पिछली पोस्ट पर हमने अपने मित्रों के विचार इसा विषय पर पढ़े और अब आगे चलते हैं। यद्यपि दो मित्रों ने ब्लॉग फेसबुक के बारे में ही विचार दिए हैं लेकिन मैं उनके विचारों का सम्मान करती हूँ अतः उनको भी शामिल कर रही हूँ।
जब परिवर्तन आता है तो उसके बहुत सारे कारण होते हैं। लेकिन लेखन में लेखक को उसके विचार मजबूर कर देते हैं लिखने के लिए। इसलिए जो वास्तव में लेखक है वह ब्लाग पर ही लिखेगा। प्रारम्भ में लेखक बनने की चाह में बहुत सारे लोग ब्लाग से जुड़ गए थे लेकिन फिर निरन्तरता नहीं रख पाए और वे फेसबुक पर चले गए। इसलिए ब्लागजगत में लेखन में कमी आयी है। यदि विमर्श बिना पूर्वाग्रह के होगा तब सार्थक होगा, लेकिन आज राजनैतिक पूर्वाग्रह से लिखने वाले बहुत हैं इसलिए भी कुछ लोग दूर हो गए हैं।
--अजित गुप्ता
मुझे एक बात समझ मे नही आती कि इन दिनोँ फेसवुक पर कई लोग ग्रुप बनाकर तरह-तरह के भ्रष्टाचार के खिलाफ खडे नजर आते है, जो खुद कई प्रकार के भ्रष्टाचार मे सुबह से शाम तक लिप्त रह्ते है, एक छोटा सा उदाहरण देखिये - एक प्रोफेसर पढाई से ज्यादा गुटवन्दी मे, अपने हित साधने मे समय बिताते देखे जाते हैँ, एक पत्रकार हर घोटालेबाजोँ के धन्धे मे प्रत्येक्ष और परोक्ष रूप से उसे मदद करता रह्ता है, बदले मे हिस्सा लेता है, सरकारी व्यक्ति अपनी डुयुटी मे फांकी मारता है और भी कई लोग- कई तबके के हैँ, जो फेसबुक पर पिँघल छाँटते हुए दिखाई देते है, किसी मित्र को यह बात समझ मे आए तो बडी कृपा होगी, मुझे भी समझाने का कष्ट करेँगे, आभारी रहुँगा.
--अरुण कुमार झा
पहली बात जो लोग आफ़िस टाईम मे भी फ़ेस बुक पर लगे रहते हे, वो भी तो एक तरह से भ्रष्टाचार कर रहे हे... सब से पहले वो कसम ऊठाये कि आफ़िस समय मे अपना काम ईमान दारी से करेगे, कोई कागज पेंसिल घर नही ले जायेगे, ओर ना ही आफ़िस के समय वो आफ़िस के पीसी से फ़ेस बुक या ऎसी प्राईवेट जगह पर जायेगे...
--राज भाटिया
आजकल यह चर्चा ज़ोर शोर से चल रही है कि फेसबुक ने हिन्दी ब्लोगिंग का सब से ज्यादा नुकसान किया है कारण यह कि लगभग सभी हिन्दी ब्लॉगर आजकल फेसबुक पर अधिक सक्रिय दिखते है और इस वजह से उन सब के ब्लॉग असक्रिय हुये जा रहे है | न कोई पोस्ट लिख रहा है न पढ़ रहा है ... फेसबुक पर तुरंत संवाद हो पाने के कारण ब्लॉग से लोगो की दूरी बनती जा रही है !
ऐसे माहौल मे एक सवाल सब के जहन मे आता है क्या हिन्दी ब्लोगिंग अपनों के ही हाथों मारी जाएगी !!??
दरअसल
इस पूरे मामले मे गलती हम सब की ही है ... मान लीजिये हम दिन मे २ घंटा
फेसबुक पर बिताते है ... ऐसे मे बड़े आराम से हम बगल की विंडो मे अपना ब्लॉग
भी खोल कर रख सकते है ... फीड्स का अनुसरण करते हुये नयी आई हुई पोस्ट पढ़
सकते है ... और पढ़ते पढ़ते कमेन्ट देने का मन हुआ तो झट मन की बात कह दी
पोस्ट पर ... एक बार इसी तरह सक्रिय होने पर धीरे धीरे खुद भी पोस्ट लिखने
का मन भी होने लगेगा और हमारी असक्रियता कब सक्रियता मे बदल जाएगी पता भी
नहीं चलेगा !
