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मंगलवार, 25 सितंबर 2012

संविधान क्या कहता है !

                      देश का पूरा शासन संविधान के अनुरूप ही निर्धारित होता है और फिर उसको समय की मांग के अनुरूप उसमें संशोधन भी होते रहते हैं और सबसे अधिक तो सत्तारूढ़ दल अपने स्वार्थ के अनुसार उसमें संशोधन  भी करते रहते हैं क्योंकि वे इस काम को करने के लिए सक्षम होते हैं। यहाँ केंद्र शासन, राज्य शासन या फिर स्थानीय शासन सभी कुछ तो इसमें परिभाषित किया गया है  -- सांसद, विधायक, पार्षद और उससे आगे चले तो ग्राम प्रधान सबके चुनाव से लेकर उनके दायित्व और हितलाभ तक सुनिश्चित है, लेकिन ऐसे लोगों द्वारा किया गया गैर जिम्मेदाराना काम या फिर बयान  देने पर या अपने क्षेत्र के जनाधार में निराशात्मक भावना भरने के एवज में कोई दंड निर्धारित किया गया है या नहीं . अगर नहीं तो फिर नेताओं , सांसदों, विधायकों या फिर पार्षदों की जुबान फिसलने पर या फिर जानबूझ कर दिए गए वक्तव्य पर दंड का प्रावधान होना चाहिए।
            लोकतंत्र में विपक्ष का एक महत्वपूर्ण स्थान है और विपक्ष तभी सदन में आता है जब कि जनमत उसको चुनकर वहां भेजता है . ये आवश्यक नहीं है कि पूरा देश या प्रदेश एक ही दल के लिए समर्थन दे। फिर अगर जहाँ से विपक्ष को चुना गया है तो उस क्षेत्र को विकास से वंचित रखने के बारे में दिया गया बयान  उनके लिए एक दंडनीय अपराध घोषित किया जाना चाहिए।
               अभी उत्तर प्रदेश में स्थानीय सरकार का चुनाव हुआ . मानी हुई बात है कि  कई प्रत्याशी होते हैं और उनमें सभी को अपने अपने इलाके के अनुसार मत भी मिलते हैं . लेकिन जो चुन कर आता है उसका दायित्व होता है कि  वह पूरे क्षेत्र की समस्याओं को समझे और उनको दूर करने के प्रयास करे लेकिन चाहे वे राजनीति का क ख ग न जानते हों लेकिन सुरक्षित सीट से चुन कर आये हुए प्रत्याशी भाषा ऐसी बोलना सीख लेते हैं जैसे की वे इस देश की सर्वोच्च पद पर आसीन हो गए हों। इस जगह पर रहते हुए 24 साल गुजर गए लेकिन विकास के नाम पर स्थिति कानपूर नगर नहीं बल्कि दूर दराज के गाँवों की तरह है। इस बार चुने गए प्रत्याशी ने साफ शब्दों में कहा कि  आप लोगों के एरिया से हमें मत मिले ही नहीं तो फिर विकास क्यों करवाएं?
              ये तो एक साधारण स्थिति रखने वाले जनप्रतिनिधि का बयान है यदि यही बयान कोई राज्य प्रमुख दे तो उसको क्या कहेगा हमारा संविधान? ऐसे ही बयान एक राज्य के मुख्यमंत्री द्वारा दिया जाय तो उसको भी उचित  ही मान लिया जाय। वर्षों पहले जब सपा प्रमुख यहाँ के मुख्यमंत्री बने तो उनका भी ऐसा ही बयान था - यहाँ पर बिजली की बाधित आपूर्ति के विषय में जब उनसे कहा गया तो उनका बयान  कुछ ऐसा ही था  , ' जब आपने (कानपुरवासियों ) हमें यहाँ से चुना ही नहीं तो फिर बिजली की बात कैसे कह सकते हैं?'
     एक   संयुक्त परिवार का मुखिया अगर अपने परिवार में सदस्यों के साथ भेदभाव का व्यवहार करता है तो वह अपना सम्मान खो देता है . उसके घर के लोग ही उसके खिलाफ बगावत करने के लिए उठ खड़े होते हैं। फिर एक इतने बड़े प्रदेश का मुखिया इस तरह के भेदभाव भरे वक्तव्य दे . वह पूरे राज्य को एक दृष्टि से न देखे , उसके विकास के लिए स्थान की आवश्यकता के अनुरूप सहयोग न दे तो उसे असंवैधानिक  न कहा जाय ऐसा कैसे हो सकता है? मुखिया का ये दायित्व होता है की वह हर क्षेत्र को एक दृष्टि से देखे और उसके विकास के लिए समान रूप से प्रमुखता प्रदान करे।  फिर किसी प्रदेश का मुख्यमंत्री अगर ऐसे कहे तो उसे कोई प्रदेश वासी सामान्य तौर पर कैसे ले सकता है? लेकिन वह कर भी कुछ नहीं सकता है क्योंकि सारी शक्तियां तो वह उन्हें सौंप कर अपनी जुबान और अधिकार खो ही चुका होता है.

