गंगा दशहरा का हमारे पौराणिक साहित्य में और हमारे धार्मिक भावनाओं से जुडा महत्व यह है कि गंगा जी का अवतरण ज्येष्ठ माह की दशमी और हस्त नक्षत्र में पृथ्वी पर हुआ था और इस बार वही संयोग पुन बना हुआ है यानि इस बार दशमी के साथ हस्त नक्षत्र भी इसी दिन पड रहा है और इससे इसका महत्व बढ़ गया है . इस पर्व का महत्व गंगा किनारे बसे शहरों में अधिक माना जाता है . इस दिन लाखों श्रद्धालु गंगा में दुबकी लगाते हैं और अपने पापों से मुक्ति पाते हैं .
लेकिन इस पावन नदी में डुबकी लगाने वाले ये भी करते हैं कि वे गंगा की पूजा करके फूलों को अर्पित करने के बाद पॉलिथीन वगैरह उसी में प्रवाहित कर देते हैं . उसके किनारे बने मंदिरों में पूजा सामग्री इकट्ठी होती है तो उसे भी इसी में डाल दिया जाता है . गंगा कितनी मैली हो चुकी हैं इसके बारे में कोई ऐसे ही जान सकते हैं कि गंगा की धारा निर्मल तो अब कहीं भी नहीं रही . बल्कि अब तो विषैली भी हो चुकी है .
इसके लिए आई आई टी कानपूर द्वारा की गयी जांच से पता चला है कि कानपूर में गंगा जल में प्रदूषण और जहरीले तत्वों की मात्रा कई गुना ज्यादा हो चुकी है . इस जांच को केंद्र सरकार के द्वारा आई आई टी को सौंपा गया था . गंगा के प्रदूषण को जांचने के लिए आई आई टी बीच बीच में उसका परीक्षण करती रहती है . एक परिक्षण जो पिछले वर्ष फरवरी में लिए गए नमूने के आधार पर किया गया था और उसके अनुसार गंगा के एक लीटर पानी में मानक के अनुसार क्रोमियम की मात्रा 2 मिलीग्राम होनी चाहिए और वर्तमान में यह 148 मिलीग्राम पायी गयी है .
इस परीक्षण के लिए नमूना आई आई टी के द्वारा जल निगम के ट्रीटमेंट प्लांट जाने के पहले और ट्रीट होने के बाद निकले जल को लिया गया . सरकारी प्रयासों के बाद भी गंगा में कानपूर की टेनरियों का प्रदूषित पानी बराबर जा रहा है . जिस पानी से हम आचमन , स्नान और अन्य धार्मिक क्रियाएं करते हैं उसमें गंगा के कितने प्रतिशत गंगा जल को पाते हैं इस विषय में हमें खुद भी पता नहीं है . हम में से सभी कभी न कभी इस जल का किसी न किसी रूप में प्रयोग लाते हैं . इसको निर्मल रखने के लिए कल गंगा की पूर्व संध्या पर संकल्प लिया गया . हम संकल्प में सहयोग इस तरह से दे सकते हैं कि हम अगर टेनरी मालिक हैं तो अपने निस्तारित पानी को मानकों के अनुसार ट्रीट करके बाहर निकालें या फिर किसी और तरीके से उसको गंगा में जाने से रोकें . अगर आम शहरी हैं तो पूजा सामग्री को उसको
प्रवाहित करने के स्थान पर भूमिगत करें तो अधिक उत्तम रहेगा . गंगा के महत्व को सभी जानते हैं तो फिर उसकी महत्ता का बनाये रखने के लिए सहयोग करें .
रेखा जी ,यही तो दुख है कि लोग जानते समझते सब हैं लेकिन गंभीरता से नहीं लेते.न नियम मानने की आदत न किसी का डर !
जवाब देंहटाएंक्रुद्ध विक्षुब्ध गंगा इस गंगा दशहरा पर कहर बन गयी हैं!
जवाब देंहटाएंबेहद सुन्दर प्रस्तुति ....!
जवाब देंहटाएंआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल बुधवार (19 -06-2013) के तड़प जिंदगी की .....! चर्चा मंच अंक-1280 पर भी होगी!
सादर...!
शशि पुरवार
बेहद सुन्दर प्रस्तुति ....!
जवाब देंहटाएंआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल बुधवार (19 -06-2013) के तड़प जिंदगी की .....! चर्चा मंच अंक-1280 पर भी होगी!
सादर...!
शशि पुरवार
RIGHT VIEW .
जवाब देंहटाएंहमने ही दूषित कर डाला, अपनी आस्था के स्रोतों को।
जवाब देंहटाएंउत्तम विचार !!
जवाब देंहटाएंकब तक शांत रखेगी गंगा खिलवाड़ अपने अस्तित्व से..आज उसका क्रोध बहुत भारी पड रहा है इंसान पर...
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया विचार दी .....पर मानने वाले माने तो
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जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रासंगिक सवाल उठाए हैं गंगा दशहरा की मार्फ़त .असल बात है हम अपने जल स्रोतों को प्यार नहीं करते .गंगा को तो मानते हैं लेकिन गंगा की नहीं मानते आज हमने गंगा जल की तात्विकता (वह सड़ता नहीं था ,अतिरिक्त घुलन शील ऑक्सीजन समोए था )नष्ट कर दी .कहीं कहीं तो इसके किनारे बसे लोगों में एक ख़ास किस्म का कैंसर भी होने की पुष्टि हुई है .अपने प्राकृतिक स्रोतों जल जंगल को प्यार करें यही इस पोस्ट का सन्देश है .ॐ शान्ति .
गंगा भी क्या करे ..
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