विषय अच्छा है और इस पर का भी उतना ही महत्व है जितना की इसको महसूस कर मन में रखने वालों में - अरे भाई आप भी अपनी सोच को शब्दों में ढल कर हमें भेज दीजिये। हम उसे पढ़ाएंगे।
अच्छा विषय उठाया है रेखा दी...
हिंदी ब्लॉगिंग ने अपने दस साल पूरे कर लिये....
तमाम उतार-चढाव के बीच. हिंदी ब्लॉगिंग की शुरुआती दिक्कतें, फिर उनसे
निजात पाना..सब हम लोग पढते रहे हैं. कैसे-कैसे प्रयोग किये गये, ये भी.
हिंदी ब्लॉगिंग अपने शुरुआती दौर से लेकर शायद 2010 तक अपने शबाब पर थी,
लेकिन पिछले लगभग दो सालों से तमाम सक्रिय ब्लॉगर्स ने अपना ध्यान ब्लॉगिंग
से हटा के फेसबुक पर केन्द्रित कर लिया है, ऐसा मुझे लगता है ( क्योंकि
मेरे साथ खुद ऐसा हुआ) बीच-बीच में पोस्ट लिखी भी गयीं तो उन्हें उतने पाठक
नहीं मिले, जितने पहले मिलते थे. पहले जहां एक-एक पोस्ट पर पचास-साठ कमेंट
आते थे, वे दस-पन्द्रह में सिमट गये. वो भी अगर लिंक फेसबुक पर शेयर किया
गया है तो. वरना इससे भी कम.
तो मुझे लगता है
कि हिंदी ब्लॉगिंग को सबसे ज़्यादा नुक्सान फेसबुक से हुआ. लोगों को फेसबुक
ब्लॉग से कहीं अधिक सुविधाजनक लगने लगा. पोस्ट लिखी और फेसबुक पर शेयर कर
दी . कमेंट्स करने वाले भी सुकून में आ गये. अब टिप्पणी करने की बजाय वे बस
"लाइक" का बटन दबाने लगे. पोस्ट पढी हो या नहीं, लाइक करने में क्या जाता
है? अगले को ओब्लाइज़ भी कर दिया..... पोस्ट पढने की मेहनत से भी बच गये.
वरना पहले ध्यान से पोस्ट पढो, फिर उस पर सार्थक टिप्पणी लिखो.... अब
ज़्यादा भला. लाइक करो और अधिक से अधिक लिख दो, " जा रहे हैं पढने..." अब
पढो चाहे न पढो.
फेसबुक की
लोकप्रियता के आगे ब्लॉगिंग विवश सी नज़र आने लगी....... आखिर हम सब
लिखने-पढने वाले लोग फेसबुक जैसी सोशल नेटवर्किंग साइट के प्रति इतने
आकर्षित क्यों हुए? क्या वजह है जो इस साइट ने पोती से लेकर दादी तक, सबको
बांध रखा है? क्यों नियमित रूप से ब्लॉग लिखने वाले अब फेसबुक पर रोज़ अपना
स्टेटस अपडेट करते भर नज़र आ रहे? बहुत ज़ाहिर से कारण हैं.
१) तात्कालिक रूप से मुलाकात और बात
२) तात्कालिक सवाल-जवाब
३) एक लाइव बहस जैसा माहौल निर्मित हो पाना.
४) लाइक की सुविधा उपलब्ध होना
५) सबसे बड़ी सुविधा है, नोटिफ़िकेशन की.
