बहुत महत्वपूर्ण विषय है ये और इसके विषय में मैं सोचती हूँ और इसा के बारे में हमारे ब्लॉगर मित्र जो कहते हैं वो उनके अपने विचार और अपनी सोच है। फिर भी वे भी इस बात से इनकार नहीं कर रहे हैं कि ऐसा हो रहा है वजह उसकी कोई भी हो। आपके अपने जो भी विचार हों अगर हमें अवगत कराएँगे तो प्रस्तुत करके अपने ब्लॉग और अपने प्रयास को सफल मानूंगी। इन्तजार में ………… !
ब्लॉग और फेसबूक दोनों ही आम आदमी को अपने सृजन क्षमता, सोच को दिखाने का जरिया है जो मानसिक संतुष्टि देती है, जब वो अपनी सृजनता पर प्रत्युतर पता है, बेशक सराहा जाए या गलतियाँ निकली जाए। हाँ ये अलग बात है की फेसबूक अगर एक रफ कॉपी के तरह है तो ब्लॉग एक शानदार डायरी है। फेसबूक पर आप कुछ भी लिखें, उस पोस्ट से तुरंत जुड़ जाते हैं एक संपर्क उसपर कमेंट करने वाले के साथ बनता है, जिस से वो थोड़ी खुशी देती है, पर उसको सहेजना मुश्किल है, क्योंकि कुछ दिनों मे ही वो पोस्ट कहीं विलीन होती दिखने लगती है, इसके उलट ब्लॉग पोस्ट आपके लिए सहेजा हुआ रहता है, उसके कोमेंट्स को कभी भी पढ़ कर आप खुश हो सकते हैं। फिर ब्लॉग पर चूंकि हम सोच समझ कर एक विशेष पोस्ट डालते हैं तो उस से ज्यादा जुड़ा हुआ महसूस करते हैं। अतः बेशक फेसबूक की लोकप्रियत जितनी भी हो, एक सृजनकर्ता रचनाकर के लिए ब्लॉग ज्यादा अहम है, और ब्लॉग पर समय ज्यादा देना चाहिए।
मुकेश कुमार सिन्हा
सोशल मीडिया प्रेमियों के लिये ब्लॉगिंग और फ़ेसबुक मे उतना ही अंतर हैं जितना क्रिकेट प्रेमियों के लिये टैस्ट मैच और टी ट्वेंटी मे. ब्लॉगिंग विचारों की अभिव्यक्ति का एक गंभीर माध्यम है. साथ ही मनोरंजन का भी उत्तम साधन है . यहाँ लेखक सभी तरह के विषयों पर गंभीर चर्चा कर सकते हैं. एक बार लिखी गई पोस्ट सदा के लिये अमर हो जाती है . वर्षों बाद भी किसी विषय विशेष पर लिखी गई पोस्ट को ढूंढ कर पढ़ा जा सकता है . यह रचनात्मकता को प्रोत्साहन देती है . लेकिन टैस्ट मैच की तरह ब्लॉगिंग मे भी समय की खपत ज्यादा होती है . शायद इसीलिये अधिकांश ब्लॉगर्स का ध्यान अब फ़ेसबुक की ओर मुड़ गया है . फ़ेसबुक तुरंत फुरंत माध्यम है जहां एक स्टेटस की उम्र क्षणिक ही होती है . साथ ही यहाँ गंभीर विचार विमर्श के लिये कम ही जगह है .फ़ेसबुक पर लोग मौज मस्ती ज्यादा करते हैं , काम की बातें कम . यहाँ अक्सर स्वमुग्धता ज्यादा देखने को मिलती है. अभिव्यक्ति से ज्यादा अपनी उपलब्धियों का प्रचार ज्यादा होता है. अक्सर कोई कवि , लेखक , कलाकर या अन्य विशेष योग्यता रखने वाला अपनी उपलब्धियों का गुण गान करता ज्यादा नज़र आता है . पता चला है कि फ़ेसबुक पर रहने से कई लोगों को अवसाद होने लगता है. लेकिन सही तरीके से इस्तेमाल किया जाये तो फ़ेसबुक जैसा माध्यम सामाजिक जागृति पैदा करने मे बहुत sahayak siddh हो सकता है .
