ये ये विषय बहुत ज्वलंत बन चुका है क्योंकि कहीं न कहीं हमारा ब्लॉग लेखन प्रभावित अवश्य ही हो रहा है। ……………… ! चलें कुछ और साथियों के विचारों को जानें।
इसमें कुशवंश जी का चित्र उपलब्ध नहीं हो सका है।
पुस्तकों के बाद यदि कहा जाए तो ब्लॉग लेखन साहित्य का एक शशक्त माध्यम बन के उभरा है और इसमे दो राय नाही है की इसने सभी को भरपूर सहयोग दिया उभारा और प्रशशा भी दी। ब्लॉगर ने भी इसे गंभीरता से लिया और ले रहे है। बस समय की कमी के चलते अब लोग फेस्बूक की ओर रुख कर रहे है और झटपट प्रतिक्रिया से अपनी साहित्यिक अभिरुचि प्रदर्शित कर रहे है । दोनों का महत्व इस एक वाक्य से समझा जा सकता है ।जो जिसमे खुश रहे वो ठीक। मगर एक बात तो बेहद महत्वपूर्ण है ब्लॉग से फ़ेस बूक की ओर गए लोग दोनों ही ओर हाथ पैर मार रहे है और गंभीर लोग निश्चित तौर से ब्लॉग की ओर लौटेंगे और ब्लॉगिंग को निरंतर समृध्ध करेंगे ।
-- कुश्वंश
२००७ से हिंदी ब्लॉग जगत में हूँ , यहाँ पर ब्लॉग लेखन से ज्यादा नेट वर्किंग हैं और इसीलिये यहाँ पर फेस बुक पर ज्यादा लोग हैं। हाँ उनमे से कुछ पहले ब्लॉग भी लिखते थे पर वो सब ब्लॉग भी केवल और केवल एक दुसरे से अपने अपने नेटवर्क बढाने के लिये ही लिखते थे
ब्लॉग लेखन हिंदी में अब ज्यादा बेहतर हैं क्युकी वही लोग पढते और कमेन्ट देते हैं जो किसी मुद्दे से जुड़े हैं या ब्लॉग को एक निजी डायरी की तरह लिखते हैं
पहले हिंदी ब्लॉग में ग्रुप थे जो अब कम हो गए हैं क्युकी वो ग्रुप काल एक नेटवर्क के लिये बन जाते थे
अब ब्लॉग लेखन पहले से बहुत बेहतर और फेस बुक और ब्लॉग लेखन दो अलग अलग विधाए हैं और अलग अलग मकसद हैं
-- रचना
इसमें कुशवंश जी का चित्र उपलब्ध नहीं हो सका है।
पुस्तकों के बाद यदि कहा जाए तो ब्लॉग लेखन साहित्य का एक शशक्त माध्यम बन के उभरा है और इसमे दो राय नाही है की इसने सभी को भरपूर सहयोग दिया उभारा और प्रशशा भी दी। ब्लॉगर ने भी इसे गंभीरता से लिया और ले रहे है। बस समय की कमी के चलते अब लोग फेस्बूक की ओर रुख कर रहे है और झटपट प्रतिक्रिया से अपनी साहित्यिक अभिरुचि प्रदर्शित कर रहे है । दोनों का महत्व इस एक वाक्य से समझा जा सकता है ।जो जिसमे खुश रहे वो ठीक। मगर एक बात तो बेहद महत्वपूर्ण है ब्लॉग से फ़ेस बूक की ओर गए लोग दोनों ही ओर हाथ पैर मार रहे है और गंभीर लोग निश्चित तौर से ब्लॉग की ओर लौटेंगे और ब्लॉगिंग को निरंतर समृध्ध करेंगे ।
-- कुश्वंश
२००७ से हिंदी ब्लॉग जगत में हूँ , यहाँ पर ब्लॉग लेखन से ज्यादा नेट वर्किंग हैं और इसीलिये यहाँ पर फेस बुक पर ज्यादा लोग हैं। हाँ उनमे से कुछ पहले ब्लॉग भी लिखते थे पर वो सब ब्लॉग भी केवल और केवल एक दुसरे से अपने अपने नेटवर्क बढाने के लिये ही लिखते थे