                 अगर ऐसा नहीं किया जाता है , चाहे वह किसी भी स्तर  का जनप्रतिनिधि क्यों न हो? उसके लिए संविधान क्या कहता है?  अगर  नहीं कहता  है तो फिर उसको कहना  होगा क्योंकि अब जनप्रतिनिधियों के आचरण से जन ठगा हुआ महसूस करने लगा है। वह 5 साल के लिए जिनके हाथ में जिम्मेदारी सौपता है वे अगर गैर जिम्मेदार साबित होते हैं तो कुछ तो ऐसा होना चाहिए जिससे की वे अपने दायित्व को पूरा करने के लिए बाध्य किये जा  सकें .   देश की वर्तमान सरकार के कामों और प्रधानमंत्री का  अपने कामों को उचित बताते हुए अपनी और सत्ता की समझदारी और जनहित में किये गए निर्णयों की महिमा का गुणगान करते हुए जरा भी संकोच नहीं हुआ. अपने को देश का शुभचिंतक बतलाते हुए उनके जमीर ने भी उनको धिक्कारा नहीं. आम आदमी का अर्थशास्त्र बताने वाले अर्थशास्त्री यहाँ के आम आदमी के बारे पूरी तरह से जानते तक नहीं हैं. इतने बड़े राष्ट्र का कार्यभार अपने हाथ में लेकर जब ऐसे गैर जिम्मेदाराना निर्णय या फिर देश के जन के विरोध और विचारों को ताक पर रख कर विधेयक अपनी बहुमत से पारित करने की शक्ति का दुरूपयोग करने में हिचकते नहीं है उनके लिए संविधान क्या कहता है? क्या ये भारत में होने वाला लोकतंत्र एक निरंकुश लोकतंत्र बन कर रह जाएगा. अगर नहीं तो फिर संविधान में क्या प्रावधान है और नहीं है तो फिर उसकी जरूरत महसूस की जाने लगी है. पूरा देश लोकपाल बिल के लिए एक साथ खड़ा था लेकिन सत्तादल की इच्छा के अनुरुप न होने के कारण वह पास नहीं हो सका. फिर क्या होना चाहिए?  

10 टिप्‍पणियां:

  1. एक तरफ़ ये बयान वे देते हैं जिसका जिक्र आपने इस पोस्ट में किया है। दूसरी तरफ़ जनता यदि इन्हें विपक्ष के लिए चुनती है, तो ये दिल्ली जाकर सत्तारूढ़ दल को समर्थन देंगे। और कहेंगे कि हमारे पास जनता का समर्थन है। कैसा विरोधाभास और कैसी विडंबना है।

