धरती पर रहते हुए हमने रोशनी सूर्य से पायी थी और रात में आग जला कर उससे जलने वाले विविध उपकरण से रोशनी पाई। हमारी सभ्यता का विकास हुआ और फिर धीरे धीरे जब विद्युत् का आविष्कार हुआ तो फिर हमने उससे पहले रोशनी पायी और फिर उससे चलने वाले उपकरणों का विकास किया और सब को उसी से चलाना शुरू कर दिया . विश्व की आबादी निरंतर बढ़ती रही और उसके साथ ही ऊर्जा का प्रयोग भी बढ़ता चला गया। अब ये हालात खड़े हो गए हें कि ये ऊर्जा जो निरंतर हमारी जरूरत बढ़ चुकी है और उसके लिए उसकी खपत से अधिक उत्पादन कब तक हो सकता है। जल जैसे ऊर्जा भी एक दिन ख़त्म हो जाएगी। हमारी विद्युत् उपकरणों पर निर्भरता ने उसके प्रयोग को और बढ़ा दिया है और उससे भी अधिक है हमारी विलासिता की बढ़ती हुई वस्तुएं जो ऊर्जा से ही चलती हें । हम ये सोचे बगैर के हमारी विलासिता किसी की जरूरत को भी पूरा होने से रोक सकती है। कुछ लोग जो झुग्गी झोपड़ी में रहते हें और एक बल्ब जला कर अपने अँधेरे झोपड़े में रोशनी कर लेते हें और जब ऊर्जा की कमी होने लगती है तो वही रोशनी से वंचित कर दिए जाते हें क्योंकि उनके पास कोइ जेनरेटर या इनवर्टर नहीं होता है। समर्थ लोग अपने इन साधनों से अपने घर गुलज़ार कर ही लेते हें।
आज रात ८:३० से ९:३० तक विद्युत् से चलने वाले सभी उपकरण और रोशनी करने वाले सभी साधन बंद रखे जायेंगे इससे एक साथ बंद होने से हम कुछ पर्यावरण और ऊर्जा के संरक्षण में अपना योगदान दे सकेंगे। जैसे बूँद बूँद से सागर बनता है उसी तरह से अगर एक साथ सम्पूर्ण विश्व में एक घंटे के लिए विद्युत् का उपयोग बंद रखा जाएगा तो बहुत कुछ बचाया जा सकता है।
इसके उपयोग से सिर्फ ऊर्जा की बचत होगी ऐसा नहीं है बल्कि हम जिन उपकरणों को प्रयोग करते हें उनसे कुछ ऐसी गैस उत्सर्जित होती है जो कि पर्यावरण के लिए घातक है और ये पर्यावरण का प्रदूषित होना मानव जीवन के लिए महा घातक सिद्ध होने वाला है। बड़े बड़े बंगलों में घर को सजाने के लिए रोशनी से नहाये हुए टैरेस और बालकनी देखे जा सकते हें। शादी विवाह के मौके पर घर को पूरा का पूरा पावर हॉउस बना कर रख दिया जाता है। वह भी एक दिन के लिए नहीं दो चार दिन पहले से लेकर दो चार दिन बाद तक। इस दिशा में सोचने के लिए हमारे पास वक्त ही कहाँ होता है ?
विश्व में मानव जीवन को सुगम और सुरक्षित बनाने के लिए इस दिवस की महत्ता को स्वीकार करते हुए हमें सहयोग करना चाहिए। एक जागरूक नागरिक बनने की जरूरत भी है। मैं रोज देखती हूँ कि सड़क पर जलने वाले हैलोजेन रोशनी होने के बाद तक जलते रहते हें उन्हें कोई बुझाने वाला नहीं होता है क्योंकि इतनी जहमत उठाये कौन कि स्विच ऑफ करे। घर के सामने पोल पर जल रहा है तो जलता रहे मैं ही क्यों? जब हम इस मैं से निकल कर हम की ओर बढ़ेंगे तो कुछ सार्थक सोच पायेंगे और कर भी पायेंगे।
जब मैं मोर्निंग वॉक निकलती हूँ तो अपने घर के सामने वाले पोल से लेकर जहाँ भी जलते हुए हैलोजेन मिल जाते हें तो बंद करती जाती हूँ। आदत से मजबूर साथ वालों को बोलती जाती हूँ कि और लोगों को भी ऐसा सोचना चाहिए कि दिन में जिसकी जरूरत नहीं है उसको बंद कर दें। सभी से एक अपील है कि अपने ही घर में सिर्फ एक ही दिन क्यों रोज अगर हम घर के सारे उपकरणों को कुछ समय के लिए बंद रखने का संकल्प लें तो ये अर्थ आवर अपने अर्थ और महत्व को बढ़ा सकते हें। चलिए हम लोग ही संकल्प ले लेते हें कि बेवजह ऊर्जा उपकरणों को चलाये नहीं रखेंगे।
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आदत में डालने से उर्जा के अपव्यय से बचा जा सकेगा . यदि आदत संकल्प में परिवर्तित हो जाए तो समझिय सोने पे सुहागा . सरोकार के प्रति आपका समर्पण नि:संदेह प्रशंसनीय है . आपका आभार !
जवाब देंहटाएंसटीक और सारगर्भित आलेख्।
जवाब देंहटाएंअनुकरणीय उपाय..
जवाब देंहटाएंआज हम भी इस आयोजन में शामिल होंगें -याद दिलाने के लिए शुक्रिया !
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक औरसारगर्भित आलेख्
जवाब देंहटाएंपिछले कुछ दिनों से अधिक व्यस्त रहा इसलिए आपके ब्लॉग पर आने में देरी के लिए क्षमा चाहता हूँ...!!!!!!
उत्तम आलेख दिवस विशेष पर.
जवाब देंहटाएंबहुत उपयोगी रहा यह संस्मरण।
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