मंगलवार, 6 मार्च 2012
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस !
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की धूम पूरे विश्व में हमारे ब्लोग्स पर, पत्र - पत्रिकाओं में , अखबारों में और कुछ महिला संगठनों के सौजन्य से मंच बना कर मचाई जाती है। हम सब लेख लिखते हैं - उनकी समस्याओं पर, उनके शोषण पर और अधिकारों पर विचारों का आदान प्रदान किया जाता रहा है और हम फिर हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी कर रहे हैं, लेकिन इस दिवस से कितने प्रतिशत महिलायें परिचित हैं कभी हमने इस बारे में सोचा है - हाँ सोचा भी है लेकिन फिर भी हम इस बारे में इतना ही जान पाए कि सिर्फ और सिर्फ ३०-४० प्रतिशत महिलायें ही इस दिवस के बारे में जानकारी रखती हैं ।
हम आज के दिन अपने समर्थ और सक्षम होने की बात करते हैं और औरों के लिए ऐसा हो जाने की बात करते हैं, लेकिन इस विषय में अगर कुछ महिला संगठन आगे आते हें तो तब जब कि किसी महिला के ऊपर ऐसे अत्याचार की जानकारी होती है जो सुर्ख़ियों में आकर पूरे मीडिया में एक चर्चा का विषय बन जाता है। वास्तव में जो महिलाये वाकई इस दिन के उद्देश्य का विषय हैं , वे इस दिन के महत्व और इसके बारे में कुछ जानती तक नहीं है। यहाँ तक कि वे अपने शोषण के खिलाफ किसका सहारा लें ये भी नहीं जानती हें। जो शोषित हें वे कुछ दिन तक तो राजनैतिक दलों और मीडिया के लिए एक विषय बनी रहती हें लेकिन उसके बाद वे न तो समाज के द्वारा स्वीकार की जाती हें और न ही उन्हें अपने जीवन यापन के लिए को रास्ता नजर आता है। फिर उनसे सीख लेकर अपने प्रति हो रहे अत्याचार या शोषण के खिलाफ आवाज उठाने की हिम्मत वे नहीं कर पाती हैं ।
इस दिन को सिर्फ एक दिन मनाने की जरूरत भर नहीं है बल्कि जो हालात हैं उनके चलते हर दिन ऐसा ही होना चाहिए। महिला आयोग के प्रयास एक दिन के लिए नहीं बल्कि जिस मामले को व्aह संज्ञान में लेता है उसमें पीडिता के लिए सामाजिक स्थापन के प्रति भी जिम्मेदार होना चाहिए। इसके लिए ये आयोग सरकार की सहायता से कुछ ऐसा संस्थान खोले जहाँ पर जो महिला जिस स्तर तक शिक्षित हो उसको कुछ काम करने की शिक्षा दी जाय और फिर उसके द्वारा तैयार चीजों को बाजार में लाने की व्यवस्था भी की जाय ताकि वे आत्मनिर्भर हो सकें न कि वे अपने बदनाम होने के बाद समाज में स्वतन्त्र रूप से जीने के लिए एक हौसला रख सकें और अपने खर्च के लिए किसी का मुँह न ताकें। आयोग इस तरह के कामों के लिए दो चार बार संपर्क करके बाद में भूल जाता है और पीड़िता फिर से शोषित होने के लिए मजबूर होती है बल्कि इस बार वह और निरीह होकर रह जाती है।
आज महिला उद्यमी भी है और वे महिलाओं को रोजगार भी दे रही हें , उनका भी ये प्रयास होना चाहिए कि अपने यहाँ ऐसी महिलायों को रख कर उनका हित कर सकें। घरेलू उपयोग की चीजों के निर्माण में उनकी सहभागिता निश्चित की जानी चाहिए। म़ेरी दृष्टि में महिला आयोग का कार्यक्षेत्र शहरों में ही नहीं बल्कि उनको ग्रामीण इलाके में भी अपने प्रतिनिधि नियुक्त करने चाहिए ताकि वाकई जहाँ महिलायें शोषित और कमजोर हें उनको सही स्थान और न्याय दिलाया जा सके। इस दिन की सार्थकता इसी में है कि उन्हें सक्षम किया जाये जो इसके लिए जरूरतमंद हैं। न्याय उन्हें दिलाया जाए जो इसको प्राप्त करने में अक्षम है ।
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सार्थक व सटीक लेखन के लिए आभार ।
जवाब देंहटाएंसबको बधाई..
जवाब देंहटाएंरंगोत्सव पर आपको सपरिवार बधाई !
जवाब देंहटाएंबधाई...रंगोत्सव की और महिला दिवस की भी.
जवाब देंहटाएंजब तक हम स्वयं सक्षम नहीं बनेंगे, तब तक शोषण जारी रहेगा। पुरुष भी अगर अक्षम है तो उसका भी शोषण होता है।
जवाब देंहटाएंआपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 08 -03 -2012 को यहाँ भी है
जवाब देंहटाएं..रंग की तरंग में होली की शुभकामनायें .. नयी पुरानी हलचल में .
आपको महिला दिवस और होली की सपरिवार हार्दिक शुभकामनाएँ।
जवाब देंहटाएंसादर
ढेर सारी बधाई...
जवाब देंहटाएंहोली की और महिला दिवस की भी...
प्रभावी व सुन्दर लिखा है..
जवाब देंहटाएंमुझे भी यही लगता है कि एक दिन मनाकर या एक दिन की सुर्खियाँ मनाकर महिलाओं की समस्या सुलझ नहीं सकती !
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