नोटिफ़िकेशन की
सुविधा के चलते हम अगर किसी का ज़िक्र करते हैं, तो उसे हायपर लिंक करने की
सुविधा होती है वहां, जिससे चिन्हित व्यक्ति के पास सूचना पहुंच जाती है,
और वो तत्काल उस जगह पर पहुंच के अपनी उपस्थिति दर्ज़ करा देता है. ज़िक्र
करने वाले को भी अच्छा लगता है, और उस व्यक्ति को भी, जिसका ज़िक्र किया
गया. जबकि ब्लॉग में ऐसी कोई सुविधा उपलब्ध नहीं है. मुझे लगता है, कि अगर
ब्लॉग को भी नोटिफ़िकेशन की सुविधा उपलब्ध हो जाये तो फेसबुक पर अतिसक्रिय
ब्लॉगर्स तत्काल ब्लॉग की ओर लौटेंगे. लोग अक्सर अपनी पोस्ट में अन्य
साथियों का ज़िक्र करते हैं, कमेंट्स में भी पोस्ट लेखक जवाब देता है,लेकिन
टिप्पणीकर्ता को खबर नहीं हो पाती. अगर नोटिफिकेशन की सुविधा ब्लॉग पर
होगी, तो टिप्पणीकर्ताओं को तत्काल जानकारी होगी कि उन्हें पोस्ट लेखक ने
या अन्य किसी ने कोई जवाब दिया है. चिट्ठा-चर्चा जैसे मंच को तो इस सुविधा
की सबसे ज़्यादा ज़रूरत है. जब भी चर्चा की जाती है, तो उसमें तमाम लिंक्स
शामिल किये जाते हैं, लेकिन कितनों को पता चल पाता है कि उनकी चर्चा की
गयी? नोटिफ़िकेशन की सुविधा होगी तो चर्चाकार को भी अभी से अधिक आनन्द आयेगा
चर्चा करने में. फिर देखियेगा, कैसे तमाम निष्क्रिय बैठे चर्चाकार कैसे
सक्रिय होते हैं .. और वे सारे ब्लॉग-लेखक हरकत में आ जायेंगे जो फ़िलहाल
पोस्ट लिखने से जी चुराने लगे हैं, और जिन्हें छोटे-छोटे स्टेटस रास आने
लगे हैं.
वैसे भी सोशल
नेटवर्किंग साइट्स की लोकप्रियता को , उनमें सुविधाओं पर नज़र डालनी ही
चाहिए। और ब्लॉग को अधिक सुविधा- संपन्न बनाए जाने पर विचार किया ही जाना
चाहिए, जब साइट्स की तरह ब्लॉग भी क्यों न संपन्न हो , आधुनिक तकनीक से
?
--- वंदना अवस्थी दुबे
(क्रमशः )
nice post
जवाब देंहटाएंकाफी महत्वपूर्ण बात कही वंदना ने
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति.इस विषय पर कई विचरों को पढने के बाद लगा कि शिवम् जी के विचारों से मेरी सहमति है.फेसबुक ,ब्लॉग का विकल्प नहीं हो सकता.हाँ ,आपके ब्लॉग को प्रसारित ,प्रचारित करने में सहायक हो सकते हैं .आज के समय में ,कोई सोशल मीडिया की अनदेखी नहीं कर सकता.इसलिए यही कहा जा सकता है कि फेसबुक ,ब्लॉग का पूरक है.
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट : उत्सवधर्मिता और हमारा समाज
आभार रेखा दी.
जवाब देंहटाएंअगर ब्लॉग को भी नोटिफ़िकेशन की सुविधा
हटाएंsettings me haen post share karnae kaa option
email kae jariyae aur jinsae aap karegi unko notify bhi hotaa haen
वन्दना जी सही कह रही हैं।
जवाब देंहटाएंराजीव कुमार झा ने सही लिखा कि फेसबुक ब्लाग का विकल्प नहीं है , उस का पूरक है । ब्लाग में अपने विचारों की बेलाग व्यंजना होती है , जो डायरी की तरह है । डायरी व्यक्तिगत होती है , फेसबुक एक चौराहा , जिस पर भाँति भाँति के दृश्य मिलते हैं । ब्लाग की लोकप्रियता का आधार उस में लिखित सामग़ी है ।
जवाब देंहटाएंसार्थक विचारों की रोचक श्रंखला
जवाब देंहटाएंबहुत ही सटीक प्रश्न उठाया है आपने और कमोबेश यही मंथन आज हर दिमाग में चल रहा है खासकर उनके जो ब्लॉगिंग के उस दौर को बहुत मिस करते हैं । विस्तार से जल्दी ही लिख भेजता हूं आपको
जवाब देंहटाएंफेसबुक समाचार पत्र है तो ब्लॉग एक किताब।
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