ब्लॉग लेखन हिंदी में अब ज्यादा बेहतर हैं क्युकी वही लोग पढते और कमेन्ट देते हैं जो किसी मुद्दे से जुड़े हैं या ब्लॉग को एक निजी डायरी की तरह लिखते हैं
पहले हिंदी ब्लॉग में ग्रुप थे जो अब कम हो गए हैं क्युकी वो ग्रुप काल एक नेटवर्क के लिये बन जाते थे
अब ब्लॉग लेखन पहले से बहुत बेहतर और फेस बुक और ब्लॉग लेखन दो अलग अलग विधाए हैं और अलग अलग मकसद हैं
-- रचना
आप सच कह रही हैं , धीरे धीरे लोग ब्लॉग से दूर हो गए फिर फेसबुक पर आ तो गए लेकिन लाइक कर के चल देते हैं या फिर टॉपिक को आगे पीछे हो जाते हैं। विषय कहीं से शुरू होता है और कहीं पहुँच जाता है। बहुत से महत्वपूर्ण विषय दरकिनार हो जाते हैं। फेसबुक पर ये तो हैं कि बिना ज्यादा मशक्कत किये काफी लोगों की पोस्ट दिख जाती हैं जिनमें ज्वलंत मुद्दों पर भी आसानी से वक्तव्य दिए जा सकते हैं। लेकिन उन विषयों का समय या यूँ कहिये की लाइफ़ एक या रह पति है। आने पर पोस्ट पिछड़ जाती है। ब्लॉग ही एक ऐसा माध्यम है जिस पर विस्तृत और वार्तालाप की जा सकती है।
-- अनामिका जी
ब्लॉग लिखना या फेसबुक के वाल पे लिखना एक विधा होते हुए भी दो चीज है। ब्लॉग भी अपना निजी होता है और वाल भी---पर वाल पे आप कुछ भी २-४ लाइन्स हल्का सा लिख सकते हैं पर ब्लॉग के साथ हीं गंभीरता,सार्थकता,मौलिकता की बात सामने आ जाती है। ब्लॉग की दुनिया काफी विस्तृत है,जितना अन्दर जाइये कम है पर कहा पैठ हो पाती है। फेसबुक के नशा के आगे ब्लॉग पे ज्यादा ध्यान लोग नहीं दे पातें हैं। लाइक-कमेंट की भी अपनी महत्ता है। कुछ लोग दोनों पे सामान रूप से पोस्ट डालते हैं। पर हाँ ये जरुरी है की ब्लॉग पर ज्यादा से ज्यादा ध्यान दिया जाय क्योंकि ये आपके व्यक्तित्व और निजता की पहचान है। पुराने लोगों को भी नए को ग्रहण करने और सिखलाने की आवश्यकता है। नए-नए ब्लॉग को खूब पढने के लिए समय तो देना ही पड़ेगा--गहरे नहीं पैठने से मोती कहा से पायेंगे।
ब्लॉग लिखना या फेसबुक के वाल पे लिखना एक विधा होते हुए भी दो चीज है। ब्लॉग भी अपना निजी होता है और वाल भी---पर वाल पे आप कुछ भी २-४ लाइन्स हल्का सा लिख सकते हैं पर ब्लॉग के साथ हीं गंभीरता,सार्थकता,मौलिकता की बात सामने आ जाती है। ब्लॉग की दुनिया काफी विस्तृत है,जितना अन्दर जाइये कम है पर कहा पैठ हो पाती है। फेसबुक के नशा के आगे ब्लॉग पे ज्यादा ध्यान लोग नहीं दे पातें हैं। लाइक-कमेंट की भी अपनी महत्ता है। कुछ लोग दोनों पे सामान रूप से पोस्ट डालते हैं। पर हाँ ये जरुरी है की ब्लॉग पर ज्यादा से ज्यादा ध्यान दिया जाय क्योंकि ये आपके व्यक्तित्व और निजता की पहचान है। पुराने लोगों को भी नए को ग्रहण करने और सिखलाने की आवश्यकता है। नए-नए ब्लॉग को खूब पढने के लिए समय तो देना ही पड़ेगा--गहरे नहीं पैठने से मोती कहा से पायेंगे।
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