मैं खुद भी ऐसा ही करता हूँ ... साथ साथ ... ब्लॉग
बुलेटिन की पोस्ट लगाने के कारण भी काफी पोस्टों को पढ़ना हो जाता है ...
हाँ यह जरूर है कि आजकल कमेंट्स करना काफी कम हो गया है !
शिवम् मिश्रा
अभिव्यक्ति एक सशक्त माध्यम है अपने विचार दूसरों तक पहुँचाने का - चाहे वह कोई भी विधा हो- संगीत, नृत्य, पेंटिंग या लेखन !
अक्सर हमारा लिखा डायरी के पन्नों में सिमट कर रह जाता है , शायद
इसलिए की हम उसे अन्यत्र भेजने की हिम्मत नहीं जुटा पाते . लेकिन ब्लॉग एक
ऐसे सशक्त मंच के रूप में उभरा है जहाँ हम अपनी सोच ..अपनी भावनाएं..अपने
विचार साझा कर सकते हैं .
अमूमन काफ़ी समय हम सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर व्यतीत करते हैं
...कितना अच्छा हो अगर हम अपने ब्लॉग के साथ साथ दूसरे ब्लॉग को भी महत्त्व
दें ...थोडासा समय निकालकर ..उनपर जाकर मित्र लेखकों की सोच पर भी एक नज़र
डालें, उन्हें पढ़ें, समझें और अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करें, उनका मनोबल
बढाएं, जैसा की हम और मित्रों से अपेक्षा रखते हैं .
तभी तो सही मायनों में हमारा ब्लॉग लेखन सार्थक हो पायेगा .
.......ज़रा सोचिये ..!
सरस दरबारी
फेस बुक ने लोगों को एक बहुत बड़ी दुनिया से परिचित करवा दिया है इसने कई
अजनबियों को एक परिवार की तरह बाँध दिया है। शुरू में ब्लॉग जगत के लोगों
ने फेस बुक को बहुत तवज्जो नहीं दी लेकिन धीरे धीरे बैटन चर्चाओं का आकर्षण
सिर चढ़ कर और कई ब्लोगर्स जो हफ्ते में पांच से छह पोस्ट लिखते थे एक दो
पोस्ट तक सिमट गए और इसकी जगह ले ली लाइक और चुटीली टिप्पणियों ने। इससे
निश्चित ही लेखन का स्तर गिरा है साथ ही अपनी सोच के हिसाब से किसी बात को
नए नज़रिए से देखने समझने और समझाने का क्रम भी कम हुआ है जो शोचनीय
है। ब्लॉग परडाली गयीं पोस्ट एक सुरुचि पूर्ण दस्तावेज के रूप में होती
हैं और उसके साथ होते हैं लोगों के बेशकीमती विचार ,इसलिए से ब्लॉग का साथ
छोड़ना अपने लेखन के साथ अन्याय करना है।
-- कविता वर्मा
एक चर्चा
(क्रमशः)
सबके विचार सुन्दर हैं मै अपने विचार भेज ही चुकी हूँ फिर भी यही कहूँगी कि अब दोनो माध्यमों को नकारा नही जा सकता
जवाब देंहटाएंब्लॉग शाश्वत है. फेसबुक के इन्द्राज क्षणिक हैं. ब्लॉग पर एक टिपण्णी के लिए आरती उतार कर लोगों को लाना पड़ता है जब की फेस बुक पर सब कुछ त्वरित है. शायद इसीलियी लोगों का रुझान फेस बुक की तरफ हो गया है.
जवाब देंहटाएंमेरे विचारों को यहाँ स्थान देने के लिए आप का आभार दीदी !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (19-10-2013) "शरदपूर्णिमा आ गयी" (चर्चा मंचःअंक-1403) पर भी होगी!
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
चलिए इस प्रयास से हम सही दृष्टिकोण से अवगत होंगे
जवाब देंहटाएंNice Thoughts..but i like both.