-- तारिफ दराल
फेसबुक ने ब्लागिंग की सक्रियता को बढाने का कार्य किया है। यह एक मिथ है कि फेसबुक की ब्लाग लेखन कम हो गया है। अगर फेसबुक न होता तो भी ब्लॉग लेखन में सचुरेशन की स्थिति आती। ब्लागिंग में धीमापन उसका सहज स्वभाव है जबकि फेसबुक त्वरित ढंग से कार्य करता है। नए ब्लागरो में लेखन का उत्साह कुछ ज्यादा रहता है सो उनकी पोस्टे फटाफट आती रहती है और जब व्यक्ति लम्बे समय तक लिखता रहता है तो उसे लेखन कार्य से थोड़े समय के लिए ऊबन होने लगती है और वह कुछ 'रिक्रियेशन' के लिए करता है इसका मतलब यह नही की वह लेखन छोड़ कर 'रिक्रियेशन' को लेखन का विकल्प बना लेगा। ब्लाग पर देरी से पोस्ट का आना और फेसबुक पर उपस्थित रहना दोनों में कोई सम्बन्ध नही है। लोग जो फेसबुक पर होते है मैंने उनको भी फेसबुक को छोड़ कर जाते देखा है। ब्लागिंग का शानदार और चौकस भविष्य है।
--- पवन मिश्रा
( क्रमशः )
ब्लॉग और फेसबूक दोनों ही आम आदमी को अपने सृजन क्षमता, सोच को दिखाने का जरिया है जो मानसिक संतुष्टि देती है, जब वो अपनी सृजनता पर प्रत्युतर पता है, बेशक सराहा जाए या गलतियाँ निकली जाए। हाँ ये अलग बात है की फेसबूक अगर एक रफ कॉपी के तरह है तो ब्लॉग एक शानदार डायरी है। फेसबूक पर आप कुछ भी लिखें, उस पोस्ट से तुरंत जुड़ जाते हैं एक संपर्क उसपर कमेंट करने वाले के साथ बनता है, जिस से वो थोड़ी खुशी देती है, पर उसको सहेजना मुश्किल है, क्योंकि कुछ दिनों मे ही वो पोस्ट कहीं विलीन होती दिखने लगती है, इसके उलट ब्लॉग पोस्ट आपके लिए सहेजा हुआ रहता है, उसके कोमेंट्स को कभी भी पढ़ कर आप खुश हो सकते हैं। फिर ब्लॉग पर चूंकि हम सोच समझ कर एक विशेष पोस्ट डालते हैं तो उस से ज्यादा जुड़ा हुआ महसूस करते हैं। अतः बेशक फेसबूक की लोकप्रियत जितनी भी हो, एक सृजनकर्ता रचनाकर के लिए ब्लॉग ज्यादा अहम है, और ब्लॉग पर समय ज्यादा देना चाहिए।
मुकेश कुमार सिन्हा
सोशल मीडिया प्रेमियों के लिये ब्लॉगिंग और फ़ेसबुक मे उतना ही अंतर हैं जितना क्रिकेट प्रेमियों के लिये टैस्ट मैच और टी ट्वेंटी मे. ब्लॉगिंग विचारों की अभिव्यक्ति का एक गंभीर माध्यम है. साथ ही मनोरंजन का भी उत्तम साधन है . यहाँ लेखक सभी तरह के विषयों पर गंभीर चर्चा कर सकते हैं. एक बार लिखी गई पोस्ट सदा के लिये अमर हो जाती है . वर्षों बाद भी किसी विषय विशेष पर लिखी गई पोस्ट को ढूंढ कर पढ़ा जा सकता है . यह रचनात्मकता को प्रोत्साहन देती है . लेकिन टैस्ट मैच की तरह ब्लॉगिंग मे भी समय की खपत ज्यादा होती है . शायद इसीलिये अधिकांश ब्लॉगर्स का ध्यान अब फ़ेसबुक की ओर मुड़ गया है . फ़ेसबुक तुरंत फुरंत माध्यम है जहां एक स्टेटस की उम्र क्षणिक ही होती है . साथ ही यहाँ गंभीर विचार विमर्श के लिये कम ही जगह है .फ़ेसबुक पर लोग मौज मस्ती ज्यादा करते हैं , काम की बातें कम . यहाँ अक्सर स्वमुग्धता ज्यादा देखने को मिलती है. अभिव्यक्ति से ज्यादा अपनी उपलब्धियों का प्रचार ज्यादा होता है. अक्सर कोई कवि , लेखक , कलाकर या अन्य विशेष योग्यता रखने वाला अपनी उपलब्धियों का गुण गान करता ज्यादा नज़र आता है . पता चला है कि फ़ेसबुक पर रहने से कई लोगों को अवसाद होने लगता है. लेकिन सही तरीके से इस्तेमाल किया जाये तो फ़ेसबुक जैसा माध्यम सामाजिक जागृति पैदा करने मे बहुत sahayak siddh हो सकता है .
