर किसी को किसी ना किसी रूप मे मिल ही जातेहै बशर्ते कोईपहचान सके।
जवाब देंहटाएंआभार रेखा जी
जवाब देंहटाएंसकारात्मक विचार और जीवन ,जीने के लिए के ये रुख ...बहुत जरुरी हैं
जवाब देंहटाएं