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  2. इस देश में दो कानून हैं, एक शासकों के लिए और दूसरा आमजन के लिए। शासकों पर किसी भी कानून के तहत सीधी कार्यवाही नहीं की जा सकती है, जब तक की उसके सर्वोच्‍च अधिकारी की अभिशंसा प्राप्‍त नहीं हो। इसी कारण लोकपाल विधेयक की मांग देश विगत 40वर्षों से कर रहा है। लेकिन अंग्रेजों के इस कानून को शासक बदलना नहीं चाहते।

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    1. अजित जी, ये दोनों कानूनों के कारण है देश के आमजन को इतना त्रस्त होना पड़ रहा है. इसके लिए कुछ होना ही चाहिए. एक जागरूकता और बार बार ऐसे मसलों को ऊपर लाया जाय तो फिर कभी न कभी सुधारने की आशा की जा सकती है. लोकपाल बिल सत्तारूढ़ दल की मनमानी पर अंकुश लगाने के लिए सक्षम होगा इसलिए वह कभी भी पास होगा ही नहीं.

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  3. रेखा जी
    ऐसे लोगो के लिए जनता का जवाब होना चाहिए की आप के ऐसे ही चरित्र के कारण आप को नहीं चुना हम लोगो ने , आज भी स्थिति कहा बदली है बिजली वितरण को लेकर आज भी सामान्य और खास इलाको में बटा है प्रदेश , कोई भी कानून नियम सरकार में बैठे लोगो के लिए अलग और जनता के लिए अलग होता है |

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    1. अंशुमाला जी, वह तो यहाँ पर परिवारवाद के तहत चल रहा है. सपा प्रमुख का पूरा का पूरा परिवार किसी न किसी पद पर है तो उनके जिलों को विशेष सुविधा दी जाती है. आज ही हाई कोर्ट ने इस विषय में जानकारी मांगी है कि समान वितरण क्यों नहीं किया जा रहा है? देखे इस शासन काल में कितना न्याय होगा? लेकिन अब चुनना तो सही को ही होगा. आज नहीं कल हमारे आने वाली पीढ़ी के लिए ही भारत की दशा में कुछ सुधार हो सके.

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  4. सब के सब मिले हुये है ... क्या कहा जाये इन लोगो के बारे मे ... :(

    कुछ तो फर्क है, कि नहीं - ब्लॉग बुलेटिन ब्लॉग जगत मे क्या चल रहा है उस को ब्लॉग जगत की पोस्टों के माध्यम से ही आप तक हम पहुँचते है ... आज आपकी यह पोस्ट भी इस प्रयास मे हमारा साथ दे रही है ... आपको सादर आभार !

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  5. raajneeti ab samaj ke naakaara logon ki sharan sthali ban gaya hai , sahi kaam kaise hoga jab niyat hi kharab ho.

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  6. ज्ञानवर्द्धक लेख के लिए शुक्रिया। मेरे नए पोस्ट "श्रद्धांजलि : सदाबहार देव आनंद" को भी एक बार अवश्य पढ़े। धन्यवाद
    मेरा ब्लॉग पता है:- Harshprachar.blogspot.com

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  7. संविधान तो आत्मा होती है किसी राष्ट्र की ..समानता के अधिकार की घोषणा करती है पर इसकी मूल भावना से वोट के सौदागर खिलवाड़ कर रहे हैं ... ये सर्वोच्च न्यायलय के सामाजिक हित में दिए गए सही फैसलों को बदले जाने के लिए संख्या बल (वोट बल )आधारित संविधान में संसोधन करने में भी नहीं हिचकते ये....राष्ट्र की आत्मा /संविधान रुपी तोते के प्राण भ्रष्ट नेता रुपी जादूगरों के हाथ में हैं ...........ज्ञानवर्धक एवं विचार पार्क आलेख हेतु बधाईयां

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ये मेरा सरोकार है, इस समाज , देश और विश्व के साथ . जो मन में होता है आपसे उजागर कर देते हैं. आपकी राय , आलोचना और समालोचना मेरा मार्गदर्शन और त्रुटियों को सुधारने का सबसे बड़ा रास्ताहै.