-- तारिफ दराल
फेसबुक ने ब्लागिंग की सक्रियता को बढाने का कार्य किया है। यह एक मिथ है कि फेसबुक की ब्लाग लेखन कम हो गया है। अगर फेसबुक न होता तो भी ब्लॉग लेखन में सचुरेशन की स्थिति आती। ब्लागिंग में धीमापन उसका सहज स्वभाव है जबकि फेसबुक त्वरित ढंग से कार्य करता है। नए ब्लागरो में लेखन का उत्साह कुछ ज्यादा रहता है सो उनकी पोस्टे फटाफट आती रहती है और जब व्यक्ति लम्बे समय तक लिखता रहता है तो उसे लेखन कार्य से थोड़े समय के लिए ऊबन होने लगती है और वह कुछ 'रिक्रियेशन' के लिए करता है इसका मतलब यह नही की वह लेखन छोड़ कर 'रिक्रियेशन' को लेखन का विकल्प बना लेगा। ब्लाग पर देरी से पोस्ट का आना और फेसबुक पर उपस्थित रहना दोनों में कोई सम्बन्ध नही है। लोग जो फेसबुक पर होते है मैंने उनको भी फेसबुक को छोड़ कर जाते देखा है। ब्लागिंग का शानदार और चौकस भविष्य है।
--- पवन मिश्रा
( क्रमशः )
२००७ से हिंदी ब्लॉग जगत में हूँ , यहाँ पर ब्लॉग लेखन से ज्यादा नेट वर्किंग हैं और इसीलिये यहाँ पर फेस बुक पर ज्यादा लोग हैं। हाँ उनमे से कुछ पहले ब्लॉग भी लिखते थे पर वो सब ब्लॉग भी केवल और केवल एक दुसरे से अपने अपने नेटवर्क बढाने के लिये ही लिखते थे
जवाब देंहटाएंब्लॉग लेखन हिंदी में अब ज्यादा बेहतर हैं क्युकी वही लोग पढते और कमेन्ट देते हैं जो किसी मुद्दे से जुड़े हैं या ब्लॉग को एक निजी डायरी की तरह लिखते हैं
पहले हिंदी ब्लॉग में ग्रुप थे जो अब कम हो गए हैं क्युकी वो ग्रुप काल एक नेटवर्क के लिये बन जाते थे
अब ब्लॉग लेखन पहले से बहुत बेहतर और फेस बुक और ब्लॉग लेखन दो अलग अलग विधाए हैं और अलग अलग मकसद हैं
सबके विचारों का माध्यम बनता जा रहा है ये रेखा दीदी का दिया हुआ मंच ......बहुत बढिया लग रह अहै सबके विचार पढ़ना
जवाब देंहटाएंहमे तो अभी भी ब्लॉग ज्यादा अच्छा लगता है. लेकिन वहां पर उदासीनता देखकर दुख भी होता है !
जवाब देंहटाएंmere blog par aap sabhi ka swagat hai..
जवाब देंहटाएंhttp://iwillrocknow.blogspot.in/
विचारणीय आलेख, ब्लॉग को महत्व मिले।
जवाब देंहटाएंachchha lag raha hai sabke vichar jaan kar ..
जवाब देंहटाएंblog ki mauj alag facebook ki sansani alag hai dono apni jagah thik kaam kar rhe hai
जवाब देंहटाएंपुस्तकों के बाद यदि कहा जाए तो ब्लॉग लेखन साहित्य का एक शशक्त माध्यम बन के उभरा है और इसमे दो राय नाही है की इसने सभी को भरपूर सहयोग दिया उभारा और प्रशशा भी दी। ब्लॉगर ने भी इसे गंभीरता से लिया और ले रहे है। बस समय की कमी के चलते अब लोग फेस्बूक की ओर रुख कर रहे है और झटपट प्रतिक्रिया से अपनी साहित्यिक अभिरुचि प्रदर्शित कर रहे है । दोनों का महत्व इस एक वाक्य से समझा जा सकता है ।जो जिसमे खुश रहे वो ठीक। मगर एक बात तो बेहद महत्वपूर्ण है ब्लॉग से फ़ेस बूक की ओर गए लोग दोनों ही ओर हाथ पैर मार रहे है और गंभीर लोग निश्चित तौर से ब्लॉग की ओर लौटेंगे और ब्लॉगिंग को निरंतर समृध्ध करेंगे ।
जवाब देंहटाएंकुशवंश
सादर प्रणाम |
जवाब देंहटाएंब्लोगिंग की अपनी जगह हैं ,फेसबुक की अपनी ..किन्तु पिछले कुछ समय से कुछ मशहूर ब्लोगर्स ने सिर्फ फेसबुक पर ही लिकना शुरू कर दिया हैं ,