जवाब देंहटाएंआपने मेरी टिप्पणी को मान दिया इसके लिए आभार।
जवाब देंहटाएंदोनों का अपनी अपनी जगह महत्व है। हम तो समय न मिलने से कभी कभार देर सवेर सैर कर लेते हैं कभी ब्लॉग की कभी फेसबुक की ..लेकिन मुझे फेसबुक की अपेक्षा ब्लॉग पढना और लिखना अच्छा लगता है ...
जवाब देंहटाएंयह सही है कि फेसबुक ने ब्लाग लेखन की सक्रियता को कम किया है... फिर भी ब्लाग का महत्व ज्यादा है... ब्लाग एक स्थायी पुस्तकालय की तरह है, जिसे कभी भी और कहीं भी पढ़ा और पढ़ाया जा सकता है, लेकिन फेसबुक के साथ एेसा संभव नहीं होता.. न ही इसमें विषय विस्तार की संभावना रहती है...
जवाब देंहटाएंयह सही है कि फेसबुक ने ब्लाग लेखन की सक्रियता को कम किया है... फिर भी ब्लाग का महत्व ज्यादा है... ब्लाग एक स्थायी पुस्तकालय की तरह है, जिसे कभी भी और कहीं भी पढ़ा और पढ़ाया जा सकता है, लेकिन फेसबुक के साथ एेसा संभव नहीं होता.. न ही इसमें विषय विस्तार की संभावना रहती है...
जवाब देंहटाएंसभी की राय बहुत सुन्दर है | पर मेरा निजी तौर पे ये मानना है कि फेसबुक से ब्लॉग कि सक्रियता कम नहीं हो जाती | बल्कि मुझे तो लाभ ही महसूस होता है | अपने ब्लॉग पे लिखे किसी पोस्ट को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुचाने का एक और प्लेटफोर्म मिल जाता है | आज फेसबुक कि पहुँच जन-जन तक है | ब्लॉग में आपके लिखे पोस्ट तक वही पहुँचते हैं जो आपको फोलो करते हैं | या फिर किसी-किसी चर्चाकार ब्लॉग में लगाये गए लिंक द्वारा | ऐसे में अपने पोस्ट को हम चुटकी में फेसबुक में साझा कर देते हैं और वह कई लोगों तक आसानी से पहुच जाता है | और फेसबुक से कई नए पाठक ब्लॉग में मिल जाते हैं जो कि पहले शायद ब्लोग्ग कि दुनिया से दूर ही रहे हो | ब्लॉग अतः है, जो हम लिखते हैं उसका एक संकलन स्वतः ही तैयार होते जाता है जिसमे हम जब कभी भी अपने पुराने से पुराने पोस्ट को भी आसानी से देख सकते हैं | इसलिए फेसबुक से इसकी महत्ता कम होने की कोई संभावना नहीं दिखती | इसके उलट लाभ ही है |
जवाब देंहटाएंमेरी नई रचना:- "झारखण्ड की सैर"
ब्लॉग कितना जरुरी है ये अभी वो लोग नहीं समझ रहें जो इस से दूर भाग रहें हैं
जवाब देंहटाएंफेसबुक अपनी जगह है ब्लॉग अपनी जगह। ब्लॉग अगर पुस्तकालय है तो फेसबुक अखबार। सीरीयस लेखन ब्लॉग पर ही नज़र आता है।
जवाब देंहटाएंek sarthak charcha kar sabhi ka dhyan aakrshit kiya hai aapne ..
जवाब देंहटाएंसभी अलग अलग बेबाक राय पढ़ के अच्छा लगा ...
जवाब देंहटाएंsarthak charchaa .sou bat ki ek baat ............... face book ke 100 likes ke saamne blog ke 20 comment jyada santushti dete hain
जवाब देंहटाएं.parantu dekhne mein aaya sab mitr mandli main hi comment karte hain agar kisi ko kaha bhi jaaye kei hamne kuch likhne ka prayaas kiya hain blog par aap dekhiyega to unko yachak ki drishti se dekhaa jata hain ........ main bahut se aise logo ko dekhti hun blog charchaa main kahenge umda links par aapne khud kitne blog padhe .........samay ki kami sabke pass hoti hain parantu har bar ignore karna sahi nhi hota ...........