एक रात करीब करीब पूरा उत्तर प्रदेश एक अफवाह की गिरफ में जकड़ा रहा, वह भी जनवरी की ठंडी एक रात और अँधेरे में दिखा जीवन के प्रति मोह।
मैं इन सबसे बेखबर रात भर सोती रही - रात में एक दो बार मेरे मुंहबोले भाई की कॉल आई और मैं कौन उठे और सुने इग्नोर करके सोती रही। सुबह पेपर उठाया तो पता चला कि पिछली रात कुछ हुआ कि लोग सारी रात जागते रहे। एक अफवाह की रात में भूकंप आने वाला है और जो लोग सोते मिलेंगे वे सब पत्थर के हो जायेगे - कहाँ से चली और कैसे चली नहीं मालूम लेकिन जैसे जैसे लोगों को पता चला सबने अपने मित्रों , परिवार वालों और परिचितों को अवगत कराना शुरू कर दिया और जनवरी की सर्द रात में लोग भूकंप के डर से घर से बाहर निकल आये और अलाव जला कर सड़क पर बैठे रहे। इसके बीच बीच में बचाव के तरीके भी सुनाई दे रहे थे। अपने दरवाजे पर दीपक जलाइए, पुरुष वर्ग के माथे पर हल्दी से टीका लगाइए और अपने दरवाजे के दोनों ओर हल्दी से थाप लगाइए। ये भी सुनाई दिया कि भूकंप अमुक स्थान से आगे बढ़ रहा है मानो कि सवारी न मिलने के कारण वह पैदल ही चल कर आ रहा है।
इस अफवाह ने प्रशासन की भी नीद उड़ा दी लेकिन उसके प्रयासों के बाद भी लोग समझ नहीं पाए और वे छोटे बड़ों सबके साथ बाहर ही रहे या फिर घर में जागते रहे।
इन अफवाहों को क्या कहा जाय? कौन इनसे लाभान्वित होने वाला है। इस दहशत और खौफ से डरे लोगों में कमजोर दिल वालों को दिल का दौरा पद गया और कई लोग इसमें चल बसे। अचानक आधी रात को फ़ोन की घंटी बजने से ही मन आशंका से भर उठता है। इसमें सभी कम पढ़े या फिर दकियानूसी लोग थे ऐसा नहीं था लेकिन जो विचारशील व्यक्ति थे, वे भी इसके शिकार हुए। हम बगैर ये सोचे कि इसमें कितनी सच्चाई हो सकती हीइसको सच maan रहे the। अगर भूकंप आता है तो वह इस तरह समाचार प्रसारित करने का समय देगा। इंसान पत्थर कैसे हो सकता है? इसका सोने और जागने से क्या सम्बन्ध माना जाया? हम प्रबुद्ध लोग भी क्या लोगों को उनके अन्धविश्वास से विरत नहीं कर पाए क्या? या फिर हम खुद इसका शिकार हो गए। ये खबर हमारे प्रदेश के ब्लोगर बंधुयों ने तो सुनी ही होगी ईमानदारी से बताये कि किसने किसने इस पर विश्वास करके खुद को घर से बाहर किया या फिर रात से जागते रहे।
इस अफवाह ने कितने लोगों को बीमार किया इसका अनुमान ही लगाया जा सकता क्योंकि रजाई छोड़कर एकदम से बाहर आना वैसे भी स्वास्थ्य की दृष्टि से गलत है सर्दी लग सकती है और बच्चे तो वैसे भी नाजुक होते हें। जिम्मेदार और प्रबुद्ध लोगों को ऐसी अफवाह सुनाने के बाद फैलाने के स्थान पर पुलिस या पर्यावरण अधिकारी से बात करनी चाहिए और लोगों को समझाना चाहिए। आधी अधूरी जानकारी और अफवाह किसी कि भी जान ले सकती है अतः इस तरह के वातावरण में बहुत समझदारी से काम लेना चाहिए । न खुद भ्रमित हों और न ही औरों को होने दें।
मंगलवार, 3 जनवरी 2012
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पता नही क्यो लोग अफ़वाहो पर विश्वास करते हैं।
जवाब देंहटाएंmaene bhi kal shaam ko news mae daekhaa
जवाब देंहटाएंajeeb baat thee aur is tarah ki avvah kaun udaa rahaa haen is par avshyay koi chhanbeen jaruri haen
यह नयी तरह की अफवाह है। इस अफवाह से तो किसी का भला भी नहीं हो सकता।
जवाब देंहटाएंअजीब सी अफवाह है ... एक बार अफवाह फैली थी कि करवा चौथ पर देवी के नाम से दान ( कपडे और सिन्दूर ) किया जाये .. नहीं तो व्रत का लाभ नहीं मिलेगा ..:):) वैसे भी व्रत का लाभ कितना और कैसे होता है नहीं मालूम ..
जवाब देंहटाएंबस अनिष्ट कि आशंका से प्रबुद्ध लोग भी ऐसी अफवाहों की गिरफ्त में आ जाते हैं
jaagte raho nahi to patthar ho jaoge:D
जवाब देंहटाएंuff kya afwaahen hain..:D
यह सब देख कर लगता है कि कितना पिछड़ता जाते हैं हम।
जवाब देंहटाएंराजस्थान इस अफवाह से बचा रहा ...आये दिन इतने दीपक जलाओ , सिन्दूर और चूड़ियाँ पहनाओ , घर पर हल्दी के छापे लगाओ जैसी अफवाहें फैलती रहती हैं ... फोन करने वाले इसे और आगे बढ़ाने की प्रार्थना भी करते हैं और प्रबद्ध लोंग इसे आगे भी बढ़ाते रहते हैं ! पता नहीं लोगों को इससे क्या मिलता है !
जवाब देंहटाएंइंसान के भीतर का डर और असुरक्षा की भावना उन्हें ऐसी अफवाहों पर यकीं करने को बेबस करती है...
जवाब देंहटाएंपढाई लिखाई, बुद्धिमानी का कोई लेना देना नहीं इससे...
क्या किया जाये!!!
afvaahon par vishvaas karna mand budhdhitvata durshata hai.
जवाब देंहटाएंajeeb si afvaah jo mujhe agle din office me aakar sunNe ko mili....aur hairani hui jaankar ki kaise padhe-likhon ke samaaj me rahte hain ham.
जवाब देंहटाएंbas han 'bevkoof ho tum sab' kah kar aage nikal aaye. anuman nahi tha ki khabar aaptak bhi hai.
हास्यास्पद है .....ये इक्कीसवीं सदी का भारत है ?
जवाब देंहटाएंमैंने तो यह खबर ब्लॉग पर ही पढ़ी बहुत लोग बहुत कुछ लिख रहे हैं इस बात पर... सही में हास्यस्पद है....वैसे यहाँ संगीता आंटी की बात से मैं पूरी तरह सहमत हूँ। कि बस अनिष्ट कि आशंका से प्रबुद्ध लोग भी ऐसी अफवाहों की गिरफ्त में आ जाते हैंयही सच है जिसके कारण ऐसी अफवाहों को और हवा मिल जाती है और सभी इसका शिकार बन जाते हैं
जवाब देंहटाएंजनाब ये भारत है .....यहाँ राई का पहाड़ बनाने वाले बहुत हैं....सुन्दर प्रस्तुति.
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afvaah afvaah hi hoti hai....
जवाब देंहटाएंअजीब सी अफवाह है ......पर अफवाह तो अफवाह हैं
जवाब देंहटाएंअफवाहें हकीकत से ज्यादा तेज भागती हैं....
जवाब देंहटाएंदिलचस्प अफवाह थी यह।